गुरुवार, 30 जून 2011

मेघवाल samaj ko aage bhadhao mere pyare megh samaj ke logo kyo ki aaj ke yug me meghwal samaj ka naam bhahut aage aa rha h is liye pure bharat or pakisthan me rah rhe megh bhagat samaj aadi ko meghwal samaj me yogdan dena chahiye jise hamara samaj pure bharat me aage bhade


आज हमारे समाज मे कई अनिश्चता और कई खामिया फ़ैली हुई है ?आज जब हम पूरे भारत मे हर जगह बसे हूऐ है पर हमारी गिनती न के बराबर है क्यूंकि हमारे समाज मैं एकता की कमी है जिसे हम चाह कर भी पुरी नही कर सकते ,आज कई जगहों पर हमे एकत्रित करने की पहल की जा रही है ? पर एन कोसिसो मैं हमारा फायदा हमारी समाज के नेता और उनके सहकार ही पुरा फायदा ले जा रहे है ?वे हमारे नासम्जभाइयो और न पढे लिखे बुजुर्गो को अपनी समक्ष खडे रख दुसरे गाओ ओर उनके वासियों को फायदा ले रहे है जब की हमे सही मायने मैएक हो हमारी जाती की प्रगति के बारे मैं सोचना चाहिए और हमे मिलने वाले सभी अधिकारों को पाने की पहल करनी चाहिए ?
मै गुजरात का रहने व्हाला हूँ मेरापुरा नाम हरेश शिवलाल मेघवाल है मेरे पिताश्री पछले ७० वर्ष से यहाँ बसे हुऐ है वेसे तो हमारा पुरा परिवार यही बसा हुआ है पर हम अपनी खुसिया मनाने अक्सर अपने गाव मारवाड़ जक्सन जाया करते है ,हमारी ही तरह यहाँ बसे कई हमारे जातिवासी अपने गाव आया करते है ?उनके इसी तरह जाने आने की वजह से हमारी नतो यहाँ कुछ पहचान है औरनही न ही वहा ? मेरी पिताश्री के सामान उनके हम उम्र के सभी लोगो को तो यहाँ सरकारी नोकरी का होदा प्राप्त है पर हमारी जाती यहाँ मान्य न हो ने के कारन हमारी आने वाली पीढी का कोई भविष्य नही है हम जहाँ रह रहे है यहाँ मेरी गिनती के अनुसार मेघवाल २५०० के आसपास और अन्य राजस्थानी भाई जिनमे ठाकुर,रेगर,राजपूत,चोहान ,चोधरीऔर भी कई जातिया सायद २५००० के आसपास रहती है ?

हमे एक करने के लिए हाल ही कुछ दिनों मैं हमारे यहाँ एक विशाल समेलन किया जा रहा है ?जिसमे सभी जातियों को एक कियाजा रहा है , दिनाक २५:१०:२००९ को सेहर गांधीधाम ( कच्छ )
आप से अनुरोध है आप हमें सहियोग दे?

मेघवंशी भाइयो, उठो और समय को पहचान कर आगे बढ़ो (Megvanshi brothers, wake up and recognize the Proceed)


आर.पी.सिंह आई.पी.एस.

73, अरविंद नगर, सी.बी.आई. कॉलोनी, जगतपुरा, जयपुर.

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ. सं‍विधान लागू होने के तुरन्‍त बाद सभी को समानता का अधिकार, स्‍वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अत्‍याचारों से मुक्ति पाने का अधिकार, धार्मिक स्‍वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्‍कृति का अधिकार, संवैधानिक उपचारों का अधिकार मिला. लेकिन संविधान लागू होने के 57 वर्ष बाद भी दलित समाज अपमानित, उपेक्षित और घृणित जीवन जीने पर मजबूर है. इसका कारण दूसरों पर नहीं थोपकर हम अपने अन्‍दर ही झांक कर देखें कि हम अपमानित, उपेक्षित और घृणित क्‍यों हैं? हम दूसरों में सौ बुराई देखते हैं. दूसरों की ओर अंगुली उठाते हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हमारी ओर भी तीन अंगुलियां उठी रहती हैं. दूसरों में बुराई ढूँढने से पहले अपने अंदर की बुराई देखें. कबीर की पंक्तियाँ याद रखकर अपने अंदर झांकें:-

बुरा, जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जब दिल ढूंढा आपणा, मुझ से बुरा न कोय।

मन को उन्‍नत करो, हीन विचारों का त्‍याग करो.

मेरे विचार से यह सब इसलिए कि हम दब्‍बू हैं, स्‍वाभिमानी नहीं हैं. हम यह मानने भी लगे हैं कि वास्‍तव में अक्षम हैं. हमारा मन मरा हुआ है. हमारे अन्‍दर आत्‍मसम्‍मान व आत्‍मविश्‍वास की कमी है. किसी को आप बार-बार बुद्धु कहो तो वह वास्‍तव में बुद्धु जैसा दिखने लगता है. हमें भी ऐसा ही निरीह, कमजोर बनाया गया है और हम अपने को निरीह, कमजोर समझने लगे हैं. जबकि वास्‍तव में हम नहीं हैं. जब हमारे उपर कोई हाथ उठाता है, थप्‍पड़ मार मारता है तो हम केवल यही कहते हैं - अब की मार. दबी हुई, मरी हुई आत्‍मा, हुंकार तो मारती है, लेकिन मारने वाले का हाथ नहीं पकड़ती. मैं हिंसा में विश्‍वास नहीं करता, फिर भी आपको कहना चाहता हूँ कि आप पर जो हाथ उठे उस हाथ को साहस कर, एकजुट होकर कम से कम पकड़ने की तो हिम्‍मत करिए ताकि वह आपको मार नहीं सके. उसको वापिस मारने की आवश्‍यकता नहीं. आपका आत्‍मसम्‍मान जाग्रत होगा और आप एकजुट होकर अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे. अपने दिलों को बदलना होगा. दब्‍बू को हर कोई मारने की कोशिश करता है. एक कहावत है- एक मेमना (बकरी का बच्‍चा) भगवान के पास गया और बोला -भगवान आपने तो कहा था कि सभी प्राणी समान हैं. सभी को जीने का समान अधिकार है. फिर भी सभी भाईचारे को भूलकर मुझ पालनहार का भी तुम्‍हें निगलने का मन कर रहा है. सीना उठाकर चलोगे तो कोई भी तुम पर झपटने से पहले सोचेगा. बली तो भेड़-बकरियों की ही दी जाती है, सिंहों की नहीं. अत: मेमने जैसा दब्‍बूपन छोड़ो और समानता के अधिकार के लिए सिंहों की तरह दहाड़ो. एक बार हम साहस करेंगे तो हमें कोई भी जबरन दब्‍बू नहीं बना सकता.

असमानता, ऊँच-नीच की धारणा दूसरों देशों में भी है.

ऊँच-नीच की बात भारत में ही नहीं सम्‍पूर्ण विश्‍व में है. अमेरिका के राष्‍ट्रपति इब्राहिम लिंकन जब राष्‍ट्रपति बनकर वहाँ की संसद में पहुँचे तो किसी सदस्‍य ने पीछे से टोका, लेकिन तुम्‍हारे पिता जूते बनाते थे, एक चर्मकार थे. इब्राहिम लिंकन तनिक भी हीनभावना में नहीं आए बल्कि उस सदस्‍य को उत्‍तर दिया, हाँ, मेरे पिता जी जूते बनाते थे. वे एक अच्‍छे कारीगर थे. उनके द्वारा बनाए गए जूतों ने किसी के पैर नहीं काटे. किसी के पैरों में कील नहीं चुभी. किसी के पैरों में छाले नहीं हुए. डील नहीं बनी. मुझे गर्व है कि वे एक कुशल कारीगर थे. लोग उनकी कारीगरी की प्रशंसा करते थे. यह था लिंकन का स्‍वाभिमान, आत्‍मसम्‍मान के कारण वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्‍ट्रपति बने थे. हमें भी लिंकन की तरह अपने में आत्‍मविश्‍वास पैदा करना होगा. यदि हमको तरक्‍की की राह पकड़नी है तो हमें हीनभावना, कुंठित भावना को त्‍यागना होगा. हमें पुन: अपना आत्‍मसम्‍मान जगाना होगा. हम अपनी मर्जी से तो इस जाति में पैदा नहीं हुए और जब हम दलित वर्ग में पैदा हो ही गए हैं तो हीन भावना कैसी? आत्‍मसम्‍मान के साथ समाज की इस सच्‍चाई को स्‍वीकार कर आत्‍मविश्‍वास के साथ आगे बढ़ना होगा. सफलता की सबसे पहली शर्त आत्‍मसम्‍मान, आत्‍मविश्‍वास ही होती है.

राजस्थान प्रांत में मेघवाल जाति के क्षेत्रानुसार भिन्‍न-भिन्‍न नाम हैं लेकिन मूल रूप से यह 'चमार' नाम से जानी जाती थी. समाज में चमार शब्‍द से सभी नफ़रत करते हैं. गाली भी इसी नाम से दी जाती है. बचपन से ही मेघवाल जाति को हेय दृष्टि से देखा जाता है और समाज के इस उपेक्षित व्‍यवहार के कारण हमारे अंदर हीनभावना भर जाती है. हम अपनी जाति बताने में भी संकोच करते हैं. अब हम स्‍वतंत्र हैं, समान हैं तो अपने में हीन भावना क्‍यों पनपने दी जाए? हमें अपनी जाति पर गर्व होना चाहिए. संत शिरोमणी गुरु रविदास, भक्‍त कबीरदास, रूसी क्रांति का नायक स्‍टालिन, दासप्रथा समाप्‍त करने वाला अमेरिका का राष्‍ट्रपति अब्राहिम लिंकन, पागल कुत्‍ते के इलाज खोजने वाला लुई पास्चर, जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों को मारने वाले जनरल डायर की हत्‍या कर बदला लेने वाला शहीद ऊधम सिंह, भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और न जाने कितने महान नायक समाज द्वारा घोषित तथा कथित दलित जाति में पैदा हुए हैं तो हम अपने को हीन क्‍यों समझें.

