गुरुवार, 4 जनवरी 2018

मेघवाल (बलाई) समाज में जन्मे संत श्री भिखा दास जी महाराज का जीवन परिचय


                           
संत भिखा दास जी महाराज 
मन्डुसिया न्यूज़ ब्लॉग पोर्टल ¦ संत श्री भिखा जी  महाराज का जन्म मालवांचल के  टोकखुर्द नगर जिला देवास मध्यप्रदेश मे चैत्र शुक्ल पूर्णिमा विक्रम संवत 1500 के लगभग बड़ावदिया परिवार मे हुआ था ।इनके पिता श्री बाला जी और माता जानकी देवी के पवित्र गर्भ से प्रथम पुत्र के रुप मे इनका जन्म हुआ था ।
इनकी माता धार्मिक पृवत्ति की थी व कूछ वर्ष बाद इनके माता पिता परलोक सिधार गये । माता पिता के स्वर्गवास हुआ उस वक्त भीखा जी की उम्र 5 वर्ष की थी ।माता पिता जब भीखा को छोड़कर चले गये तब कूछ लोगो ने भिखा से कहा की बेटा इस दुनिया मे तुम्हारा कोई नही रहा भिखा इसलिये तुम अब राजा साहब की सेवा मे जाओ ।
हमारे राजा साहब बहूत ही दयालु ज्ञानी एवं तपस्वी है , वे धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते है इसलिए वे तुम को भी काम काज दे देंगे और तुमहारा भविष्य उज्वल बनाने का प्रयास करेगे ।
तब भिखाजी के मन मे राजा साहब से मिलने की उत्सुकता हुई और सोचने लगे कि देश का राजा भगवान समान होता है उनसे मिलने कि इच्छा उत्पन्न हुई । कहा जाता है कि - राजा निर्भयसिंह जी चावडा के रावला (महल)  के मुख्य द्वार पर ब्रम्ह मुहूर्त मे भिखा जी खड़े हो गये ।
छोटे से बालक को द्वार पर खड़ा देखकर द्वारपालो ने पूछा कि तुम कोन हो बालक ? तुम यहाँ क्यों आये हो ? तब भिखा जी बोले : मै बाला जी पुत्र भिखा हूँ ।
मेरे माता पिता परलोक सिधार गये है , मेरा अब कोई नही रहा इसलिए मैं राजा साहब कि शरण मे आया हूँ और उनसे मिलना चाहता हूँ , उनकी सेवा करना चाहता हूँ ।
तब द्वारपाल बोले - तुम भीखा अभी बच्चे हो और तुम राजा साहब कि किसी प्रकार कि सेवा नही कर सकोगे ।इसलिये यहाँ से वापस चले जाओ ।
लेकिन भिखा जी ने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि उन्हे राजा साहब से मिलना ही है ।अपनी हठ कि वजह से भिखा जी लगातार 7 दिवस महल के द्वार पर ही खड़े रहे ।
जब द्वारपालो को लगा कि सच मे यह बालक सात दिनो से बिना अन्य जल ग्रहण किये द्वार पर बैठा रह सकता है तो क्या यह बालक हमारे राजा साहब से मिलने योग्य भी नही है ।
जब द्वारपालो ने राजा निर्भय सिंह जी को सूचना दी कि एक गुणवान बालक 7 दिनो से उनसे मिलने कि आस मे प्रवेश द्वार पर इंतजार कर रहा है तब वह धर्म के प्रति अटूट आस्था रखने वाला राजा द्वारपालो को आदेश करता है कि उस बालक को आदर सहित दरबार मे लेकर आये ।
राजा साहब बोले - तुम कौन हो बालक और मुझसे क्यों मिलना चाहते हो ?
