सोमवार, 23 दिसंबर 2013

मेघवंशी भाइयो, उठो और समय को पहचान कर आगे बढ़ो (Megvanshi brothers, wake up and recognize the Proceed)

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ. सं‍विधान लागू होने के तुरन्‍त बाद सभी को समानता का अधिकार, स्‍वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अत्‍याचारों से मुक्ति पाने का अधिकार, धार्मिक स्‍वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्‍कृति का अधिकार, संवैधानिक उपचारों का अधिकार मिला. लेकिन संविधान लागू होने के 57 वर्ष बाद भी दलित समाज अपमानित, उपेक्षित और घृणित जीवन जीने पर मजबूर है. इसका कारण दूसरों पर नहीं थोपकर हम अपने अन्‍दर ही झांक कर देखें कि हम अपमानित, उपेक्षित और घृणित क्‍यों हैं? हम दूसरों में सौ बुराई देखते हैं. दूसरों की ओर अंगुली उठाते हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हमारी ओर भी तीन अंगुलियां उठी रहती हैं. दूसरों में बुराई ढूँढने से पहले अपने अंदर की बुराई देखें. कबीर की पंक्तियाँ याद रखकर अपने अंदर झांकें:-

बुरा, जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जब दिल ढूंढा आपणा, मुझ से बुरा न कोय।

मन को उन्‍नत करो, हीन विचारों का त्‍याग करो.

मेरे विचार से यह सब इसलिए कि हम दब्‍बू हैं, स्‍वाभिमानी नहीं हैं. हम यह मानने भी लगे हैं कि वास्‍तव में अक्षम हैं. हमारा मन मरा हुआ है. हमारे अन्‍दर आत्‍मसम्‍मान व आत्‍मविश्‍वास की कमी है. किसी को आप बार-बार बुद्धु कहो तो वह वास्‍तव में बुद्धु जैसा दिखने लगता है. हमें भी ऐसा ही निरीह, कमजोर बनाया गया है और हम अपने को निरीह, कमजोर समझने लगे हैं. जबकि वास्‍तव में हम नहीं हैं. जब हमारे उपर कोई हाथ उठाता है, थप्‍पड़ मार मारता है तो हम केवल यही कहते हैं - अब की मार. दबी हुई, मरी हुई आत्‍मा, हुंकार तो मारती है, लेकिन मारने वाले का हाथ नहीं पकड़ती. मैं हिंसा में विश्‍वास नहीं करता, फिर भी आपको कहना चाहता हूँ कि आप पर जो हाथ उठे उस हाथ को साहस कर, एकजुट होकर कम से कम पकड़ने की तो हिम्‍मत करिए ताकि वह आपको मार नहीं सके. उसको वापिस मारने की आवश्‍यकता नहीं. आपका आत्‍मसम्‍मान जाग्रत होगा और आप एकजुट होकर अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे. अपने दिलों को बदलना होगा. दब्‍बू को हर कोई मारने की कोशिश करता है. एक कहावत है- एक मेमना (बकरी का बच्‍चा) भगवान के पास गया और बोला -भगवान आपने तो कहा था कि सभी प्राणी समान हैं. सभी को जीने का समान अधिकार है. फिर भी सभी भाईचारे को भूलकर मुझ पालनहार का भी तुम्‍हें निगलने का मन कर रहा है. सीना उठाकर चलोगे तो कोई भी तुम पर झपटने से पहले सोचेगा. बली तो भेड़-बकरियों की ही दी जाती है, सिंहों की नहीं. अत: मेमने जैसा दब्‍बूपन छोड़ो और समानता के अधिकार के लिए सिंहों की तरह दहाड़ो. एक बार हम साहस करेंगे तो हमें कोई भी जबरन दब्‍बू नहीं बना सकता.

असमानता, ऊँच-नीच की धारणा दूसरों देशों में भी है.

ऊँच-नीच की बात भारत में ही नहीं सम्‍पूर्ण विश्‍व में है. अमेरिका के राष्‍ट्रपति इब्राहिम लिंकन जब राष्‍ट्रपति बनकर वहाँ की संसद में पहुँचे तो किसी सदस्‍य ने पीछे से टोका, लेकिन तुम्‍हारे पिता जूते बनाते थे, एक चर्मकार थे. इब्राहिम लिंकन तनिक भी हीनभावना में नहीं आए बल्कि उस सदस्‍य को उत्‍तर दिया, हाँ, मेरे पिता जी जूते बनाते थे. वे एक अच्‍छे कारीगर थे. उनके द्वारा बनाए गए जूतों ने किसी के पैर नहीं काटे. किसी के पैरों में कील नहीं चुभी. किसी के पैरों में छाले नहीं हुए. डील नहीं बनी. मुझे गर्व है कि वे एक कुशल कारीगर थे. लोग उनकी कारीगरी की प्रशंसा करते थे. यह था लिंकन का स्‍वाभिमान, आत्‍मसम्‍मान के कारण वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्‍ट्रपति बने थे. हमें भी लिंकन की तरह अपने में आत्‍मविश्‍वास पैदा करना होगा. यदि हमको तरक्‍की की राह पकड़नी है तो हमें हीनभावना, कुंठित भावना को त्‍यागना होगा. हमें पुन: अपना आत्‍मसम्‍मान जगाना होगा. हम अपनी मर्जी से तो इस जाति में पैदा नहीं हुए और जब हम दलित वर्ग में पैदा हो ही गए हैं तो हीन भावना कैसी? आत्‍मसम्‍मान के साथ समाज की इस सच्‍चाई को स्‍वीकार कर आत्‍मविश्‍वास के साथ आगे बढ़ना होगा. सफलता की सबसे पहली शर्त आत्‍मसम्‍मान, आत्‍मविश्‍वास ही होती है.

राजस्थान प्रांत में मेघवाल जाति के क्षेत्रानुसार भिन्‍न-भिन्‍न नाम हैं लेकिन मूल रूप से यह 'चमार' नाम से जानी जाती थी. समाज में चमार शब्‍द से सभी नफ़रत करते हैं. गाली भी इसी नाम से दी जाती है. बचपन से ही मेघवाल जाति को हेय दृष्टि से देखा जाता है और समाज के इस उपेक्षित व्‍यवहार के कारण हमारे अंदर हीनभावना भर जाती है. हम अपनी जाति बताने में भी संकोच करते हैं. अब हम स्‍वतंत्र हैं, समान हैं तो अपने में हीन भावना क्‍यों पनपने दी जाए? हमें अपनी जाति पर गर्व होना चाहिए. संत शिरोमणी गुरु रविदास, भक्‍त कबीरदास, रूसी क्रांति का नायक स्‍टालिन, दासप्रथा समाप्‍त करने वाला अमेरिका का राष्‍ट्रपति अब्राहिम लिंकन, पागल कुत्‍ते के इलाज खोजने वाला लुई पास्चर, जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों को मारने वाले जनरल डायर की हत्‍या कर बदला लेने वाला शहीद ऊधम सिंह, भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और न जाने कितने महान नायक समाज द्वारा घोषित तथा कथित दलित जाति में पैदा हुए हैं तो हम अपने को हीन क्‍यों समझें.