अपने समाज की पहचान मेघवाल से स्‍थापित करो

मैंने कई पुस्‍तकें पढ़ी हैं. यह जानने की कोशिश की है कि समाज में अनेक अन्‍य जातियाँ भी हैं मगर ‘चमार’ शब्‍द से इतनी नफ़रत क्‍यों है? किसी अन्‍य जाति से क्‍यों नहीं लोग समझते हैं कि ‘चमार’ शब्‍द चमड़े का काम करने वाली जातियों से जुड़ा है. यदि चमड़े का काम करने से जाति चमार कही गई है तो कोई बात नहीं लेकिन इसी जाति से इतनी नफ़रत पैदा कहाँ से हुई? यह एक अनुसंधान का विषय है कि और जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ ‘चमार’ शब्‍द चमड़े से संबंधित न होकर संस्‍कृत के शब्‍द ‘च’ तथा ‘मार’ से बना है. संस्‍कृत में ‘च’ तथा ‘मार’ से बना है. संस्‍कृत में ‘मार’ का अर्थ मारना होता है. अत: चमार का अर्थ हुआ 'और मारो' उस समय उन लोगों को भय होगा कि ज़बरदस्‍ती अधीन किया गया एक विकसित समाज उनको कहीं पहले ही नहीं मार दे इसलिए अपने पूर्वजों को 'और मारो'….'और मारो' कहते हुए दब्‍बू बनाया गया, नीच बनाया गया, नीच व गंदे काम करवाए गए यह उस समय की व्‍यवस्‍था थी. हर विजेता हारने वाले को सभी प्रकार से दबाने-कुचलने की कोशिश करता है ताकि वह पुन: अपना राज्‍य न छीन सकें. लेकिन अब उस समय की व्‍यवस्‍था के बारे में आज चर्चा करना बेमानी है. हमें आज की व्‍यवस्‍था पर अपनी स्थिति पर विचार करना होगा. आप भी जाति का नाम चमार बताने में सभी संकोच करते हैं इसलिए हमें अपनी जाति का नाम 'चमार' की बजाए 'मेघवाल' लिखवाने का अभियान शुरू करना चाहिए. प्रत्‍येक को अपने घर में अन्‍य देवी देवताओं के साथ बाबा मेघऋषि की मूर्ति या तस्वीर लगानी चाहिए. हरिजन शब्‍द तो सरकार ने गैर कानूनी घोषित कर दिया है, इसलिए हरिजन शब्‍द का प्रयोग क़तई नहीं करना चाहिए.

हमारे पिछड़ने का एक कारण यह भी है कि हम बिखरे हुए हैं, संगठित नहीं है. हम अपनी एकता की ताकत भूल चुके हैं. अपना समाज भिन्‍न-भिन्‍न उपनामों में बंटा हुआ है, भ्रमित है. एक दूसरे से ऊँचा होने का भ्रम बनाया हुआ है. हममें फूट डाली गई है. हमारे पिछड़ेपन का कारण हमारी आपसी फूट हैं. आप तो जानते हैं कि फूट के कारण यह भी है कि भारत सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा है. रावण व विभीषण की फूट ने लंका को जलवाया, राजाओं की फूट ने बाहर से आक्रमणकारियों को बुलाया, अंग्रेजों को राज्‍य करने का मौका दिया और सबसे बड़ी बात है कि हमारी आपसी फूट से हमें असमानता की, अस्‍पृश्‍यता की जिन्‍दगी जीने पर मजबूर किया गया. फूट डालो और राज्‍य करो की नीति अंग्रेजों की देन नहीं, बल्कि यह भारत में बहुत प्राचीन समय से चालू की गई थी. ज़ोर-मर्जी से बनाया गया, शूद्र वर्ण अनेकों छोटी-छोटी उप जातियों में बांट दिया गया. उनके क्षेत्रीय नाम रख दिए गए ताकि हम सभी एक हो कर समाज के ठेकेदारों से अपने हक नहीं मांग सकें. मेघवाल यानि चमार जाति को अन्‍य छोटे-छोटे नामों से बांट दिया गया. मसलन बलाई, बुनकर, सूत्रकार, भांभी, बैरवा, जाटव, साल्‍वी, रैगर- जातियां मोची, जीनगर मेंघवाल इत्‍यादि आदि हमें एक होते हुए भी अपने को अलग-अलग मान लिया है. उनको एक दूसरे से बड़ा होने की बात सिखाई गई. यहाँ तक कि मेघवालों को भी जाटा मेघवाल तथा रजपूता मेघवाल में बांटा गया. यानि एक नहीं होने देने का पूरा बंदोबस्‍त पक्‍का कर दिया गया. यह एक षडयंत्र था और इस षडयंत्र में समाज के ठेकेदारों को कामयाबी भी मिली. राज्‍य के कुछ जिलों में अलवर, झुन्‍झुनु तथा सीकर जिले के कुछ भागों में मेघवाल जाति के चमार शब्‍द का उपयोग किया जाता था. चमार नाम को छोड़ मेघवाल नाम लगाने के लिए मेंघवंशीय नाम लगाने के लिए मेंघवंशीय समाज चेतना संस्‍थान ने मुहिम चलाई और 12-9-2004 को झुन्‍झुंनु में एक एतिहासिक सम्‍मेलन हुआ जिसमें लगभग सत्‍तर हज़ार लोगों ने हाथ खड़े करके मेघवाल कहलाने को राज्‍य स्‍तरीय अभियान शुरू किया गया. समाज को एकजुट करने के लिए मेघवाल नाम से अच्‍छा शब्‍द कोई नाम नहीं हो सकता. कई लोगों का सोचना है कि अपनी काफी रिश्‍तेदारियां हरियाणा, पंजाब प्रांतों में हैं और वहाँ पर अभी भी चमार शब्‍द का उपयोग होता है तो वहाँ पर क्‍या नाम होगा? इस बात पर मेरा कहना है कि हम पहल तो करें, बाद में वहाँ पर भी लोग अपनी तरह सोचेंगे.

राजस्‍थान राज्‍य में मेघवाल बाहुल्‍य में हैं बात उठती है कि समाज के लिए मेघवाल शब्‍द ही क्‍यों प्रयोग हों? इसका छोटा सा उत्‍तर है कि राजस्‍थान के 20-22 जिलों में यह शब्‍द अपने समाज के लिए प्रयोग होता है. अलवर में चमार, धौलपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर, करौली में जाटव, कोटा, टौंक, दौसा में बैरवा, जयपुर, सीकर में बलाई, बुनकर इत्‍यादि का प्रयोग किया जाता है. अत: एकरूपता के कारण मेघवाल बाकी जिलों में भी प्रयोग हो तो अच्‍छा है. एकरूपता के साथ एकता बनती है. कई लोग उपनामों को मेघवाल शब्‍द के नीचे लाने के समर्थक नहीं है. यह उनकी भूल है. मेरा तो मानना है कि शर्मा शब्‍द से परहेज़ नहीं होना चाहिए. मेघवाल शब्‍द से बहुमत दिखता है. मेघवालों में आपस में विभेद पूछना चाहें तो वे कह सकते हैं, -मैं जाटव मेघवाल हूँ, मैं बलाई मेघवाल हूँ इत्‍यादि. इस शब्‍द से एक बार शुरूआत तो हो. इसके बाद साल-छ महीनों में यह विभेद भी समाप्‍त कर हम सभी मेघवाल कहने लगेंगे. जब अन्‍य जातियाँ मेघवालों के शिक्षित बेटों के साथ अपनी बेटियों की शादी बिना किसी हिचकिचाहट के कर रही हैं तो हम छोटी-छोटी उपजातियों में भेदभाव नहीं रखें तो ही अच्‍छा है. अपनी एकता बनी रहेगी, वरना भौतिकवाद में पनप रहे इस समाज में हमारे अंदर फूट डाल कर हमारा शोषण ही होता रहेगा. कई भाइयों का मानना है कि नाम बदलने से जाति थोड़े ही बदल जाएगी. इस संशय पर मेरा विचार है कि नाम बदलने से हमारा व सम्‍पूर्ण समाज का सोच अवश्‍य बदलेगा. यह सही है कि मेघवाल नाम से लोग हमें चमार ही समझेंगे लेकिन मेघवाल शब्‍द बोलने में, सुनने में अच्‍छा लगता है और चमार यानि 'और मार' की दुर्गंध से पैदा हुई हीनभावना से छुटकारा भी मिलता है.

हमें गर्व है कि हम मेघऋषि की संतान हैं. मेघ बादलों को भी कहते हैं. बादलों का काम तपती धरती को बारिश से तर-बतर कर हरा-भरा करना है. उसी तरह हमारी जाति भी अपनी परि‍श्रम रूपी वर्षा से समाज को लाभान्वित करती है. अपनी जाति ने देना सीखा है. किसी का दिल दुखाना नहीं. इसलिए अच्‍छे संस्‍कारों को आत्‍मसम्‍मान के साथ पुनर्जीवित करना है. अत: हम हीनभावना को ना पनपने देवें. अत: परस्‍पर वाद-विवाद में अपनी शक्ति को दुर्बल न करें. अपने को एकजुट होकर सम्‍पन्‍न, शिक्षित, योग्‍य कर्मठ, स्‍वाभिमानी बनना है. इसी से हम अपने खोए हुए अस्तित्‍व व अधिकारों की बहाली करने में सक्षम होंगे. अब भी समय है हम आपस के वर्ग भेदभाव -चमार, बलाई इत्‍यादि भुलाकर मेघवाल के नाम के नीचे एक हो जाएँ. यदि हम एक होकर अपने अधिकारों की बात करते हैं तो सभी को सोचना पड़ेगा. आप जानते हैं कि अकेली अंगुली को कोई भी आसानी से मरोड़ स‍कता है, ले‍किन जब पाँचों अंगुलियाँ मिलकर मुट्ठी बन जाती है तो किसी की भी हिम्‍मत नहीं होती कि उसे खोल सके. जिस प्रकार हनुमान जी को समुद्र की छलांग लगाने के लिए उनकी शक्ति की याद दिलायी गयी तो वे एक ही छलाँग में लंका पहुँच गए थे. उसी प्रकार हम भी अपनी एकता की ताकत पहचान कर एक ही झटके में अपनी मंजिल प्राप्‍त कर सकते हैं. अब आपको अपनी एकता की शक्ति की ताकत दिखाने की आवश्‍यकता है. जानते हो, छोटी चिड़ियाएँ एकता कर जाल को उड़ाकर साथ ही ले गईं और अपने अस्तित्‍व की रक्षा की थी. उसी प्रकार आप भी उठो. स्‍वाभिमान जागृत करो अलगाव छोड़ो और एकजुट हो जाओ. समाजिक बुराइयाँ छोड़ने के लिए एकजुट, अपने को आत्‍मनि‍‍भर्र बनाने के जिए एकजुट और समाज में समान अधिकार पाने के लिए एकजुट. हम एकजुट होंगे तो तरक्‍की का रास्ता स्‍वयं बन जाएगा. देश में हम एक होकर हुंकार भरेंगे तो उस हुंकार की नाद गूंजेगी.