भिखा बोले - राजा साहब मै भिखा हूँ । आपके ही नगर का निवासी हूँ । मेरे माता पिता का स्वर्गवास हो गया है ,अब मेरा कोई नही है इस दुनियाँ मे इसलिए मैं आपके शरण मे आया हूँ ,अब आप ही मेरे दाता हो ।मै आपकी सेवा कर जीवन यापन करना चाहता हूँ ।
तब राजा साहब बोले भिखा तुम अभी बहूत छोटे हो रावला का काम कैसे करोगे । महल मे काम करना कोई छोटी बात थोड़ी है । तब भिखा जी ने कहा कि आप मुझे अवसर तो दीजिये ।
तब राजा साहब बोले ठीक है आज से तुम यही रहकर कृषि के काम को करना।
भिखा जी  बचपन से ही धार्मिक पृवत्ति के थे ।
  राजा साहब ने भिखा जी को कृषि क्षेत्र की पूर्ण जिम्मेदारी सौंप रखी थी । भिखा प्रतिदिन गौ माताओ के भोजन पानी की व्यवस्थाओं को करते फ़िर खेत से गौ माताओ के लिये चारे की व्यवस्था करते थे।
राजा साहब को भिखा जी के आने से कई लाभ प्राप्त हुये और दुग्ध व्यापार मे भी वृध्दि हुई । जिससे राजा साहब का भिखा जी पर विश्वास बढ़ते गया ।
कूछ अंतराल के बाद नगर मे रामदली वाले संत श्री गुलालदास जी महाराज का आगमन हुआ ।
पूजनीय संत गुलालदास जी महाराज अपनी जमात के साथ टोंक खुर्द नगर में आये थे , जिनकी सूचना जब राजा साहब को मिली तो उन्होने संत श्री की सेवा मे अपने सबसे अधिक विश्वसनीय भिखा को आदेश दे दिया की
भिखा गौ वंश की सेवा के साथ गुलालदास जी महाराज की भी सेवा करना।  संत श्री गुलालदास महाराज भिखा जी  की सेवा से प्रसन्न हुये और उन्होने स्वयं के भोजन से दो माल पूए भिखा जी को दिये और बोले बेटा भिखा मेरे साथ आप भी भोजन करो । तब भिखा जी भी भोजन करने लगे ।

 भिखा जी एक ही माल पुआ खा सके और बचे एक माल पुए को अपनी जेब मे कपड़े से लपेटकर रख लिया ताकि जब भूख लगे तब खा सके ।
दिन भर के अपने दैनिक कार्य के बाद रात को भिखा जी ने भोजन करने के लिये जेब मे से माल पुवा निकालकर देखा तो उन्होने पाया की कपड़े मे दो माल पुए है । भिखाजी इस चमत्कार को देखकर आश्चर्य चकित हो गये । भिखा उसी समय जमात मे गुरुजी से मिलने गये लेकिन जमात वहाँ से जा चुकी थी । भिखा जी राजा साहब के पास गये और उनसे निवेदक किया की मुझे कल अवकाश देवे , मै कल काम पर नही आ सकुंगा । राजा साहब ने भिखा की बातो को सुनकर कहा की ठीक है भिखा कल छुट्टी पर चले जाना लेकिन तुम्हारी जिम्मेदारी किसी और को सौंप जाना । अगले ही दिन भिखा जी जमात की तलाश मे निकल पड़े व देवली पहुँचे फ़िर वहाँ के लोगो से पूछा की क्या यहाँ जमात आई है ।
तब वहाँ के लोगो ने कहा की जमात यहा से जा चुकी है अब जमात का डेरा कजलास मे रहेगा । कजलास की जानकारी लगते ही भिखा जी शाम तक कजलास पहुँच गये ।
