गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

मेघ सेना छोटीसादड़ी ब्लॉक की बैठक

छोटीसादड़ी | राष्ट्रीय मेघ सेना की ब्लॉक स्तरीय बैठक रविवार को नाराणी गांव में हुई। अध्यक्षता सेना के जिलाध्यक्ष नेत राम मेघवाल ने की। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय कार्यकारिणी  दिल्ली के सचिव प्रभुलाल चंदेल थे। बैठक में मेघसेना के नियम, आवेदन फार्म की पूर्ति, यूनिफार्म वितरण संबंधी कार्य किया गया। पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष लाभचंद मेघवाल, ब्लॉक अध्यक्ष प्रहलाद मेघवाल ने समाजोत्थान पर विचार रखे। चंदेल ने 18 सितंबर को नीमच में प्रस्तावित मेघवंश के अधिवेशन की जानकारी देकर सहभागिता का आह्वान किया।

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

मेघवाल समाज की शहर कार्यकारिणी का गठन (Meghwal society formed the city executive)


अलवरमेघवाल समिति का गठन कर भरतसिंह को सर्वसम्मति से शहर अध्यक्ष बनाया गया है। समाज के प्रबुद्ध जनों की रघुवीरसिंह गोठवाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में गिर्राज प्रसाद वरिष्ठ उपाध्यक्ष, सूरजभान, रमेश गंडाला, लालचंद उपाध्यक्ष, मनोहरलाल सचिव, बीआर शास्त्री संयुक्त सचिव, सोहन लाल कोषाध्यक्ष, कालू राम विधि मंत्र कुलदीप सामरिया प्रचार मंत्री, उदय चंद, राजाराम, नेकी राम, बनवारी लाल, डॉ. महेश गोठवाल, गरीब राम संगठन मंत्री, कांशीराम, रघुवीरसिंह, नंदलाल और बद्रीप्रसाद संरक्षक बनाए गए हैं।
मेले के लिए बनाई समिति: अलवर वाल्मीकि जयंती के लिए शहर मेला समिति का गठन किया गया है। अध्यक्ष ब्रज किशोर खैरालिया ने बताया कि समिति में सुरेश उपाध्यक्ष, प्रेमचंद नंदा महामंत्री, विजय गुगलिया प्रचारमंत्री, लालाराम गोडियाल संगठन मंत्री, मदन चांवरिया उप संगठन मंत्री, नवनीत वाल्मीकि कोषाध्यक्ष व ताराचंद चांवरिया उप कोषाध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं। व्यवस्था प्रभारी राजू सारसर को बनाया गया है।


Alwar. Meghwal Brtsinh committee and was unanimously appointed chairman of the city. Society of enlightened men in the meeting chaired by Gotwal Girraj Raghuveer Prasad, senior vice president, Suraj Bhan, Ramesh Gandala, Lalchand vice president, secretary Manohar Lal, BR Sastry, Joint Secretary, Sohan Lal Treasurer, Kalu Ram, Kuldeep Samaritan law spells Minister of Propaganda, Uday Chand, Rajaram, good and Ram, Lal Lal, Dr. Mahesh Gotwal, poor organization Minister Ram, Ram, Raghuveer Singh, Nandlal and mentor Badri Prasad have been made.
Committee formed to the fair: the city of Alwar Valmiki Jayanti Mela committee has been formed. Braj Kishore Karalia said committee vice president Suresh, General Secretary Prem Chand Nanda, Vijay Guglia Prcharmntri, Lalaram Godiyal organizing secretary, Madan Chanvria Deputy Minister of organization, Navneet Valmiki treasurer and deputy treasurer, has been appointed Tarachand Chanvria. Raju Sarasr is designed to charge the system.
 

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

सांसद मेघवाल बहस में अव्वल (Meghwal MP in the first debate)

Jaipur. MPs of Rajasthan in the Lok Sabha in the monsoon session of Parliament attended the debate among Arjunram Meghwal are most active.PRS in the presence of MPs in the Lok Sabha a question, participate in debates and on private bills, etc., have compiled a list of active members. Meghwal 207 took part in the debate.

जयपुर . संसद के मानसून सत्र में लोकसभा में राजस्थान के सांसद अर्जुनराम मेघवाल बहस में शरीक होने वालों में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे। बीकानेर से भाजपा सांसद मेघवाल को लोकसभा की सक्रियता के बारे में आकलन करने वाली संस्था पीआरएस (पार्लियामेंट रिसर्च सर्विसेज) ने बहस में सक्रियता में अव्वल माना है। पीआरएस ने सांसदों की उपस्थिति, लोकसभा में पूछे गए सवाल, बहस में भागीदारी और निजी विधेयक आदि आधार पर सक्रिय सांसदों की सूची तैयार की है। मेघवाल ने 207 बहस में हिस्सा लिया। उपस्थिति में वे 99 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहे जबकि निजी विधेयक पेश करने में चौथा स्थान हासिल किया।

हक के लिए ढंग से लड़ना होगा : मेघवाल (Have to fight for the right way: Meghwal)

राजनीतिक दलों ने अपने लाभ के लिए दलितों का भरपूर उपयोग किया है। दलित समाज आज भी याचक की भूमिका में खड़ा है। आरक्षण देने मात्र से दलितों का भला नहीं हो गया। अब कमजोर तबकों को उठकर अपने हक के लिए सही ढंग से लड़ाई लड़ना होगी। दलितों को सामाजिक न्याय पूरी तरह नहीं मिला है।


यह बात पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश मेघवाल ने नीमच के दशहरा मैदान में आयोजित सर्व मेघवंश सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही। बारिश में भीगने के बावजूद श्री मेघवाल बोलते रहे। लोगों ने भी उन्हें धैर्यपूर्वक सुना। उन्होंने कहा कि मेघवंशियों को अन्य समुदायों की तुलना में राजनीति में आगे आने के अवसर मिलने चाहिए। उन्होंने मेघवंशियों को चेताया कि शराब और नोटों के बदले वोट देने की कुप्रथा पर लगाम लगाएँ। देशभर में मेघवंशियों का जनजागरण अभियान चलाया गया है।


मेघवंश के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल ने कहा कि आज भी भारत में 25 करोड़ मेघवंशी गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। उन्हें अपने हक के लिए आगे लाना हमारा उद्देश्य है। मेघवंश के राष्ट्रीय महामंत्री प्यारेलाल रांगोठा ने कहा कि मेघवंश को अपना इतिहास जानना चाहिए। सर्व मेघवंश की महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमिला एस कुमार साधौ ने कहा कि समाज में बालिकाओं को शिक्षित करें, उन्हें आगे आने के अवसर दें। समाज के विकास में महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र परिहार ने मेघवंश को आरक्षण देने, मेघवंश को धर्मशाला एवं छात्रावासों के लिए जमीन आवंटित करने सहित 9 मुद्दों का ज्ञापन पढ़ा, जिसे बाद में केंद्रीय प्रतिनिधियों को सौंपा गया। राष्ट्रीय महासचिव प्रभुलाल चंदेल ने मेघवंश के उत्थान के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कही।


इससे पूर्व सर्व मेघवंश समाज द्वारा नगर में रविवार दोपहर 12 बजे आंबेडकर चौराहे से रैली निकाली गई। मुख्य मार्गों से होती हुई रैली दशहरा मैदान पर सभा में परिवर्तित हुई। रविदास भक्त मंडल उज्जैन द्वारा मीरा के भजनों की प्रस्तुति दी गई। इससे पूर्व मेघ चालीसा का पाठ किया गया। संचालन किशोर जेवरिया ने किया।

Political parties have been utilized for the benefit of Dalits. Venue still stands in the role of supplicant. Reservation was just not good for the downtrodden. The weaker sections will be up and fight for your rights properly. Underprivileged social justice is not complete.


The former Union Minister Kailash Meghwal Neemuch Dussehra Maidan, while holding all Megvansh conference. Despite Mr. Meghwal kept wet in the rain. They heard him patiently. He Megvanshion compared to other communities should have the opportunity to get ahead in politics. He cautioned Megvanshion to vote against alcohol abuse and notes Restrict. Megvanshion in the country's public awareness campaign has been launched.


Megvansh the president said Gopal Denwal Megvanshi 25 million in India today are living a life of anonymity. Our aim is to bring them up for your rights. The national general secretary Pyarelal said Megvansh Rangota Megvansh should know their history. Megvansh all of the women's wing president said Pramila S Kumar Sadu to educate girls in society, give them the opportunity to get ahead. Women's participation in the development of society is important. Megvansh reservation to the State President Devendra Parihar, Megvansh to allocate land for a hotel and hostels, including the 9 issues, read the memo, which was later assigned to the Union representatives. National General Secretary Prbhulal Chandel promote education for the upliftment of Megvansh talked about.


Earlier Sunday afternoon in the city by all Megvansh society rallied from 12 at the intersection of Ambedkar. Dussehra rally of the main routes on the field changed in the House. Ujjain Division Meera bhajans by devotees Ravidas was presented. Before the text was Lent cloud. Operation Teen Xavria did.

शनिवार, 24 सितंबर 2011

1600 जातियों से बना है मेघवंश

मेघवंश आज पूरे देश में उपेक्षित है। मेघवंश को जागृत करने के लिए हम प्रदेश स्तर पर अभियान चला रहे हैं। इस बार पड़ाव मप्र में है। मेघवंश में 1671 जातियां हैं। देश में 20 से 25 फीसदी आबादी होने बावजूद हमें अधिकार नहीं मिल पाए हैं।
यह बात राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री कैलाश मेघवाल व सर्व मेघवंश महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल ने कही। वे पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा हमारा प्रयास है कि समाज भय और भूख मुक्त हो। आज समाज में भय और भूख का माहौल हैमेघवंशी एकत्रित होंगे तो अपनी ताकत का अहसास करा सकेंगे। मेघवंश को एकत्रित करने के लिए देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है।
नौ राज्यों में दौरे हो गए हैं, यह 10वां राज्य है। देश के विभिन्न कोनों में बसे मेघवंश को जयपुर में एकत्रित किया जाएगा। मौके पर राष्ट्रीय महामंत्री प्रभुलाल चंदेल, प्रदेशाध्यक्ष देवेंद्र परिहार सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद थे

सर्व मेघवंश महासभा का महाकुंभ

नीमच     राष्ट्रीय सर्व मेघवंश महासभा का महाकुंभ सोमवार को शहर में होगा। जिलाध्यक्ष बंशीलाल नकुम ने बताया महाकुंभ में पूर्व मंत्री योगेंद्र मकवाना, कैलाश मेघवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल, महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमिला साधौ, राष्ट्रीय महामंत्री प्रभुलाल चंदेल और प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र परिहार बतौर अतिथि मौजूद रहेंगे। आंबेडकर चौक से समाजजन की रैली निकालेगी जो टॉऊन हॉल पहुंचेगी।

मेघवंश महासम्मेलन का दिया न्यौता

राष्ट्रीय सर्व मेघवंश महासभा द्वारा देशभर में मेघवंश समाज की 1671 जातियों और उपजातियों को एक मंच पर इकट्ठा करने के उद्देश्य से शनिवार को हिसार में महासम्मेलन होगा। महासम्मेलन के लिए सभा के जिला प्रधान ओमप्रकाश तंवर ने शनिवार को चौपटा क्षेत्र के विभिन्न गांवों का दौरा किया। गांव नाथूसरी, हंजीरा, रूपावास, बेगू और रत्ताखेड़ा का दौरा करते हुए जिला प्रधान तंवर ने कहा कि महासम्मेलन में सरकारी नौकरियों का बैकलॉग पूरा करने, विद्यार्थियों के दाखिले के दौरान सीटों को अन्य कैटेगिरी में न बदलने, निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कर्मी पर आयकर व सरकारी ऋण पर ब्याज न लगाने, बेरोजगारों को गुजारा भत्ता व मनरेगा के तहत 300 दिन काम देने की मांग उठाई जाएगी। इसके अलावा महासम्मेलन में हर जिले स्तर में मेघवंश समाज की धर्मशाला व छात्रावास, मेघऋषि के नाम पर विद्यापीठ और सेना में मेघ रेजीमेंट का प्रावधान करने आदि मुद्दे भी उठाए जाएंगे। महासम्मेलन में राष्ट्रीय मेघवंश महासभा के संरक्षक योगेंद्र मलकाना, कैलाश मेघवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष आरपी सिंह, सलाहकार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल, कांग्रेस नेता फूलचंद मुलाना, सांसद अशोक तंवर, रतन लाल कटारिया व अन्य लोग भी शिरकत करेंगे।

बुधवार, 7 सितंबर 2011

मेघवाल समाज का सामूहिक विवाह : 21 जोड़े परिणय सूत्र में बंधे


मकराना
मेघवाल समाज मकराना का चतुर्थ सामूहिक विवाह सम्मेलन मंगलवार को स्थानीय पलाड़ा रोड पर समारोहपूर्वक आयोजित हुआ। 21 जोड़ों ने सात फेरे लेकर जीने मरने की कसमें खाई। सुबह दूल्हों को गाजे बाजे के साथ तोरण के लिए पांडाल में लाया गया। इसके बाद समारोह स्थल पर वरमाला की रस्म हुई। सभी जोड़ों ने विवाह मंडप में मंत्रोच्चारण के साथ अग्रि के सात फेरे लिएसायं सवा तीन बजे बारातों को विदा करने की रस्म अदा की गई। विवाह सम्मेलन समिति ने सभी 21 जोड़ों को घरेलू उपयोग की जरूरी वस्तुएं भेंट की। मेघवाल समाज व अन्य समाजों से आए लोगों ने अपने सामथ्र्य के अनुसार दुल्हनों को कन्या दान दिया। मुख्य अतिथि गोपीचंद वर्मा ने कहा कि कुरीतियां मिटाने से ही समाज का विकास संभव है। विशिष्ट अतिथि पालिका अध्यक्ष अब्दुल सलाम भाटी ने कहा कि विवाह सम्मेलन फिजूलखर्ची जैसी कुरीतियों को रोकने में काफी सहायक है। ऐसे आयोजनों को सरकार भी सहयोग देती है। मेघवाल समाज के राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक मेघवाल, अधिशाषी अभियंता बीएल भाटी, प्रभुराम कड़ैल, राजा राम, गोपाल अडाणिया, बिरदा राम नायक, डॉ. आरएस मेहरा, विवाह समिति के संयोजक मेवाराम गांधी, संरक्षक प्रभु राम खत्ती, लॉयंस क्लब के सूरज जैन, राम प्रसाद सैनी, विजय अग्रवाल, महेन्द्र झामनानी, भारत विकास परिषद् के महावीर बिदादा, गोरधन राम बुल्डक ने वर-वधू को आशीर्वाद दिया।


http://www.bhaskar.com/article/RAJ-OTH-1320070-2013559.html?ZX3-V

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

बलाई समाज विकास परिषद के चुनाव

फुलेरा . पुराना फुलेरा तेजाजी मंदिर के पीछे बलाई समाज विकास परिषद की सभा रविवार को भागचंद सांभरिया की अध्यक्षता में आयोजित हुई। इसमें समाजोत्थान व समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने को लेकर विचार-विमर्श किया गया व निर्वाचन अधिकारी रेनवाल के रामेश्वर लाल गांधी,भंवरलाल खंदोलिया व त्रिलोक चंद भाटी की देखरेख में परिषद कार्यकारिणी का नवीन चुनाव निर्विरोध किया गया। परिषद की नव गठित कार्यकारिणी में नृसिंह लाल नारनोलिया संरक्षक, राजेन्द्र वर्मा को अध्यक्ष, लक्ष्मण कटारिया वरिष्ठ उपाध्यक्ष, नाथूलाल खारडिया उपाध्यक्ष, मोतीलाल परिहार कोषाध्यक्ष, ताराचन्द महरड़ा महामंत्री, राजेन्द्र चौपड़ा मंत्री, भोलूराम सोलड़ा संगठन मंत्र, दीपक सांभरिया प्रवक्ता, नंदाराम चौपड़ा प्रचार मंत्री, नाथू लाल अंकेक्षक, एडवोकेट भागचंद सांभरिया को कानूनी सलाहकार बनाने के साथ कन्हैयालाल गांधी व प्रमोद कालावत को सदस्य,नारायण लाल परिहार,गोमाराम,रामेश्वर परिहार, कुंदनमल भंवरिया को संरक्षक सदस्यव मंगल चंद महरड़ा, मंगल चंद पापरवाल, रिद्धकरण को मनोनीत सदस्य बनाया गया।

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

मेघवाल समाज के दूसरे सामूहिक विवाह बाबत् बैठक रवि को / काशीराम के नेतृत्व में व्यापक स्तर पर जनसम्पर्क तेज

बीकानेर, । मेघवाल समाज सामूहिक विवाह सम्मेलन समिति, बीकानेर के तत्वावधान में मेघवाल समाज का द्वितीय सामूहिक विवाह समारोह आयोजित करने हेतू मेघवाल समाज की बैठक 26 सितम्बर,2011 रविवार को सुबह 11 बजे खादी मंदिर, चौतीना कुंआ में रखी गई है। जिसमें सभी समाज बन्धुओं से बैठक में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचने के लिए व्यापक स्तर पर जनसम्पर्क सम्मेलन प्रभारी काशीराम मेघवाल के नेतृत्व में भंवरलाल गंडेर, हेतराम परिहार, मोहनलाल कोटिया, लीलाधर मोडासिया, गोरधनराम रिड़मलसर आदि द्वारा किया जा रहा है। बैठक में समाज में व्याप्त बाल विवाह-दहेज प्रथा एवं फिजूलखर्ची जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए समाज हित में द्वितीय सामूहिक विवाह आयोजित करने के लिए विचार-विमर्श कर सामूहिक विवाह की तिथि-स्थान एवं शामिल किए जाने वाले जोड़ों की संख्या पर निर्णय किया जा सके। जनसम्पर्क के दौरान सम्मेलन प्रभारी काशीराम मेघवाल ने कहा कि समाज में छोटे-बडे क़ा भेद मिटाने एवं समाज में दहेज देने के लिए बढ़ रही प्रतिस्पध्र्दा को मिटाने के लिए सामूहिक विवाह में शामिल होकर अपने बच्चों की शादीयां करने का आह्वान किया जाएगा जिससे समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाया जा सके। इसके लिए सामूहिक विवाह का बार-बार आयोजन किया जाना समाज हित में जरुरी है। बैठक में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर समाज हित में अपनी भागीदारी निभाने की अपील की गई है।