अंध श्रद्धा का त्‍याग करो, कुरीतियों का त्‍याग करो, जीवित मां-बाप की सेवा करो, और लोग हमें हमारे अधिकार देने पर मजबूर होंगे.

हम अनेक सामाजिक बुराईयों से , बुरी प्रथाओं से, सामाजिक रुढि़यो की बेडि़यों में जकड़े हुए हैं. म्रत्‍यु -भोज जैसे दि‍खावे पर लाखों रुपए हैसियत ये अधिक खर्च कर डालते हैं. कुछ लोग मां-बाप के जिंदा रहते कई बार उन्‍हें रोटी भी नहीं देते और मरने के बाद उनकी आत्‍मा की शांति के लिए ढोंग करते हुए उनके मुंह में घी डालते हैं. जागरण कराते हैं. देवी देवताओं को मानते हैं. गंगाजल चढ़ाते हैं. घर में बूढ़ी दादी चारपाई पर लेटी पानी मांगती रहती है और उसे कोई पानी की पूछने वाला नहीं. यह कैसी विडम्‍बना है यह ? एक राजस्‍थानी कवि ने सही कहा है:-

जोर-जोर स्‍यूं करै जागरण, देई, देव मनावै,

घरां बूढ़की माची माथै, पाणी न अरड़ावै.

और उपेक्षित वृद्धा के मरने के बाद हम उसके मृत्‍यु-भोज पर हजा़रों रुपए खर्च कर डालते हैं जो पाप है. माता-पिता के जिंदा रहते उनकी सेवा करने से समस्‍त प्रकार को सुख प्राप्‍त होता है. मां-बाप से बड़ा से बड़ा भगवान, इस दुनिया में कोई नहीं है. यदि मां-बाप नहीं होते तो हम इस संसार में आते ही नहीं. अत: अनेक देवी-देवताओं के मंदिरों में माथा टेकने से अच्‍छा है, घर में मां-बाप की सेवा करो. हमें धोखे में रखकर, भटकाकर, कर्मकांडो के चक्रों में फंसाया गया है. मैने देखा है कि हम देवी देवता, पीर बाबा इत्‍यादि में बहुत विश्‍वास करते हैं. एक बात सोचो कि क्‍यों ये सभी देवी-देवता हमें ही बहुत परेशान करते हैं. किसी अन्‍य जाति को क्‍यों नहीं? बड़े-बड़े धार्मिक मेलों में जाकर देखो. अस्‍सी प्रतिशत लोग निम्‍न तबके के मिलेंगे. हमें धर्मभीरू बनाया जाता है. ताकि हम उनके चक्रों में पड़े रहें. भगवान तो घट-घट में हैं. जरा सोचो और इस चक्रव्‍यूह से निकलकर प्रगति की बातें करो. जागरण, डैरु, सवामणी इत्‍यादि के नाम पर हजारों रुपए कर्ज़ लेकर देवता को मनाना समझदारी नहीं है? कबीर ने कहा है:-

पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़

ताते तो चक्की भली पीस खाय संसार

यदि हम अब अपनी कुरीतियाँ पाले रहे, आडम्‍बरों से घिरे रहे तो अपना अस्तित्‍व दासों से भी घटिया, चाण्‍डलों से भी बदतर हो सकता है. निकलो इन कर्मकांडों से. त्‍यागो इस धर्मभरूता को. उठो और नये सवेरे की ओर बढ़ो. समाज की भलाई की ओर ध्‍यान दो तब आपका दिल नेक होगा, समाज की भलाई की ओर ध्‍यान होगा तो भगवान स्‍वयं मंदिर से चलकर आपके घर आयेंगे और पूछेंगे, बेटे बताओ तुम्‍हारी और क्‍या मदद की जाए? जो मनुष्‍य स्‍वयं अपनी मदद करता है, भगवान भी उसी की मदद करता है. स्‍वयं को सुधार कर अपनी मदद खुद करें. आप सुधर गए तो भगवान भी आपके कल्‍याण के लिए पीछे नहीं हट सकते. गूंगे बहरे मत बनों. एक दूसरे का दुख-दर्द बांटो, किसी की आत्‍मा को मत दुखाओ. अपने को सुधारो, समाज स्‍वयं सुधर जाएगा.

शादी-विवाह, दहेज, छुछक, भात, मृत्‍यु भोज इत्‍यादि सामाजिक दायित्‍व में हम हैसियत से अधिक खर्च कर डालते हैं. लेकिन कर्ज़ लेकर शान दिखाना कहाँ की शान है? बहन-बेटियों को भी सोचना चाहिए और अपने माता-पिता, भाई-बहन को सलाह देनी चाहिए कि उनका दहेज पढ़ाई है. वे पढ़-लिखकर आगे आएँ और समाज की अग्रणी बने. अत: मृत्‍यु भोज, दहेज प्रथा, बालविवाह, ढोंग-आडम्‍बर इत्‍यादि समाज के कोढ़ को छोड़ो और आत्‍मविश्‍वास के साथ प्रगति की राह पकड़ो.

लड़कियाँ लड़कों से प्रतिभा में कम नहीं

इंदिरा गाँधी अकेली लड़की थी जिसने अपने नाम के साथ अपने परिवार का नाम पूरे विश्‍व में रोशन किया. आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में अग्रणी हैं. बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रही हैं. राजस्‍थान में लड़कियों की नौकरियों में तीस प्रतशित आरक्षण हैं. अत पुत्र प्राप्ति का मोह त्‍यागकर एक या दो संतान ही पैदा करने का संकल्‍प करना चाहिए. उन्‍हीं को पढ़ा-लिखाकर उच्‍च‍ाधिकारी बनाएँ. लड़का या लड़की कामयाब होंगे तो अपने नाम के साथ आपका नाम भी रोशन करेंगे. अत कम संतान पैदा करके अपने दो बच्‍चों को पढ़ाने की सौगंध खाएँ. समाज को भी होनहार, प्रतिभाशाली बच्‍चों को पढ़ाने के लिए प्रोत्‍साहन देना चाहिए.

आज कम्‍प्‍यूटर युग है. प्रतियोगिता का ज़माना है. जो प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्‍ठ होगा वही सफलता प्राप्‍त करेगा. जो प्रतियोगिता में नहीं टिक पाएगा, चाहे उसने कितनी ही डिग्रियाँ ले रखीं हों, अनपढ़ के समान होगा. डिग्री के नशे में वह पेट पालने के लिए छोटा काम, मज़दूरी इत्‍यादि भी नहीं करेगा. वह न इधर का रहेगा और न उधर का. अतः आपने अपने बच्‍चों को कम्‍पीटीशन को ध्‍यान में रखकर पढ़ाना होगा. बच्‍चे भी इस बात का ध्‍यान रखें कि इस प्रतियोगिता के युग में एक नौकरी के लिए हज़ारों लड़के मैदान में खड़े हैं. हमें संघर्ष से नहीं डरना चाहिए. संघर्ष के बिना कुछ मिलता भी नहीं है. मंच पर बैठे सभी व्‍यक्ति भी आज संघर्ष के कारण इतनी उन्‍नति कर पाए हैं. सफलता के लिए कठिन संघर्ष की आवश्‍यकता है.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,

कह कबीरा पिउ पाया, मन ही की परतीत.

नौकरियों के भरोसे पर निर्भर मत रहो. व्‍यापार करो. अपनो से क्रय-विक्रय करो. अतः आप दृढ़ निश्‍चय के साथ हिम्‍मत कर सर्वश्रेष्‍ठ बनने का प्रयास करेंगे तभी इस कम्‍पीटिशन व कम्‍प्‍यूटर के ज़माने में आपको सफलता मिलेगी अन्यथा फिर से आप अपने पूर्वजों की भांति शोषण का शिकार होंगे.

हमें यह भी भय रहता है कि हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं. अपने अधिकारों के लिए एक होता देख, कहीं हमारा सामाजिक बायकॉट न कर दिया जाए. हमें काम-धंधा नहीं मिलेगा तो हम भूखे मरेंगे. आर्थिक रूप से कमजोर व्‍यक्ति सामाजिक बायॅकाट के भय से जल्‍दी टूटता है. इसलिए हमें सुनिश्चित करना है कि हम आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न बने.