 वहाँ जब जमात के एक शिष्य ने देखा तो उन्होने भिखा जी से पूछा - भिखा तुम किसे तलाश कर रहे हो मै जानता हूँ  ? गुलाल दास जी महाराज को मै अच्छी तरह से जानता हूँ , उनकी शरण मे आने वाले हर भक्त का कल्याण होता है । आप महाराज गुलालदास जी से मिलना चाहते हो इसके लिये आपका साधुवाद है । यह भयंकर संसार सागर केले के पत्ते की भाँति सारहिन है । इसमे दु :ख की अधिकता है । काम क्रोध इसमे पूर्णरुप से व्याप्त है । इंद्रिय रूपी भँवर और कीचड़ के कारण यह दुस्तर है । नाना प्रकार के सैकड़ो रोग यहाँ भँवर के समान है ।यह संसार पानी के बुलबुले की भाँति भंगुर है ।इसमे रहते हुये जो आपके मन मे गुलाल दास की आराधना का विचार उत्पन्न हुआ यह बहूत उत्तम है । महाभाग : आईये मै आपके आने की
इसकी सूचना संत श्री गुलालदास जी महाराज तक पहुँचाता हूँ  । सूचना मिलते ही संत श्री गुलाल दास जी महाराज ने भिखा को पास बुलाया और पूछा की भिखा आप राजा साहब के महल का काम छोड़कर यहाँ क्या कर रहे हो ? तब भिखा जी बोले गुरुजी मै आपके साथ रहना चाहता हूँ ,आपकी सेवा करना चाहता हूँ ।
तब गुलालदास जी ने कहाँ हम खुद ही मानव समाज सेवक है तुमसे सेवा नही करवा सकते । मै तुमको गुरुमंत्र देता हूँ ! । तुम इस गुरु मंत्र को धारण करो और मानव समाज की सेवा करना ।
भिखा जी वापिस रावला आ गये और गुरुमंत्र का दिन रात सुमिरन करने लगे  जिससे कूछ ही समय मे भिखा का गुरुमंत्र सिद्ध हो गया । भिखा जी महाराज के गुरुमंत्र सिध्द होते ही वे सांसारिक कार्यों को करते हुयभी वे एक हीे समय अलग अलग स्थानों पर कार्य करने लगे दिन दुखियो की सेवा के लिये उनका एक रुप सदैव भ्रमण करता और लोगो मे भगवन भक्ति के प्रति जागरूक करने के लिये स्वयं भजन रचना कर उनको गाँव गाँव मे घूमकर समाज को सतमार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते और एक रुप सदैव रावला के कार्यों को करता रहता...  एक बार संत श्री भीखा जी के गुरु भाई श्री गंगदास जी महाराज बड़ी चूरलाय वाले के सानिध्य मे बड़ी चूरलाय मे राम नवमी का भंडारा रखा गया । इस भंडारे मे श्री संत श्री भिखा जी  को भी आमंत्रित किया गया था ।बड़ी चूरलाय मे संत श्री भिखा जी  को कोई नही जानता था , जिस स्थान पर भंडारे के लिये भोजन बन रहा था उस स्थान पर जाकर जब संत श्री ने लोगो से पूछा की खाने मे रामजी के लिये क्या क्या बना रहे हो और जितना बना रहे हो क्या वो पर्याप्त है । यहाँ उपस्थित लोगो ने यह कहते हुये संत श्री का अपमान किया कि तुमको इससे क्या मतलब और तुम यहाँ कैसे आये हो शीघ्र ही इस स्थान से चले जाओ । भिखा जी वहाँ से आ जाते है और गाँव से बाहर आकर ध्यान मग्न होकर बैठ जाते है यहाँ गाँव मे भंडारे के लिये बन रहा भोजन दूषित हो जाता है ।सभी गाँव वाले चिंतित हो जाते है और वे सभी संत श्री गंगदास जी को दूषित भोजन होने कि बात बताते है ।
सभी गाँव के श्रध्दालूओ कि बातो को सुनकर गंगदास जी महाराज अपनी अध्यात्म शक्ति से पता लगाते है कि ऐसा अशुभ कार्य क्यों हुआ ।
जब गंगदास जी महाराज को पता चलता है कि गाँव वालो ने संत का अपमान किया है जिसके वजह से भोजन दूषित हुआ है।