अपने समाज की पहचान मेघवाल से स्‍थापित करो

मैंने कई पुस्‍तकें पढ़ी हैं. यह जानने की कोशिश की है कि समाज में अनेक अन्‍य जातियाँ भी हैं मगर ‘चमार’ शब्‍द से इतनी नफ़रत क्‍यों है? किसी अन्‍य जाति से क्‍यों नहीं लोग समझते हैं कि ‘चमार’ शब्‍द चमड़े का काम करने वाली जातियों से जुड़ा है. यदि चमड़े का काम करने से जाति चमार कही गई है तो कोई बात नहीं लेकिन इसी जाति से इतनी नफ़रत पैदा कहाँ से हुई? यह एक अनुसंधान का विषय है कि और जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ ‘चमार’ शब्‍द चमड़े से संबंधित न होकर संस्‍कृत के शब्‍द ‘च’ तथा ‘मार’ से बना है. संस्‍कृत में ‘च’ तथा ‘मार’ से बना है. संस्‍कृत में ‘मार’ का अर्थ मारना होता है. अत: चमार का अर्थ हुआ 'और मारो' उस समय उन लोगों को भय होगा कि ज़बरदस्‍ती अधीन किया गया एक विकसित समाज उनको कहीं पहले ही नहीं मार दे इसलिए अपने पूर्वजों को 'और मारो'….'और मारो' कहते हुए दब्‍बू बनाया गया, नीच बनाया गया, नीच व गंदे काम करवाए गए यह उस समय की व्‍यवस्‍था थी. हर विजेता हारने वाले को सभी प्रकार से दबाने-कुचलने की कोशिश करता है ताकि वह पुन: अपना राज्‍य न छीन सकें. लेकिन अब उस समय की व्‍यवस्‍था के बारे में आज चर्चा करना बेमानी है. हमें आज की व्‍यवस्‍था पर अपनी स्थिति पर विचार करना होगा. आप भी जाति का नाम चमार बताने में सभी संकोच करते हैं इसलिए हमें अपनी जाति का नाम 'चमार' की बजाए 'मेघवाल' लिखवाने का अभियान शुरू करना चाहिए. प्रत्‍येक को अपने घर में अन्‍य देवी देवताओं के साथ बाबा मेघऋषि की मूर्ति या तस्वीर लगानी चाहिए. हरिजन शब्‍द तो सरकार ने गैर कानूनी घोषित कर दिया है, इसलिए हरिजन शब्‍द का प्रयोग क़तई नहीं करना चाहिए.

हमारे पिछड़ने का एक कारण यह भी है कि हम बिखरे हुए हैं, संगठित नहीं है. हम अपनी एकता की ताकत भूल चुके हैं. अपना समाज भिन्‍न-भिन्‍न उपनामों में बंटा हुआ है, भ्रमित है. एक दूसरे से ऊँचा होने का भ्रम बनाया हुआ है. हममें फूट डाली गई है. हमारे पिछड़ेपन का कारण हमारी आपसी फूट हैं. आप तो जानते हैं कि फूट के कारण यह भी है कि भारत सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा है. रावण व विभीषण की फूट ने लंका को जलवाया, राजाओं की फूट ने बाहर से आक्रमणकारियों को बुलाया, अंग्रेजों को राज्‍य करने का मौका दिया और सबसे बड़ी बात है कि हमारी आपसी फूट से हमें असमानता की, अस्‍पृश्‍यता की जिन्‍दगी जीने पर मजबूर किया गया. फूट डालो और राज्‍य करो की नीति अंग्रेजों की देन नहीं, बल्कि यह भारत में बहुत प्राचीन समय से चालू की गई थी. ज़ोर-मर्जी से बनाया गया, शूद्र वर्ण अनेकों छोटी-छोटी उप जातियों में बांट दिया गया. उनके क्षेत्रीय नाम रख दिए गए ताकि हम सभी एक हो कर समाज के ठेकेदारों से अपने हक नहीं मांग सकें. मेघवाल यानि चमार जाति को अन्‍य छोटे-छोटे नामों से बांट दिया गया. मसलन बलाई, बुनकर, सूत्रकार, भांभी, बैरवा, जाटव, साल्‍वी, रैगर- जातियां मोची, जीनगर मेंघवाल इत्‍यादि आदि हमें एक होते हुए भी अपने को अलग-अलग मान लिया है. उनको एक दूसरे से बड़ा होने की बात सिखाई गई. यहाँ तक कि मेघवालों को भी जाटा मेघवाल तथा रजपूता मेघवाल में बांटा गया. यानि एक नहीं होने देने का पूरा बंदोबस्‍त पक्‍का कर दिया गया. यह एक षडयंत्र था और इस षडयंत्र में समाज के ठेकेदारों को कामयाबी भी मिली. राज्‍य के कुछ जिलों में अलवर, झुन्‍झुनु तथा सीकर जिले के कुछ भागों में मेघवाल जाति के चमार शब्‍द का उपयोग किया जाता था. चमार नाम को छोड़ मेघवाल नाम लगाने के लिए मेंघवंशीय नाम लगाने के लिए मेंघवंशीय समाज चेतना संस्‍थान ने मुहिम चलाई और 12-9-2004 को झुन्‍झुंनु में एक एतिहासिक सम्‍मेलन हुआ जिसमें लगभग सत्‍तर हज़ार लोगों ने हाथ खड़े करके मेघवाल कहलाने को राज्‍य स्‍तरीय अभियान शुरू किया गया. समाज को एकजुट करने के लिए मेघवाल नाम से अच्‍छा शब्‍द कोई नाम नहीं हो सकता. कई लोगों का सोचना है कि अपनी काफी रिश्‍तेदारियां हरियाणा, पंजाब प्रांतों में हैं और वहाँ पर अभी भी चमार शब्‍द का उपयोग होता है तो वहाँ पर क्‍या नाम होगा? इस बात पर मेरा कहना है कि हम पहल तो करें, बाद में वहाँ पर भी लोग अपनी तरह सोचेंगे.