हमारे लोग केवल नौकरी की तलाश में रहते हैं, बिज़नेस की ओर ध्‍यान नहीं देते. जनसंख्‍या बढ़ोत्तरी के अनुपात में आजकल नौकरियाँ बहुत कम रह गई हैं. हम नौकरियों के भरोसे नहीं रहकर कोई धन्‍धा अपनाएँ तथा आत्‍मनिर्भर होंगे. इसलिए हमें दूसरे धंधों की ओर ध्‍यान देना चाहिए. यदि हम आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न होंगे, आत्‍मनिर्भर होंगे तो किसी की गुलामी नहीं करनी पड़ेगी. आर्थिक रूप से सम्‍पन्‍न व्‍यक्ति संघर्ष करने में अधिक सक्षम है. मकान बनाने की करणी पकड़ने से मकान बनाना शुरू करते-करते बिल्डिंग कंट्रेक्‍टर बनो, लकड़ी में कील ठोकने से धंधा शुरू कर बड़ी सी फर्नीचर की दूकान चलाओ, परचून की छोटी सी दूकान से शुरू कर मल्‍टीप्‍लैक्‍स क्रय-विक्रय बाजार बनाओ. वास्‍तुशास्‍त्र, हस्‍तरेखा विज्ञान, अंक ज्‍योतिष, एस्‍ट्रोलॉजी इत्‍यादि में भी भाग्‍य आज़माया जा सकता है. ये कुछ उदाहरण है. आप अपनी पसंद का कोई भी धंधा शुरू कर सकते हैं. मन में शंका होती है कि क्‍या हम विज़नेस में कामयाब होंगे? अनुसूचित जाति की जनसंख्या राजस्‍थान में सोलह प्रतशित है. हम सभी सोच लें कि हम अधिकतर सामान अपने लोगों की दुकानों से ही खरीदेंगे तो दुकान जरूर चलेगी. जैसे हम आप सभी खुशी के अवसरों पर मिठाई खरीदें. मेघवाल भाई के ढाबे पर खाना खाएँ, चाय पिएँ, मेघवाल किराना स्‍टोर से सामान खरीदें, मेघवाल टीएसएफ जैसी जूतों की फैक्‍टरी खोल सकते हैं, जूतों की दुकान खोल सकते हैं तो हम अन्‍य धंधे क्‍यों नहीं अपना सकते. हम भी अपना स‍कते हैं और सफल भी हो सकते हैं. केवल हिम्‍मत की बात है. उदाहण के तौर पर जैसे विवाह-शादियों, जन्‍म-मरण इत्यदि अवसरों पर पंडितों की जरूरत होती है, यदि यह काम भी अपना ही कोई करे तो अच्‍छा लगेगा. रोज़गार के साथ किसी का मोहताज भी नहीं होना पड़ेगा. हम केवल गाँव में ही धंधे की क्‍यों सोचें. शहरों में जाकर भी धंधा कर सकते हैं. यह शाश्‍वत सत्‍य है कि जिसने भी स्‍थान परिवर्तन किया, बाहर जाकर खाने-कमाने की कोशिश की, वे सम्‍पन्‍न हो गए. हम कूप-मंडूक (कुएँ के मेंढक) बने रहे. जिस प्रकार कुएँ में पड़ा मेंढक उस कुएँ को ही अपना संसार समझता है, उसी प्रकार हम गाँव को ही अपना संसार समझकर बाहर नहीं निकलने के कारण, गाँव की अर्थव्‍यवस्‍था के चलते दबे रहे, पिछड़े रहे. एक बार आज़माकर तो देखो. घर से दूर जाकर मिट्टी भी बेचोगे तो सोना बन जाएगी. इसलिए आत्मनिर्भर होंगे तो आर्थिक बायकॉट के भय से मुक्‍त होकर हम एकजुट होंगे.

सरकार ने दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए, उनके सामाजिक संरक्षण के लिए अनेक कानून बनाए हैं, लेकिन अन्‍य लोग दलितों के कंधों पर बन्‍दूक रखकर इनका दुरुपयोग कर रहे हैं. इस कार्रवाई से हम बदनाम होते हैं. सामान्‍य वर्ग में दलितों को नीचा देखना पड़ता है. वे पुनः उपेक्षा के पात्र हो जाते हैं. कसम खाओ कि कानून का सहारा केवल अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए लेंगे. किसी अन्‍य के लाभ के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं करेंगे.

आज हम संगठित होना शुरू हुए हैं और शिक्षित बनने-बनाने, संघर्ष करने-कराने का संकल्‍प लिया है. पीछे मुड़कर नहीं देखें और दिखाते रहें अपनी ताकत और बुद्धिमता. मैं आपको गर्व के साथ मेघऋषि की संतान मेघवाल कहलाने, सामाजिक बुराइयाँ छोड़ने, संगठित होने, शिक्षित बनने व संघर्ष करने का आह्वान करता हूँ. साथ ही निवेदन करता हूँ कि मेघऋषि को भी अपने देवताओं की भांति पूजें. उनका चित्र अपने घरों में श्रद्धा के साथ लगाएँ व प्रतिदिन पूजा करें ताकि भगवान मेघऋषि की हम संताने आत्‍मसम्‍मान के साथ जी सकें व समाज में अपना खोया सम्‍मान पा सकें.

बाबा मेघऋषि की जय, बाबा साहेब डॉ. अम्‍बेडकर की जय,

मेघवंश समाज की जय, भारत माता की जय. जय हिन्‍द, जय भीम.

जनगणना में अपनी मातृभाषा पंजाबी लिखवाएं


पूंडरी, संवाद सहयोगी : हरियाणा मेघ सभा की बैठक रविवार को गांव फतेहपुर में प्रधान सुभाष आर्य की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक को संबोधित करते हुए आर्य ने सभी मेघ जाति के लोगों से अपील की कि वे एक मई से शुरू हुई जनगणना में अपनी मातृभाषा पंजाबी लिखवाएं, जो कि उनके लिए गर्व का विषय है।

उन्होंने बताया कि पंजाब एवं जम्मू कश्मीर के राज्य गजट में पहले से इस जाति की भाषा को पंजाबी दर्शाया गया है। हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान में समाज के लोगों ने अपनी पहचान पंजाबी भाषाई एवं संस्कृति के तौर पर बना रखी है। इस अभियान की शुरूआत बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए समाज के लोगों को राजनैतिक तथा सामाजिक मजबूती देने के लिए की गई थी। इसी उद्देश्य से कार्यकारिणी की पहली बैठक सीवन में आयोजित हुई । बैठक में कार्यकारिणी के सभी सदस्य मौजूद थे।

वार्ता: कामड़ (मेघवाल समाज)



कामड जाति मेहर या मेघ जाति की कुलगुरु मानी गयी है मेघवन्श जाति का इतिहास लेखक् स्वामी गोकुल दास ने तत्कालीन सत्य घटनाओ के आधार पर यह प्रमानीत किया है स्वामी रामप्रकाश ने रामदेव ब्रह्म्पुरान मै लिखा है कामड रामदेव आते है,कामड जाति का इतिहाश् पुस्तक के आनुसार नाथ सम्प्रदाय के कपिलानि पन्थ से कामड की उतपति मानी गयी है कामड जाति के लोग हिन्ग्लाज देवी व रामदेव के उपासना मे तेरह्ताल नृत्य करते थे जो आज बन्द हो कर लुपत हो गया है कामड जाति पर डा शीला खाऩ् डा हजारी प्रसाद् द्वेदी,डा खीर सागर्,डा चम्पा दास आदि ने शोध पत्र लिखे है

सोमवार, 27 जून 2011

ये सावन के मेघ


ये सावन के मेघ
Thursday, July 22, 2010


ललित कुमार द्वारा 16 अगस्त 2003 को लिखित

सावन के महीने में काले मेघ मन को जितने सुंदर लगते हैं उतना ही वे जग सुकून भी पहुँचाते हैं। कुछ हृदय, हालांकि, ऐसे भी होते हैं जिन्हें यह सुंदरता और सुकून पीड़ा ही देती है। और क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन हृदयों में से एक इन मेघों का भी हो!

आप यह कविता सुन भी सकते हैं (इसके लिए शायद आपको फ़ॉयरफ़ॉक्स या गूगल क्रोम की ज़रूरत पड़े)

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जाने कहाँ से ये हैं आते, हृदय को मेरे रौंद मुस्काते
क्षितिज पार ओझल हो जाते, ये सावन के मेघ

जग में उजियारा होने पर भी, मेरे दुख के तम की भांति
श्याम दिनों दिन होते जाते, ये सावन के मेघ

कोई इन से भी बिछड़ गया है, बरस-बरस कर विरह जताते
जल नहीं आँसू बरसाते, ये सावन के मेघ

संदेश प्रेम का जग को दे कर, सबके दिलों का मेल कराते
मन मसोस पर खुद रह जाते, ये सावन के मेघ

सुंदर बदली जो मिली गत वर्ष, नयन उसी को ढूंढे जाते
जीवन उसी को खोज बिताते, ये सावन के मेघ

पा जांए उस प्रियतमा बदली को, यही सोच कर ये हैं छाते
किंतु नहीं निशानी कोई पाते, ये सावन के मेघ

चपला देती भंयकर पीड़ा, उड़ा ले जाती घोर समीरा
लौट वहीं पर फिर से आते, ये सावन के मेघ
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मेघ आए ’



प्रस्तुत कविता में कवि ने मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि (दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कॄति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है, मेघों के आने का सजीव वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है। कवि कहता है कि लम्बे अरसे के इंतज़ार के बाद जब मेघ रूपी मेहमान आता है तो चारों – ओर खुशी का माहौल छा जाता है। हवा उड़ने लगती है मानो वह मेहमान के आने का संदेश देने के लिए भाग रही हो। लोग उत्सुकतावश दरवाजे-खिड़कियों से झाँकने लगते हैं। पेड़ रूपी गाँव के युवक गरदन उचकाए देखने लगते हैं और अल्हड जवान लड़्कियाँ घूँघट सरकाके तिरछी नज़रों से देखते हैं। बूढ़ा पीपल झुक जाता है अर्थात वह मेहमान की आवभगत करता है। उअसकी पत्नी उलाहने भरे स्वर में कहती है कि बहुत दिनों बाद उसकी याद आई जो चले आए। घर का सदस्य पानी का लोटा रख जाता है। अब क्षितिज पर बादल गहरे होते दिखाई दे रहे हैं । अब बारिश न होने का भ्रम टूट चुका है। बहुत दिनों के बिछुड़े पति-पत्नी के मिलन से खुशी के आँसू निकलने लगते हैं अर्थात प्रबल वेग के साथ बारिश होने लगती है। चारों-ओर उल्लास का वातावरण छा जाता है।