तब गंगदास जी महाराज और गाँव वाले अपनी गलती का पश्चाताप करने के लिये संत श्री के पास जाते है , जहाँ वो ध्यान मग्न बैठे है सभी गाँव वाले हाथ जोड़कर संत श्री से उनके द्वारा किये गये व्यवहार के लिये क्षमा याचना करते है और उनसे पुन : भंडारे मे चलने के लिये निवेदक करते है । लेकिन संत श्री उनको कहते है कि आप चिंतित न हो राम जी के लिये बनाया गया भोजन पुन : ठीक हो जायेगा । मैं तो प्रभु कि भक्ति मे यही बैठा हूँ ।इतना कहते हुये संत श्री ने अपने कमंडल से जल निकालकर गाँव वालो को दिया और बोले कि आप लोग इस जल को पाँच बार भोजन पर छिड़क दीजियेगा ।
संत श्री भिखा जी कि बातो को सुनकर उन्हे आत्मग्लानि होती है

सभी गाँव वाले जल लेकर गाँव आते है तब श्री गंगदास जी महाराज उनको बोलते है कि संत श्री भिखा जी कि जय बोलो और जल छिड़कना प्रारम्भ करो ।
5 बार भोजन पर जल छिड़का गया और पाँच बार ही संत श्री भिखा जी महाराज कि जय बोली गई ।
कूछ ही समय पाश्चात्य जल कि चमत्कारिक शक्ति के प्रभाव से दूषित भोजन ठीक हो गया उस दिन श्री गंगदास जी महाराज ने लोगो को उपदेश दिया कि हिन्दु समाज मे जब भी कोई शुभ कार्य किया जाये तो संत श्री भिखा जी महाराज कि जय बोलकर उनको स्मरण किया जाये ताकि भविष्य मे कोई भी कार्य अच्छे से पूर्ण हो एवं भोजन कभी भी ख़त्म व दूषित न हो ।
उसी समय से मालवांचल मे किसी भी मांगलिक कार्य मे भोजन करने से पूर्व संत श्री भिखा जी महाराज कि जय बोल कर स्मरण करने का प्रचलन शुरू हुआ ।
संत श्री भिखा महाराज कि महिमा चारो ओर फैल चुकी थी लोग उनके दर्शन करने के लिये दुर दुर से आने लगे सभी वर्ग के स्त्री पुरुष भी चरण छूकर आशीर्वाद माँगते थे ।महिलाओ को संत श्री आदिशक्ति का स्वरूप मानते थे । अत : बहनों और माताऑ को अपने चरण स्पर्श नही करने देते थे जब मना करने पर भी नही मानती तो वे स्वयं महिलाओ के चरण स्पर्श करते थे ।
संत श्री अपने समकालीन साधु संतों के साथ मे मिलकर समाज के लोगो को धर्म के प्रति जागरूक करने के लिये सत्संगो का आयोजन किया वे स्वयं ही रचना रचकर भजन गाया करते थे उनके द्वारा रचित भजन आज भी लोकवाणी मे गाये जाते है उन्होने घूमघूम कर मानव समाज के लोगो को सदचरित्र , सदव्यवहार व भागवत भक्ति का उपदेश दिया । उनका उपदेश था कि जो मानव अज्ञानी ,मनबुध्दि कम समझ व साधारण लोग है उनको तत्व के ज्ञाता संत महापूरूषो कि शरण मे जाकर सत्संग का लाभ लेना चाहिये
भगवान उपासना ,साधना करनी चाहिये ताकि इस संसार से दुखों से मुक्ति पाकर परम गति को पा सके । संत श्री भिखा जी महाराज जिस बीमार व्यक्ति के सिर पर हाथ रख देते थे वह तत्काल अच्छा हो जाता था ।संत भिखा जी  के पास ऐसी अलौकिक एवं आध्यात्मिक शक्ति थी की उनको कोई भी दुखी भक्त स्मरण करता तो उसके दुख के निवारण चमत्कारिक ढंग से हो जाते ,उनके साधना स्थल ग्राम भैंसा खेडी के जंगल मे दो शेर उनके सेवक के रुप मे सदैव बैठे रहते थे । वे संत श्री भिखा की आज्ञा का पालन करने के लिये सदैव तत्पर रहते थे । अगर कोई भक्त संत श्री के साधना स्थल पर आता तो शेर अदृश्य हो जाते । भक्ति की अवस्था मे भी वे अपने ही हाथ से भोजन बनाते थे , वे तीन पाव आटा लेते और उसमे 8-10  व्यक्ति दो शेर भोजन व स्वयं भोजन कर लेते थे ।