मेघवाल समाज का अधिवेशन 21 को

प्रतापगढ़ | मेघवाल समाज जनजागृति अभियान की बैठक गत दिवस यहां हुई। इसमें समाज के अधिवेशन की रूपरेखा तय की गई। समाज के जिलाध्यक्ष नेत राम मेघवाल ने बताया कि कार्यक्रम में वर्ष 2011 के प्रतिभा सम्मान समारोह की रूपरेखा बनाई गई एवं 21 अगस्त को राष्ट्रीय सर्व मेघवंश महासभा का एक दिवसीय अधिवेशन प्रतापगढ़ में रखने का निर्णय लिया गया। इस अधिवेशन में समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री योगेंद्र मकवानी, पूर्व मंत्री कैलाश मेघवाल, समाज के पदाधिकारी व विधायक उपस्थित रहेंगे। जनजागृति अभियान की अध्यक्षता डॉ. आरएस कच्छावा ने की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कंवर लाल रैदास, रामलाल एवं गोपाल रहे। संचालन प्रेमचंद रैदास ने किया। कार्यक्रम में उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण रैदास, सचिव प्रेमचंद रैदास, संगठन मंत्री देवीलाल बरोठा एवं प्रचार मंत्री गबूरचंद उपस्थित थे।

शनिवार, 27 अगस्त 2011

मेघवाल समाज सुधार समिति के चुनाव 28 को

जैसलमेर | मेघवाल समाज सुधार एवं विकास समिति के चुनाव 28 अगस्त को संपन्न होंगे। समिति के अध्यक्ष एडवोकेट मुल्तानाराम ने बताया कि वैधानिक तरीके से चुनाव संपन्न करवाने के लिए मोहनलाल बारूपाल को मुख्य चुनाव अधिकारी, मनोहरलाल देवपाल एवं प्रितमराम बामणिया को सहायक चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है। उन्होंने बताया कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, उपसचिव तथा कोषाध्यक्ष के चुनाव सदस्यों की राय एवं मतदान से निर्वाचन करवाया जाएगा। साथ ही 17 सदस्यों के जिला परिषद के क्षेत्रवार चुनाव होंगे तथा पोकरण शहर एवं जैसलमेर शहर से सदस्यों का निर्वाचन किया जाएगा। बारूपाल ने बताया कि इस संबंध में समिति की प्रबंध कार्यकारिणी की बैठक 15 अगस्त को 2 बजे डेडानसर रोड स्थित समिति के मुख्यालय में आयोजित की जाएगी जिसमें चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से एक सप्ताह पूर्व सदस्यता नवीनीकरण एवं आजीवन सदस्य पंजीकृत करने पर विचार किया जाएगा।

मेघवाल समाज ने किया कांग्रेस जिलाध्यक्ष व ब्लॉक अध्यक्षों का सम्मान

बालोतरा
मेघवाल समाज बालोतरा के तत्वावधान में रणजीत आश्रम में स्वामी रामप्रकाश आचार्य व अमृतराम महाराज के सान्निध्य में आयोजित एक समारोह में कांग्रेस के नए जिलाध्यक्ष व ब्लॉक अध्यक्षों का सम्मान किया गया।
स्वामी रामप्रकाश आचार्य ने कहा कि समाज में शिक्षा की नींव मजबूत करने पर विशेष जोर दिया जाए। शिक्षा से ही तरक्की की राह खुलेगी। विधायक मदन प्रजापत ने कहा कि सरकारी योजनाओं की आमजन को जानकारी होनी चाहिए। योजनाएं अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे इसके लिए कार्यकर्ताओं को प्रयास करने होंगे।
कांग्रेस जिलाध्यक्ष फतेह खां ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता सक्रिया होकर जनभागीदारी निभाएं तथा समस्याओं के निराकरण के संबंध में एकजुट होकर प्रयास करें। ब्लॉक अध्यक्ष भंवरलाल भाटी ने कहा कि समाज में शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने के साथ ही बालिका शिक्षा के लिए विशेष प्रयास होने चाहिए। प्रधान जमना देवी गोदारा ने निराश्रितों के हित के लिए पार्टी की ओर से चलाई जा रही कल्याणकारी योजना के संबंध में जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान सिवाना ब्लॉक अध्यक्ष मोटाराम मेघवाल, मूलाराम पोटलिया, नवाराम मेघवाल, मानाराम मेघवाल, अमराराम राठौड़ व बाबूलाल नामा ने भी विचार व्यक्त किए। इस दौरान नवनिर्वाचित अध्यक्षों का साफा पहना व माल्यार्पण कर सम्मान किया । इस अवसर पर श्रीराम गोदारा, रतन खत्री, चंद्रा बालड़, नृसिंह प्रजापत, भगवानाराम भील, मांगीलाल बोस, हनुमान मेघवाल, कालूराम ठेकेदार, छगन जोगसन व मांगीलाल बारूपाल सहित कई कार्यकर्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन हरिराम जसोल ने किया।
प्रतिनिधि मंडल मिला जिलाध्यक्ष से कांग्रेस जिलाध्यक्ष फतेह खां के बालोतरा आगमन पर पार्टी के एक प्रतिनिधि मंडल ने उनसे मुलाकात कर शिक्षक संघ की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखने का आग्रह किया। डाक बंगला परिसर में ब्लॉक अध्यक्ष भंवरलाल भाटी के नेतृत्व में पार्षद नृसिंह प्रजापत, महबूब खां, मोटाराम चौधरी, सतीश कंवर, सरपंच कूंपाराम पंवार, सुभाष जोशी, गणपत दवे व हुकमङ्क्षसह ने उनसे मुलाकात कर उन्हें कार्यकर्ताओं की ओर से पार्टी हित में किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने खां से शिक्षक संघ की मांगों का निस्तारण करवाने को लेकर मांगे राज्य सरकार के समक्ष शीघ्र रखने की मांग की। खां ने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वो
पार्टी की नीतियों को आमजन तक पहुंचाकर योजनाओं का ज्यादा से ज्यादा
प्रचार-प्रसार करें।

राजस्थान मेघवाल समाज-एक परिचय



हम मेघवाल हैं मेघवाल रहेंगे- navratna mandusiya
मेघवंश समाज अनेक टुकड़ों में बंटा हुआ है। ये अनेक टुकड़े अपने को एक दूसरे से अलग समझने लगे तथा एक दूसरे से ऊंचा बनने की होड़ में अपनी संगठन शक्ति खो बैठे हैं।
मेघवंशी,भांबी,बलाई,सूत्रकार,जाटा,मारू, बुनकर,सालवी,मेघ,मेघवाल,मेघरिख,चांदौर,जाटव,बैरवा इत्यादि पर्यायवाची उपनामित जातियां स्वयं को एक दूसरे से अलग एवं ऊंचा मानकर आपस में लड़ती रहती हैं।

यदि ये सब उपजातियां केवल एक जाति के रूप में संगठित हो जाएं तो वे अपने जीवन में एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं। ये सोच उभरी तो इसके क्रियान्वयन के लिए अनेक शुभचिंतकों व गुरुओं ने समाज को केवल एक मेघवाल नाम देकर संगठित करने का प्रयास किया, जिसके सार्थक परिणाम सामने आए। 12 सितंबर 1988 को राजस्थान मेघवाल समाज नाम की इस संस्था का पंजीकरण कराया गया।

प्रारंभिक संस्थापकों ने समाज को जोडऩे का खूब प्रयास किया। लेकिन इनकी अन्य कार्याे में व्यस्तता के कारण यह संस्था मृतप्रायः हो गई। इस संस्था में प्राण फूंकने के उद्देश्य से 27 अप्रैल 2004 को जयपुर में बैठक आयोजित की गई। संस्था का संरक्षक श्री रामफल सिंह को बनाया गया। उद्देष्य हैं कि उपजातियां अपने आपस के वर्ग भेद मिटाकर पुनः अपने मूल मेघवंश रूप मेघवाल नाम को स्वीकारें और अपनी जाति पहचान को संगठित,सृदृढ़ और अखंड बनाए रखने के लिए अब मेघवाल नाम के नीचे एक हो जाएं।

समाज के कुछ लोग इसका विरोध करते हैं। उनका कहना है कि बलाई,बैरवा,जाटव इत्यादि मेघवाल क्यों बनें। इस बारें में संरक्षक श्री रामफल सिंह का सुझाव है कि जब ब्राह्मण समाज में 52 उपनामित जातियां हैं। लेकिन वे सभी सर्व ब्राह्मण महासभा के बैनर के नीचे बैठकर समाज हित में चिंतन कर सकते हैं। एकता के दावों के साथ अपने अधिकार की मांग करते हैं तो हम एक बैनर तले आने में संकोच क्यों करते हैं।

गुर्जर समाज का एक और उदाहरण देखिए। एकता की बात आई तो गुर्जर समाज ने उपजाति तो क्या धर्म को भी भुला दिया और क्रिकेट खिलाड़ी अजहरूद्दीन,फिल्म एक्टर अक्षय कुमार और दौसा से चुनाव लड़े कमर रब्बानी चौची तक को गुर्जर भाई माना। कोई भी लड़ाई दिमाग से लड़ी जाती है।

यदि दिमाग के स्तर पर हार जाता है तो वह मैदान में कोई लड़ाई नहीं जीत सकता। हमारी अब तक की दीन हीनता और दुरावस्था का कारण ही यह रहा कि हम एकजुट नहीं रहे। यानि हम दिमाग स्तर पर पराजित रहे हैं। क्यों नहीं हम जाति को ही हथियार बनाकर अपने अधिकारों के लिए सार्थक ढंग से लड़ाई लड़ें। इसके लिए मेघवंश की एकता मजबूती और ताकत दे सकती है। हम मेघवाल हैं मेघवाल रहेंगे।

संपर्क-

श्री आर.पी. सिंह, संरक्षक, राजस्थान मेघवाल समाज (रजि. संख्या 224/जय/88-89)73, अरविंद नगर, सी,बी,आई. कालोनी, जगतपुरा, जयपुर. मो. 9413305444, 0141-2750660
 श्री झाबर सिंह, बी-31, अध्यक्ष, राजस्थान मेघवाल समाज (रजि.), कैंप कार्यालय, संजय कालोनी, नेहरू नगर, आरपीए के सामने, जयपुर, मो. 9414072495, 9829058485 

htpp://kiranmandusiya.blogspot.com (dali / atyachar ) 

((अपील)) मेघवाल हितकारी महासभा जिला कोटा का गठन क्षेत्र के मेघवाल समाज के लोगों के विकास एवम समस्याओं के समाधान में सहायता हेतु प्रजातांत्रिक तरीके से हुयी है.

अपील

आदरणीय मेघवाल बन्धुओं,
मेघवाल हितकारी महासभा जिला कोटा का गठन क्षेत्र के मेघवाल समाज के लोगों के विकास एवम समस्याओं के समाधान में सहायता हेतु प्रजातांत्रिक तरीके से हुयी है. यह संस्था समाज के लोगों के लिये हर समय तत्पर रहती है तथा समाज के लोगों से अपील करती है कि सम्पूर्ण समाज हमेशा भाईचारे के साथ एकजुठ होकर रहे. हम हमारे बच्चों को हर हालत में पडावें. हमारे बच्चियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दें ताकि समाज में नारियों का विकास हो सके. रोजगार के अवसरों की जानकारियां प्राप्त कर रोजगार में लगें. सरकारी योजनाओं की जानकारी लेकर उनका फायदा उठावें. अंधविशासों एवम दैविक कुविचारों से मुक्त होकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनायें. अपना मनोबल ऊंचा बनाकर रखें. प्रजातंत्र में अपने अधिकार एवम व्यक्तित्व की जानकारी रखें. समाज में फैली हुयी कुरीतियां जैसे मृत्युभोज, बालविवाह एवम फिजुलखर्ची से मुक्त हों ताकि लोग विकास की ओर अग्रसर हो सकें. समाज के लोग शराब, मांस एवम अन्य नशो की चीजों से दूर रहें. सरकारी एवम संवेधानिक मानवाधिकार कानूनों के प्रति जागरूक हों. अधिकारों के लिये हर गांव एवम मोहल्लों में समाज के लोगों के संगठनों जो समाज के सामने आने वाली विपत्ति के समय एकजुठ हों. राजस्व अधिकारों की जानकारी रखें तथा राजस्व रेकार्ड में सबके सम्मानजनक शब्द मेघवाल ही दर्ज हों. गांव, शहर, विधानसभा, लोकसभा हर स्तर पर सहमति बनाकर चुनाव में समाज के लोगों को खडाकर विजयी बनावें. समाज के चुने हुये लोग समाज के नाम का आशीर्वाद मानते हुये समाज के लोगों के विकास के लिये तत्पर रहे. समाज के विशाल वोट बैंक को सबसे बडा आधार मानें तथा औरों का पिछलग्गु बनकर ना रहें. समाज के सरकारी अधिकारी कर्मचारी समाज सेवा में अपना योगदान समर्पित भाव से दें.

गांव में रहने वाले लोग उन्न्त तकनीक से खेती को अपनावें. हमारे वर्ग के लिये सरकार की कई योजनायें कृषि विकास के लिये हैं का फायदा उठायें. हमारे राजनेता एवम संगठन गरीब लोगों को जमीन आवंटन कराने में सहायत करें. बन्धुआ मजदूरों (हालियों) के पुनर्वास के सार्थक प्रयास किये जावें. सभी राजनितिक पार्टियों पर समाज के संगठन समाज की बाहुलता को ध्यान में रखते हुये पंचायत से लोकसभा तक समुचित प्रतिनिधित्व देने के दबाव बनाकर रखें. कर्मचारियों के साथ दुर्व्यव्‌हार व पक्षपात न हो. हमारा आरक्षण यथोचित बना रहे इस हेतु हम सजग एवम एकजुट बने रहें. किसी भी क्षेत्र में समाज के लोगों के साथ सामाजिक अपमान जैसी घटना होने पर समाज के लोग नेता, संगठन एवम सरकारी तंत्र एकजुठ होकर प्रशासन पर प्रभावी कार्यवाही हेतु दबाव बनावें. हमारे हर शहर, कस्बे में सामाजिक एवम शिक्षा के उत्थान हेतु समाज के भवन सरकारी सहायता से समाज को मिले. इस हेतु हर स्तर पर सार्थक प्रयास होने चाहिये. मेघवाल समाज में सतसंग एवम साधु संतों की संस्कृति का बोलबाला बढ रहा है. संतों से अपील है कि आप समाज के उत्थान में रचनात्मक भूमिका निभायें. हमारे लोग कृषि एवम नौकरी का ही भरोषा न कर व्यापार एवम व्यवसाय में भी प्रवेश करें जहां पर उन्नति के असीम अवसर उपलब्ध हैं.

हमारे सामाजिक संगठन की श्रृखला गांव से जिला, राज्य एवम केन्द्र तक बने. समाज के लोग समाज संगठनों द्वारा समाज विकास में कराये जाने वाले सभी कार्यक्रमों में बढचढकर भाग लें. लोगों के जीवन को बचाने वाला सबसे महत्वपूर्ण काम रक्तदान हमें सहर्ष अपनाना चाहिये ताकि लोगों का जीवन बचाया जा सके और आपका स्वास्थ्य भी ठीक रह सके. हमारे बच्चों के सपने बडे हों वे आइएएस, आइपीएस, विदेश सेवा, आरएएस, आरपीएस, डाक्टर, इंजिनीयर, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, एमलए, एमपी, मिनिस्टर, विद्वान, उच्च कोटि के लेखक पत्रकार, व्यवसायी, उधोगपत, बडे संत, समाज सुधार, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आदि उच्च श्रेणी के पदों पर पहुंचे ऐसे अवसर उपलब्ध करावें तथा ग्रहण करें. मेघवाल समाज के लोग मेहनतकश हैं, बुद्धिमान हैं, चरित्रवान हैं, सहनशील हैं. हमारा विशाल वोट बैंक है. हम अधिकार प्राप्त हैं. पडे लिखे हैं. कानून एवम सरकारी योजनायें हमारी साथ हैं. हम धर्म प्रेमी लोग हैं. हमने कभी किसी पर अत्याचार नहीं किया. भारतवर्ष का निर्माण करने वाले हम हैं. राष्ट्र निर्माण में हम हमेशा आगे रहे हैं. दोस्तों अब जागृत होने की जरूरत है. मेघवाल हितकारी महासभा आपके साथ है.
जयहिन्द,
दिनांक : 26/01/2011. मेघवाल हितकारी महासभा,
जिला-कोटा (राजस्थान).