बरसो मेघ




बरसो मेघ और जल बरसो इतना बरसो तुम,
जितने में मौसम लहराए उतना बरसो तुम,

बरसो प्यारे धान-पान में बरसों आँगन में,
फूला नहीं समाये सावन मन के दर्पण में

खेतों में सारस का जोड़ा उतरा नहीं अभी,
वीर बहूटी का भी डोला गुजरा नहीं अभी,

पानी में माटी में कोई तलवा नहीं सड़ा,
और साल की तरह न अब तक धानी रंग चढ़ा,

मेरी तरह मेघ क्या तुम भी टूटे हारे हो,
इतने अच्छे मौसम में भी एक किनारे हो,

मौसम से मेरे कुल का संबंध पुराना है,
मरा नहीं हैं राग, प्राण में बारह आना है,

इतना करना मेरा बारह आना बना रहे,
अम्मा की पूजा में ताल मखाना बना रहे,

देह न उघडे महँगाई में लाज बचानी है,
छूट न जाये दुख में सुख की प्रथा पुरानी है,

सोच रहा परदेसी कितनी लम्बी दूरी है,
तीज के मुँह पर बार बार बौछार ज़रूरी है,

काश! आज यह आर-पार की दूरी भर जाती,
छू जाती हरियाली सूनी घाटी भर जाती,

जोड़ा ताल नहाने कब तक उत्सव आएँगे,
गाएँगे भागवत रास के स्वांग रचाएँगे,

मेरे भीतर भी ऐसा विश्वास जगाओ ना
छम छम और छमाछम बादल राग सुनाओ ना

जाति भेद का मूल कारण और मेघ (Cause of Caste differentiation and Megh)



Posted by Bhushan at 13:19
जाति भेद का मूल कारण
इस संसार में जो भी जीव-जन्तु हैं, कई रूप, रंग, वर्ण रखते हैं. उनके समूह को ही जाति कहा गया है. जल, थल, आकाश के जीव अपनी-अपनी जातियाँ रखते हैं. पशु-पक्षियों और जल में रहने वाले मच्छ, कच्छ, व्हेल मछली जैसी जातियाँ पाई जाती हैं. मनुष्य जाति में अनेक जातियाँ बन गई हैं. अलग-अलग देश और प्रांत होने के कारण, कर्म, भाषा, वेशभूषा के कारण कई जातियाँ बन गईं जिनकी गणना सरकार का काम है. अलग-अलग और नाना जातियाँ बनने का मूल कारण यह है कि ये जितने रंग, रूप और शरीर वाले जीव हैं, ये स्थूल तत्त्वों से बने हैं. इनके मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, विचार, भाव सूक्ष्म तत्त्वों से बने हैं. इनकी आत्माएँ कारण तत्त्वों से बनी हैं और प्रत्येक जीव जन्तु में ये जो पाँच तत्त्व हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. इनका अनुपात एक जैसा नहीं होता. सबका अलग-अलग है. किसी में वायु तत्त्व और किसी में आकाश तत्त्व अधिक है. इन्हीं के अनुसार हमारे गुण, कर्म, स्वभाव अलग-अलग होते हैं. गुण तीन हैं. सतोगुण, रजो गुण और तमोगुण. किसी के अन्दर आत्मिक शक्ति, किसी में मानसिक शक्ति, किसी में शारीरिक शक्ति अधिक होती है. इसी तरह कर्म भी कई प्रकार के होते हैं. अच्छे, बुरे, चोर, डाकू, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार भी किसी में अधिक, किसी में कम. किसी में प्रेम और सहानुभूति कम है किसी में अधिक. इस वक़्त संसार में कई देश चाहते हैं कि हम दूसरों पर विजय पा लें. तरह-तरह के ख़तरनाक हथियार बन रहे हैं. इन सब चीजों का यही मूल कारण है. यह प्राकृतिक भेद है. कहा जाता है कि जो जैसा बना है वैसा करने पर मजबूर है. जिस महापुरुष का शरीर, मन और आत्मा इन तत्त्वों से इस प्रकार बने हैं, जो समता या सन्तुलित रूप में हैं, उस महापुरुष को संत कहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर वासना उठती है और उसी वासना (कॉस्मिक रेज़) से सकारात्मक व नकारात्मक शक्तियाँ पैदा होती हैं जो स्थूल पदार्थों की रचना करती रहती हैं. वासना एक जैसी नहीं होती. इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोग उत्पन्न हो जाते हैं और नाना जातियाँ बन जाती हैं.
अब प्रश्न पैदा होता है कि क्या इसका कोई उपाय हो सकता है कि संसार में (पशु, पक्षी, और मच्छ, कच्छ को छोड़ दें) मनुष्य जाति में प्रेमभाव पैदा हो जाए और सब एक-दूसरे की धार्मिक, सामाजिक, जातीय और घरेलू भावनाओं का सत्कार करते हुए आप भी सुखपूर्वक जीएँ और दूसरों को सुखपूर्वक जीने दें. मेरी आत्मा कहती है कि हाँ, इसका हल है और वह है मेघ जाति को समझना कि यह जाति कब और कैसे और किस लिए बनी, जिसको मैं इस लेख में विस्तारपूर्वक वर्णन करने का यत्न अपनी योग्यता अनुसार करूँगा. दावा कोई नहीं.

मेघ जाति
आप इस लेख को अब तक पढ़ने से समझ गए होंगे कि जातियों के नाम कहीं देश, कहीं प्रान्त, कहीं आश्रम, कहीं वेशभूषा, कहीं भाषा और कहीं रंग से हैं. जैसे आजकल दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को लेकर गोरे और काले रंग के लोगों की जाति वालों में लड़ाई झगड़े हो रहे हैं. अभिप्राय यह है कि जातियों के नाम किसी न किसी कारणवश रखे गए और कोई नाम देना पड़ा. अब सोचना यह है कि मेघ जाति का मेघ नाम क्यों रखा गया? क्या यह कर्म पर या किसी और कारण से रखा गया? मनुष्य द्वारा बनाई गई भाषा के अनुसार मेघ एक गायन विद्या का राग भी है, जिसे मेघ राग कहते हैं. मेघ बादल को भी कहते हैं. जिससे वर्षा होती है और पृथ्वी पर अन्न, वनस्पतियाँ, वृक्ष, फल, फूल पैदा होते हैं. नदी नाले बनते हैं. जब सूखा पड़ता है, अन्न का अभाव हो जाता है तो धरती पर रहने वाले बड़ी उत्सुकता से मेघों की तरफ देखते हैं कि कब वो अपना जल बरसाएँ. जब मेघ आकाश में आते हैं और गरजते हैं तो लोग खुश हो जाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जल्दी वर्षा हो जाए. जब वर्षा होती है तो उसकी गर्जना भी होती है. योगी लोग जब योग अभ्यास करते हैं वो योग अभ्यास चाहे किसी प्रकार का भी हो उन्हें अपने अन्दर मेघ की गर्जना सुनाई देती है. उस जगह को त्रिकुटी का स्थान कहते हैं. गायत्री मंत्र के अनुसार यही सावित्री का स्थान हैः-
ओं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
इसका अर्थ यह है कि जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति से परे जो सूरज का प्रकाश है उसको नमस्कार करते हैं. वही हमारी बुद्धियों का प्रेरक है. उस स्थान पर लाल रंग का सूरज दिखाई देता है और मेघ की गर्जना जैसा शब्द सुनाई देता है. सुनने वाले आनन्द मगन हो जाते हैं क्योंकि वो सूक्ष्म सृष्टि के आकाश में सूक्ष्म मेघों की सूक्ष्म गर्जना होती है सुनने से मन एकत्रित हो जाता है. यह गर्जना हमारे मस्तिष्क में या सिर में सुनाई देती है. तीसरे, हर एक आदमी हर वस्तु को ध्यानपूर्वक देख कर उसका ज्ञान प्राप्त करना चाहता है कि यह कैसे और किन-किन तत्त्वों से बनी है. जिस तरह हिमालय पर बर्फ होती है ऊपर जाने पर या वहाँ रहने वालों को बर्फ का ज्ञान होता है, उससे लाभ उठाते हैं. बर्फ पिघल कर, पानी की शक्ल में बह कर, नीचे आकर भूमि में सिंचाई के काम आती है. इसी तरह मेघालय हमारे भारत देश का प्रांत है जो बहुत ऊँचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. वहाँ के रहने वाले लोगों को मेघ का ज्ञान होता है, वहाँ मेघ छाए रहते हैं, गरजते हैं, वर्षा करते हैं इत्यादि. इसी के नाम पर मेघालय उसका नाम है. सम्भव है वहाँ के वासी भी मेघ के नाम से पुकारे जाते हों.
तो मेघ शब्द क्यों और कैसे बना, जितना हो सका लिख दिया. प्राचीन काल से हिन्दू जाति में यह नाम बहुत लोकप्रिय है. अपने नाम ‘मेघ’ रखा करते थे. अब भी मेघ नाम के कई आदमी मिले. रामायण काल में भी यह नाम प्रचलित था. रावण उच्च कोटि के ब्राह्मण थे, उन्होंने अपने लड़के का नाम मेघनाद रखा. उन्होंने अपने लड़के को बजाए मेघ के मेघनाद का संस्कार दिया. वो बहुत ऊंचे स्वर से बोलता था. जब लंका पर वानर और रीछों ने आक्रमण किया तो मेघनाद गरजे और रीछों और वानरों को मूर्छित कर दिया. पूरा हाल आप राम चरित मानस से पढ़ लें. नाद का अभिप्राय यह भी है कि ऊँचे स्वर से बोलकर या कड़क कर हम दूसरों को परास्त कर सकते हैं जैसे मेघ जब कड़क कर गर्जन करते हैं तो हृदय में कम्पन पैदा होता है, घबराहट आ जाती है. कई सन्तों ने मेघों के बारे में लिखा है. इनकी आवश्यकता और प्रधानता दर्शाई हैः-
सुमरिन कर ले मेरे मना, तेरी बीती उमर हरिनाम बिना।
देह नैन बिन, रैन चन्द्र बिन, धरती मेघ बिना ।
जैसे तरुवर फल बिन होना, वैसा जन हरिनाम बिना।
कूप नीर बिन, धेनु क्षीर बिन, मन्दिर दीप बिना।
जैसे पंडित वेद विहीना, वैसा जन हरिनाम बिना ।।
काम क्रोध मद लोभ निवारो, छोड़ विरोध तुम संशय गुमाना।
नानक कहे सुनों भगवंता, इस जग में नहीं कोऊ अपना ।।
इन शब्दों में गुरु नानक देव जी ने मेघ की महिमा गाई है. धरती मेघ के बिना ऐसे ही है जैसे हमारा जीवन हरिनाम बिना निष्फल और अकारथ हो जाता है. इसमें और भी उदाहरण दिए हैं ताकि मेघ की महानता का पता लग सके. कबीर सहिब का भी कथन हैः-
तरुवर, सरवर, सन्तजन, चौथे बरसे मेंह।
परमारथ के कारणे, चारों धारें देह ।।
साध बड़े परमारथी, घन ज्यों बरसे आय,
तपन बुझावे और की, अपना पौरुष लाय ।।