भिखा जी कहाँ करते थे की हमारे अंदर ही ज्ञान रूपी हीरा ,मोति ,माणिक सबकुछ विधमान है लेकिन हम इस ज्ञान को जीवन मे उतारते नही है और जिस दिन हमने इन तत्वों को जानकर जीवन मे उतार लिया तो दुनियाँ मे हमसे बढ़कर कोई नही ।

एक बार राजा साहब गंगा जी के दर्शन के लिये जा रहे थे ,उनकी इच्छा राजा साहब थी कि भिखा जी उनके साथ रहे ।राजा साहब ने उनकी यह इच्छा रानी जी से व्यक्त की , तब रानी जी ने कहाँ - भिखा रावला का सबसे विश्वासपात्र है अगर आप उसको साथ मे ले जाओगे तो यहाँ का काम कौन देखेगा ? राजा साहब भिखा जी को रावला की जिम्मेदारी सौपकर गंगाजी दर्शन के लिये चले गये । जिस समय राजा साहब गंगा मे स्नान कर रहे थे उसी समय उन्होने  भिखा जी को स्नान करते देखा राजा साहब ने भिखा जी को पास बुलाकर कहाँ भिखा तुमने ये क्या किया मैं तुमको रावला की जिम्मेदारी सौंपकर आया था और तुम सब छोड़कर यहाँ आ गये ।
तब भिखाजी बोले महाराज आप निश्चिंत रहे रावला का काम सुचारु रुप से चल रहा है ।राजा साहब बोले चलो छोडो आ तो गये हो , अब हमारे साथ रहो और पूजापाठ करो । राजा साहब ने पूजा पाठ करने के बाद प्रसादी भीखा जी को दे दी और कहाँ की ये प्रसादी सम्भालकर रखना इसको तुम्हारी रानी माता को देनी है । भिखा जी प्रसाद को अपने पास रखते है और कूछ समय पश्चात वहाँ से अंतर्ध्यान हो जाते है । राजा जी गंगा तट पर भिखा जी को ढूंढते है लेकिन वहाँ नही मिलते है । शाम  को खेती का कार्य ख़त्म करके भिखाजी जब रावला मे आते है तो उनके मुँह से अचानक निकल जाता है की मै भी गंगा जी गया था एवं राजा साहब ने आपके लिये प्रसाद भेजी है । रानी माता भिखा जी की बातो को सुनकर अनसुना करके प्रसाद को रख देती है , गंगाजी से वापस आने पर राजा साहब ने रानी माता से पूछा की ये भिखा गंगा जी से कितने दिनो मे आया ? तब रानी माता ने जवाब दिया की भिखा तो यही था वो कब गंगाजी गया तब राजा साहब बोले भिखा ने गंगा जी मे मेरे साथ स्नान किया  पूजा पाठ की और मैने उसको प्रसाद भी दी थी ।आपको देने के लिये लेकिन प्रसाद लेकर वो वहाँ से जाने कहाँ चला गया तब रानी ने भिखाजी द्वारा दी गई प्रसाद का दिन व तिथि राजा साहब को बताई दोनो को बहूत आश्चर्य हुआ यह कैसे सम्भव है । इस बात का मंथन करके राजा साहब बोले कूछ तो राज है इसका पता लगाना पड़ेगा ।
अगली सुबह ब्रम्हा मुहूर्त मे भिखा जी के क्रिया कलापों को उन्होने देखा की सुबह उठकर भिखा जी सूरजकुण्ड मे नहाने आए और उन्होने एक कपडा पानी के ऊपर बिछाया और भिखाजी उस कपड़े के ऊपर बैठे हुये है और अपनी साधना शक्ति के द्वारा अपनी आँतों को शरीर से बाहर से निकालकर जल से धो रहे है । राजा साहब ने देखा की जिस कपड़े पर भिखा जी
