सोमवार, 12 मार्च 2018

धारा 164 व 161 में अदालत में झूठ बोलने पर होती है सजा

नवभारत टाइम्स | Updated Jun 26, 2011, 02:23 AM IST
राजेश चौधरी
जेसिका लाल मर्डर केस में श्यान मुंशी समेत कई गवाह मुकर गए थे। अदालत में झूठा बयान देने के मामले में इनके खिलाफ केस चलाने को लेकर हाई कोर्ट में फैसला रिजर्व है। इस तरह के कई मामले देखने को मिलते हैं, जिनमें गवाहों के मुकरने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर गवाह के मुकरने का मतलब क्या होता है और अदालत में झूठ बोलने पर क्या कार्रवाई हो सकती है!

मुकरने का मतलब
मुकरने वाले गवाह यानी होस्टाइल विटनेस का मतलब होता है अदालत के सामने पुलिस की कहानी को सपोर्ट न करने वाला गवाह। अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलने के मामले में दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है। कानूनी जानकार बताते हैं कि पुलिस किसी को भी छानबीन के दौरान सरकारी गवाह बना सकती है। गवाह की सहमति से पुलिस सीआरपीसी की धारा-161 के तहत उसका बयान दर्ज करती है। धारा-161 के बयान में किसी गवाह के दस्तखत लिए जाने का प्रावधान नहीं है। हालांकि किसी गवाह के सामने पुलिस अगर कोई रिकवरी आदि करती है तो रिकवरी मेमो पर गवाह के दस्तखत लिए जाते हैं।

शक है तो मैजिस्ट्रेट के सामने बयान
कानूनी जानकार अजय दिग्पाल ने बताया कि किसी गवाह के बारे में अगर पुलिस को शक होता है कि वह बाद में अपने बयान से मुकर सकता है तो उस गवाह का धारा-164 में मैजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया जाता है। धारा-164 में बयान देने वाले का बाद में मुकरना आसान नहीं होता। वैसे इन तमाम बयानों के बाद भी ट्रायल कोर्ट के सामने दिया बयान ही मान्य बयान होता है और अदालत यह देखती है कि गवाह झूठ तो नहीं बोल रहा। अगर अदालत को यह लगता है कि गवाह अदालत में सच्चाई बयान कर रहा है और वह बयान पुलिस के सामने दिए बयान से चाहे पूरी तरह मेल नहीं भी खा रहा हो, तो भी उस बयान को स्वीकार किया जाता है। अदालत को जब यह लगता है कि गवाह शपथ लेकर झूठ बोल रहा है, तो वह उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुशंसा कर सकती है।

सात साल की सजा
कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी बताते हैं कि असल में होता यह है कि अगर कोई गवाह पुलिस या मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से मुकरे, तो उसे मुकरा हुआ गवाह माना जाता है। अगर कोई सरकारी गवाह मुकर जाए, तो सरकारी वकील उसके साथ जिरह करता है और सच्चाई निकालने की कोशिश करता है। लेकिन इस प्रक्रिया में अदालत यह देखती है कि कौन से ऐसे गवाह हैं, जिन्होंने जानबूझकर अदालत से सच्चाई छुपाई या फिर झूठ बोला। ऐसे गवाहों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा-340 के तहत अदालत शिकायत करती है। ऐसे गवाह के खिलाफ अदालत में झूठा बयान देने के मामले में आईपीसी की धारा-193 के तहत मुकदमा चलाया जाता है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 7 साल कैद की सजा का प्रावधान है। 