मेघ जाति का नामकरण संस्कार
प्राचीन काल में मनुष्य जाति के कुछ लोग जम्मू प्रदेश में ऊँचे पहाड़ी भागों में निवास करते थे. उस समय दूसरे गाँव या दूसरे पहाड़ी प्रदेश के लोगों से मिलना नहीं होता था. जहाँ जिसका जन्म हो गया, उसने वहीं रहकर आयु व्यतीत कर दी. हमने आपनी आयु में देखा है, लोग पैदल चलते थे, दूर जाने के कोई साधन नहीं थे. बच्चों को पढ़ाया भी नहीं जाता था. कोई स्कूल नहीं थे. रिश्ते नाते छह-सात मील के अन्दर हो जाते थे, जहाँ पैदल चलने की सुविधा होती थी. उस समय जो लोग ऊँचे पहाड़ी प्रदेशों में थे, उनको भी वहीं पर ज्ञान हो जाता था. दूर की बातें नहीं जानते थे. इन ऊँचे पहाड़ी इलाकों में मेघ छाए रहते थे और बरसते रहते थे. वहाँ के वासियों के जीवन मेघों का संस्कार ग्रहण करते थे. उनको केवल यही समझ होती थी कि ये मेघ कैसे और किन-किन तत्त्वों के मेल से बनकर आकाश में आ जाते हैं और इनके काम से क्या-क्या लाभ होते हैं और क्या-क्या हानि होती है. जैसी वासी वैसी घासी. मेघों के संस्कार उन लोगों के हृदय और अन्तःकरण में घर कर जाते थे. जो मेघों का स्वभाव, परोपकार का भाव, ठंडक, आप भी ठंडे रहना और दूसरों को भी ठंडक पहुँचाना, उन लोगों की वैसी ही रहनी हो जाती थी क्योंकि दूसरे लोग जो उनके सम्पर्क में आ जाते थे उनको शांति, खुशी, ठंडक मिलती थी. इसलिए वो उन ऊँचे पहाड़ों पर रहने वाले लोग स्वाभाविक तौर पर मेघ के नाम से पुकारे जाते थे. यह नाम किसी व्यवसाय या कर्म के ख्याल से नहीं है. यह मेघ नाम मेघों से लिया गया और वहाँ के वासियों को भी मेघ कहा गया. ज्यों-ज्यों उनकी संतान की वृद्धि होती गई, वे नीचे आकर अपनी जीवन की यात्रा चलाने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की ज़रूरत के अधीन कई प्रकार के काम करने लगे. किसी ने खेती, किसी ने कपड़ा, किसी ने मज़दूरी, और वो अब नक्शा ही बदल गया. अब इस जाति के लोग धीरे-धीरे उन्नति कर रहे हैं. पुराने काम काज छोड़ कर समय के मुताबिक नए-नए काम कर रहे हैं और मालिक की दया से और भी उन्नति करेंगे, क्योंकि इनको मेघों से ऊँचा संस्कार मिला. ऊपर जो कुछ लिखा है उससे यही सिद्ध होता है कि समय-समय पर हर जाति के लोग अपना काम भी बदल लेते हैं. मेघ जाति का यह नाम प्राकृतिक है, स्वाभाविक ही पड़ा. यह किसी विशेष कार्य से संबंध नहीं रखता.

मेघ कैसे बनते हैं
इस धरती पर सूरज की गरमी से जब धरती में तपन पैदा हो जाती है तो स्वाभाविक ही वो ठंडक चाहती है और ठंडक जल में होती है. वह गर्मी समुद्र की तरफ स्वाभाविक ही जाती है और वहाँ की ठंडक गर्मी की तरफ जाने लग जाती है और इससे वायु की गति बन जाती है और वह चलने लग जाती है. हवा तेज़ होने पर अपने साथ जल को लाती है या वह अपने गर्भ में जल भर लेती है और उड़ कर धरती की तपन बुझाने के लिए उसका वेग बढ़ जाता है. मगर उन हवाओं में भरा जल तब तक धरती पर नहीं गिर सकता जब तक कि जाकर वो ऊँचे पर्वतों से न टकराएँ. उसका वेग बंद हो जाता है. आकाश में छा जाता है. जब यह दशा होती है कि अग्नि, वायु और जल इकट्‌ठे हो जाते हैं, इनकी सम्मिलित दशा को मेघ कहते हैं. मेघ केवल अग्नि नहीं है, केवल वायु नहीं, केवल जल नहीं, बल्कि इन सबके मेल से मेघ बनते हैं. जब ऊपर मेघ छाए रहते हैं, तो हवा को हम देख सकते हैं, अग्नि को भी देख सकते हैं, इन सबके मेल से जो मेघ बना था उसे भी देख सकते हैं. जब वर्षा खत्म हो गई, मेघ जल बरसा लेता है, तो न मेघ नज़र आता है, न वायु, न अग्नि. आकाश साफ़ हो जाता है. वो मेघ कहाँ गया? इसका वर्णन आगे किया जायेगा कि वे कहाँ गए. मेघ ने अपना वर्ण खोकर पृथ्वी की तपन बुझाई. पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की आवश्यकताओं को पूरा किया और उनको सुखी बनाया. आकाश से वायु बनी, आकाश और वायु से अग्नि बनी, आकाश और वायु और अग्नि से जल बना, आकाश, वायु अग्नि और जल से पृथ्वी बनी. जब सृष्टि को प्रलय होती है तो पहले धरती जल में, फिर धरती और जल अग्नि में, धरती, जल और अग्नि वायु में, धरती, जल, अग्नि और वायु आकाश में सिमट जाते हैं. आकाश का गुण शब्द है, वायु का गुण स्पर्श है, अग्नि का गुण रूप है, जल का गुण रस है और पृथ्वी का गुण गंध है. इन्हीं गुणों को सूक्ष्म भूत भी कहते हैं. ये गुण ब्रह्म की चेतन शक्ति से बनते हैं. ब्रह्म प्रकाश को ही कहते हैं. ब्रह्म का काम है बढ़ना, जैसे प्रकाश फैलता है. वो प्रकाश या ब्रह्म शब्द से बनता है. यह सारी रचना शब्द और प्रकाश से बनती है. शब्द से ही प्रकाश और शब्द-प्रकाश से ही आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी बन जाते हैं. तो इस सृष्टि या त्रिलोकी के बनाने वाला शब्द है :-
‘शब्द ने रची त्रिलोकी सारी’
आकाश का यही गुण अर्थात 'शब्द’ इन सब तत्त्वों में काम करता है. जो त्रिकुटी में मेघ की गर्जना सुनाई देती है, वो भी उसी शब्द के कारण है. मेघ नाम या मेघ राग या दुनिया के प्राणी जो भी बोल सकते हैं, वो आवाज़ उसी शब्द के कारण है. विज्ञानियों ने भी सिद्ध किया है कि यह सृष्टि आवाज़ और प्रकाश से बनी है.
जिस व्यक्ति को इस शब्द का और ब्रह्म का और इस सारे काम का जो ऊपर लिखा है, पता लग जाता है, ज्ञान हो जाता है, अन्तःकरण में यह बात गहरी घर कर जाती है, उस व्यक्ति को इन्सान कहते हैं. इन्सानियत की इस दशा को प्राप्त करने के लिए या तो योग अभ्यास करके आकाश के गुण को जाना जाता है या जिस महापुरुष के शरीर, मन और आत्मा इन सब तत्त्वों की सम्मिलित संतुलित दशा से बने हैं, उसे संत भी कहा गया है, उसकी संगत से हम इन्सानियत को प्राप्त कर सकते हैं. जो इन्सान बन गया उसके लिए न कोई जाति, न कोई पाति और न कोई भेदभाव रह जाता है. उसके लिए सब एक हो जाते हैं. उसमें एकता आ जाती है. वो किसी भी धर्म-पंथ का नहीं रहता. उसके लिए इन्सानियत ही सब कुछ है. हम सब इन्सान हैं. मानव जाति एक है. तो वो शब्द और प्रकाश जिससे यह सृष्टि पैदा हुई, तरह-तरह के वर्ण बन गए, मेघ वर्ण भी उसी से बना है. जब इन्सान में मानवता आ जाती है तो उसके लक्षण संतों ने बहुत बताए हैं. परोपकार, सबको शांति, वाणी ठंडक देने वाली बन जाती है. धरती पर रहने वाले प्राणियों की तपन बुझ जाती है. इस विषय पर कबीर साहिब का एक शब्द है :-
अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे।
एक नूर से सब जग उपज्या, कौन भले को मंदे।
सबसे पहले शब्द ने ही प्रकाश अर्थात ब्रह्म को उत्पन्न किया और शब्द ब्रह्म की चेतन शक्ति से ये पाँचों तत्त्व बन जाते हैं और वो चेतन शक्ति ही इन सब तत्त्वों में विद्यमान है, तभी यह तत्त्व रचना कर सकते हैं.
लोगा भरम न भूलो भाई,
खालिक, ख़लक, ख़लक में खालिक, पूर रहयौ सब ठाई।
भ्रम में आकर यह नहीं भूलना चाहिए कि वो स्रष्टा और सृष्टि उत्पन्न करने वाला और उत्पत्ति सब एक ही वस्तु है. वेदों में भी लिखा है :-
‘एको ब्रह्म द्वितीय नास्ति’
शास्त्रों में भी कहा है कि ब्रह्म एक चेतन शक्ति है, वो आप तो नज़र नहीं आती मगर उसके कारण यह दृश्यमान जगत बना है. इन सब में वही है. इस मेघ वर्ण का निर्माण भी उसी चेतन शक्ति से हुआ.
माटी एक अनेक भाँति कर साजी साजनहारे।
न कछु पोच माटी के भांडे, न कछु पोच कुम्हारे ।।
कुम्हार एक ही मिट्‌टी से कई प्रकार के बर्तन बना लेता है, है वो मिट्‌टी, मगर मिट्‌टी की शक़्लें बदल जाती हैं. मिट्‌टी कई नामों, रूपों में आ जाती है :-
सबमें सच्चा एको सोई, तिस का किया सब कुछ होई।
हुकम पछाने सो एको जाने बन्दा कहिये सोई ।।
सबमें वो शब्द ही काम कर रहा है उसी से सब कुछ बना है और वही सब कुछ करता है. जो उसको जान जाता है वही इन्सान है. हुक्म भी प्रकाश का ही नाम है क्योंकि परम तत्त्व से ही पहले शब्द पैदा होता है और शब्द से आगे फिर रचना शुरू हो जाती है इसी को हुक्म कहा गया है.
अल्लाह अलख नहीं जाई लखिया गुर गुड़ दीना मीठा।
कहि कबीर मेरी संका नासी सर्व निरंजन डीठा ।।
कबीर साहिब फरमाते हैं कि गुरु की दया से सब भ्रम और शंकाएँ समाप्त होते हैं और वो जो अलख था (शब्द को देखा नहीं जा सकता इसलिए उसे अलख कहा है), उसे कोई सत्गुरु ही लखा सकता है और फिर वो न नज़र आने वाला नजर आने लग जाता है.
आइये अब कुछ विख्यात शब्दकोषों के अनुसार मेघ शब्द का विचार करें.
हिन्दी शब्द सागर
1. मेघ--घनी भाप को कहते हैं जो आकाश में जाकर वर्षा करती है (भाप ठोस या तरल पदार्थ की वह अवस्था है जो उनके बहुत ताप पाने पर विलीन होने पर होती है--भौतिक शास्त्र)
2. मेघद्वार--आकाश
4. मेघनाथ--स्वर्ग का राजा इन्द्र
5. मेघवर्तक--प्रलय काल के मेघों में से एक मेघ का नाम
6. मेघश्याम--राम और कृष्ण को कहते हैं
7. मेघदूत--कालीदास महान कवि हुए हैं. उन्होंने अपने काव्य में मेघदूत का वर्णन किया है. इसमें कर्तव्यच्युति के कारण स्वामी के शाप से प्रिया वियुक्त एक विरही यक्ष ने मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास मेघों द्वारा संदेश भेजा है.
हिन्दी पर्याय कोष
1. मेघ और जगजीवन दोनों एक ही अर्थ के दो शब्द हैं.
हिन्दी राष्ट्रभाषा कोष
1. जगजीवन--जगत का आधार, जगत का प्राण, ईश्वर, जल, मेघ.
यदि आप ध्यान से पढ़ें तो इन शब्द कोषों में मेघ का अर्थ जो लिखा गया है वो ईश्वर और नाना ईश्वरीय शक्तियों के मेल से रसायनिक प्रतिक्रिया होने पर जो हालतें या वस्तुएँ उत्पन्न होती है उनमें से एक को मेघ कहा गया है. इसलिए जो कुछ ऊपर लिखा गया है कि मेघ ब्रह्म से ही उत्पन्न होते हैं और उसी में समा जाते हैं, ठीक है. इससे सिद्ध हुआ कि मेघ शब्द कोई बुरा नहीं है और इसी के नाम पर उन्हीं के संस्कारों को ग्रहण करते हुए मेघ जाति बनी.
इतिहास, भगत मुंशीराम, मेघमाला