राजस्‍थान राज्‍य में मेघवाल बाहुल्‍य में हैं बात उठती है कि समाज के लिए मेघवाल शब्‍द ही क्‍यों प्रयोग हों? इसका छोटा सा उत्‍तर है कि राजस्‍थान के 20-22 जिलों में यह शब्‍द अपने समाज के लिए प्रयोग होता है. अलवर में चमार, धौलपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर, करौली में जाटव, कोटा, टौंक, दौसा में बैरवा, जयपुर, सीकर में बलाई, बुनकर इत्‍यादि का प्रयोग किया जाता है. अत: एकरूपता के कारण मेघवाल बाकी जिलों में भी प्रयोग हो तो अच्‍छा है. एकरूपता के साथ एकता बनती है. कई लोग उपनामों को मेघवाल शब्‍द के नीचे लाने के समर्थक नहीं है. यह उनकी भूल है. मेरा तो मानना है कि शर्मा शब्‍द से परहेज़ नहीं होना चाहिए. मेघवाल शब्‍द से बहुमत दिखता है. मेघवालों में आपस में विभेद पूछना चाहें तो वे कह सकते हैं, -मैं जाटव मेघवाल हूँ, मैं बलाई मेघवाल हूँ इत्‍यादि. इस शब्‍द से एक बार शुरूआत तो हो. इसके बाद साल-छ महीनों में यह विभेद भी समाप्‍त कर हम सभी मेघवाल कहने लगेंगे. जब अन्‍य जातियाँ मेघवालों के शिक्षित बेटों के साथ अपनी बेटियों की शादी बिना किसी हिचकिचाहट के कर रही हैं तो हम छोटी-छोटी उपजातियों में भेदभाव नहीं रखें तो ही अच्‍छा है. अपनी एकता बनी रहेगी, वरना भौतिकवाद में पनप रहे इस समाज में हमारे अंदर फूट डाल कर हमारा शोषण ही होता रहेगा. कई भाइयों का मानना है कि नाम बदलने से जाति थोड़े ही बदल जाएगी. इस संशय पर मेरा विचार है कि नाम बदलने से हमारा व सम्‍पूर्ण समाज का सोच अवश्‍य बदलेगा. यह सही है कि मेघवाल नाम से लोग हमें चमार ही समझेंगे लेकिन मेघवाल शब्‍द बोलने में, सुनने में अच्‍छा लगता है और चमार यानि 'और मार' की दुर्गंध से पैदा हुई हीनभावना से छुटकारा भी मिलता है.

हमें गर्व है कि हम मेघऋषि की संतान हैं. मेघ बादलों को भी कहते हैं. बादलों का काम तपती धरती को बारिश से तर-बतर कर हरा-भरा करना है. उसी तरह हमारी जाति भी अपनी परि‍श्रम रूपी वर्षा से समाज को लाभान्वित करती है. अपनी जाति ने देना सीखा है. किसी का दिल दुखाना नहीं. इसलिए अच्‍छे संस्‍कारों को आत्‍मसम्‍मान के साथ पुनर्जीवित करना है. अत: हम हीनभावना को ना पनपने देवें. अत: परस्‍पर वाद-विवाद में अपनी शक्ति को दुर्बल न करें. अपने को एकजुट होकर सम्‍पन्‍न, शिक्षित, योग्‍य कर्मठ, स्‍वाभिमानी बनना है. इसी से हम अपने खोए हुए अस्तित्‍व व अधिकारों की बहाली करने में सक्षम होंगे. अब भी समय है हम आपस के वर्ग भेदभाव -चमार, बलाई इत्‍यादि भुलाकर मेघवाल के नाम के नीचे एक हो जाएँ. यदि हम एक होकर अपने अधिकारों की बात करते हैं तो सभी को सोचना पड़ेगा. आप जानते हैं कि अकेली अंगुली को कोई भी आसानी से मरोड़ स‍कता है, ले‍किन जब पाँचों अंगुलियाँ मिलकर मुट्ठी बन जाती है तो किसी की भी हिम्‍मत नहीं होती कि उसे खोल सके. जिस प्रकार हनुमान जी को समुद्र की छलांग लगाने के लिए उनकी शक्ति की याद दिलायी गयी तो वे एक ही छलाँग में लंका पहुँच गए थे. उसी प्रकार हम भी अपनी एकता की ताकत पहचान कर एक ही झटके में अपनी मंजिल प्राप्‍त कर सकते हैं. अब आपको अपनी एकता की शक्ति की ताकत दिखाने की आवश्‍यकता है. जानते हो, छोटी चिड़ियाएँ एकता कर जाल को उड़ाकर साथ ही ले गईं और अपने अस्तित्‍व की रक्षा की थी. उसी प्रकार आप भी उठो. स्‍वाभिमान जागृत करो अलगाव छोड़ो और एकजुट हो जाओ. समाजिक बुराइयाँ छोड़ने के लिए एकजुट, अपने को आत्‍मनि‍‍भर्र बनाने के जिए एकजुट और समाज में समान अधिकार पाने के लिए एकजुट. हम एकजुट होंगे तो तरक्‍की का रास्ता स्‍वयं बन जाएगा. देश में हम एक होकर हुंकार भरेंगे तो उस हुंकार की नाद गूंजेगी.

अंध श्रद्धा का त्‍याग करो, कुरीतियों का त्‍याग करो, जीवित मां-बाप की सेवा करो, और लोग हमें हमारे अधिकार देने पर मजबूर होंगे.

हम अनेक सामाजिक बुराईयों से , बुरी प्रथाओं से, सामाजिक रुढि़यो की बेडि़यों में जकड़े हुए हैं. म्रत्‍यु -भोज जैसे दि‍खावे पर लाखों रुपए हैसियत ये अधिक खर्च कर डालते हैं. कुछ लोग मां-बाप के जिंदा रहते कई बार उन्‍हें रोटी भी नहीं देते और मरने के बाद उनकी आत्‍मा की शांति के लिए ढोंग करते हुए उनके मुंह में घी डालते हैं. जागरण कराते हैं. देवी देवताओं को मानते हैं. गंगाजल चढ़ाते हैं. घर में बूढ़ी दादी चारपाई पर लेटी पानी मांगती रहती है और उसे कोई पानी की पूछने वाला नहीं. यह कैसी विडम्‍बना है यह ? एक राजस्‍थानी कवि ने सही कहा है:-

जोर-जोर स्‍यूं करै जागरण, देई, देव मनावै,

घरां बूढ़की माची माथै, पाणी न अरड़ावै.