मेघवाल समाज ने उठाई 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग

बांसवाड़ा & राजस्थान प्रदेश मेघवाल समाज ने एससी वर्ग को पूर्व में प्राप्त 16 प्रतिशत आरक्षण की पुन: मांग की हैं। इसको लेकर समाज की बैठक में आगामी दिनों में जनजागरण करने का निर्णय किया हैं। दूसरी ओर रविवार को बडग़ांव में हुई बैठक में इस मामले को लेकर जहां निर्णय किया गया वहीं प्रदेश मेघ सेना का सहसंगठन का गठन किया। बैठक की अध्यक्षता मोगजी भाई बडग़ांव, मुख्य अतिथि शंकरलाल मेघवाल घोड़ी तेजपुर व विशिष्ट अतिथि हीरालाल सेनावासा थे। इस मौके पर वक्ताओं ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने, समाज में रूढ़ीवादी परंपराओं को समाप्त करने, बाल विवाह रोकने, सामाजिक आयोजनों में अनावश्यक खर्च को कम करने को लेकर विचार विमर्श किया। दूसरी ओर मेघ सेना की गठित कार्यकारिणी में अध्यक्ष गोविंद मेघवाल, उपाध्यक्ष गौतम भाई व प्रकाशचंद्र, महासचिव रमेश, विनोद, नारायण चुने गए हैं। सदस्य के रूप में मांगीलाल, अमृतलाल, गौतम, वि_ल, रामलाल, तुलसीराम, हीरालाल, दिनेश, शंकर आदि प्रमुख रूप से शामिल किए गए हैं।

(राजस्थान प्रदेश मेघ सेना की संयुक्त बैठक कल) मेघवाल समाज की बैठक कल

पाली. राजस्थान मेघवाल समाज व राजस्थान प्रदेश मेघ सेना की संयुक्त बैठक रविवार को मनसापूर्ण मां काली मंदिर, सर्वोदय नगर में सुबह 11 बजे आयोजित की जाएगी। मेघवाल समाज के सचिव नेमीचंद गोदा ने बताया कि मेघवाल समाज के अध्यक्ष गणेशराम बोस व राजस्थान मेघवाल समाज के जिलाध्यक्ष कैलाश मेघवाल के आतिथ्य में होने वाली इस बैठक में समाज के प्रबुद्धजन व कार्यकर्ता उपस्थित रहेंगे।

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

आंकड़े विश्व evangelization अनुसंधान केंद्र से नवीनतम अनुमानों.

PEOPLE
लोग नाम: Meghwar भील
देश: पाकिस्तान
उनकी भाषा: मारवाड़ी भील
जनसंख्या:
170,700 (1990)
196,700 (1995)
+२,२६,६०० (2000)
सबसे बड़ा धर्म:
90% हिंदू
9% मुसलमान
ईसाइयों: 1%
चर्च के सदस्यों: 1967
शास्त्रों अपनी भाषा में: भाग
अपनी भाषा में यीशु फिल्म: उपलब्ध
अपनी भाषा में ईसाई प्रसारण: कोई नहीं
मिशन इस लोगों के बीच काम कर रहे एजेंसियों: 1
व्यक्तियों, जो सुसमाचार सुना है 63,000 (32%)
13,800 (7%): स्थानीय ईसाइयों द्वारा evangelized उन
उन 49,200 (25%): बाहर से evangelized
व्यक्तियों, जो इंजील कभी नहीं सुना है: 133,700 (68%)
अपने देश
देश: पाकिस्तान
जनसंख्या:
१२,१९,३३,३०० (1990)
१४०४९६७०० (1995)
+१६१८२७४०० (2000)
आकार के क्रम में मेजर लोगों:
पश्चिमी पंजाबी 42.5%
11.6% सिन्धी
दक्षिणी पंजाबी 9.8%
पूर्वी पठान 7.9%
7.4% उर्दू
प्रमुख धर्मों:
96.7% मुसलमान
1.8% ईसाइयों
1.5% हिंदुओं
मूल्यवर्ग की संख्या: 37

पाकिस्तान के मेघवाल भील

Meghwar भील लोग परंपरागत रूप से जाति के प्रति सजग हिंदुओं द्वारा "अछूत" के रूप में माना समूहों में से एक है. जब भारत दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान के) में 1947 में विभाजित किया गया था, जाति हिंदुओं बड़ी संख्या में छोड़ दिया. हालांकि, अनुसूचित जाति के हिंदुओं के कुछ Meghwar भील के रूप में, पाकिस्तान में रहने का फैसला किया. हालांकि वे एक बहुत छोटे से पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक का हिस्सा हैं, वे मुसलमानों द्वारा बजाय उनके खुद हिंदू भाइयों द्वारा तुच्छ किया जा रहा तरजीह देने लगते हैं. अफसोस की बात है, मुसलमान और हिंदू Meghwar के बीच प्राचीन विरोध विभाजन से कम नहीं था.

Meghwar दक्षिणी पंजाब क्षेत्र में रहते हैं, दादू और Nawabshah के शहरों के पूर्वोत्तर. उनकी भाषा, मारवाड़ी भील, भील ​​भाषाओं और इंडो - आर्यन भाषाई परिवार का हिस्सा की एक उप समूह है. मारवाड़ी भील भाषा ज्यादातर एक बात जीभ है, हालांकि कुछ अखबारों की भाषा में लिखा जाता है.

उनके जीवन क्या कर रहे हैं जैसे?
हिंदू समाज में, ब्राह्मण उच्चतम जाति के हैं, जबकि Meghwar भील के रूप में अनुसूचित जाति, कम कर रहे हैं और गरीब किसानों और कृषि मजदूरों के रूप में वर्गीकृत कर रहे हैं. Meghwar ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जहां कई प्रवासी खेत मजदूरों जो मौसमी फसलों का पालन करने के लिए उनके पीड़ित परिवारों को अतिरिक्त आय लाने हैं. गेहूं और बाजरा प्रधान खाद्य फसलों, चावल, कपास, एक प्रकार का वृक्ष, और मकई द्वारा पीछा कर रहे हैं. किसानों के लिए, शुष्क भूमि सिंचाई की आवश्यकता है, तो मानसून की वर्षा को अपने अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं. वे पंजाब में भाग्यशाली सिंधु नदी और अपने पांच पूर्वी सहायक नदियों करने में मदद के लिए भूमि की सिंचाई हैं.

Meghwar के लिए विवाह दो व्यक्तियों के बीच की तुलना में दो परिवारों के बीच एक संघ की अधिक है. अधिकांश विवाह, जाति और सामाजिक रैंक दी विचार के साथ व्यवस्था कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में युवा जोड़े आम तौर पर पति के परिवार के साथ या निकट में रहते हैं.

Meghwar महिलाओं को आसानी से अपने लंबे लाल पेटीकोट स्कर्ट की वजह से एक दूरी से देखा जाता है. गांवों में माता पिता इस पारंपरिक पोशाक है, जो हर गतिविधि के लिए पहना जाता है का परित्याग न करे, लेकिन जब युवा महिलाओं को शहर में जाना वे पाकिस्तानी महिलाओं पूर्ण पैंट और लंबे समय शीर्ष कन्वर्ट करने के लिए ताकि वे अन्य महिलाओं के साथ मिश्रण होगा.

हाल की रिपोर्ट है कि सामंतवाद के गढ़ बजाय मजबूत किया है गैरकानूनी 1992 कानून है कि पाकिस्तानी जमींदारों को भील समूहों की गुलामी समाप्त कर दिया है के बावजूद, ध्यान दें. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग Haris, या दास के ग्रामीण क्षेत्रों में छिपा मामलों में जहां Meghwar अपने जमींदारों ऋणग्रस्तता के लिए जंजीरों में कभी कभी छिपा जेलों सहित मिल जारी है. पाकिस्तानी जमींदारों यह एक फोन करके अपनी कार्रवाई का औचित्य साबित किरायेदार और मकान मालिक के बीच साझेदारी है. "

अपने विश्वासों क्या हैं?
लगभग Meghwar के सभी हिंदू हैं. उन्होंने यह भी अभ्यास कई animistic अनुष्ठान है, जो विश्वास है कि निर्जीव वस्तुओं आत्माओं है को दर्शाता है. एक उदाहरण मृत के लिए भावना अनुष्ठान है, जहां Meghwar गेहूं का आटा और पानी की बलि आटा गेंदों बनाने है. यदि कौवे आटा गेंदों खाते हैं, उनका मानना ​​है कि दिवंगत व्यक्ति की भावना पीड़ा में है. ऐसी रिपोर्टें हैं कि कोई जानवर जो जो यीशु को स्वीकार है आटा गेंदों दृष्टिकोण किया गया है.

उनकी आवश्यकताओं क्या हैं?
क्षेत्र में सफल evangelization की जल्द से जल्द सबूत 1900 में किया गया था. हालांकि, थोड़ा बढ़ावा और उन शुरुआत संरक्षित किया गया था, और वर्तमान में वहाँ केवल Meghwar ईसाइयों की एक मुट्ठी रहे हैं. कुछ मिशनरियों Meghwar के बीच काम कर रहे हैं, लेकिन कई और अधिक समर्पित ईसाई कार्यकर्ताओं की तत्काल जरूरत है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि Meghwar जल्दी नहीं पहुँच रहे हैं कि वे मुसलमानों को दस साल के भीतर हो जाएगा. मौलिक इस्लामी कानून की ताकत अन्य धर्मों के सहिष्णुता के लिए छोटे से कमरे में छोड़ देता है. यह प्रभावित करेगा हिंदुओं और सूक्ष्म दबाव उन पर रखा जाएगा या तो छोड़ या बदलें.

बाइबल और यीशु फिल्म के भाग मारवाड़ी भील भाषा में उपलब्ध हैं, लेकिन कोई ईसाई प्रसारण में इन लोगों के लिए सुलभ हैं.

प्रार्थना अंक
प्रार्थना करो कि भगवान योग्य भाषाविदों आपूर्ति मारवाड़ी भील भाषा में बाइबल का अनुवाद पूरा हो जाएगा.
प्रार्थना करो कि भगवान ने लंबी अवधि के कार्यकर्ताओं को बढ़ाने के लिए कुछ है जो पहले से ही जवाब दिया है शामिल हो जाएगा.
Meghwar भील के बीच यीशु फिल्म की प्रभावशीलता के लिए प्रार्थना करो.
भगवान से पूछो Meghwar भील ईसाइयों की एक छोटी संख्या को मजबूत प्रोत्साहित करने, और रक्षा.
पवित्र आत्मा से पूछो करने के लिए ईसाइयों की ओर Meghwar भील के दिलों नरम इतना है कि वे सुसमाचार के लिए ग्रहणशील हो जाएगा.
Principalities और शक्तियों कि Meghwar आध्यात्मिक अंधेरे में बाध्य भील रख रहे हैं पर अधिकार ले लो.
प्रार्थना है कि भगवान प्रार्थना टीमों को बढ़ाने के लिए पूजा और हिमायत के माध्यम से मिट्टी टूट जाएगा.
आगे उसका नाम की महिमा के लिए एक विजयी Meghwar भील चर्च लाने यहोवा से पूछो!  Meghwal society (मेघवाल समाज)

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

मेघ सेना की स्थानीय इकाई की ओर से रैली का आयोजन

जोधपुर | राजस्थान मेघ सेना की स्थानीय इकाई की ओर से पहली बार रविवार को पथ संचलन (रैली) का आयोजन किया गया। इसमें मेघवाल समाज के लोगों ने एकता बनाए रखने का संकल्प लिया। सुबह 11 बजे जालोरीगेट चौराहे से रैली नागौरी गेट सर्किल पहुंची। यहां समाज के लोगों ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। सर्किल पर सभा भी आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में पूर्व गृह मंत्री कैलाश मेघवाल को आमंत्रित किया गया था। वे शनिवार को ही जोधपुर पहुंच गए थे, लेकिन बताया गया कि रैली व सभा में भीड़ नहीं जुटने के कारण वे कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए और सर्किट हाउस में ही बैठे रहे। इस संबंध में मेघ सेना के जिलाध्यक्ष जगदीश दैय्या का कहना है कि वे अपरिहार्य कारणों से सभा में नहीं आ सके।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

मेघ ऋषि - नए प्रतीक (Megh Rishi - New Icon and Symbol)

मेघ समाज में मेघ ऋषि की कथाएँ बहुत पुरानी हैं. परंतु उसका स्वरूप क्या है, रंग-रूप क्या है इसके बारे में कोई बिंब मन पर नहीं था. राजस्थान के मेघवालों से अब प्राप्त हो रही जानकारी और सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित आलेखों से मालूम पड़ता है कि मेघ ऋषि का बिंब ही नहीं उसकी समस्त कथाओं के प्रमाण भी उपलब्ध हैं.
राजस्थान में युवाओं के चरित्र निर्माण के लिए मेघसेना बनाई गई है और मेघ सेना के प्रतीक के तौर पर कमांडर के रूप में स्वयं मेघ ऋषि को लिया गया है.

  megh rishi ji maharaj
शांत और विनम्र ऋषि के रूप में मेघ ऋषि धार्मिक प्रतीक के तौर पर उभरे हैं.

मेघ सेना की बैठक

बायतु & मुख्यालय पर मेघ सेना बायतु ब्लॉक की बैठक शुक्रवार को आयोजित की जाएगी। हनुमानराम पंवार ने बताया कि बैठक में मेघ सेना के जोधपुर संभाग महासचिव ठाकराराम मेघवाल, बायतु ब्लॉक मेघ सेना के अध्यक्ष खेताराम पूनड़, माडपुरा बरवाला शामिल होंगे।
प्रयास जारी
बाड़मेर & कुड़ला सरहद की प्याऊ के पास सड़क दुर्घटना में मृत साधु की शिनाख्त नहीं हो सकी। पुलिस ने आसपास के मठों से मृतक की पहचान कराने की कोशिश भी की। सदर थानाधिकारी ने बताया शिनाख्तगी के प्रयास जारी हैं। मृतक भगवा रंग की बनियान, फुल आस्तीन का चोला एवं शनि मुद्रिका धारण किए हुए था।

देवीलाल को मेघ सेना का सदस्य नियुक्त किया

राजस्थान प्रदेश मेघ सेना की कार्यकारिणी में देवीलाल यादव को सदस्य पद पर नियुक्त किया गया। संघ के प्रदेशाध्यक्ष मनोहर सिंह फांसल ने बताया कि देवीलाल यादव ने मेघवाल समाज के बच्चों को सरकारी नौकरियों के लिए प्रेरित करने, पुलिस सेवा, भारतीय सेना, अद्र्ध सैनिक बलों सहित देश सेवा की भावना पैदा करने और समाज को सामूहिक विवाह करने के लिए प्रेरित करने के लिए सम्मानित किया।

नरेंद्र मेघ सेना व चीफ कमांडर नियुक्त

भास्कर न्यूज & बाड़मेर
मेघसेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर जिले में मेघवाल समाज के प्रति भागीदारी निभाने एवं सराहनीय कार्य करने पर नरेंद्र कुमार मेघवाल को मेघसेना का जिलाध्यक्ष एवं जिला चीफ कमांडर नियुक्त किया हैं। यह जानकारी राजस्थान प्रदेश मेघ सेना के महासचिव जोधपुर संभाग के ठाकराराम मेघवाल ने दी। प्रदेश अध्यक्ष के निर्देशानुसार जिला, तहसील, नगर, कस्बा एवं ब्लॉक की कार्यकारिणी शीघ्र ही गठित कर प्रदेश कार्यकारिणी को कार्यालय में प्रेषित करें। मेघ सेना का उद्देश्य युवक-युवतियों को अच्छे संस्कार देने के साथ ही समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना है। युवाओं में देशभक्ति की भावना पैदा करना मेघ सेना का मुख्य उद्देश्य है।

डांगी बालोतरा मेघ सेना के अध्यक्ष नियुक्त

बाड़मेर & मेघवाल समाज की प्रत्येक समस्या में विशेष भागीदारी निभाने एवं सराहनीय कार्य करने पर राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघ सेना के निर्देश पर श्याम डांगी को मेघ सेना का बालोतरा अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह जानकारी राजस्थान प्रदेश मेघ सेना के महासचिव जोधपुर संभाग ठाकराराम मेघवाल ने दी। उन्होंने बताया कि डांगी की नियुक्ति पर समाज के लोगों में खुशी व्याप्त है। देश भक्ति की भावना पैदा करना मेघ सेना का मुख्य उद्देश्य है। ठाकराराम ने बताया कि बालोतरा में रविवार को अंबेडकर पार्क में सुबह ग्यारह बजे बैठक आयोजित होगी।

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

मेघ सेना राजस्थान (भारत ) megh sena rajasthan (india)




भारत में कई सामाजिक और धार्मिक सेनाएँ बनी हैं. इन्हीं में एक नाम और जुड़ा है ‘मेघ सेना’ का. मेघवाल समाज का संगठन रजिस्टर्ड है और इसकी उपविधि भी है. मेघ सेना इसी की एक इकाई है. 07-02-2009 को राजस्थान में मेघ सेना का गठन हुआ. इसके लिए मेघवाल समाज की एक बैठक की गई जिसमें प्रदेश कार्यकारिणी और ज़िला केंद्र बनाए गए. इसी बैठक में मेघ सेना का ड्रेस कोड और वर्दी निर्धारित की गई. 04-07-2009 को प्रदेश कार्यकारिणी की प्रथम बैठक हुई जिसमें सभी ज़िलों के मेघ सैनिक आमंत्रित किए गए. तारीख़ 31-10-2009 को जयपुर में मेघ सेना का प्रथम फ्लैग मार्च किया गया. फ्लैग मार्च के बाद एक बैठक की गई जिसमें यह संकल्प पास किया गया कि विभिन्न नामों से जानी जाने वाली सभी मेघवंशी जातियों का आपसी संपर्क बढ़ाया जाए और उन्हें एक सूत्र में बाँधा जाए.

इसी सिलसिले में दिनाँक 01-11-2009 को राष्ट्रीय सर्वमेघवंश महासभा का गठन किया गया. इसमें भारत के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया. यह बैठक होटल इंडियाना क्लासिक, जयपुर में की गई. इसमें तय किया गया कि मेघवंशी जातियों के विभिन्न संगठनों को एक मंच पर लाने का कार्य शीघ्र निष्पादित किया जाए. कार्यकारिणी बनाई गई. प्रदेश अध्यक्षों के चयन का निर्णय लिया गया. संकल्प पास किया गया कि मेघवंश समाज की विभिन्न जातियों के संगठनों से संपर्क बढ़ा कर उन्हें राष्ट्रीय मेघवंश मंच से जोड़ा जाए और साथ ही मेघ सेना को राष्ट्रीय स्तर पर संगठित किया जाए.