कोर्ट में झूठी गवाही देने वाले को मिलती है सजा


Updated Jul 19, 2015, 08:00 AM IST
राजेश चौधरी, लीगल फोरम
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में गवाहों का रोल अहम है। जैसे ही किसी मामले में आरोप तय हो जाते हैं, उसके बाद अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं। कई बार ऐसे भी मामले देखने को मिलते हैं, जब गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं। उस वक्त कोर्ट यह देखता है कि गवाह झूठ तो नहीं बोल रहा है। अगर कोर्ट को लगता है कि गवाह ने शपथ लेकर झूठे बयान दर्ज कराए हैं तो अदालत ऐसे गवाह के खिलाफ एक्शन लेने का आदेश दे सकती है।
कानूनी जानकार मुरारी तिवारी बताते हैं कि मुकरने वाले गवाह का मतलब होता है अदालत के सामने पुलिस की कहानी को सपोर्ट न करने वाला गवाह। अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलने के मामले में दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है। जब पुलिस किसी क्रिमिनल केस को दर्ज करती है तो उसके बाद वह छानबीन शुरू करती है और इस दौरान वह गवाहों के बयान दर्ज करती है। उन गवाहों के बयान और साक्ष्य के आधार पर पुलिस छानबीन पूरी करने के बाद चार्जशीट दाखिल करती है। फिर चार्ज पर बहस होती है। अगर पहली नजर में आरोप पुख्ता हैं तो अदालत आरोपी के खिलाफ चार्ज फ्रेम कर देती है और ट्रायल शुरू होता है। इस दौरान पहले अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं। छानबीन के दौरान जांच एजेंसी या पुलिस जिसे चाहे अभियोजन पक्ष का गवाह बना सकती है।
शपथ लेकर बयान
पुलिस सीआरपीसी की धारा-161 के तहत उक्त गवाह के बयान दर्ज कर सकती है और उसका पता आदि लिखती है। साथ ही गवाह को यह बताती है कि उसे कोर्ट से समन मिलने पर गवाही के लिए आना होगा, हालांकि उक्त बयान पर गवाह के दस्तखत नहीं होते। पुलिस को जब गवाह पर यह शक हो कि वह अपने बयान से मुकर सकता है तो वह गवाह का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने भी करवाती है। मैजिस्ट्रेट के सामने धारा-164 के तहत बयान दर्ज किए जाते हैं। बयान के वक्त मैजिस्ट्रेट गवाह से पूछता है कि उस पर कोई दबाव तो नहीं है। गवाह जब बताता है कि वह अपनी मर्जी से बयान दे रहा है, तब मैजिस्ट्रेट उसे दर्ज करता है।
कई बार ट्रायल के दौरान गवाह आरोप लगाता है कि पुलिस ने जबरन बयान दर्ज किया है और उसने उक्त बयान नहीं दिए थे, लेकिन मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से उसके लिए मुकरना आसान नहीं होता। हाई कोर्ट के सरकारी वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि धारा-161 या 164 के बयान के बावजूद ट्रायल कोर्ट के सामने गवाह जो बयान देता है, वही बयान आखिरी होता है। ट्रायल कोर्ट में बयान के वक्त गवाह को शपथ लेना होता है और फिर वह बयान दर्ज कराता है। अगर अदालत को लगता है कि गवाह सच बोल रहा है और बयान पुलिस के सामने दिए बयान से पूरी तरह न भी मिलता हो, तो भी उसके बयान के उस पार्ट को स्वीकार किया जाता है जो अभियोजन पक्ष के फेवर में है।
झूठ बोलने पर सजा
एडवोकेट अजय दिग्पाल बताते हैं कि अगर कोई अभियोजन पक्ष यानी सरकारी गवाह पुलिस और मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से मुकरे तो अभियोजन पक्ष के वकील उसके साथ जिरह करते हैं और जिरह के दौरान सच्चाई सामने लाने की कोशिश करते हैं। इस दौरान उक्त गवाह को मुकरा हुआ गवाह करार दिया जाता है। इसका मतलब हमेशा यह नहीं है कि गवाह झूठ बोल रहा है। कई बार पुलिस गलत तरीके से बयान दर्ज कर लेती है और तब गवाह पुलिस द्वारा लिखे गए बयान से अलग बयान देता है। लेकिन बयान और साक्ष्य देखकर अदालत यह देखती है कि गवाह शपथ लेकर झूठ तो नहीं बोल रहा है। अगर अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि गवाह ने शपथ लेकर झूठ बोला है तो ऐसे गवाहों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा-340 के तहत अदालत शिकायत कर सकती है। ऐसे गवाह के खिलाफ अदालत में झूठा बयान देने के मामले में आईपीसी की धारा-193 के तहत मुकदमा चलाया जाता है। इसमें दोषी पाए जाने पर 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है।

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