और उपेक्षित वृद्धा के मरने के बाद हम उसके मृत्‍यु-भोज पर हजा़रों रुपए खर्च कर डालते हैं जो पाप है. माता-पिता के जिंदा रहते उनकी सेवा करने से समस्‍त प्रकार को सुख प्राप्‍त होता है. मां-बाप से बड़ा से बड़ा भगवान, इस दुनिया में कोई नहीं है. यदि मां-बाप नहीं होते तो हम इस संसार में आते ही नहीं. अत: अनेक देवी-देवताओं के मंदिरों में माथा टेकने से अच्‍छा है, घर में मां-बाप की सेवा करो. हमें धोखे में रखकर, भटकाकर, कर्मकांडो के चक्रों में फंसाया गया है. मैने देखा है कि हम देवी देवता, पीर बाबा इत्‍यादि में बहुत विश्‍वास करते हैं. एक बात सोचो कि क्‍यों ये सभी देवी-देवता हमें ही बहुत परेशान करते हैं. किसी अन्‍य जाति को क्‍यों नहीं? बड़े-बड़े धार्मिक मेलों में जाकर देखो. अस्‍सी प्रतिशत लोग निम्‍न तबके के मिलेंगे. हमें धर्मभीरू बनाया जाता है. ताकि हम उनके चक्रों में पड़े रहें. भगवान तो घट-घट में हैं. जरा सोचो और इस चक्रव्‍यूह से निकलकर प्रगति की बातें करो. जागरण, डैरु, सवामणी इत्‍यादि के नाम पर हजारों रुपए कर्ज़ लेकर देवता को मनाना समझदारी नहीं है? कबीर ने कहा है:-

पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़

ताते तो चक्की भली पीस खाय संसार

यदि हम अब अपनी कुरीतियाँ पाले रहे, आडम्‍बरों से घिरे रहे तो अपना अस्तित्‍व दासों से भी घटिया, चाण्‍डलों से भी बदतर हो सकता है. निकलो इन कर्मकांडों से. त्‍यागो इस धर्मभरूता को. उठो और नये सवेरे की ओर बढ़ो. समाज की भलाई की ओर ध्‍यान दो तब आपका दिल नेक होगा, समाज की भलाई की ओर ध्‍यान होगा तो भगवान स्‍वयं मंदिर से चलकर आपके घर आयेंगे और पूछेंगे, बेटे बताओ तुम्‍हारी और क्‍या मदद की जाए? जो मनुष्‍य स्‍वयं अपनी मदद करता है, भगवान भी उसी की मदद करता है. स्‍वयं को सुधार कर अपनी मदद खुद करें. आप सुधर गए तो भगवान भी आपके कल्‍याण के लिए पीछे नहीं हट सकते. गूंगे बहरे मत बनों. एक दूसरे का दुख-दर्द बांटो, किसी की आत्‍मा को मत दुखाओ. अपने को सुधारो, समाज स्‍वयं सुधर जाएगा.

शादी-विवाह, दहेज, छुछक, भात, मृत्‍यु भोज इत्‍यादि सामाजिक दायित्‍व में हम हैसियत से अधिक खर्च कर डालते हैं. लेकिन कर्ज़ लेकर शान दिखाना कहाँ की शान है? बहन-बेटियों को भी सोचना चाहिए और अपने माता-पिता, भाई-बहन को सलाह देनी चाहिए कि उनका दहेज पढ़ाई है. वे पढ़-लिखकर आगे आएँ और समाज की अग्रणी बने. अत: मृत्‍यु भोज, दहेज प्रथा, बालविवाह, ढोंग-आडम्‍बर इत्‍यादि समाज के कोढ़ को छोड़ो और आत्‍मविश्‍वास के साथ प्रगति की राह पकड़ो.

लड़कियाँ लड़कों से प्रतिभा में कम नहीं

इंदिरा गाँधी अकेली लड़की थी जिसने अपने नाम के साथ अपने परिवार का नाम पूरे विश्‍व में रोशन किया. आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में अग्रणी हैं. बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रही हैं. राजस्‍थान में लड़कियों की नौकरियों में तीस प्रतशित आरक्षण हैं. अत पुत्र प्राप्ति का मोह त्‍यागकर एक या दो संतान ही पैदा करने का संकल्‍प करना चाहिए. उन्‍हीं को पढ़ा-लिखाकर उच्‍च‍ाधिकारी बनाएँ. लड़का या लड़की कामयाब होंगे तो अपने नाम के साथ आपका नाम भी रोशन करेंगे. अत कम संतान पैदा करके अपने दो बच्‍चों को पढ़ाने की सौगंध खाएँ. समाज को भी होनहार, प्रतिभाशाली बच्‍चों को पढ़ाने के लिए प्रोत्‍साहन देना चाहिए.

आज कम्‍प्‍यूटर युग है. प्रतियोगिता का ज़माना है. जो प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्‍ठ होगा वही सफलता प्राप्‍त करेगा. जो प्रतियोगिता में नहीं टिक पाएगा, चाहे उसने कितनी ही डिग्रियाँ ले रखीं हों, अनपढ़ के समान होगा. डिग्री के नशे में वह पेट पालने के लिए छोटा काम, मज़दूरी इत्‍यादि भी नहीं करेगा. वह न इधर का रहेगा और न उधर का. अतः आपने अपने बच्‍चों को कम्‍पीटीशन को ध्‍यान में रखकर पढ़ाना होगा. बच्‍चे भी इस बात का ध्‍यान रखें कि इस प्रतियोगिता के युग में एक नौकरी के लिए हज़ारों लड़के मैदान में खड़े हैं. हमें संघर्ष से नहीं डरना चाहिए. संघर्ष के बिना कुछ मिलता भी नहीं है. मंच पर बैठे सभी व्‍यक्ति भी आज संघर्ष के कारण इतनी उन्‍नति कर पाए हैं. सफलता के लिए कठिन संघर्ष की आवश्‍यकता है.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,

कह कबीरा पिउ पाया, मन ही की परतीत.

नौकरियों के भरोसे पर निर्भर मत रहो. व्‍यापार करो. अपनो से क्रय-विक्रय करो. अतः आप दृढ़ निश्‍चय के साथ हिम्‍मत कर सर्वश्रेष्‍ठ बनने का प्रयास करेंगे तभी इस कम्‍पीटिशन व कम्‍प्‍यूटर के ज़माने में आपको सफलता मिलेगी अन्यथा फिर से आप अपने पूर्वजों की भांति शोषण का शिकार होंगे.

हमें यह भी भय रहता है कि हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं. अपने अधिकारों के लिए एक होता देख, कहीं हमारा सामाजिक बायकॉट न कर दिया जाए. हमें काम-धंधा नहीं मिलेगा तो हम भूखे मरेंगे. आर्थिक रूप से कमजोर व्‍यक्ति सामाजिक बायॅकाट के भय से जल्‍दी टूटता है. इसलिए हमें सुनिश्चित करना है कि हम आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न बने.