इसी दिन महिला विंग का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षा श्रीमती प्रमिला कुमार (हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज और कंज़्यूमर स्टेट फोरम की चेयरपर्सन) हैं. यूथ विंग भी गठित किया गया और श्री नरेंद्र पाल मेघवाल को इसके अध्यक्ष बनाया गया.

21-03-2010 को राष्ट्रीय सर्वमेघवंश महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें एक फिल्म के निर्माण का फैसला लिया गया ताकि मेघवंशीय संगठनों में एकता की प्रक्रिया तेज़ की जा सके. इसकी पटकथा और गीत लिखे जा चुके हैं. निर्माण की कार्रवाई चल रही है.

दिनाँक 04-07-2010 को कार्यकारिणी और प्रदेशाध्यक्षों की बैठक हुई. तय हुआ कि प्रत्येक प्रांत में सम्मेलन आयोजित किए जाएँ. उक्त योजना के तहत नवंबर और दिसंबर 2010 में पंजाब, राजस्थान (श्रीगंगानगर), हरियाणा (हिसार) और मध्य प्रदेश में उज्जैन या मंदसौर में सम्मेलन आयोजित किए जाएँगे.


विशेष टिप्पणी: भारत में कई सेनाओं का गठन हुआ है. कुछ ने सामाजिक कार्य किया और कुछ हिंसात्मक गतिविधियों का पर्याय बन गईं और कुछ राजनीतिक पार्टियों का महत्वपूर्ण अंग बनीं. मेघ सेना अभी स्वरूप ले रही है. इसकी भूमिका का मूल्यांकन अभी कुछ वर्ष बाद ही हो पाएगा. जहाँ तक मेघवाल समाज का प्रश्न है मेरी जानकारी में है कि इस समाज के लोगों को बारात के मौके पर घोड़ी या कार का प्रयोग नहीं करने दिया जाता. यह गाँवों में होता है. दूल्हे को घोड़ी से उतार कर पीटने या बारात पर पत्थर फेंकने की कई घटनाएँ रपोर्ट हो चुकी हैं. मीडिया ऐसा करने वालों को ‘दबंग’ जैसे शब्दों से महिमा मंडित करने का कार्य अनजाने में कर डालता है. शिक्षित वर्ग इस विषय में एक मत होगा कि किसी की बारात पर पत्थर फेंकना वास्तव में संवेदनहीन और अनपढ़ लोगों का कार्य होता है.
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In India there are many social and religious forces. And connected in such a name is "Cloud Army's. Meghwal social organization and its by-law is registered. That cloud is a unit of force. 07-02-2009 Iranian forces in the cloud was formed. It was a meeting of the State Executive Meghwal community and district centers. At the meeting, Cloud military dress code and uniform set. 04-07-2009 The first meeting of the State Executive of the cloud in which all military districts were invited. Cloud Army flag march in Jaipur on 31-10-2009 date was the first.

Date 01-11-2009 Srwmegvansh National Assembly in this respect was formed. It was attended by delegates from various states of India. The meeting hotel Indiana Classic in Jaipur, the. It was decided that the Megvanshi nations work to bring together different organizations to be executed soon. Executive made. State has decided the selection of presidents.

Women's Wing was formed the same day the chairperson Pramila Kumar (Retired High Court Judge and State Consumer Forum chairperson) are. Mr. Narendra Pal Meghwal youth wing has also been constituted and it was made president.

21-03-2010 Srwmegvansh national council meeting of the National Executive has decided to build a film so as to expedite the process of integration in Megvanshiy organizations. The script and songs have been written. Construction of the action is ongoing.

Meeting of the Executive and Pradeshadhykshon Date 04-07-2010. Was decided to be held in each province. Under the plan, November and December 2010 in Punjab, Rajasthan (Sriganganagar), Haryana (Hisar) or Mandsaur and Ujjain in Madhya Pradesh will be held in the conference.


Special Note: In India, several forces have been formed. Some social work and became synonymous with violence and became a vital part of some political parties. Cloud Army is now taking shape. Its role will be assessed only after a few years.It is in villages. Beat down from the mare or the groom to throw stones at the procession, there have been several incidents Rport. Those media that the "dominant" to glorify the work of such words and puts them into unknowingly.

शनिवार, 2 जुलाई 2011

Megvansh history (Gokuldasji Swami Maharaj, Gribdas Ji Maharaj


भारतवर्ष के सभ्यता इतिहास में पुरातन सभ्यताऐं सिन्धु घाटी, मोहनजोदडो जैसी सम्पन्न सभ्यताओं के पुरातन प्राप्त अवशेषों एवं भारत के कई प्राचीन ऋषि ग्रंथों में मेघवाल समाज की उत्पत्ति एवं उन्नति की जानकारीयां मिली हैं. साथ ही समाज के प्रात: स्मरणीय स्वामी गोकुलदास जी द्वारा सदग्रंथों से प्राप्त जानकारी के आधार पर भी समाज के सृजनहार ऋषि मेघ का विवरण ज्ञात हुआ है. मेघवाल इतिहास गौरवशाली ऋषि परम्पराओं वाला तथा शासकीय स्वरूप वाला रहा है. मेघऋषि का इतिहास भारत के उत्तर-पश्चिमी भूभाग की सरसब्ज सिन्धुघाटी सभ्यता के शासक एवं धर्म संस्थापक के रूप में रहा है जो प्राचीनकाल में वस्त्र उद्दोग, कांस्यकला तथा स्थापत्यकला का विकसित केन्द्र रहा था. संसार में सभ्यता के सूत्रधार स्वरूप वस्त्र निर्माण की शुरू आत भगवान मेघ की प्रेरणा से स्वयं भगवान शिव द्वारा ऋषि मेघ के जरिये कपास का बिजारोपण करवाकर कपास की खेती विकसित करवाई गयी थी. जो समस्त विश्व की सभ्यताओं के विकास का आधार बना. समस्त उत्तर-पश्चिमी भूभाग पर मेघऋषि के अनुयायियों एवं वंशजों का साम्राज्य था. जिसमें लोगों का प्रजातांत्रिक तरीके से विकास हुआ था जहां पर मानवमात्र एकसमान था. लेकिन भारत में कई विदेशी कबीले आये जिनमें आर्य भी एक थे, उन्होंने अपनी चतुराई एवं बाहुबल से इन बसे हुये लोगों को खंडित कर दिया तथा उन लोगों क|

सम्पूर्ण भारत में बिखर जाने लिये विवस कर दिया. चूंकि आर्य समुदाय शासक के रूप में एवं सभी संसाधनों के स्वामी के रूप में यहां स्थापित हो चुके थे उन्होंने अपने वर्णाश्रम एवं ब्राह्मणी संस्कृति को यहां थोप दिया था. ऐसी हालत में उनसे हारे हुये मेघऋषि के वंशजों को आर्यों‌ द्वारा नीचा दर्जा दिया गया. जिसमें आज के वर्तमान के सभी आदिवासी, दलित एवं पिछडे लोग शामिल थेभारत में स्थापित आर्य सभ्यता वालों ने यहां पर अपने अनुकुल धर्म, परमपरायें एवं नियम, रिवाज आदि कायम कर दिये थे जिनमें श्रम सम्बन्धि कठिन काम पूर्व में बसे हुये लोगों पर थोपकर उनसे निम्नता का व्यवहार किया जाना शुरू कर दिया था तथा उन्हें पुराने काल के राक्षस, नाग, असुर, अनार्य, दैत्य आदि कहकर उनकी छवि को खराब किया गया. इन समूहों के राजाओं के धर्म को अधर्म कहा गया था. इस प्रकार इतिहास के अंशों को देखकर मेघऋषि के वंशजों को अपना गौरवशाली अतीत पर गौरवान्वित होना चाहिये तथा वर्तमान व्यवस्था में ब्राह्मणवादी संस्कृति के थोपी हुई मान्यताओं को नकारते हुये कलियुग में भगवान रामदेव एवं बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर के बताये आदर्शों पर अमल करते हुये अपने अधिकार प्राप्त करने चाहिये. समाज में मेघवंश को सबल बनाने के लिये स्वामी गोकुलदासजी महाराज, गरीबदास जी महाराज जैसे संत हुये हैं जिन्होंने मेघवाल समाज के गौरव को भारत के प्राचीन ग्रंथों से समाज की उत्पत्ति एवं विकास का स्वरूप उजागर कर हमें हमारा गौरवशाली अतीत बताया है. तथा हमें निम्नता एवं कुरीतियों का त्याग कर सत कर्मों की ओर बड़ने का मार्ग दिखाया है. मेघवंश इतिहास :- मेघजाति की उत्पत्ति एवं निकास की खोज स्वामी गोकुलदासजी महाराज डूमाडा (अजमेर) ने अपनी खोज एवं लेखन के जरिये मेघवाल समाज की सेवा में प्रस्तुत की है जो इस प्रकार है; सृष्टि के आदि में श्रीनारायण के नाभिकमल से ब्रह्मा, ब्रह्मा ने सृष्टि रचाने की इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सन्तकुमार इन चार ऋषियों को उत्पन्न किया लेकिन ये चारों नैष्टिक ब्रह्मचारी रहे फिर ब्रह्मा ने दस मानसी पुत्रों को उत्पन्न किया. मरीचि, अत्रि अंगिरा, पुलस्त्व, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्ट, दक्ष, और नारद. ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो खण्ड करके दाहिने भाग से स्वायम्भुव मनु (पुरूष) और बाम भाग से स्तरूपा (स्त्री) को उत्पन्न करके मैथुनी सृष्टि आरम्भ की. स्वायम्भु मनु स्तरुपा से 2 पुत्र - उत्तानपाद और प्रियव्रत तथा 3 कन्याऐं आकुति, प्रसूति, देवहूति उत्पन्न हुई. स्वायम्भु मनु की पुत्री आकुति का विवाह रूचिनाम ऋषि से, प्रसूति का दक्ष प्रजापति से और देवहुति का कर्दम ऋषि से कर दिया. कर्दम ऋषि के कपिल मुनि पैदा हुये जिन्होंने सांख्य शास्त्र बनाया. कर्दम ऋषि के 9 कन्याऐं हुई जिनका विवाह: कला का मरीचि से, अनुसूया का अत्रि से, श्रद्धा का अंगिरा ऋषि से, हवि का पुलस्त्य ऋषि से, गति का पुलह से, योग का क्रतु से, ख्याति का भृगु से, अरुन्धति का वशिष्ट से और शांति का अर्थवन से कर दिया. ब्रह्माजी के पुत्र वशिष्ट ऋषि की अरुन्धति नामक स्त्री से मेघ, शक्ति आदि 100 पुत्र उत्पन्न हुये. इस प्रकार ब्रह्माजी के पौत्र मेघ ऋषि से मेघवंश चला. वशिष्ट ऋषि का वंश सूर्यवंश माना जाता है. ब्रह्माजी के जिन दस मानसी पुत्रों का वर्णन पीछे किया गया है उन ऋषियों से उन्हीं के नामानुसार गौत्र चालू हुये जो अब तक चले आ रहे हैं. ब्रह्माजी के ये पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र ही गुण कर्मानुसार चारों वर्णों में विभाजित हुये| श्रीमदभागवत में एक कथा आती है कि मान्धाता के वंश में त्रिशंकु नामक एक राजा हुये, वह सदेह स्वर्ग जाने के लिये यज्ञ की इच्छा करके महर्षि वशिष्ट के पास गये और इस प्रकार यज्ञ करने के लिये कहा. वशिष्ट‌जी ने यह कहकर इन्कार कर दिया कि मुझे ऐसा यज्ञ कराना नहीं आता. यह सुनकर वह वशिष्ट‌जी के 100 पुत्रों के पास जाकर उनसे यज्ञ करने को कहा. तब उन्होंने उस राजा त्रिशंकु को श्राप दिया कि तू हमारे गुरू का वचन झूंठा समझकर हमारे पास आया है इसलिये तू चांडाल हो जायेगा, वह चांडाल हो गया. फिर वह ऋषि विश्वामित्र के पास गया, विश्वामित्र ने उसकी चांडाल हालत देखकर कहा कि हे राजा तेरी यह दशा कैसे हुई. त्रिशंक ने अपना सारा वृतान्त कह सुनाया. विश्वामित्र उसका यह वृतान्त सुनकर अत्यन्त क्रोधित हुये और उसका वह यज्ञ कराने की स्वीकृति दे दी विश्वामित्र ने राजा त्रिशंकु के यज्ञ में समस्त ब्राह्मणों को आमंत्रण किया मगर वशिष्ट ऋषि और उनके 100 पुत्र यज्ञ में सम्मिलित नहीं हुये. इस पर विश्वामित्र ने उनको श्राप दिया कि तुम शूद्रत्व को प्राप्त हो जावो. उनके श्राप से वशिष्ट ऋषि की सन्तान मेघ आदि 100 पुत्र शूद्रत्व को प्राप्त हो गये|

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

लोक संचार को जीवंत रखे हैं संत कामड


उदयपुर, लोकजीवन में कई जातियां हजारों वर्षों से अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। उनमें कामड संत एक जाति के रूप में राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे प्रांतों में लोक में धर्म शिक्षण के साथ-साथ अध्यात्म की भावधारा का प्रसार कर रही है और यह क्रम ऐतिहासिक तौर पर पिछले एक हजार वर्षों से प्रमाणित हैं। इनकी एक धारा तेराताली लोकनृत्य के कारण पूरे विश्व में पहचान लिए हुए है।
उक्त विचार लोककलाविद् डॉ. महेंद्र भानावत ने मंगलवार को यहां संप्रति संस्थान की ओर से आयोजित डॉ. चंपालाल कामड के शोधग्रन्थ ‘कामड संत-समुदाय’ के लोकार्पण अवसर पर व्यक्ति किए। उन्होंने कहा कि आज भी लोकसाहित्य अध्ययन की दृष्टि से उपेक्षित ही अधिक है, इस पर शीघ्र और स्तरीय कार्य होना चाहिए अन्यथा यह शीघ्र ही लुप्त हो जाएगा और इसके प्रमाण तक नहीं मिलेंगे। कामड संत समुदाय का अध्ययन समग्र समुदाय का शोध अध्ययन है और इसकी हर विधा पर गंभीर शोध हुआ है, यह बधाई योग्य कार्य है।
बीएसएनएल में वेलफेयर एसोसिएशन के जिला सचिव ओमप्रकाश आर्य ने कहा कि हमें नई पीढी को लोक साहित्य और लोक परंपराओं के बचाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हीरालाल बलाई ने लोक साहित्य को जन-जन का साहित्य बताया और राजस्थान को इस दृष्टि से समृद्ध कहा।
इस अवसर पर रचनाकार डॉ. चंपादास कामड ने ग्रंथ के प्रणयन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि आज कितना ही दूरसंचार का दौर हो किंतु यह समुदाय लोक संचार माध्यमों से न केवल जुडा है बल्कि उनको आज तक जीवंत भी बनाए हुए है। यह अध्ययन मेवाड के उन सैकडों गांवों में बसे कामड लोगों पर आधारित है जो कला के धारक हैं और शैव, शाक्त, वैष्णवी परंपराओं सहित निर्गुणी परंपराओं के पोषक है। आज कामडों की परंपरा लुप्त होने को है और उसे बचाया जाना अति आवश्यक है। साहित्यसेवी राजेंद्र पानेरी ने पुस्तक के प्रकाशन उद्देश्यों की जानकारी दी। संचालन डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ ने किया। धन्यवाद संप्रति के महासचिव डॉ. तुक्तक भानावत ने ज्ञापित किया।
Udaipur, Lokjivn many species have survived for thousands of years.They Teratali a stream of folk around the world have been identified.
Dr. Mahendra Banawat Lokklavid the idea present here on Tuesday organized by the Institute of Dr. Chanpalal Kamd Sodgranth 'Kamd Saint - Community "on the occasion of the release that person.Saint Kamd research community and its study of the overall community is serious research on every genre, this work deserves congratulations.
BSNL district secretary of the Welfare Association Om Prakash Arya said that the new generation of folk literature and folk traditions should be encouraged to save. Hiralal Balai folklore of the public - the public literature and Rajasthan, said the rich.
Hundreds of them settled in villages of Mewar Kamd This study is based on people who are holders of Arts and Shaiva, Shakta, Vaishnavi Nirguni traditions, including traditions, is nutritious. Kamdon today the tradition is disappearing and there must be saved. The objectives of the publication of the book Sahitysevi Rajendra Paneri. Operations Dr. Krishna 'Firefly' did. Currently the Secretary General gave vote of thanks to Dr. limerick Banawat.