Mahabali, Maveli and Matriarchal Society - राजा महाबली और मातृप्रधान समाज


Mahabali, Maveli and Matriarchal Society - राजा महाबली और मातृप्रधान समाज
Posted by Bhushan at 14:05
इसका संदर्भ Maveli belongs to Meghvansh और ऐसे अन्य आलेखों से है. हाल ही में मुझे याद आया कि केरल में मातृप्रधान समाज है. इसी प्रकार उत्तर-पूर्व में भी मातृप्रधान समाज प्रचलित है. महाबली का राज्य दक्षिण और दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों में था. उसका बेटा बाण उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का गवर्नर था. क्या यह हैरानगी की बात नहीं है कि इन दोनों क्षेत्रों में आज भी मातृप्रधान समाज है? क्या राजा महाबली ने समाज में महिलाओं का महत्व समझते हुए यह प्रणाली लागू की थी या महाबली से भी पहले सिंधु घाटी सभ्यता में यह प्रणाली पहले से चल रही थी? क्या देश के अन्य हिस्सों से मातृप्रधान समाज को क्रमबद्ध तरीके से समाप्त किया गया? मैं यह भी महसूस करता हूँ कि इन क्षेत्रों में संपत्ति महिलाओं के नाम में होती है लेकिन वे पुरुषों पर इक्कीस नहीं पड़ती हैं. वंश का नाम माता के नाम से चलता है. इन क्षेत्रों की महिलाएँ अपने अधिकारों के बारे में और घर की चारदीवारी से बाहर के संसार को तनिक बेहतर जानती हैं.

यह सच है कि सिंधु घाटी सभ्यता के मूल निवासियों के इतिहास को इतना नष्ट और भ्रष्ट कर दिया गया है कि उसे पहचानना और उसका पुनर्निर्माण करना कठिन है. लेकिन संकेतों और चिह्नों को एकत्र करना संभव है और मानवीय अनुभव से कुछ-न-कुछ निकाला भी जा सकता है. भारत के कायस्थों ने आख़िर 200 वर्षों के संघर्ष के बाद अपना इतिहास ठीक करने में सफलता पाई है. ऐसा शिक्षा, संगठन और जागरूकता से संभव हो पाया. महर्षि शिवब्रतलाल (ये संतमत/राधास्वामी मत में जाना माना नाम हैं और सुना है कि इन्होंने भारत में दूसरी टाकी फिल्म बनाई थी जिसका नाम 'शाही लकड़हारा' था) और मुंशी प्रेमचंद कायस्थ थे. मेघवंशियों के लिए ऐसा कर पाना और भी कठिन होगा. परंतु यह करने लायक कार्य है.
Posted by Bhushan at 6:39 PM
Labels: Origins, राजा बली
2 comments:


आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISH said...
ज्ञानवर्धक! आशीष -- प्रायश्चित
October 3, 2010 6:06 AM
डॉ० डंडा लखनवी said...
मैने राजा की कथा कई बार पढ़ी। वे करुणा सागर और दानशील थे। ऐसी कथा प्रचलित है कि उनसे तीन पग जमीन मांगी गई। पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश तथा तीसरे में उनके शरीर को नापने की बात प्रचारित की गई है। भारत के मूल निवासियों के साथ अनेक बार छल हुए हैं। खोज का विषय है कि इन तीनों पगों मे नापने का क्रम क्या था? कहीं पह्ले पग में उनके शरीर को और शेष दो पगों मे उनके राज्य को नाप लिया गया हो ? फलत: उनके वंशज कालांतर में राजनैतिक आर्थिक रूप से कमजोर पड़ गए हो? इस समाज में पुन: प्राण फूकने की आवश्यकता है। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
November 7, 2010 3:13 PM
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शनिवार, 18 जून 2011

बारूपाल को गांधी सम्मान पुरस्कार


नागौर। महात्मा गांधी जयंती के मौके पर शनिवार को गांधी बाल वाटिका में बुजुर्ग गांधीवादी एवं जायल के पूर्व विधायक मोहनलाल बारूपाल को जिला स्तरीय गांधी सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जिला कलक्टर डॉ. समित शर्मा ने बारूपाल को श्रीफल, शॉल, गांधी जी की तस्वीर व स्मृति चिह्न भेंट किए। वर्ष 1930 में जन्मे बारूपाल ने दस साल की उम्र में इंदौर में गांधीजी के असहयोग आंदोलन सम्मेलन में शिरकत की। इसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वे दो दिन जेल में रहे।वे चार बार जायल से विधायक रहे।

बारूपाल(मेघवाल) को पीएचडी की उपाधि

जैसलमेर & राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा दिनेश कुमार बारूपाल को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई है। डा. बारूपाल ने प्रोफेसर एसएल कोठारी के मार्गदर्शन में शोध कार्य किया। डा. बारूपाल ने परोक्ष धु्रमपान के वयस्क एवं विकसित होते भ्रुण के फैफड़ों पर होने वाले हानिकारक प्रभावों के जैव रासायनिक करणों को खोजा एवं जैविक ईंधन के लिए सुक्ष्म शैवालों के अध्ययन के लिए एक उत्तम विधि को मास स्पैक्ट्रोमिट्री के उपयोग द्वारा विकसित किया।