हमारे लोग केवल नौकरी की तलाश में रहते हैं, बिज़नेस की ओर ध्‍यान नहीं देते. जनसंख्‍या बढ़ोत्तरी के अनुपात में आजकल नौकरियाँ बहुत कम रह गई हैं. हम नौकरियों के भरोसे नहीं रहकर कोई धन्‍धा अपनाएँ तथा आत्‍मनिर्भर होंगे. इसलिए हमें दूसरे धंधों की ओर ध्‍यान देना चाहिए. यदि हम आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न होंगे, आत्‍मनिर्भर होंगे तो किसी की गुलामी नहीं करनी पड़ेगी. आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न व्‍यक्ति संघर्ष करने में अधिक सक्षम है. मकान बनाने की करणी पकड़ने से मकान बनाना शुरू करते-करते बिल्डिंग कंट्रेक्‍टर बनो, लकड़ी में कील ठोकने से धंधा शुरू कर बड़ी सी फर्नीचर की दूकान चलाओ, परचून की छोटी सी दूकान से शुरू कर मल्‍टीप्‍लैक्‍स क्रय-विक्रय बाजार बनाओ. वास्‍तुशास्‍त्र, हस्‍तरेखा विज्ञान, अंक ज्‍योतिष, एस्‍ट्रोलॉजी इत्‍यादि में भी भाग्‍य आज़माया जा सकता है. ये कुछ उदाहरण है. आप अपनी पसंद का कोई भी धंधा शुरू कर सकते हैं. मन में शंका होती है कि क्‍या हम विज़नेस में कामयाब होंगे? अनुसूचित जाति की जनसंख्या राजस्‍थान में सोलह प्रतशित है. हम सभी सोच लें कि हम अधिकतर सामान अपने लोगों की दुकानों से ही खरीदेंगे तो दुकान जरूर चलेगी. जैसे हम आप सभी खुशी के अवसरों पर मिठाई खरीदें. मेघवाल भाई के ढाबे पर खाना खाएँ, चाय पिएँ, मेघवाल किराना स्‍टोर से सामान खरीदें, मेघवाल टीएसएफ जैसी जूतों की फैक्‍टरी खोल सकते हैं, जूतों की दुकान खोल सकते हैं तो हम अन्‍य धंधे क्‍यों नहीं अपना सकते. हम भी अपना स‍कते हैं और सफल भी हो सकते हैं. केवल हिम्‍मत की बात है. उदाहण के तौर पर जैसे विवाह-शादियों, जन्‍म-मरण इत्यदि अवसरों पर पंडितों की जरूरत होती है, यदि यह काम भी अपना ही कोई करे तो अच्‍छा लगेगा. रोज़गार के साथ किसी का मोहताज भी नहीं होना पड़ेगा. हम केवल गाँव में ही धंधे की क्‍यों सोचें. शहरों में जाकर भी धंधा कर सकते हैं. यह शाश्‍वत सत्‍य है कि जिसने भी स्‍थान परिवर्तन किया, बाहर जाकर खाने-कमाने की कोशिश की, वे सम्‍पन्‍न हो गए. हम कूप-मंडूक (कुएँ के मेंढक) बने रहे. जिस प्रकार कुएँ में पड़ा मेंढक उस कुएँ को ही अपना संसार समझता है, उसी प्रकार हम गाँव को ही अपना संसार समझकर बाहर नहीं निकलने के कारण, गाँव की अर्थव्‍यवस्‍था के चलते दबे रहे, पिछड़े रहे. एक बार आज़माकर तो देखो. घर से दूर जाकर मिट्टी भी बेचोगे तो सोना बन जाएगी. इसलिए आत्मनिर्भर होंगे तो आर्थिक बायकॉट के भय से मुक्‍त होकर हम एकजुट होंगे.

सरकार ने दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए, उनके सामाजिक संरक्षण के लिए अनेक कानून बनाए हैं, लेकिन अन्‍य लोग दलितों के कंधों पर बन्‍दूक रखकर इनका दुरुपयोग कर रहे हैं. इस कार्रवाई से हम बदनाम होते हैं. सामान्‍य वर्ग में दलितों को नीचा देखना पड़ता है. वे पुनः उपेक्षा के पात्र हो जाते हैं. कसम खाओ कि कानून का सहारा केवल अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए लेंगे. किसी अन्‍य के लाभ के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं करेंगे.

आज हम संगठित होना शुरू हुए हैं और शिक्षित बनने-बनाने, संघर्ष करने-कराने का संकल्‍प लिया है. पीछे मुड़कर नहीं देखें और दिखाते रहें अपनी ताकत और बुद्धिमता. मैं आपको गर्व के साथ मेघऋषि की संतान मेघवाल कहलाने, सामाजिक बुराइयाँ छोड़ने, संगठित होने, शिक्षित बनने व संघर्ष करने का आह्वान करता हूँ. साथ ही निवेदन करता हूँ कि मेघऋषि को भी अपने देवताओं की भांति पूजें. उनका चित्र अपने घरों में श्रद्धा के साथ लगाएँ व प्रतिदिन पूजा करें ताकि भगवान मेघऋषि की हम संताने आत्‍मसम्‍मान के साथ जी सकें व समाज में अपना खोया सम्‍मान पा सकें.

बाबा मेघऋषि की जय, बाबा साहेब डॉ. अम्‍बेडकर की जय,

मेघवंश समाज की जय, भारत माता की जय. जय हिन्‍द, जय भीम.

आर.पी.सिंह आई.पी.एस.

73, अरविंद नगर, सी.बी.आई. कॉलोनी, जगतपुरा, जयपुर.

History of Meghwals - मेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहास

भारत का अधिकतर लिखित इतिहास झूठ का पुलिंदा है जिसे धर्म के ठेकेदारों और राजा रजवाड़ों के चाटुकारों ने गुणगान के रूप में लिखा है. इसमें आज की शूद्र जातियों के वीरतापूर्ण, कर्मठ, वफादार व गौरवशाली इतिहास को छोड़ दिया गया है या बिगाड़ कर लिखा गया है. बौद्ध शासकों के बाद के शासकों की विलासितापूर्ण जीवनशैली तथा प्रजा के प्रति निर्दयी व्यवहार को छिपा कर उनके मामूली किस्से-कहानियों को बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है.

गत कुछ दशकों में दलित समाज कुछ शिक्षित हुआ है और उसमें जानने की इच्छा बढ़ी है, इसी सिलसिले में सच्चा इतिहास जानने और लिखने का उद्यम भी किया जा रहा है.


मेघवंश समाज के अतीत को भी खंगाला गया है. तथ्य सामने आ रहे हैं कि आज का मेघवंश अतीत में महाप्रतापी, विद्वान व कुशल बौध शासक था, जिसने उस काल में प्रेम, दया, करुणा व पंचशील का प्रचार किया. खेती, मज़दूरी, बुनकरी, चर्मकारी, शिल्पकला जैसे विभिन्न पेशों से ये जुड़े थे. इनके पूर्वज बौद्ध शासक थे. आक्रमणों के दौर में अहिंसा पर अत्यधिक ज़ोर देने से उनका पतन हुआ. कालांतर में युद्ध हारने के कारण इन्हें गुलाम और सस्ते मज़दूर बना लिया गया. एक इतिहास लिखा गया जिसमें इनके गौरवशाली इतिहास का उल्लेख जानबूझ कर नहीं किया गया.