लोक कलाकारों ने समा बांधा


नई दिल्ली, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर एवं बाल भवन बोर्ड, दीव के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पहला तटीय पर्व “बीच फेस्टीवल“ का दीव में समापन हुआ।

29 से 31 अक्टूबर तक चले इस उत्सव को दीव के मुक्ताकाशी रंगमंच की दीर्घा में बैठे दर्शकों ने एक ओर क्षितिज को छूते समुद्र के दर्शन किए वहीं भारत की सांस्कृतिक विरासत की गहराई, विविधता एवं व्यापकता के दर्शन किए। बीच फेस्टीवल की परिकल्पना बाल भवन बोर्ड, दीव के निदेशक प्रेमजीत बारिया ने की थी। मंच परिकल्पना एवं प्रस्तुति पश्चिम क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर के कार्यक्रम अधिकारी विलास जानवे ने की थी।

“बीच फेस्टीवल“ में उदयपुर (राजस्थान) के “तेरा ताल“ दर्शनीय नृत्य ने खासा प्रभाव छोडा। “तेरा ताल“ कामड समुदाय की महिलाओं द्वारा बाबा रामदेव की आराधना में किए जाने वाले इस विशेष नृत्य को बैठकर किया जाता है। चौतारे की धुन और बाबा रामसा पीर के भजनों पर ढोलक की ताल पर महिलाएं अपने शरीर पर बांधे हुए १३ मंजिरों को बारी-बारी से दक्षतापूर्वक बजाते हुए अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती हैं। गोगुंदा-उदयपुर से आई निर्मला कामड के दल ने तेरा ताल नृत्य पर वाहवाही लूटी।


कार्यक्रम में जामनगर-गुजरात से आए जे.सी. जाडेजा के दल ने लास्य से भरपूर “मिश्ररास“ प्रस्तुत किया, जिसमें हर बाला अपने आपको गोपी तथा हर युवा अपने आपको कृष्ण का सखा समझता है। इसी दल ने बाद मेंडांडिया-रास भी प्रस्तुत कर दर्शकों में ऊर्जा का संचार किया। गोवा से आए महेन्द्र गावकर के दल की महिला कलाकारों ने अपने सिर पर पीतल की समई (प्रज्जवलित दीप स्तंभ) को संतुलित करते हुए नयनाभिराम सामुहिक नृत्य का प्रदर्शन किया। इसी दल ने गोवा के प्रसिद्ध नृत्य “देखणी“ से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। हिन्दी और पाश्चात्य संस्कृति के सुरीले संगम को बताने वाले इस नृत्य के मधुर गीत को दर्शक बाद में भी गुनगुनाते देखे गए। भारत के पूर्वी तट बंगाल की खाडी पर बसे पुरी से आए बाल नर्तकों ने “गोटीपुआ“ नृत्य में अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन किया। चंद्रशेखर गोटीपुआ कलासंसद के गुरू सत्यप्रिय पलई के निर्देशन में इन बाल कलाकारों ने प्रथम प्रस्तुति“दशावतार“ में भगवान विष्णु के दस अवतारों को शारीरिक एवं चेहरे के उत्कृष्ट भावों द्वारा दर्शकों को खासा प्रभावित किया। इन्हीं बच्चों ने “बंधा नृत्य“ द्वारा सामुहिक योगाभ्यास से ओतप्रोत विभिन्न मुद्राओं और कठिनतम शारीरिक भंगिमाओं से दर्शक समुदाय को हतप्रभ कर दिया। असम के कामरूप जिले से आए युवा कलाकारों ने जयदेव डेका के निर्देशन में असम का सदाबहार नृत्य “बिहू“ प्रस्तुत कर दर्शकों को साथ में झूमने के लिए मजबूर कर दिया। नव वर्ष के अवसर पर किये जाने वाले इस पारंपरिक नृत्य में युवकों ने जहां ढोल, पेंपां, गगना और ताल के साथ झूमते हुए प्रेमगीत गाए वहीं युवतियों ने अपने लास्यपूर्ण नृत्य से प्रकृति और पुरूष के प्रेम को बखूबी से प्रदर्शित किया।

बाल भवन बोर्ड, दीव के अधीनस्थ बाल भवन केन्द्र, वणांकबारा के बच्चों ने “जहां डाल-डाल पर सोने की चिडया....“ गीत पर समूह नृत्य प्रस्तुत किया वहीं बाल भवन केन्द्र, घोघला के बच्चों ने “जय हो“ गीत पर समूह नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों की प्रशंसा बटोरी।

कार्यक्रम का महत्वपूर्ण पक्ष “संस्कृति संगम“ रहा, जिसमें असम और गुजरात के मिश्रित ढोल वादन पर न केवल सभी कलाकारों ने बल्कि दर्शकों ने भी झूमकर नृत्य किया। समूचे मंच पर रंग-बिरंगे परिधानों में नाचते हुए कलाकारों ने अनेकता में एकता की परिकल्पना को सार्थक रूप दिया और हर दर्शक को अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व करने का अवसर दिया। इस कार्यक्रम को देखने हेतु दीव के नागरिकों के अलावा भारी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक भी पधारे थे। प्रारंभिक उद्घोषणा दीव की श्रीमती प्रतिभा स्मार्ट ने की।

भारत के पश्चिम तट से जुडे संघीय क्षेत्रा दीव की ऐतिहासिक भूमि, आई.एन.एस. खुकरी स्मारक स्थल के इस भाग को चक्रतीर्थ भी कहते हैं। लोकमान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने जिस सुदर्शन चक्र से जलंधर राक्षस का संहार किया था, वह चक्र यहीं रखा गया था और इसी कारण इस क्षेत्रा का नाम पडा “चक्रतीर्थ“।

गुरुवार, 30 जून 2011

मेघवाल samaj ko aage bhadhao mere pyare megh samaj ke logo kyo ki aaj ke yug me meghwal samaj ka naam bhahut aage aa rha h is liye pure bharat or pakisthan me rah rhe megh bhagat samaj aadi ko meghwal samaj me yogdan dena chahiye jise hamara samaj pure bharat me aage bhade


आज हमारे समाज मे कई अनिश्चता और कई खामिया फ़ैली हुई है ?आज जब हम पूरे भारत मे हर जगह बसे हूऐ है पर हमारी गिनती न के बराबर है क्यूंकि हमारे समाज मैं एकता की कमी है जिसे हम चाह कर भी पुरी नही कर सकते ,आज कई जगहों पर हमे एकत्रित करने की पहल की जा रही है ? पर एन कोसिसो मैं हमारा फायदा हमारी समाज के नेता और उनके सहकार ही पुरा फायदा ले जा रहे है ?वे हमारे नासम्जभाइयो और न पढे लिखे बुजुर्गो को अपनी समक्ष खडे रख दुसरे गाओ ओर उनके वासियों को फायदा ले रहे है जब की हमे सही मायने मैएक हो हमारी जाती की प्रगति के बारे मैं सोचना चाहिए और हमे मिलने वाले सभी अधिकारों को पाने की पहल करनी चाहिए ?
मै गुजरात का रहने व्हाला हूँ मेरापुरा नाम हरेश शिवलाल मेघवाल है मेरे पिताश्री पछले ७० वर्ष से यहाँ बसे हुऐ है वेसे तो हमारा पुरा परिवार यही बसा हुआ है पर हम अपनी खुसिया मनाने अक्सर अपने गाव मारवाड़ जक्सन जाया करते है ,हमारी ही तरह यहाँ बसे कई हमारे जातिवासी अपने गाव आया करते है ?उनके इसी तरह जाने आने की वजह से हमारी नतो यहाँ कुछ पहचान है औरनही न ही वहा ? मेरी पिताश्री के सामान उनके हम उम्र के सभी लोगो को तो यहाँ सरकारी नोकरी का होदा प्राप्त है पर हमारी जाती यहाँ मान्य न हो ने के कारन हमारी आने वाली पीढी का कोई भविष्य नही है हम जहाँ रह रहे है यहाँ मेरी गिनती के अनुसार मेघवाल २५०० के आसपास और अन्य राजस्थानी भाई जिनमे ठाकुर,रेगर,राजपूत,चोहान ,चोधरीऔर भी कई जातिया सायद २५००० के आसपास रहती है ?

हमे एक करने के लिए हाल ही कुछ दिनों मैं हमारे यहाँ एक विशाल समेलन किया जा रहा है ?जिसमे सभी जातियों को एक कियाजा रहा है , दिनाक २५:१०:२००९ को सेहर गांधीधाम ( कच्छ )
आप से अनुरोध है आप हमें सहियोग दे?

मेघवंशी भाइयो, उठो और समय को पहचान कर आगे बढ़ो (Megvanshi brothers, wake up and recognize the Proceed)


आर.पी.सिंह आई.पी.एस.

73, अरविंद नगर, सी.बी.आई. कॉलोनी, जगतपुरा, जयपुर.

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ. सं‍विधान लागू होने के तुरन्‍त बाद सभी को समानता का अधिकार, स्‍वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अत्‍याचारों से मुक्ति पाने का अधिकार, धार्मिक स्‍वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्‍कृति का अधिकार, संवैधानिक उपचारों का अधिकार मिला. लेकिन संविधान लागू होने के 57 वर्ष बाद भी दलित समाज अपमानित, उपेक्षित और घृणित जीवन जीने पर मजबूर है. इसका कारण दूसरों पर नहीं थोपकर हम अपने अन्‍दर ही झांक कर देखें कि हम अपमानित, उपेक्षित और घृणित क्‍यों हैं? हम दूसरों में सौ बुराई देखते हैं. दूसरों की ओर अंगुली उठाते हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हमारी ओर भी तीन अंगुलियां उठी रहती हैं. दूसरों में बुराई ढूँढने से पहले अपने अंदर की बुराई देखें. कबीर की पंक्तियाँ याद रखकर अपने अंदर झांकें:-

बुरा, जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जब दिल ढूंढा आपणा, मुझ से बुरा न कोय।

मन को उन्‍नत करो, हीन विचारों का त्‍याग करो.

मेरे विचार से यह सब इसलिए कि हम दब्‍बू हैं, स्‍वाभिमानी नहीं हैं. हम यह मानने भी लगे हैं कि वास्‍तव में अक्षम हैं. हमारा मन मरा हुआ है. हमारे अन्‍दर आत्‍मसम्‍मान व आत्‍मविश्‍वास की कमी है. किसी को आप बार-बार बुद्धु कहो तो वह वास्‍तव में बुद्धु जैसा दिखने लगता है. हमें भी ऐसा ही निरीह, कमजोर बनाया गया है और हम अपने को निरीह, कमजोर समझने लगे हैं. जबकि वास्‍तव में हम नहीं हैं. जब हमारे उपर कोई हाथ उठाता है, थप्‍पड़ मार मारता है तो हम केवल यही कहते हैं - अब की मार. दबी हुई, मरी हुई आत्‍मा, हुंकार तो मारती है, लेकिन मारने वाले का हाथ नहीं पकड़ती. मैं हिंसा में विश्‍वास नहीं करता, फिर भी आपको कहना चाहता हूँ कि आप पर जो हाथ उठे उस हाथ को साहस कर, एकजुट होकर कम से कम पकड़ने की तो हिम्‍मत करिए ताकि वह आपको मार नहीं सके. उसको वापिस मारने की आवश्‍यकता नहीं. आपका आत्‍मसम्‍मान जाग्रत होगा और आप एकजुट होकर अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे. अपने दिलों को बदलना होगा. दब्‍बू को हर कोई मारने की कोशिश करता है. एक कहावत है- एक मेमना (बकरी का बच्‍चा) भगवान के पास गया और बोला -भगवान आपने तो कहा था कि सभी प्राणी समान हैं. सभी को जीने का समान अधिकार है. फिर भी सभी भाईचारे को भूलकर मुझ पालनहार का भी तुम्‍हें निगलने का मन कर रहा है. सीना उठाकर चलोगे तो कोई भी तुम पर झपटने से पहले सोचेगा. बली तो भेड़-बकरियों की ही दी जाती है, सिंहों की नहीं. अत: मेमने जैसा दब्‍बूपन छोड़ो और समानता के अधिकार के लिए सिंहों की तरह दहाड़ो. एक बार हम साहस करेंगे तो हमें कोई भी जबरन दब्‍बू नहीं बना सकता.

असमानता, ऊँच-नीच की धारणा दूसरों देशों में भी है.

ऊँच-नीच की बात भारत में ही नहीं सम्‍पूर्ण विश्‍व में है. अमेरिका के राष्‍ट्रपति इब्राहिम लिंकन जब राष्‍ट्रपति बनकर वहाँ की संसद में पहुँचे तो किसी सदस्‍य ने पीछे से टोका, लेकिन तुम्‍हारे पिता जूते बनाते थे, एक चर्मकार थे. इब्राहिम लिंकन तनिक भी हीनभावना में नहीं आए बल्कि उस सदस्‍य को उत्‍तर दिया, हाँ, मेरे पिता जी जूते बनाते थे. वे एक अच्‍छे कारीगर थे. उनके द्वारा बनाए गए जूतों ने किसी के पैर नहीं काटे. किसी के पैरों में कील नहीं चुभी. किसी के पैरों में छाले नहीं हुए. डील नहीं बनी. मुझे गर्व है कि वे एक कुशल कारीगर थे. लोग उनकी कारीगरी की प्रशंसा करते थे. यह था लिंकन का स्‍वाभिमान, आत्‍मसम्‍मान के कारण वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्‍ट्रपति बने थे. हमें भी लिंकन की तरह अपने में आत्‍मविश्‍वास पैदा करना होगा. यदि हमको तरक्‍की की राह पकड़नी है तो हमें हीनभावना, कुंठित भावना को त्‍यागना होगा. हमें पुन: अपना आत्‍मसम्‍मान जगाना होगा. हम अपनी मर्जी से तो इस जाति में पैदा नहीं हुए और जब हम दलित वर्ग में पैदा हो ही गए हैं तो हीन भावना कैसी? आत्‍मसम्‍मान के साथ समाज की इस सच्‍चाई को स्‍वीकार कर आत्‍मविश्‍वास के साथ आगे बढ़ना होगा. सफलता की सबसे पहली शर्त आत्‍मसम्‍मान, आत्‍मविश्‍वास ही होती है.

राजस्थान प्रांत में मेघवाल जाति के क्षेत्रानुसार भिन्‍न-भिन्‍न नाम हैं लेकिन मूल रूप से यह 'चमार' नाम से जानी जाती थी. समाज में चमार शब्‍द से सभी नफ़रत करते हैं. गाली भी इसी नाम से दी जाती है. बचपन से ही मेघवाल जाति को हेय दृष्टि से देखा जाता है और समाज के इस उपेक्षित व्‍यवहार के कारण हमारे अंदर हीनभावना भर जाती है. हम अपनी जाति बताने में भी संकोच करते हैं. अब हम स्‍वतंत्र हैं, समान हैं तो अपने में हीन भावना क्‍यों पनपने दी जाए? हमें अपनी जाति पर गर्व होना चाहिए. संत शिरोमणी गुरु रविदास, भक्‍त कबीरदास, रूसी क्रांति का नायक स्‍टालिन, दासप्रथा समाप्‍त करने वाला अमेरिका का राष्‍ट्रपति अब्राहिम लिंकन, पागल कुत्‍ते के इलाज खोजने वाला लुई पास्चर, जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों को मारने वाले जनरल डायर की हत्‍या कर बदला लेने वाला शहीद ऊधम सिंह, भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और न जाने कितने महान नायक समाज द्वारा घोषित तथा कथित दलित जाति में पैदा हुए हैं तो हम अपने को हीन क्‍यों समझें.

अपने समाज की पहचान मेघवाल से स्‍थापित करो

मैंने कई पुस्‍तकें पढ़ी हैं. यह जानने की कोशिश की है कि समाज में अनेक अन्‍य जातियाँ भी हैं मगर ‘चमार’ शब्‍द से इतनी नफ़रत क्‍यों है? किसी अन्‍य जाति से क्‍यों नहीं लोग समझते हैं कि ‘चमार’ शब्‍द चमड़े का काम करने वाली जातियों से जुड़ा है. यदि चमड़े का काम करने से जाति चमार कही गई है तो कोई बात नहीं लेकिन इसी जाति से इतनी नफ़रत पैदा कहाँ से हुई? यह एक अनुसंधान का विषय है कि और जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ ‘चमार’ शब्‍द चमड़े से संबंधित न होकर संस्‍कृत के शब्‍द ‘च’ तथा ‘मार’ से बना है. संस्‍कृत में ‘च’ तथा ‘मार’ से बना है. संस्‍कृत में ‘मार’ का अर्थ मारना होता है. अत: चमार का अर्थ हुआ 'और मारो' उस समय उन लोगों को भय होगा कि ज़बरदस्‍ती अधीन किया गया एक विकसित समाज उनको कहीं पहले ही नहीं मार दे इसलिए अपने पूर्वजों को 'और मारो'….'और मारो' कहते हुए दब्‍बू बनाया गया, नीच बनाया गया, नीच व गंदे काम करवाए गए यह उस समय की व्‍यवस्‍था थी. हर विजेता हारने वाले को सभी प्रकार से दबाने-कुचलने की कोशिश करता है ताकि वह पुन: अपना राज्‍य न छीन सकें. लेकिन अब उस समय की व्‍यवस्‍था के बारे में आज चर्चा करना बेमानी है. हमें आज की व्‍यवस्‍था पर अपनी स्थिति पर विचार करना होगा. आप भी जाति का नाम चमार बताने में सभी संकोच करते हैं इसलिए हमें अपनी जाति का नाम 'चमार' की बजाए 'मेघवाल' लिखवाने का अभियान शुरू करना चाहिए. प्रत्‍येक को अपने घर में अन्‍य देवी देवताओं के साथ बाबा मेघऋषि की मूर्ति या तस्वीर लगानी चाहिए. हरिजन शब्‍द तो सरकार ने गैर कानूनी घोषित कर दिया है, इसलिए हरिजन शब्‍द का प्रयोग क़तई नहीं करना चाहिए.