बैठे हुये थे वो बिलकुल सूखा है ये देखकर राजा साहब आश्चर्य चकित होते उसके बाद वह खेत मे छिपकर देखते है तो भिखाजी का एक स्वरूप ध्यानमग्न बैठा है और पास मे ही हंसिया स्वयं ही घास काट रहा है । शाम होते ही पूरा घास चमत्कारिक रुप से बंधकर भिखा जी के सिर पर आ जाती है राजा साहब ने देखा की घास का गट्ठा सिर से दो उंगल ऊपर है और पशु भी रस्सी के भिखा जी के पीछे पीछे चल रहे है । इतने क्रियाकलापों को राजा साहब जब अपनी आँखो से देखते है तो उनको बहूत पश्चात होता है और वे भिखाजी से पहले रावला आकर सिंहासन सजवाते है जब भिखाजी रावला आते है तो राजा साहब हाथ जोड़कर बोले मुझे माफ कर दीजिये मैने आपको पहचाना नही और आपसे सेवा करवाता रहा आप कैसे संत से सेवा करवाने का मुझे पाप लगा है और मै इसका प्राश्चीत करना चाहता हूँ..कृपा करके आप मुझे सेवा करने का मौका दीजिये । तब भिखा जी बोलते है हमारा जीवन मानव सेवा के लिये हुआ है मै आपसे सेवा नही करवा सकता हूँ । राजा साहब भिखाजी महाराज को सिंहासन पर बैठाने के लिये आगे बढ़ते है लेकिन वो वहाँ से अंतर्ध्यान हो जाते है । राजा साहब उनको ढूंढते के लिये रावला से बाहर आते है तो भिखा जी उनको रास्ते मे मिलते है राजा साहब जैसे ही भिखा जी के पास जाते है ,भिखा जी अंतर्ध्यान हो जाते है और कूछ दुर जा कर वापिस प्रकट हो जाते है । ऐसा करते करते भिखाजी रणायन कला के घने जंगलों मे अंतर्ध्यान हो जाते है ,बड़ी मुश्किल से बहूत खोजने के बाद भिखाजी राजा साहब को दिखे जैसे ही भिखा दिखे राजा साहब हाथ जोड़कर रोने लगे और उनसे विनती करने लगे की मुझे आपकी सेवा का मौका दीजिये आप मुझे ऐसे छोड़कर मत जाओ तब भिखा जी ने कहाँ राजा साहब आप जब भी मुझे याद करोगे मे आपके पास आ जाऊँगा ।
तब राजा साहब ने कहाँ मुझसे क्या गलती हुई जो आप मुझे सेवा का मौका नही दे रहे हो भिखाजी महाराज ने कहाँ मेरा जीवन मानव सेवा के लिये हुआ है और आप भी मानव सेवा ही करना ।इतना कहने के बाद जहाँ भिखा जी महाराज बैठे थे वहाँ ज़मीन चमत्कारिक रुप से गहरी खाई के रुप मे दो भागो ने बट जाती है । तब भिखा जी ज़मीन की उस खाई मे समा गये और ज़मीन पुन : पहले जैसी हो गई ।कूछ पलों मे ही जिस स्थान पर भिखा जी बैठे थे वहाँ पर चमत्कारिक रुप से कुमकुम के पगलिया ( पदचिन्ह )बन गये ।उसके पश्चात राजा साहब ने मजदूरो के द्वारा उस जंगल को साफ करवाया व वहाँ पर एक छोटे से वोटले का निर्माण करवाया ।इस घटना के पश्चात से ही राजा साहब ने भिखा जी को अपने कुल देवता के रुप मे पूजना आरम्भ कर दिया समाधि लेने के पश्चात ही भिखाजी को  लोगो ने गंगा जी के तट पर , खेतों मे काम करते हुये..सूरजकुण्ड मे नहाते हुये एवं उनके साधना स्थल पर ध्यानमग्न बैठे देखा । कहाँ जाता है कि जब भी कोई सच्चे निस्वार्थ भाव से संत श्री भिखा जी महाराज को याद करता है तो उनके द्वारा दुखों का नाश होता है , भिखा जी महाराज आज भी विधमान है.....
संकलन - कृष्णपाल सेन्धालकर,  राष्ट्रीय संयोजक - संत श्री भिखा जी महाराज मंदिर निर्माण अभियान भारत +917869861227

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...