यह पुस्तक इनके बौद्ध शासकों के वंशज होने के प्रमाण देती है. जिससे मालूम होता है कि मेघवाल व अन्य मेघवंशी जातियों के पुरखे काल्पनिक ऋषि नहीं बल्कि विद्वान बौद्ध शासक थे जिनका भारत के कई इलाकों में साम्राज्य रहा है. इस परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर आज तक की पूरी जानकारी देती है. इसमें मेघवंश के समृद्ध इतिहास और उसकी सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थिति पर गंभीर चिंतन-मनन करते हुए अलग-अलग नामों के कारण बिखरे पड़े इस समाज को एक ही नाम तले लाने का प्रयास किया गया है.


पुस्तक का मूल्य रू100/- है. संपर्क : बुद्धम् पब्लिशर्ज़, 21-ओ, धर्म पार्क, श्याम नगर-II, अजमेर रोड, जयपुर- (राज्स्थान) मोबाइल नं. - 09414242059

मेघवाल समाज के गोत्र


मेघवंश जाती के प्रवर शाखा और प्रशाखा
प्राचीन क्षत्रियो में चन्द्र वंश और सूर्य वंश ये दो वंश मुख्य मने जाते हैं !फिर ऋषि वंश और अग्नि वंश ये दो वंश और मने गए हैं ,इन्ही चार वंशो से समस्त हिन्दू जाती का प्रदुभाव हुआ हैं !
चन्द्र वंश -ब्रह्माजी के दस मानसी पुत्रो में अत्रीऋषि के समुन्द्र और समुन्द्र के सोम ,इनसे चन्द्र वंश चालू हुआ !इशी वंश में महाराज ययाति हुए ,इनके पुत्र यदु हुए ,जिनके वंशज यदु वंशी हुए और इशी वंश में भगवन कृष्ण का जन्म हुआ !चन्द्र वंश ने विशेष कयती प्राप्त की !इस्सी चन्द्र वंश में आगे चलकर दस शाखाओ का निर्माण हुआ जो जो निम्न हैं !
1 यादव २ गोड३ काबा ४ चन्देल ५ बहती ६ कंवरा ७ तंवर ८ सोरठा ९ कटारिया १० सुरसेन


सुर्यवंश -ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि ,मरीचि के कश्यप और कश्यप के विवस्वान (सूर्य)हुए ,इनसे सूर्य वंश चालू हुआ !

इसी वंश में राजा इक्ष्वाकु अधिक प्रसिद्ध हुए हैं ,इन्ही इक्ष्वाकु की ५१ वि पीढ़ी बाद राजा दशरथ हुए थे ,जिनके पुत्र रामचंद्र ,लक्ष्मण ,भरत,शत्रुघ्न हुए !इसी सूर्य वंश में भी दस शाखाये हुए !

१ गहलोत २ सिकरवाल ३ बडगुजर ४ कछवाह ५ बनाकर ६ गहरवार ७ राठोर ८ बडेल ८ बुन्देला १० निकुम्भ !

ऋषि वंश - विवशवान सूर्य के पुत्र नाम श्राद्धदेव मनु था !इनके पुत्र नभग हुए जिनके कुल में रजा अम्बरीश थे ,जिन्होंने अपने व्रत के प्रभाव से दुर्वासा मुनि का मानमर्दन किया था !अम्बरीश के प्रपोत्र रथीतर की स्त्री मदयन्ति ने अंगीरा ऋषि से नियोग करके कई संताने उत्पन्न की ,जो ऋषि वंश नाम से प्रसिद्ध हुई !ये क्षत्रियो की अपेक्षा श्रेष्ठ मणि गई है !इसी ऋषि वंश क्षत्रिय समाज में १२ वंश प्रचलित हुए !
१ सेंगर २ गोतम ३ विसेन ४ चमार गौड़ ५ ब्राहमण ६ भटगोड ७ राजगोंड ८ दीक्षित ९ दिन दीक्षित १० बिलकेत ११ बलखेरिया १२ कनपुरिया !
अग्नि वंश --त्रेता और द्वापर की संधि के समय जब परशुरामजी ने २१ बार युद्ध करके पृथ्वी को नि :क्षत्रिय कर दीया तब परशुरामजी मह्रिषी वसिष्ठ आदि ऋषियों ने अर्बुगिरी (आबू पर्वत) पर एक वृहद् यज्ञ किया !उस यज्ञ कुंड से चार पुरुष प्रकट हुए !
१ चौहान २ पडिहार (प्रतिहार) ३ सोलंकी (चालुक्य) ४ पंवार (परमार) !
यज्ञ की अग्नि से प्रकट होने के कारण ये अग्नि वंशी (हुतासणी)कहलाये !बोद्ध धर्म के अंत के आरम्भ में ही इसी वंश का निर्माण हुआ था !
दोहा - दस रवि ,दस चन्द्र से ,द्वादस ऋषि प्रमाण !

चार वंश हुतासनी (अग्निवंश),ये छतीस बखान !!

इन छतीस वंशो से ही समस्त हिन्दू समाज का प्रदुभाव होता हैं !
इन छतीस वंशो से पूर्व १६ वंश ऋषियों के माने जाते हैं !

१ मरीचि २ अत्रि ३ अगस्त ४ आदरा ५ वसिष्ठ ६ अंगीरा ७ भारद्वाज ८ पाराशर ९ मातंग १० धानेश्वर ११ मह्चंद १२ जोगचंद १३ जोगपाल १४ मेघपाल १५ गरवा १६ जयपाल !

इन सोलह वंशो सहित कुल ५२ वंश होते हैं !

दोहा -आठ बीस ऋषि गोत्र हैं ,चार अग्नि प्रमाण !

दस रवि ,दस चन्द्र से ,पुरे बावन जाण!!

फिर इनकी शाखा प्रशाखाओ द्वारा समस्त हिन्दू समाज का विस्तार होता गया और बढ़ते -बढ़ते आज हजारो जातियों में विभक्त हो गया !
मेघवाल जाती के लिए लिखे गये लेख में उपरोक्त वंश - उपवंश किसी न किसी रूप में अधिकतर पाए जाते हैं !
क्षत्रियो की १८ जातीय मुख्य मणि जाती हैं !
१ गहलोत २ कचवाहा ३ राठौड़ ४ यादव ५ चौहान ६ पंवार (परमार) ७ सोलंकी ८ पडिहार (प्रतिहार) ९ चावड़ा १० तंवर ११ गौड़ १२ चन्देल १३ दहिया १४ मकवाना १५ जोहिया १६ बडगुजर १७ पड़वाडिया १८ टांक !


१ मरीचि ऋषि (सुर्यवंश)गहलोत की शाखा प्रशाखा से २२ गोत्र

१ गहलोत (गहलोत्या) २ ओस्तिवाल ३ गोदा ४ देवागान्वा ५ खिंवासरा ६ कंसड ७ करसंड ८ कलसड ९

करसिन्धु १० खारड़िया ११ ख्याली १२ खांड १३ खलेरी १४ गहलोत्रा १५ शिसोदिया १६ चूहड़ा १७ बिकुंधा १८

गोंरा १९ खांडपा २० धोधावत २१ राणवा २२ तालपा !