हमारे पिछड़ने का एक कारण यह भी है कि हम बिखरे हुए हैं, संगठित नहीं है. हम अपनी एकता की ताकत भूल चुके हैं. अपना समाज भिन्‍न-भिन्‍न उपनामों में बंटा हुआ है, भ्रमित है. एक दूसरे से ऊँचा होने का भ्रम बनाया हुआ है. हममें फूट डाली गई है. हमारे पिछड़ेपन का कारण हमारी आपसी फूट हैं. आप तो जानते हैं कि फूट के कारण यह भी है कि भारत सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा है. रावण व विभीषण की फूट ने लंका को जलवाया, राजाओं की फूट ने बाहर से आक्रमणकारियों को बुलाया, अंग्रेजों को राज्‍य करने का मौका दिया और सबसे बड़ी बात है कि हमारी आपसी फूट से हमें असमानता की, अस्‍पृश्‍यता की जिन्‍दगी जीने पर मजबूर किया गया. फूट डालो और राज्‍य करो की नीति अंग्रेजों की देन नहीं, बल्कि यह भारत में बहुत प्राचीन समय से चालू की गई थी. ज़ोर-मर्जी से बनाया गया, शूद्र वर्ण अनेकों छोटी-छोटी उप जातियों में बांट दिया गया. उनके क्षेत्रीय नाम रख दिए गए ताकि हम सभी एक हो कर समाज के ठेकेदारों से अपने हक नहीं मांग सकें. मेघवाल यानि चमार जाति को अन्‍य छोटे-छोटे नामों से बांट दिया गया. मसलन बलाई, बुनकर, सूत्रकार, भांभी, बैरवा, जाटव, साल्‍वी, रैगर- जातियां मोची, जीनगर मेंघवाल इत्‍यादि आदि हमें एक होते हुए भी अपने को अलग-अलग मान लिया है. उनको एक दूसरे से बड़ा होने की बात सिखाई गई. यहाँ तक कि मेघवालों को भी जाटा मेघवाल तथा रजपूता मेघवाल में बांटा गया. यानि एक नहीं होने देने का पूरा बंदोबस्‍त पक्‍का कर दिया गया. यह एक षडयंत्र था और इस षडयंत्र में समाज के ठेकेदारों को कामयाबी भी मिली. राज्‍य के कुछ जिलों में अलवर, झुन्‍झुनु तथा सीकर जिले के कुछ भागों में मेघवाल जाति के चमार शब्‍द का उपयोग किया जाता था. चमार नाम को छोड़ मेघवाल नाम लगाने के लिए मेंघवंशीय नाम लगाने के लिए मेंघवंशीय समाज चेतना संस्‍थान ने मुहिम चलाई और 12-9-2004 को झुन्‍झुंनु में एक एतिहासिक सम्‍मेलन हुआ जिसमें लगभग सत्‍तर हज़ार लोगों ने हाथ खड़े करके मेघवाल कहलाने को राज्‍य स्‍तरीय अभियान शुरू किया गया. समाज को एकजुट करने के लिए मेघवाल नाम से अच्‍छा शब्‍द कोई नाम नहीं हो सकता. कई लोगों का सोचना है कि अपनी काफी रिश्‍तेदारियां हरियाणा, पंजाब प्रांतों में हैं और वहाँ पर अभी भी चमार शब्‍द का उपयोग होता है तो वहाँ पर क्‍या नाम होगा? इस बात पर मेरा कहना है कि हम पहल तो करें, बाद में वहाँ पर भी लोग अपनी तरह सोचेंगे.

राजस्‍थान राज्‍य में मेघवाल बाहुल्‍य में हैं बात उठती है कि समाज के लिए मेघवाल शब्‍द ही क्‍यों प्रयोग हों? इसका छोटा सा उत्‍तर है कि राजस्‍थान के 20-22 जिलों में यह शब्‍द अपने समाज के लिए प्रयोग होता है. अलवर में चमार, धौलपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर, करौली में जाटव, कोटा, टौंक, दौसा में बैरवा, जयपुर, सीकर में बलाई, बुनकर इत्‍यादि का प्रयोग किया जाता है. अत: एकरूपता के कारण मेघवाल बाकी जिलों में भी प्रयोग हो तो अच्‍छा है. एकरूपता के साथ एकता बनती है. कई लोग उपनामों को मेघवाल शब्‍द के नीचे लाने के समर्थक नहीं है. यह उनकी भूल है. मेरा तो मानना है कि शर्मा शब्‍द से परहेज़ नहीं होना चाहिए. मेघवाल शब्‍द से बहुमत दिखता है. मेघवालों में आपस में विभेद पूछना चाहें तो वे कह सकते हैं, -मैं जाटव मेघवाल हूँ, मैं बलाई मेघवाल हूँ इत्‍यादि. इस शब्‍द से एक बार शुरूआत तो हो. इसके बाद साल-छ महीनों में यह विभेद भी समाप्‍त कर हम सभी मेघवाल कहने लगेंगे. जब अन्‍य जातियाँ मेघवालों के शिक्षित बेटों के साथ अपनी बेटियों की शादी बिना किसी हिचकिचाहट के कर रही हैं तो हम छोटी-छोटी उपजातियों में भेदभाव नहीं रखें तो ही अच्‍छा है. अपनी एकता बनी रहेगी, वरना भौतिकवाद में पनप रहे इस समाज में हमारे अंदर फूट डाल कर हमारा शोषण ही होता रहेगा. कई भाइयों का मानना है कि नाम बदलने से जाति थोड़े ही बदल जाएगी. इस संशय पर मेरा विचार है कि नाम बदलने से हमारा व सम्‍पूर्ण समाज का सोच अवश्‍य बदलेगा. यह सही है कि मेघवाल नाम से लोग हमें चमार ही समझेंगे लेकिन मेघवाल शब्‍द बोलने में, सुनने में अच्‍छा लगता है और चमार यानि 'और मार' की दुर्गंध से पैदा हुई हीनभावना से छुटकारा भी मिलता है.

हमें गर्व है कि हम मेघऋषि की संतान हैं. मेघ बादलों को भी कहते हैं. बादलों का काम तपती धरती को बारिश से तर-बतर कर हरा-भरा करना है. उसी तरह हमारी जाति भी अपनी परि‍श्रम रूपी वर्षा से समाज को लाभान्वित करती है. अपनी जाति ने देना सीखा है. किसी का दिल दुखाना नहीं. इसलिए अच्‍छे संस्‍कारों को आत्‍मसम्‍मान के साथ पुनर्जीवित करना है. अत: हम हीनभावना को ना पनपने देवें. अत: परस्‍पर वाद-विवाद में अपनी शक्ति को दुर्बल न करें. अपने को एकजुट होकर सम्‍पन्‍न, शिक्षित, योग्‍य कर्मठ, स्‍वाभिमानी बनना है. इसी से हम अपने खोए हुए अस्तित्‍व व अधिकारों की बहाली करने में सक्षम होंगे. अब भी समय है हम आपस के वर्ग भेदभाव -चमार, बलाई इत्‍यादि भुलाकर मेघवाल के नाम के नीचे एक हो जाएँ. यदि हम एक होकर अपने अधिकारों की बात करते हैं तो सभी को सोचना पड़ेगा. आप जानते हैं कि अकेली अंगुली को कोई भी आसानी से मरोड़ स‍कता है, ले‍किन जब पाँचों अंगुलियाँ मिलकर मुट्ठी बन जाती है तो किसी की भी हिम्‍मत नहीं होती कि उसे खोल सके. जिस प्रकार हनुमान जी को समुद्र की छलांग लगाने के लिए उनकी शक्ति की याद दिलायी गयी तो वे एक ही छलाँग में लंका पहुँच गए थे. उसी प्रकार हम भी अपनी एकता की ताकत पहचान कर एक ही झटके में अपनी मंजिल प्राप्‍त कर सकते हैं. अब आपको अपनी एकता की शक्ति की ताकत दिखाने की आवश्‍यकता है. जानते हो, छोटी चिड़ियाएँ एकता कर जाल को उड़ाकर साथ ही ले गईं और अपने अस्तित्‍व की रक्षा की थी. उसी प्रकार आप भी उठो. स्‍वाभिमान जागृत करो अलगाव छोड़ो और एकजुट हो जाओ. समाजिक बुराइयाँ छोड़ने के लिए एकजुट, अपने को आत्‍मनि‍‍भर्र बनाने के जिए एकजुट और समाज में समान अधिकार पाने के लिए एकजुट. हम एकजुट होंगे तो तरक्‍की का रास्ता स्‍वयं बन जाएगा. देश में हम एक होकर हुंकार भरेंगे तो उस हुंकार की नाद गूंजेगी.

अंध श्रद्धा का त्‍याग करो, कुरीतियों का त्‍याग करो, जीवित मां-बाप की सेवा करो, और लोग हमें हमारे अधिकार देने पर मजबूर होंगे.

हम अनेक सामाजिक बुराईयों से , बुरी प्रथाओं से, सामाजिक रुढि़यो की बेडि़यों में जकड़े हुए हैं. म्रत्‍यु -भोज जैसे दि‍खावे पर लाखों रुपए हैसियत ये अधिक खर्च कर डालते हैं. कुछ लोग मां-बाप के जिंदा रहते कई बार उन्‍हें रोटी भी नहीं देते और मरने के बाद उनकी आत्‍मा की शांति के लिए ढोंग करते हुए उनके मुंह में घी डालते हैं. जागरण कराते हैं. देवी देवताओं को मानते हैं. गंगाजल चढ़ाते हैं. घर में बूढ़ी दादी चारपाई पर लेटी पानी मांगती रहती है और उसे कोई पानी की पूछने वाला नहीं. यह कैसी विडम्‍बना है यह ? एक राजस्‍थानी कवि ने सही कहा है:-

जोर-जोर स्‍यूं करै जागरण, देई, देव मनावै,

घरां बूढ़की माची माथै, पाणी न अरड़ावै.

और उपेक्षित वृद्धा के मरने के बाद हम उसके मृत्‍यु-भोज पर हजा़रों रुपए खर्च कर डालते हैं जो पाप है. माता-पिता के जिंदा रहते उनकी सेवा करने से समस्‍त प्रकार को सुख प्राप्‍त होता है. मां-बाप से बड़ा से बड़ा भगवान, इस दुनिया में कोई नहीं है. यदि मां-बाप नहीं होते तो हम इस संसार में आते ही नहीं. अत: अनेक देवी-देवताओं के मंदिरों में माथा टेकने से अच्‍छा है, घर में मां-बाप की सेवा करो. हमें धोखे में रखकर, भटकाकर, कर्मकांडो के चक्रों में फंसाया गया है. मैने देखा है कि हम देवी देवता, पीर बाबा इत्‍यादि में बहुत विश्‍वास करते हैं. एक बात सोचो कि क्‍यों ये सभी देवी-देवता हमें ही बहुत परेशान करते हैं. किसी अन्‍य जाति को क्‍यों नहीं? बड़े-बड़े धार्मिक मेलों में जाकर देखो. अस्‍सी प्रतिशत लोग निम्‍न तबके के मिलेंगे. हमें धर्मभीरू बनाया जाता है. ताकि हम उनके चक्रों में पड़े रहें. भगवान तो घट-घट में हैं. जरा सोचो और इस चक्रव्‍यूह से निकलकर प्रगति की बातें करो. जागरण, डैरु, सवामणी इत्‍यादि के नाम पर हजारों रुपए कर्ज़ लेकर देवता को मनाना समझदारी नहीं है? कबीर ने कहा है:-

पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़

ताते तो चक्की भली पीस खाय संसार

यदि हम अब अपनी कुरीतियाँ पाले रहे, आडम्‍बरों से घिरे रहे तो अपना अस्तित्‍व दासों से भी घटिया, चाण्‍डलों से भी बदतर हो सकता है. निकलो इन कर्मकांडों से. त्‍यागो इस धर्मभरूता को. उठो और नये सवेरे की ओर बढ़ो. समाज की भलाई की ओर ध्‍यान दो तब आपका दिल नेक होगा, समाज की भलाई की ओर ध्‍यान होगा तो भगवान स्‍वयं मंदिर से चलकर आपके घर आयेंगे और पूछेंगे, बेटे बताओ तुम्‍हारी और क्‍या मदद की जाए? जो मनुष्‍य स्‍वयं अपनी मदद करता है, भगवान भी उसी की मदद करता है. स्‍वयं को सुधार कर अपनी मदद खुद करें. आप सुधर गए तो भगवान भी आपके कल्‍याण के लिए पीछे नहीं हट सकते. गूंगे बहरे मत बनों. एक दूसरे का दुख-दर्द बांटो, किसी की आत्‍मा को मत दुखाओ. अपने को सुधारो, समाज स्‍वयं सुधर जाएगा.

शादी-विवाह, दहेज, छुछक, भात, मृत्‍यु भोज इत्‍यादि सामाजिक दायित्‍व में हम हैसियत से अधिक खर्च कर डालते हैं. लेकिन कर्ज़ लेकर शान दिखाना कहाँ की शान है? बहन-बेटियों को भी सोचना चाहिए और अपने माता-पिता, भाई-बहन को सलाह देनी चाहिए कि उनका दहेज पढ़ाई है. वे पढ़-लिखकर आगे आएँ और समाज की अग्रणी बने. अत: मृत्‍यु भोज, दहेज प्रथा, बालविवाह, ढोंग-आडम्‍बर इत्‍यादि समाज के कोढ़ को छोड़ो और आत्‍मविश्‍वास के साथ प्रगति की राह पकड़ो.

लड़कियाँ लड़कों से प्रतिभा में कम नहीं

इंदिरा गाँधी अकेली लड़की थी जिसने अपने नाम के साथ अपने परिवार का नाम पूरे विश्‍व में रोशन किया. आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में अग्रणी हैं. बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रही हैं. राजस्‍थान में लड़कियों की नौकरियों में तीस प्रतशित आरक्षण हैं. अत पुत्र प्राप्ति का मोह त्‍यागकर एक या दो संतान ही पैदा करने का संकल्‍प करना चाहिए. उन्‍हीं को पढ़ा-लिखाकर उच्‍च‍ाधिकारी बनाएँ. लड़का या लड़की कामयाब होंगे तो अपने नाम के साथ आपका नाम भी रोशन करेंगे. अत कम संतान पैदा करके अपने दो बच्‍चों को पढ़ाने की सौगंध खाएँ. समाज को भी होनहार, प्रतिभाशाली बच्‍चों को पढ़ाने के लिए प्रोत्‍साहन देना चाहिए.

आज कम्‍प्‍यूटर युग है. प्रतियोगिता का ज़माना है. जो प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्‍ठ होगा वही सफलता प्राप्‍त करेगा. जो प्रतियोगिता में नहीं टिक पाएगा, चाहे उसने कितनी ही डिग्रियाँ ले रखीं हों, अनपढ़ के समान होगा. डिग्री के नशे में वह पेट पालने के लिए छोटा काम, मज़दूरी इत्‍यादि भी नहीं करेगा. वह न इधर का रहेगा और न उधर का. अतः आपने अपने बच्‍चों को कम्‍पीटीशन को ध्‍यान में रखकर पढ़ाना होगा. बच्‍चे भी इस बात का ध्‍यान रखें कि इस प्रतियोगिता के युग में एक नौकरी के लिए हज़ारों लड़के मैदान में खड़े हैं. हमें संघर्ष से नहीं डरना चाहिए. संघर्ष के बिना कुछ मिलता भी नहीं है. मंच पर बैठे सभी व्‍यक्ति भी आज संघर्ष के कारण इतनी उन्‍नति कर पाए हैं. सफलता के लिए कठिन संघर्ष की आवश्‍यकता है.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,

कह कबीरा पिउ पाया, मन ही की परतीत.

नौकरियों के भरोसे पर निर्भर मत रहो. व्‍यापार करो. अपनो से क्रय-विक्रय करो. अतः आप दृढ़ निश्‍चय के साथ हिम्‍मत कर सर्वश्रेष्‍ठ बनने का प्रयास करेंगे तभी इस कम्‍पीटिशन व कम्‍प्‍यूटर के ज़माने में आपको सफलता मिलेगी अन्यथा फिर से आप अपने पूर्वजों की भांति शोषण का शिकार होंगे.

हमें यह भी भय रहता है कि हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं. अपने अधिकारों के लिए एक होता देख, कहीं हमारा सामाजिक बायकॉट न कर दिया जाए. हमें काम-धंधा नहीं मिलेगा तो हम भूखे मरेंगे. आर्थिक रूप से कमजोर व्‍यक्ति सामाजिक बायॅकाट के भय से जल्‍दी टूटता है. इसलिए हमें सुनिश्चित करना है कि हम आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न बने.

हमारे लोग केवल नौकरी की तलाश में रहते हैं, बिज़नेस की ओर ध्‍यान नहीं देते. जनसंख्‍या बढ़ोत्तरी के अनुपात में आजकल नौकरियाँ बहुत कम रह गई हैं. हम नौकरियों के भरोसे नहीं रहकर कोई धन्‍धा अपनाएँ तथा आत्‍मनिर्भर होंगे. इसलिए हमें दूसरे धंधों की ओर ध्‍यान देना चाहिए. यदि हम आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न होंगे, आत्‍मनिर्भर होंगे तो किसी की गुलामी नहीं करनी पड़ेगी. आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न व्‍यक्ति संघर्ष करने में अधिक सक्षम है. मकान बनाने की करणी पकड़ने से मकान बनाना शुरू करते-करते बिल्डिंग कंट्रेक्‍टर बनो, लकड़ी में कील ठोकने से धंधा शुरू कर बड़ी सी फर्नीचर की दूकान चलाओ, परचून की छोटी सी दूकान से शुरू कर मल्‍टीप्‍लैक्‍स क्रय-विक्रय बाजार बनाओ. वास्‍तुशास्‍त्र, हस्‍तरेखा विज्ञान, अंक ज्‍योतिष, एस्‍ट्रोलॉजी इत्‍यादि में भी भाग्‍य आज़माया जा सकता है. ये कुछ उदाहरण है. आप अपनी पसंद का कोई भी धंधा शुरू कर सकते हैं. मन में शंका होती है कि क्‍या हम विज़नेस में कामयाब होंगे? अनुसूचित जाति की जनसंख्या राजस्‍थान में सोलह प्रतशित है. हम सभी सोच लें कि हम अधिकतर सामान अपने लोगों की दुकानों से ही खरीदेंगे तो दुकान जरूर चलेगी. जैसे हम आप सभी खुशी के अवसरों पर मिठाई खरीदें. मेघवाल भाई के ढाबे पर खाना खाएँ, चाय पिएँ, मेघवाल किराना स्‍टोर से सामान खरीदें, मेघवाल टीएसएफ जैसी जूतों की फैक्‍टरी खोल सकते हैं, जूतों की दुकान खोल सकते हैं तो हम अन्‍य धंधे क्‍यों नहीं अपना सकते. हम भी अपना स‍कते हैं और सफल भी हो सकते हैं. केवल हिम्‍मत की बात है. उदाहण के तौर पर जैसे विवाह-शादियों, जन्‍म-मरण इत्यदि अवसरों पर पंडितों की जरूरत होती है, यदि यह काम भी अपना ही कोई करे तो अच्‍छा लगेगा. रोज़गार के साथ किसी का मोहताज भी नहीं होना पड़ेगा. हम केवल गाँव में ही धंधे की क्‍यों सोचें. शहरों में जाकर भी धंधा कर सकते हैं. यह शाश्‍वत सत्‍य है कि जिसने भी स्‍थान परिवर्तन किया, बाहर जाकर खाने-कमाने की कोशिश की, वे सम्‍पन्‍न हो गए. हम कूप-मंडूक (कुएँ के मेंढक) बने रहे. जिस प्रकार कुएँ में पड़ा मेंढक उस कुएँ को ही अपना संसार समझता है, उसी प्रकार हम गाँव को ही अपना संसार समझकर बाहर नहीं निकलने के कारण, गाँव की अर्थव्‍यवस्‍था के चलते दबे रहे, पिछड़े रहे. एक बार आज़माकर तो देखो. घर से दूर जाकर मिट्टी भी बेचोगे तो सोना बन जाएगी. इसलिए आत्मनिर्भर होंगे तो आर्थिक बायकॉट के भय से मुक्‍त होकर हम एकजुट होंगे.

सरकार ने दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए, उनके सामाजिक संरक्षण के लिए अनेक कानून बनाए हैं, लेकिन अन्‍य लोग दलितों के कंधों पर बन्‍दूक रखकर इनका दुरुपयोग कर रहे हैं. इस कार्रवाई से हम बदनाम होते हैं. सामान्‍य वर्ग में दलितों को नीचा देखना पड़ता है. वे पुनः उपेक्षा के पात्र हो जाते हैं. कसम खाओ कि कानून का सहारा केवल अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए लेंगे. किसी अन्‍य के लाभ के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं करेंगे.

आज हम संगठित होना शुरू हुए हैं और शिक्षित बनने-बनाने, संघर्ष करने-कराने का संकल्‍प लिया है. पीछे मुड़कर नहीं देखें और दिखाते रहें अपनी ताकत और बुद्धिमता. मैं आपको गर्व के साथ मेघऋषि की संतान मेघवाल कहलाने, सामाजिक बुराइयाँ छोड़ने, संगठित होने, शिक्षित बनने व संघर्ष करने का आह्वान करता हूँ. साथ ही निवेदन करता हूँ कि मेघऋषि को भी अपने देवताओं की भांति पूजें. उनका चित्र अपने घरों में श्रद्धा के साथ लगाएँ व प्रतिदिन पूजा करें ताकि भगवान मेघऋषि की हम संताने आत्‍मसम्‍मान के साथ जी सकें व समाज में अपना खोया सम्‍मान पा सकें.

बाबा मेघऋषि की जय, बाबा साहेब डॉ. अम्‍बेडकर की जय,

मेघवंश समाज की जय, भारत माता की जय. जय हिन्‍द, जय भीम.

जनगणना में अपनी मातृभाषा पंजाबी लिखवाएं


पूंडरी, संवाद सहयोगी : हरियाणा मेघ सभा की बैठक रविवार को गांव फतेहपुर में प्रधान सुभाष आर्य की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक को संबोधित करते हुए आर्य ने सभी मेघ जाति के लोगों से अपील की कि वे एक मई से शुरू हुई जनगणना में अपनी मातृभाषा पंजाबी लिखवाएं, जो कि उनके लिए गर्व का विषय है।

उन्होंने बताया कि पंजाब एवं जम्मू कश्मीर के राज्य गजट में पहले से इस जाति की भाषा को पंजाबी दर्शाया गया है। हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान में समाज के लोगों ने अपनी पहचान पंजाबी भाषाई एवं संस्कृति के तौर पर बना रखी है। इस अभियान की शुरूआत बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए समाज के लोगों को राजनैतिक तथा सामाजिक मजबूती देने के लिए की गई थी। इसी उद्देश्य से कार्यकारिणी की पहली बैठक सीवन में आयोजित हुई । बैठक में कार्यकारिणी के सभी सदस्य मौजूद थे।

वार्ता: कामड़ (मेघवाल समाज)



कामड जाति मेहर या मेघ जाति की कुलगुरु मानी गयी है मेघवन्श जाति का इतिहास लेखक् स्वामी गोकुल दास ने तत्कालीन सत्य घटनाओ के आधार पर यह प्रमानीत किया है स्वामी रामप्रकाश ने रामदेव ब्रह्म्पुरान मै लिखा है कामड रामदेव आते है,कामड जाति का इतिहाश् पुस्तक के आनुसार नाथ सम्प्रदाय के कपिलानि पन्थ से कामड की उतपति मानी गयी है कामड जाति के लोग हिन्ग्लाज देवी व रामदेव के उपासना मे तेरह्ताल नृत्य करते थे जो आज बन्द हो कर लुपत हो गया है कामड जाति पर डा शीला खाऩ् डा हजारी प्रसाद् द्वेदी,डा खीर सागर्,डा चम्पा दास आदि ने शोध पत्र लिखे है

सोमवार, 27 जून 2011

ये सावन के मेघ


ये सावन के मेघ
Thursday, July 22, 2010


ललित कुमार द्वारा 16 अगस्त 2003 को लिखित

सावन के महीने में काले मेघ मन को जितने सुंदर लगते हैं उतना ही वे जग सुकून भी पहुँचाते हैं। कुछ हृदय, हालांकि, ऐसे भी होते हैं जिन्हें यह सुंदरता और सुकून पीड़ा ही देती है। और क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन हृदयों में से एक इन मेघों का भी हो!

आप यह कविता सुन भी सकते हैं (इसके लिए शायद आपको फ़ॉयरफ़ॉक्स या गूगल क्रोम की ज़रूरत पड़े)

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जाने कहाँ से ये हैं आते, हृदय को मेरे रौंद मुस्काते
क्षितिज पार ओझल हो जाते, ये सावन के मेघ

जग में उजियारा होने पर भी, मेरे दुख के तम की भांति
श्याम दिनों दिन होते जाते, ये सावन के मेघ

कोई इन से भी बिछड़ गया है, बरस-बरस कर विरह जताते
जल नहीं आँसू बरसाते, ये सावन के मेघ

संदेश प्रेम का जग को दे कर, सबके दिलों का मेल कराते
मन मसोस पर खुद रह जाते, ये सावन के मेघ

सुंदर बदली जो मिली गत वर्ष, नयन उसी को ढूंढे जाते
जीवन उसी को खोज बिताते, ये सावन के मेघ

पा जांए उस प्रियतमा बदली को, यही सोच कर ये हैं छाते
किंतु नहीं निशानी कोई पाते, ये सावन के मेघ

चपला देती भंयकर पीड़ा, उड़ा ले जाती घोर समीरा
लौट वहीं पर फिर से आते, ये सावन के मेघ
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मेघ आए ’



प्रस्तुत कविता में कवि ने मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि (दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कॄति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है, मेघों के आने का सजीव वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है। कवि कहता है कि लम्बे अरसे के इंतज़ार के बाद जब मेघ रूपी मेहमान आता है तो चारों – ओर खुशी का माहौल छा जाता है। हवा उड़ने लगती है मानो वह मेहमान के आने का संदेश देने के लिए भाग रही हो। लोग उत्सुकतावश दरवाजे-खिड़कियों से झाँकने लगते हैं। पेड़ रूपी गाँव के युवक गरदन उचकाए देखने लगते हैं और अल्हड जवान लड़्कियाँ घूँघट सरकाके तिरछी नज़रों से देखते हैं। बूढ़ा पीपल झुक जाता है अर्थात वह मेहमान की आवभगत करता है। उअसकी पत्नी उलाहने भरे स्वर में कहती है कि बहुत दिनों बाद उसकी याद आई जो चले आए। घर का सदस्य पानी का लोटा रख जाता है। अब क्षितिज पर बादल गहरे होते दिखाई दे रहे हैं । अब बारिश न होने का भ्रम टूट चुका है। बहुत दिनों के बिछुड़े पति-पत्नी के मिलन से खुशी के आँसू निकलने लगते हैं अर्थात प्रबल वेग के साथ बारिश होने लगती है। चारों-ओर उल्लास का वातावरण छा जाता है।

बरसो मेघ




बरसो मेघ और जल बरसो इतना बरसो तुम,
जितने में मौसम लहराए उतना बरसो तुम,

बरसो प्यारे धान-पान में बरसों आँगन में,
फूला नहीं समाये सावन मन के दर्पण में

खेतों में सारस का जोड़ा उतरा नहीं अभी,
वीर बहूटी का भी डोला गुजरा नहीं अभी,

पानी में माटी में कोई तलवा नहीं सड़ा,
और साल की तरह न अब तक धानी रंग चढ़ा,

मेरी तरह मेघ क्या तुम भी टूटे हारे हो,
इतने अच्छे मौसम में भी एक किनारे हो,

मौसम से मेरे कुल का संबंध पुराना है,
मरा नहीं हैं राग, प्राण में बारह आना है,

इतना करना मेरा बारह आना बना रहे,
अम्मा की पूजा में ताल मखाना बना रहे,

देह न उघडे महँगाई में लाज बचानी है,
छूट न जाये दुख में सुख की प्रथा पुरानी है,

सोच रहा परदेसी कितनी लम्बी दूरी है,
तीज के मुँह पर बार बार बौछार ज़रूरी है,

काश! आज यह आर-पार की दूरी भर जाती,
छू जाती हरियाली सूनी घाटी भर जाती,

जोड़ा ताल नहाने कब तक उत्सव आएँगे,
गाएँगे भागवत रास के स्वांग रचाएँगे,

मेरे भीतर भी ऐसा विश्वास जगाओ ना
छम छम और छमाछम बादल राग सुनाओ ना

जाति भेद का मूल कारण और मेघ (Cause of Caste differentiation and Megh)



Posted by Bhushan at 13:19
जाति भेद का मूल कारण
इस संसार में जो भी जीव-जन्तु हैं, कई रूप, रंग, वर्ण रखते हैं. उनके समूह को ही जाति कहा गया है. जल, थल, आकाश के जीव अपनी-अपनी जातियाँ रखते हैं. पशु-पक्षियों और जल में रहने वाले मच्छ, कच्छ, व्हेल मछली जैसी जातियाँ पाई जाती हैं. मनुष्य जाति में अनेक जातियाँ बन गई हैं. अलग-अलग देश और प्रांत होने के कारण, कर्म, भाषा, वेशभूषा के कारण कई जातियाँ बन गईं जिनकी गणना सरकार का काम है. अलग-अलग और नाना जातियाँ बनने का मूल कारण यह है कि ये जितने रंग, रूप और शरीर वाले जीव हैं, ये स्थूल तत्त्वों से बने हैं. इनके मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, विचार, भाव सूक्ष्म तत्त्वों से बने हैं. इनकी आत्माएँ कारण तत्त्वों से बनी हैं और प्रत्येक जीव जन्तु में ये जो पाँच तत्त्व हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. इनका अनुपात एक जैसा नहीं होता. सबका अलग-अलग है. किसी में वायु तत्त्व और किसी में आकाश तत्त्व अधिक है. इन्हीं के अनुसार हमारे गुण, कर्म, स्वभाव अलग-अलग होते हैं. गुण तीन हैं. सतोगुण, रजो गुण और तमोगुण. किसी के अन्दर आत्मिक शक्ति, किसी में मानसिक शक्ति, किसी में शारीरिक शक्ति अधिक होती है. इसी तरह कर्म भी कई प्रकार के होते हैं. अच्छे, बुरे, चोर, डाकू, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार भी किसी में अधिक, किसी में कम. किसी में प्रेम और सहानुभूति कम है किसी में अधिक. इस वक़्त संसार में कई देश चाहते हैं कि हम दूसरों पर विजय पा लें. तरह-तरह के ख़तरनाक हथियार बन रहे हैं. इन सब चीजों का यही मूल कारण है. यह प्राकृतिक भेद है. कहा जाता है कि जो जैसा बना है वैसा करने पर मजबूर है. जिस महापुरुष का शरीर, मन और आत्मा इन तत्त्वों से इस प्रकार बने हैं, जो समता या सन्तुलित रूप में हैं, उस महापुरुष को संत कहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर वासना उठती है और उसी वासना (कॉस्मिक रेज़) से सकारात्मक व नकारात्मक शक्तियाँ पैदा होती हैं जो स्थूल पदार्थों की रचना करती रहती हैं. वासना एक जैसी नहीं होती. इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोग उत्पन्न हो जाते हैं और नाना जातियाँ बन जाती हैं.
अब प्रश्न पैदा होता है कि क्या इसका कोई उपाय हो सकता है कि संसार में (पशु, पक्षी, और मच्छ, कच्छ को छोड़ दें) मनुष्य जाति में प्रेमभाव पैदा हो जाए और सब एक-दूसरे की धार्मिक, सामाजिक, जातीय और घरेलू भावनाओं का सत्कार करते हुए आप भी सुखपूर्वक जीएँ और दूसरों को सुखपूर्वक जीने दें. मेरी आत्मा कहती है कि हाँ, इसका हल है और वह है मेघ जाति को समझना कि यह जाति कब और कैसे और किस लिए बनी, जिसको मैं इस लेख में विस्तारपूर्वक वर्णन करने का यत्न अपनी योग्यता अनुसार करूँगा. दावा कोई नहीं.

मेघ जाति
आप इस लेख को अब तक पढ़ने से समझ गए होंगे कि जातियों के नाम कहीं देश, कहीं प्रान्त, कहीं आश्रम, कहीं वेशभूषा, कहीं भाषा और कहीं रंग से हैं. जैसे आजकल दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को लेकर गोरे और काले रंग के लोगों की जाति वालों में लड़ाई झगड़े हो रहे हैं. अभिप्राय यह है कि जातियों के नाम किसी न किसी कारणवश रखे गए और कोई नाम देना पड़ा. अब सोचना यह है कि मेघ जाति का मेघ नाम क्यों रखा गया? क्या यह कर्म पर या किसी और कारण से रखा गया? मनुष्य द्वारा बनाई गई भाषा के अनुसार मेघ एक गायन विद्या का राग भी है, जिसे मेघ राग कहते हैं. मेघ बादल को भी कहते हैं. जिससे वर्षा होती है और पृथ्वी पर अन्न, वनस्पतियाँ, वृक्ष, फल, फूल पैदा होते हैं. नदी नाले बनते हैं. जब सूखा पड़ता है, अन्न का अभाव हो जाता है तो धरती पर रहने वाले बड़ी उत्सुकता से मेघों की तरफ देखते हैं कि कब वो अपना जल बरसाएँ. जब मेघ आकाश में आते हैं और गरजते हैं तो लोग खुश हो जाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जल्दी वर्षा हो जाए. जब वर्षा होती है तो उसकी गर्जना भी होती है. योगी लोग जब योग अभ्यास करते हैं वो योग अभ्यास चाहे किसी प्रकार का भी हो उन्हें अपने अन्दर मेघ की गर्जना सुनाई देती है. उस जगह को त्रिकुटी का स्थान कहते हैं. गायत्री मंत्र के अनुसार यही सावित्री का स्थान हैः-
ओं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
इसका अर्थ यह है कि जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति से परे जो सूरज का प्रकाश है उसको नमस्कार करते हैं. वही हमारी बुद्धियों का प्रेरक है. उस स्थान पर लाल रंग का सूरज दिखाई देता है और मेघ की गर्जना जैसा शब्द सुनाई देता है. सुनने वाले आनन्द मगन हो जाते हैं क्योंकि वो सूक्ष्म सृष्टि के आकाश में सूक्ष्म मेघों की सूक्ष्म गर्जना होती है सुनने से मन एकत्रित हो जाता है. यह गर्जना हमारे मस्तिष्क में या सिर में सुनाई देती है. तीसरे, हर एक आदमी हर वस्तु को ध्यानपूर्वक देख कर उसका ज्ञान प्राप्त करना चाहता है कि यह कैसे और किन-किन तत्त्वों से बनी है. जिस तरह हिमालय पर बर्फ होती है ऊपर जाने पर या वहाँ रहने वालों को बर्फ का ज्ञान होता है, उससे लाभ उठाते हैं. बर्फ पिघल कर, पानी की शक्ल में बह कर, नीचे आकर भूमि में सिंचाई के काम आती है. इसी तरह मेघालय हमारे भारत देश का प्रांत है जो बहुत ऊँचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. वहाँ के रहने वाले लोगों को मेघ का ज्ञान होता है, वहाँ मेघ छाए रहते हैं, गरजते हैं, वर्षा करते हैं इत्यादि. इसी के नाम पर मेघालय उसका नाम है. सम्भव है वहाँ के वासी भी मेघ के नाम से पुकारे जाते हों.
तो मेघ शब्द क्यों और कैसे बना, जितना हो सका लिख दिया. प्राचीन काल से हिन्दू जाति में यह नाम बहुत लोकप्रिय है. अपने नाम ‘मेघ’ रखा करते थे. अब भी मेघ नाम के कई आदमी मिले. रामायण काल में भी यह नाम प्रचलित था. रावण उच्च कोटि के ब्राह्मण थे, उन्होंने अपने लड़के का नाम मेघनाद रखा. उन्होंने अपने लड़के को बजाए मेघ के मेघनाद का संस्कार दिया. वो बहुत ऊंचे स्वर से बोलता था. जब लंका पर वानर और रीछों ने आक्रमण किया तो मेघनाद गरजे और रीछों और वानरों को मूर्छित कर दिया. पूरा हाल आप राम चरित मानस से पढ़ लें. नाद का अभिप्राय यह भी है कि ऊँचे स्वर से बोलकर या कड़क कर हम दूसरों को परास्त कर सकते हैं जैसे मेघ जब कड़क कर गर्जन करते हैं तो हृदय में कम्पन पैदा होता है, घबराहट आ जाती है. कई सन्तों ने मेघों के बारे में लिखा है. इनकी आवश्यकता और प्रधानता दर्शाई हैः-
सुमरिन कर ले मेरे मना, तेरी बीती उमर हरिनाम बिना।
देह नैन बिन, रैन चन्द्र बिन, धरती मेघ बिना ।
जैसे तरुवर फल बिन होना, वैसा जन हरिनाम बिना।
कूप नीर बिन, धेनु क्षीर बिन, मन्दिर दीप बिना।
जैसे पंडित वेद विहीना, वैसा जन हरिनाम बिना ।।
काम क्रोध मद लोभ निवारो, छोड़ विरोध तुम संशय गुमाना।
नानक कहे सुनों भगवंता, इस जग में नहीं कोऊ अपना ।।
इन शब्दों में गुरु नानक देव जी ने मेघ की महिमा गाई है. धरती मेघ के बिना ऐसे ही है जैसे हमारा जीवन हरिनाम बिना निष्फल और अकारथ हो जाता है. इसमें और भी उदाहरण दिए हैं ताकि मेघ की महानता का पता लग सके. कबीर सहिब का भी कथन हैः-
तरुवर, सरवर, सन्तजन, चौथे बरसे मेंह।
परमारथ के कारणे, चारों धारें देह ।।
साध बड़े परमारथी, घन ज्यों बरसे आय,
तपन बुझावे और की, अपना पौरुष लाय ।।