२ मरीचि ऋषि सूर्य वंश कछवाहां से ७ गॉत्र

१ कछवाहां २ सिंगला ३ छेडवाल ३ खोहवाल ४ कंसुबा ५ कन्हड़ ६ मीणा


३ मरीचि ऋषि सूर्य वंश राठोड से ८ गोत्र --


१ राठोड (राठोडया) २ सोनगरा ३ लोयमा ४ म्हायच ५ बांदर ६ जोधा ७ बागडा ८ अजेर्या !


४ अत्रि ऋषि चन्द्र वंश यादव में ४६ गोत्र ----

१ यादव (यादवा) २ भाटी (भाटिया) ३ कडेला ४ किलान्या५ कलिरावण ६ कलेचा ७ कालवा ८ कडवासरा ९

कालेरा १० काहनीवाल११ कोहली १२ खामिवास १३ खुडिवाल १४ जाम १५ खोबडा १६ गरडवा१७ जनागल १८

दावा १९ देवाला २० देहरावरिया २१ देपन २२ पटीर २३ पाटोधा २४ बरवड २५ बलायच २६ बरडोयिय २७

बारुपाल २८ बाजडा २९ भाल्याण ३० बेगड ३१ महरडा ३२ लालर ३३ साऊं ३४ निलड ३५ पुनड ३६ कांवल्या

३७ सिंहमार ३८ खामिवाल ३९ झाटीवाल ४० खोखर ४१ पलास्या ४२ बुडिया ४३ आयच ४४ अंणख्या

(इणखिया )४५ खुन्वारा ४६ खत्री


५ अत्री ऋषि चंदर वंश (तोमर)से १६ गोत्र --

१ तंवर २ बुडगाँवा ३ मोलोधा ४ लहकारा ५ जावाल्या ६ गोठण ७ गोठणवाल ८ सलोर्या ९ गोठिया १०

गोरावत ११ गोयल (गुहिल)१२ गोरख्या १३ ढल १४ केलवाल १५ ढाइवाल १६ गोरवा (गुरवा) !



६ ,विश्वामित्र ,ऋषि वशिषठ आदि अग्नि वंश चौहान से ३३ गोत्र --


१ चौहान (चुहान्या ,चुंडा)२ इडिवाल ३ गोठवाल ४ मोमत्या ५ कंकेडिया ६ नारनोल्या ७ भटान्या ८ जेवर्या ९

सोगण १० काला ११ पटीर १२ खती १३ जिलोया १४ जिणवाल १५ निमडया १६ बरोला १७ नरवाण १८

सोलेरा १९ निजरान्या २० निरवाल २१ निरवाणि २२ खिची २३ खारडधा २४ नाल्या २५ चाहिल २६ भालोत

२७ सांचोर्या २८ सामर्या २९ भदोर्या ३० नाडोल्या ३१ चाहिल्या ३२ शिंदर्या ३३ पटीर !

७ अग्नि वंश पंवार से २४ गोत्र ----

१ पंवार २ मोरोड्या ३ दायपन्नु ४ जाटावत ५ बडला ६ लोजडीवाल ७ सुवटवाल ८ लाडणा ९ महरान्या १०

टिकावत ११ बोच्या १२ सिला १३ भंवरेटा (भुरटिया) १४ कथ्नोरिया १५ सांखला १६ चणिया १७ सोडा १८

सरावता १९ गुणपाल २० सेजु २१ खान्भ २२ जाटीवाल २३ सियाल २४ सुवाल



8 अग्नि वंश पंवार से २४ गोत्र ----

१ पंवार २ मोरोड्या ३ दायपन्नु ४ जाटावत ५ बडला ६ लोजडीवाल ७ सुवटवाल ८ लाडणा ९ महरान्या १०

टिकावत ११ बोच्या १२ सिला १३ भंवरेटा (भुरटिया) १४ कथ्नोरिया १५ सांखला १६ चणिया १७ सोडा १८

सरावता १९ गुणपाल २० सेजु २१ खान्भ २२ जाटीवाल २३ सियाल २४ सुवाल


८ अग्नि वंश सोलंकी से ४ गोत्र ----

१ असोलंकी २ स्यालवा ३ सुंवालिया ४ बावल्या !


९ अग्नि वंश पडिहार से १५ गोत्र --


१ पड़ीहार २ कदणोच्या ३ कलशी ४ कडवासरा ५ कावडया ६ किराड़ ७ करडीवाल ८ किकरालिया ९ कडेचा

१० कडेलिया ११ कुलरिया १२ गुराहिया १३ गुजरान्या १४ जेठान्या १५ नाथड़ीवाल !


१० गौड़ राजपूतो से ५ गोत्र ---

१ गौड़ २ गंडेर ३ गंडे ४ गँवा ५ गंढीर !

११ पराशर ऋषि चंदेल राजपूतो से ४ गोत्र ---

१ चांदेल २ पावटवाल ३ चंदेला ४ चंडेला !

१२ मकवाना राजपूतो से २ गोत्र ---

१ मकवाना २ मकाना !

१३ दधिची ऋषि सुर्यवंश राठौड़ खांप दहिया से ३ गोत्र ----

१ दहिया (दीया) २ अडान्या ३ भुन्गरिया !

१४ अग्नि वंश चौहान खांप जोहिया से २ गोत्र --

१ जोहिया २ घरट !

१५ सुर्यवंश बडगुजर से १ गोत्र ---

१ बडगुजर

१६ पड़वाड़ीया १ गोत

१७ नाग वंशी टांक से २ गोत्र ----

१ नागवा २ टांक

साभार ----मेघवंश इतिहास (ऋषि पुराण)

लेखक -

स्वामी गोकुलदासजी महाराज

अलख स्थान ड़ूमाँडा
जिला अजमेर

प्रकाशक -सेवादास ऋषि

अलख स्थान ड़ूमाँडा

जिला अजमेर

मेघवाल के मंत्री बनने पर बंटी मिठाइयां


भीलवाड़ा। शाहपुरा से विधायक चुने गए कैलाश मेघवाल के मंत्री पद की शपथ लेने के बाद सुरेरा (सीकर)में भाजपा समर्थकों और मेघवाल समाज ने आतिशबाजी कर मिठाइयां बांट खुशी का इजहार किया।