मेघ जाति का नामकरण संस्कार
प्राचीन काल में मनुष्य जाति के कुछ लोग जम्मू प्रदेश में ऊँचे पहाड़ी भागों में निवास करते थे. उस समय दूसरे गाँव या दूसरे पहाड़ी प्रदेश के लोगों से मिलना नहीं होता था. जहाँ जिसका जन्म हो गया, उसने वहीं रहकर आयु व्यतीत कर दी. हमने आपनी आयु में देखा है, लोग पैदल चलते थे, दूर जाने के कोई साधन नहीं थे. बच्चों को पढ़ाया भी नहीं जाता था. कोई स्कूल नहीं थे. रिश्ते नाते छह-सात मील के अन्दर हो जाते थे, जहाँ पैदल चलने की सुविधा होती थी. उस समय जो लोग ऊँचे पहाड़ी प्रदेशों में थे, उनको भी वहीं पर ज्ञान हो जाता था. दूर की बातें नहीं जानते थे. इन ऊँचे पहाड़ी इलाकों में मेघ छाए रहते थे और बरसते रहते थे. वहाँ के वासियों के जीवन मेघों का संस्कार ग्रहण करते थे. उनको केवल यही समझ होती थी कि ये मेघ कैसे और किन-किन तत्त्वों के मेल से बनकर आकाश में आ जाते हैं और इनके काम से क्या-क्या लाभ होते हैं और क्या-क्या हानि होती है. जैसी वासी वैसी घासी. मेघों के संस्कार उन लोगों के हृदय और अन्तःकरण में घर कर जाते थे. जो मेघों का स्वभाव, परोपकार का भाव, ठंडक, आप भी ठंडे रहना और दूसरों को भी ठंडक पहुँचाना, उन लोगों की वैसी ही रहनी हो जाती थी क्योंकि दूसरे लोग जो उनके सम्पर्क में आ जाते थे उनको शांति, खुशी, ठंडक मिलती थी. इसलिए वो उन ऊँचे पहाड़ों पर रहने वाले लोग स्वाभाविक तौर पर मेघ के नाम से पुकारे जाते थे. यह नाम किसी व्यवसाय या कर्म के ख्याल से नहीं है. यह मेघ नाम मेघों से लिया गया और वहाँ के वासियों को भी मेघ कहा गया. ज्यों-ज्यों उनकी संतान की वृद्धि होती गई, वे नीचे आकर अपनी जीवन की यात्रा चलाने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की ज़रूरत के अधीन कई प्रकार के काम करने लगे. किसी ने खेती, किसी ने कपड़ा, किसी ने मज़दूरी, और वो अब नक्शा ही बदल गया. अब इस जाति के लोग धीरे-धीरे उन्नति कर रहे हैं. पुराने काम काज छोड़ कर समय के मुताबिक नए-नए काम कर रहे हैं और मालिक की दया से और भी उन्नति करेंगे, क्योंकि इनको मेघों से ऊँचा संस्कार मिला. ऊपर जो कुछ लिखा है उससे यही सिद्ध होता है कि समय-समय पर हर जाति के लोग अपना काम भी बदल लेते हैं. मेघ जाति का यह नाम प्राकृतिक है, स्वाभाविक ही पड़ा. यह किसी विशेष कार्य से संबंध नहीं रखता.

मेघ कैसे बनते हैं
इस धरती पर सूरज की गरमी से जब धरती में तपन पैदा हो जाती है तो स्वाभाविक ही वो ठंडक चाहती है और ठंडक जल में होती है. वह गर्मी समुद्र की तरफ स्वाभाविक ही जाती है और वहाँ की ठंडक गर्मी की तरफ जाने लग जाती है और इससे वायु की गति बन जाती है और वह चलने लग जाती है. हवा तेज़ होने पर अपने साथ जल को लाती है या वह अपने गर्भ में जल भर लेती है और उड़ कर धरती की तपन बुझाने के लिए उसका वेग बढ़ जाता है. मगर उन हवाओं में भरा जल तब तक धरती पर नहीं गिर सकता जब तक कि जाकर वो ऊँचे पर्वतों से न टकराएँ. उसका वेग बंद हो जाता है. आकाश में छा जाता है. जब यह दशा होती है कि अग्नि, वायु और जल इकट्‌ठे हो जाते हैं, इनकी सम्मिलित दशा को मेघ कहते हैं. मेघ केवल अग्नि नहीं है, केवल वायु नहीं, केवल जल नहीं, बल्कि इन सबके मेल से मेघ बनते हैं. जब ऊपर मेघ छाए रहते हैं, तो हवा को हम देख सकते हैं, अग्नि को भी देख सकते हैं, इन सबके मेल से जो मेघ बना था उसे भी देख सकते हैं. जब वर्षा खत्म हो गई, मेघ जल बरसा लेता है, तो न मेघ नज़र आता है, न वायु, न अग्नि. आकाश साफ़ हो जाता है. वो मेघ कहाँ गया? इसका वर्णन आगे किया जायेगा कि वे कहाँ गए. मेघ ने अपना वर्ण खोकर पृथ्वी की तपन बुझाई. पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की आवश्यकताओं को पूरा किया और उनको सुखी बनाया. आकाश से वायु बनी, आकाश और वायु से अग्नि बनी, आकाश और वायु और अग्नि से जल बना, आकाश, वायु अग्नि और जल से पृथ्वी बनी. जब सृष्टि को प्रलय होती है तो पहले धरती जल में, फिर धरती और जल अग्नि में, धरती, जल और अग्नि वायु में, धरती, जल, अग्नि और वायु आकाश में सिमट जाते हैं. आकाश का गुण शब्द है, वायु का गुण स्पर्श है, अग्नि का गुण रूप है, जल का गुण रस है और पृथ्वी का गुण गंध है. इन्हीं गुणों को सूक्ष्म भूत भी कहते हैं. ये गुण ब्रह्म की चेतन शक्ति से बनते हैं. ब्रह्म प्रकाश को ही कहते हैं. ब्रह्म का काम है बढ़ना, जैसे प्रकाश फैलता है. वो प्रकाश या ब्रह्म शब्द से बनता है. यह सारी रचना शब्द और प्रकाश से बनती है. शब्द से ही प्रकाश और शब्द-प्रकाश से ही आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी बन जाते हैं. तो इस सृष्टि या त्रिलोकी के बनाने वाला शब्द है :-
‘शब्द ने रची त्रिलोकी सारी’
आकाश का यही गुण अर्थात 'शब्द’ इन सब तत्त्वों में काम करता है. जो त्रिकुटी में मेघ की गर्जना सुनाई देती है, वो भी उसी शब्द के कारण है. मेघ नाम या मेघ राग या दुनिया के प्राणी जो भी बोल सकते हैं, वो आवाज़ उसी शब्द के कारण है. विज्ञानियों ने भी सिद्ध किया है कि यह सृष्टि आवाज़ और प्रकाश से बनी है.
जिस व्यक्ति को इस शब्द का और ब्रह्म का और इस सारे काम का जो ऊपर लिखा है, पता लग जाता है, ज्ञान हो जाता है, अन्तःकरण में यह बात गहरी घर कर जाती है, उस व्यक्ति को इन्सान कहते हैं. इन्सानियत की इस दशा को प्राप्त करने के लिए या तो योग अभ्यास करके आकाश के गुण को जाना जाता है या जिस महापुरुष के शरीर, मन और आत्मा इन सब तत्त्वों की सम्मिलित संतुलित दशा से बने हैं, उसे संत भी कहा गया है, उसकी संगत से हम इन्सानियत को प्राप्त कर सकते हैं. जो इन्सान बन गया उसके लिए न कोई जाति, न कोई पाति और न कोई भेदभाव रह जाता है. उसके लिए सब एक हो जाते हैं. उसमें एकता आ जाती है. वो किसी भी धर्म-पंथ का नहीं रहता. उसके लिए इन्सानियत ही सब कुछ है. हम सब इन्सान हैं. मानव जाति एक है. तो वो शब्द और प्रकाश जिससे यह सृष्टि पैदा हुई, तरह-तरह के वर्ण बन गए, मेघ वर्ण भी उसी से बना है. जब इन्सान में मानवता आ जाती है तो उसके लक्षण संतों ने बहुत बताए हैं. परोपकार, सबको शांति, वाणी ठंडक देने वाली बन जाती है. धरती पर रहने वाले प्राणियों की तपन बुझ जाती है. इस विषय पर कबीर साहिब का एक शब्द है :-
अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे।
एक नूर से सब जग उपज्या, कौन भले को मंदे।
सबसे पहले शब्द ने ही प्रकाश अर्थात ब्रह्म को उत्पन्न किया और शब्द ब्रह्म की चेतन शक्ति से ये पाँचों तत्त्व बन जाते हैं और वो चेतन शक्ति ही इन सब तत्त्वों में विद्यमान है, तभी यह तत्त्व रचना कर सकते हैं.
लोगा भरम न भूलो भाई,
खालिक, ख़लक, ख़लक में खालिक, पूर रहयौ सब ठाई।
भ्रम में आकर यह नहीं भूलना चाहिए कि वो स्रष्टा और सृष्टि उत्पन्न करने वाला और उत्पत्ति सब एक ही वस्तु है. वेदों में भी लिखा है :-
‘एको ब्रह्म द्वितीय नास्ति’
शास्त्रों में भी कहा है कि ब्रह्म एक चेतन शक्ति है, वो आप तो नज़र नहीं आती मगर उसके कारण यह दृश्यमान जगत बना है. इन सब में वही है. इस मेघ वर्ण का निर्माण भी उसी चेतन शक्ति से हुआ.
माटी एक अनेक भाँति कर साजी साजनहारे।
न कछु पोच माटी के भांडे, न कछु पोच कुम्हारे ।।
कुम्हार एक ही मिट्‌टी से कई प्रकार के बर्तन बना लेता है, है वो मिट्‌टी, मगर मिट्‌टी की शक़्लें बदल जाती हैं. मिट्‌टी कई नामों, रूपों में आ जाती है :-
सबमें सच्चा एको सोई, तिस का किया सब कुछ होई।
हुकम पछाने सो एको जाने बन्दा कहिये सोई ।।
सबमें वो शब्द ही काम कर रहा है उसी से सब कुछ बना है और वही सब कुछ करता है. जो उसको जान जाता है वही इन्सान है. हुक्म भी प्रकाश का ही नाम है क्योंकि परम तत्त्व से ही पहले शब्द पैदा होता है और शब्द से आगे फिर रचना शुरू हो जाती है इसी को हुक्म कहा गया है.
अल्लाह अलख नहीं जाई लखिया गुर गुड़ दीना मीठा।
कहि कबीर मेरी संका नासी सर्व निरंजन डीठा ।।
कबीर साहिब फरमाते हैं कि गुरु की दया से सब भ्रम और शंकाएँ समाप्त होते हैं और वो जो अलख था (शब्द को देखा नहीं जा सकता इसलिए उसे अलख कहा है), उसे कोई सत्गुरु ही लखा सकता है और फिर वो न नज़र आने वाला नजर आने लग जाता है.
आइये अब कुछ विख्यात शब्दकोषों के अनुसार मेघ शब्द का विचार करें.
हिन्दी शब्द सागर
1. मेघ--घनी भाप को कहते हैं जो आकाश में जाकर वर्षा करती है (भाप ठोस या तरल पदार्थ की वह अवस्था है जो उनके बहुत ताप पाने पर विलीन होने पर होती है--भौतिक शास्त्र)
2. मेघद्वार--आकाश
4. मेघनाथ--स्वर्ग का राजा इन्द्र
5. मेघवर्तक--प्रलय काल के मेघों में से एक मेघ का नाम
6. मेघश्याम--राम और कृष्ण को कहते हैं
7. मेघदूत--कालीदास महान कवि हुए हैं. उन्होंने अपने काव्य में मेघदूत का वर्णन किया है. इसमें कर्तव्यच्युति के कारण स्वामी के शाप से प्रिया वियुक्त एक विरही यक्ष ने मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास मेघों द्वारा संदेश भेजा है.
हिन्दी पर्याय कोष
1. मेघ और जगजीवन दोनों एक ही अर्थ के दो शब्द हैं.
हिन्दी राष्ट्रभाषा कोष
1. जगजीवन--जगत का आधार, जगत का प्राण, ईश्वर, जल, मेघ.
यदि आप ध्यान से पढ़ें तो इन शब्द कोषों में मेघ का अर्थ जो लिखा गया है वो ईश्वर और नाना ईश्वरीय शक्तियों के मेल से रसायनिक प्रतिक्रिया होने पर जो हालतें या वस्तुएँ उत्पन्न होती है उनमें से एक को मेघ कहा गया है. इसलिए जो कुछ ऊपर लिखा गया है कि मेघ ब्रह्म से ही उत्पन्न होते हैं और उसी में समा जाते हैं, ठीक है. इससे सिद्ध हुआ कि मेघ शब्द कोई बुरा नहीं है और इसी के नाम पर उन्हीं के संस्कारों को ग्रहण करते हुए मेघ जाति बनी.
इतिहास, भगत मुंशीराम, मेघमाला

Mahabali, Maveli and Matriarchal Society - राजा महाबली और मातृप्रधान समाज


Mahabali, Maveli and Matriarchal Society - राजा महाबली और मातृप्रधान समाज
Posted by Bhushan at 14:05
इसका संदर्भ Maveli belongs to Meghvansh और ऐसे अन्य आलेखों से है. हाल ही में मुझे याद आया कि केरल में मातृप्रधान समाज है. इसी प्रकार उत्तर-पूर्व में भी मातृप्रधान समाज प्रचलित है. महाबली का राज्य दक्षिण और दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों में था. उसका बेटा बाण उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का गवर्नर था. क्या यह हैरानगी की बात नहीं है कि इन दोनों क्षेत्रों में आज भी मातृप्रधान समाज है? क्या राजा महाबली ने समाज में महिलाओं का महत्व समझते हुए यह प्रणाली लागू की थी या महाबली से भी पहले सिंधु घाटी सभ्यता में यह प्रणाली पहले से चल रही थी? क्या देश के अन्य हिस्सों से मातृप्रधान समाज को क्रमबद्ध तरीके से समाप्त किया गया? मैं यह भी महसूस करता हूँ कि इन क्षेत्रों में संपत्ति महिलाओं के नाम में होती है लेकिन वे पुरुषों पर इक्कीस नहीं पड़ती हैं. वंश का नाम माता के नाम से चलता है. इन क्षेत्रों की महिलाएँ अपने अधिकारों के बारे में और घर की चारदीवारी से बाहर के संसार को तनिक बेहतर जानती हैं.

यह सच है कि सिंधु घाटी सभ्यता के मूल निवासियों के इतिहास को इतना नष्ट और भ्रष्ट कर दिया गया है कि उसे पहचानना और उसका पुनर्निर्माण करना कठिन है. लेकिन संकेतों और चिह्नों को एकत्र करना संभव है और मानवीय अनुभव से कुछ-न-कुछ निकाला भी जा सकता है. भारत के कायस्थों ने आख़िर 200 वर्षों के संघर्ष के बाद अपना इतिहास ठीक करने में सफलता पाई है. ऐसा शिक्षा, संगठन और जागरूकता से संभव हो पाया. महर्षि शिवब्रतलाल (ये संतमत/राधास्वामी मत में जाना माना नाम हैं और सुना है कि इन्होंने भारत में दूसरी टाकी फिल्म बनाई थी जिसका नाम 'शाही लकड़हारा' था) और मुंशी प्रेमचंद कायस्थ थे. मेघवंशियों के लिए ऐसा कर पाना और भी कठिन होगा. परंतु यह करने लायक कार्य है.
Posted by Bhushan at 6:39 PM
Labels: Origins, राजा बली
2 comments:


आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISH said...
ज्ञानवर्धक! आशीष -- प्रायश्चित
October 3, 2010 6:06 AM
डॉ० डंडा लखनवी said...
मैने राजा की कथा कई बार पढ़ी। वे करुणा सागर और दानशील थे। ऐसी कथा प्रचलित है कि उनसे तीन पग जमीन मांगी गई। पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश तथा तीसरे में उनके शरीर को नापने की बात प्रचारित की गई है। भारत के मूल निवासियों के साथ अनेक बार छल हुए हैं। खोज का विषय है कि इन तीनों पगों मे नापने का क्रम क्या था? कहीं पह्ले पग में उनके शरीर को और शेष दो पगों मे उनके राज्य को नाप लिया गया हो ? फलत: उनके वंशज कालांतर में राजनैतिक आर्थिक रूप से कमजोर पड़ गए हो? इस समाज में पुन: प्राण फूकने की आवश्यकता है। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
November 7, 2010 3:13 PM
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