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

मेघवाल संत सांगलिया धूणी

संत गोस्वामी तुलसीदासजी ने संत शब्द की परिभाषा करते हुए लिखा है कि संतों का ह्नदय नवनीत के समान होता है। ऐसा कवि वर्ग का कहना है, लेकिन सही मायने में देखा जाए तो नवनीत तो तब द्रवित होता है, जब उस पर आँच आती है। परन्तु संत अपने पर आँच आने पर द्रवित नहीं होते हैं, बल्कि जब दूसरे प्राणियों पर आँच आती है, तब वे उनकी पीड़ा से द्रवित होते हैं। तुलसीदासजी की यह उक्ति आज भी हमारे समाज के कई संत महात्माओं और समाज सुधारक महापुरूषों पर खरी उतरती है। ऐसे ही संतों की श्रृंखला में एक महान समाजसेवी संत सांगलिया धूणी के भूतपूर्व पीठाधीश्वर श्री श्री 1008मानदासजी महाराज के परम शिष्य श्री श्री 1008श्री लादूदास जी महाराज हुए। जिनका सम्पूर्ण जीवन लोक कल्याण, परोपकार और जनसेवा को समर्पित रहा।
श्री लादूदासजी महाराज का जन्म सीकर जिले के हर्ष पर्वत की तलहटी में बसे एक छोटे से ग्राम कुण्डल की ढाणी में श्री पांचारामजी मेघवाल के घर हुआ। 20 वर्ष की उम्र में आपने सन्यास ग्रहण कर सांगलिया धूणी के महंत श्री मानदासजी महाराज से दीक्षा ले ली थी। श्री मानदासजी महाराज के ब्रह्यलीन होने पर आप सांगलिया धूणी के श्री महंत नियुक्त किए गए। आपने सन् 1956-57 में अपनी जन्म भूमि ग्राम कुण्डल की ढाणी में उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण करवाया। जिसको सन् 1962 में राजस्थान सरकार के अधिग्रहण में दे दिया तथा आपने सांगलिया ग्राम में बाबा लादूदास सीनियर सैकण्डरी स्कूल व आयुर्वेदिक औषधालय निर्माण करवाकर बाद में राजस्थान सरकार के अधिग्रहण में दे दिए।
इसके साथ-साथ आपने अनेक स्थानों पर पानी की प्याऊ, कुओं, बावडिय़ों आदि का भी निर्माण मानव सेवार्थ करवाया। श्रीलादूदासजी महाराज ने माघ सुदी पूर्णिमा सन् 1965 को श्री श्री 1008श्री लक्कड़दासजी महाराज का आश्रम सांगलिया धूणी में अपनी भौतिक देह त्याग दी। आपके पश्चात आपके उत्तराधिकारी शिष्य खींवादासजी महाराज सांगलिया पीठाधीश्वर बनें।
सांगलिया धूणी के दिव्य संत पुरूष बाबा खींवादासजी महाराज मेघवाल संत    बनें।
श्री श्री 1008 श्री भगतदासजी महाराज का जन्म सीकर जिले के नीमकाथाना तहसील के समीपवर्ती ग्राम पचलंगी में श्रीमति एवं श्री मुखराम मेघवाल के घर हुआ  सांगलिया धूणी    के     संत    बनें।
श्री श्री 1008 श्री बाबा बन्शी दास जी महाराज (वर्तमान पीठाधीश्वर)     सांगलिया धूणी    के     संत    बनें।

अपने युग के महान संत थे ( स्वामी लादूदासजी महाराज, खींवादासजी महाराज, श्री श्री 108श्री बंशीदासजी महाराज Sangliya Dhuni)

अखिल भारतीय सांगलिया धूणी सीकर जिले से 35 किलोमीटर दूर सीकर-डीडवाना रोड़ पर सांगलिया गांव की पावन धरा पर इस धूणी की स्थापना करीब सैंकड़ों वर्षों पूर्व बाबा लक्कड़दास जी द्वारा की जाने के कारण इसे लक्कड़दास बाबा का आश्रम भी कहा जाता है। बाबा के समय से अब तक इस धूणी पर बाबाजी के शिष्य एवं अन्य महान संतों द्वारा इस सांगलिया धूणी की मर्यादा को आगे बढाते हुए समाज सुधार व शिक्षा जैसे जनहित कार्यों के रूप में प्रसिद्ध दिलाई। लम्बे समय से यहाँ से पीठाधीश्वर विकास की ओर अग्रसर रहे। महान संत श्री श्री 1008श्री बाबा खींवादास महाराज के परम शिष्य श्री श्री 108श्री बाबा बंशीदासजी महराज गुरू की महिमा का बखान भक्तों को वाणी, प्रवचन तथा जागरण के रूप में प्रसाद स्वरूप भेंट कर रहे हैं।
वर्तमान पीठाधीश्वर श्री श्री 108श्री बंशीदासजी महाराज गुरू महिमा में कुछ शब्द बताने से पहले कहते हैं कि 'गुरू की मैं कहा तक करूं बड़ाई, महिमा मुख से वर्णन न जायी।Ó अखिल भारतीय सांगलिया धूणी के द्वारा जनहित में किए गए कार्यो से प्रभावित होकर भारत सरकार भूतपूर्व पीठाधीश्वर श्री श्री 1008श्री बाबा खींवादास महाराज को डॉ. भीमराव अम्बेडकर पुरस्कार भेंट कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर चुकी है। बाबा खींवादासजी महाराज द्वारा शिक्षा को बढावा देने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्कूल-कॉलेजों का निर्माण करवाकर गरीब, अनाथ व छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बाबा का योगदान कम नहीं रहा। पश्चिमी राजस्थान के कई जिलों में सांगलिया धूणी द्वारा धर्मशालाएं बनवाई गई एवं पानी के लिए प्याऊ का निर्माण करवाया। पानी की प्याऊओं, कुओं का निर्माण करवाया। पानी सभी को एक रंग, एक रूप, एक ही स्वाद का संदेश देता है, इस प्रकार बाबा खींवादास जी ने इन्सान को अपने अन्दर देखने का पाठ पढ़ाते हुए सभी समाजों को एक छत के नीचे उठाते हुए ऊंच-नीच, जाति-पांति आदि के भेद-भाव से दूर होकर जन-कल्याण के कार्यो को सर्वोपरी बताया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालय की स्थापना क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालय की स्थापना कर क्षेत्र के युवाओं का ध्यान धर्म कल्याण हेतु आकर्षित किया। वर्तमान समय में इस कॉलेज का नाम बाबा खींवादास स्नातकोत्तर महाविद्यालय है। जिसे क्रमोनत
करवाने एवं विभिन्न विषयों को खुलवाने का श्रेय वर्तमान पीठाधीश्वर श्री श्री 108 बाबा श्री बंशीदासजी महाराज को जाता है।
वर्ष 2001 रविवार जन्माष्ठमी को लाखों को भक्तों रोते-बिलखते छोड़कर श्री श्री 1008श्री बाबा खींवादास महाराज अपनी पार्थिव देह को माँ भारती की गोद में छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए। इसके बाद उन्हीं के शिष्य बाबा भक्तदास जी महाराज को पीठाधीश्वर नियुक्त किया गया। जो अपनी भौतिक देह 4 फरवरी 2004 को त्याग कर भक्तों से विदा ले गए। तब इन्हीं के गुरू भाई एवं बाबा खींवादास के परम शिष्य गुणों की खान बाबा बंशीदासजी महान इस पीठ के पीठाधीश्वर बने।

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...