सामाजिक नवनिर्माण के लिए युवा पीढी आगे आए

बांसवाडा। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने सामाजिक नवनिर्माण में युवाओं की अहम् भागीदारी को महत्वपूर्ण बताते हुए युवाओं से सामाजिक नवनिर्माण और राष्ट्रीय उत्थान की गतिविधियों में हिस्सेदारी का आह्वान किया है और कहा है कि देश का भविष्य युवा पीढी के हाथों सुरक्षित है। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने शनिवार को बांसवाडा जिला मुख्यालय स्थित श्री गोविन्द गुरु राजकीय महाविद्यालय परिसर में आयोजित चार राजकीय महाविद्यालयों के संयुक्त शपथ ग्रहण समारोह में मुख्य अतिथि पद से संबोधित करते हुए यह आह्वान बडी संख्या में मौजूद महाविद्यालयी छात्र छात्राओं से किया। समारोह की अध्यक्षता जनजाति क्षेत्रीय विकास, अभाव अभियोग निराकरण तथा तकनीकि एवं अभियांत्रिकी शिक्षा मंत्री महेन्द्रजीतसिंह मालवीया ने की। समारोह में विशिष्ट अतिथियों के रूप में जिला प्रमुख श्रीमती रेशम मालवीया, बांसवाडा के विधायक अर्जुनसिंह बामनिया तथा गढी क्षेत्रीय विधायक श्रीमती कांता भील उपस्थित थीं। समारोह का शुभारंभ केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया व केबिनेट मंत्री महेन्द्रजीतसिंह मालवीया और अन्य अतिथियों द्वारा वाग्देवी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन तथा पुष्पहार अर्पित कर हुआ। अतिथियों ने गोविन्द गुरु के चित्र पर भी पुष्पहार चढाए। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने बांसवाडा के इतिहास में पहली बार आयोजित इस भव्य संयुक्त शपथ ग्रहण समारोह में श्री गोविन्द गुरु राजकीय महाविद्यालय, श्री हरिदेव जोशी राजकीय कन्या महाविद्यालय, मामा बालेश्वरदयाल राजकीय महाविद्यालय कुशलगढ तथा श्री एकलिंगनाथ संस्कृत महाविद्यालय गनोडा से संबंधित छात्र संघ अध्यक्षों क्रमशः प्रकाश बामनिया, संगीता निनामा, सुभाषचन्द्र दामा तथा सोहनलाल डामोर तथा इनकी कार्यकारिणियों के पदाधिकारियों को सामूहिक रूप से पद एवं मर्यादा की शपथ दिलायी और बधाई देते हुए शपथ का पूरा मान रखने को कहा। इस दौरान चारों महाविद्यालयों के सात सात पदाधिकारियों के पंक्तिबद्घ चार समूहों को शपथ ग्रहण करायी गई। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने इस मौके पर अपने कॉलेज जीवन का स्मरण करते हुए बडी संख्या में उपस्थित महाविद्यालयी विद्यार्थियों से कहा कि वे दूरदर्शिता, पक्का इरादा और अनुशासन को अपनाते हुए सही दिशा में आगे बढें। भूरिया ने कहा कि छात्र जीवन गीली मिट्टी की तरह है। सृजन की इस प्रयोगशाला में सावधानी से जीवन सँवार लिया जाए तो देश के भावी नागरिक के रूप में कई अहम् जिम्मेदारियों का निर्वाह करने का सामर्थ्य अपने आप आ जाता है। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने जरूरतमन्दों और गरीबों की सेवा के प्रति संवेदनशील रहने को आज की जरूरत बताया और कहा कि समाज के दलितों, शोषितों और पीडितों की सेवा को जीवन का ध्येय बना लिया जाए तो वह व्यक्ति सदैव अपराजेय होता है। उन्होंने केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि राजस्थान में जनजातियों के विकास के लिए केन्द्र की ओर से पर्याप्त वित्तीय मदद दी जा रही है। 2010 में 82 करोड की धनराशि तथा 2010 11 में 140 करोड की राशि दी गई। प्रदेश में 32 बालिका आश्रम छात्रावासों के लिए एक एक करोड देने के साथ ही 30 छात्रावासों के लिए एक सौ करोड की राशि मंजूर की गई है। देश में सौ एकलव्य स्कूल स्थापित किए जाएंगे। इनम से प्रत्येक पर बारह करोड की राशि खर्च की जाएगी। प्रदेश में ऐसे 6 स्कूल बनेंगे। इनमें सभी प्रकार की सुविधाएं उपल?ध होंगी। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री ने बताया कि देश भर में छात्रवृत्ति को दुगूना किया जाएगा। उन्होंने जानकारी दी कि पायलट बनने के इच्छुकों के लिए प्रशिक्षण, डॉक्टरेट करने वाले और विदेशों में अध्ययन करने जाने वाले जनजाति विद्यार्थियों के लिए सारा खर्च सरकार द्वारा उठाया जाएगा। उन्होंने जनजाति प्रतिभाओं से कहा कि सीमित न रहें बल्कि दुनिया में आगे आएं। भूरिया ने कहा कि श्री गोविन्द गुरु राजकीय महाविद्यालय सहित क्षेत्र के तमाम महाविद्यालयों की समस्याओं के समाधान के लिए सार्थक कार्यवाही की जाएगी। समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान के जनजाति क्षेत्रीय विकास, अभाव अभियोग निराकरण तथा तकनीकि एवं अभियांत्रिकी शिक्षा मंत्री महेन्द्रजीतसिंह मालवीया ने कहा कि दूरस्थ अंचलों के महाविद्यालयों को साधन सम्पन्न बनाया जाकर ही क्षेत्र में अपेक्षित विकास के लक्ष्यों को पाया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने जनजाति क्षेत्रों के महाविद्यालयों पर विशेष ध्यान देने का आग्रह केन्द्रीय मंत्री से किया। इसके साथ ही मालवीया ने बांसवाडा जिले में मेडीकल और आईआईटी आदि संस्थानों की स्थापना पर जोर दिया और कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार के साझा प्रयासों से इस दिशा में पहल हो सकती है। बांसवाडा कॉलेज में प्रशाासनिक भवन बनाने सहित कॉलेजों की समस्याओं के निवारण और विकास के लिए उन्होंने केन्द्रीय मंत्री के सहयोग से हरसंभव प्रयासों का आश्वासन दिया। केबिनेट मंत्री मालवीया ने विद्यार्थियों से उच्च सेवाओं में जाने तथा ऊँचे लक्ष्यों को सामने रखकर आगे बढने, तकनीकि शिक्षा को आत्मसात करने का आह्वान करते हुए दृढ इच्छाशक्ति के साथ आगे आने को कहा। मालवीया ने कहा कि दनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले हम प्रतिभाओं के मामले में कहीं आगे हैं, इस बात को प्रकट करने की जरूरत है। बांसवाडा के विधायक अर्जुनसिंह बामनिया ने छात्रसंघ चुनाव की परम्परा को पुनःआरंभ करने के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया और विद्यार्थियों से बांसवाडा की धरती के ऋण को उतारने और नाम रोशन करने के लिए आगे आने का आह्वान किया और कहा कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाते हुए बांसवाडा को गौरव प्रदान करें। बामनिया ने रतलाम रेल्वे जंक्शन तक सहज पहुंच के लिए बांसवाडा रतलाम सडक सुदृढीकरण करने और मध्यप्रदेश तथा राजस्थान प्रदेश के बांसवाडा जिले से सटे सीमावर्ती गांवों को आपस में जोडने के लिए सम्फ सडकों का जाल बिछाने की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि इन क्षेत्रों का पारस्परिक सामाजिक एवं आर्थिक सम्फ रहा है। गढी क्षेत्रीय विधायक श्रीमती कांता भील ने क्षेत्रीय विकास के लिए महाविद्यालयों के विकास को नितान्त जरूरी बताया और जनजाति उपयोजना क्षेत्र के लिए अधिक से अधिक धनराशि उपल?ध कराने का आग्रह केन्द्रीय मंत्री से किया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एम.एल. डांगर ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए सभी चारों महाविद्यालयों का संयुक्त प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। शपथ ग्रहण के पश्चात मेजबान महाविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष प्रकाश बामनिया ने छात्र संघों और विद्यार्थी समुदाय की ओर से अतिथियों का भावभीना स्वागत किया और उच्च शिक्षा जगत की समस्याओं और अपेक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए जनजाति क्षेत्र के विद्यार्थियों की विकास संभावनाओं के लिए समुचित अवसरों, मार्गदर्शन एवं संसाधनों की उपल?धता पर बल दिया। समारोह में सभी अतिथियों का भावभीना स्वागत किया गया। संगीत विभाग की छात्राओं ने शास्त्रीय धुन में सुमधुर शारदा वंदना ‘‘जयति वीण वादिनी...’’ प्रस्तुत की। मेजबान महाविद्यालय की छात्राओं ने भावभीना स्वागत गान भी पेश किया। महाविद्यालय की ओर से प्राचार्य प्रो. एम.एल. डांगर, उपाचार्य डॉ. एम.आर. बारूपाल, छात्र संघ परामर्शदाता प्रो. टी.आर. मेघवाल, डॉ. एस.के. सांखला, डॉ. के.एम. सिंघाडा तथा प्रो. बी.एल. मीणा ने अतिथियों का पुष्पहारों से स्वागत किया। अन्य तीनों महाविद्यालयों के प्राचार्यों एवं मुख्य छात्र संघ परामर्शदाताओं सहित चारों महाविद्यालयों के छात्र संघ अध्यक्षों ने भी सभी अतिथियों को पुष्पहार पहना कर स्वागत किया। अतिथियों को साफे बंधवाए गए। समारोह का संचालन मुख्य परामर्शदाता डॉ. टी.आर. मेघवाल ने किया। अंत में महाविद्यालय के उपाचार्य डॉ. एम.आर. बारूपाल ने आभार प्रदर्शन की रस्म अदा की। समारोह में बांसवाडा नगरपालिका के अध्यक्ष राजेश टेलर एवं उपाध्यक्ष अमजद हुसैन, अर्थशास्त्री प्रो. एन.के. मेहता, समाजसेवी जैनेन्द्र त्रिवेदी, मनीषदेव जोशी, विकेश मेहता सहित काफी संख्या में जन प्रतिनिधि, शिक्षाविद, प्रबुद्घजन और बडी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित थ। इससे पूर्व केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया के हैलीकॉप्टर से पहुंचने पर समारोह स्थल के पास ही हेलीपैड पर परम्परागत ढंग से भावभीनी अगवानी व स्वागत किया गया। कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने मंगल कलश सजा, रोली अक्षत से तिलक कर तथा पुष्प पंखुडियाँ बिखेर कर भावपूर्ण स्वागत किया। मेजबान महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एम.एल. डांगर, उपाचार्य डॉ. एम.आर. बारूपाल, स्वागत समिति के सदस्यों तथा परामर्शदाता मण्डल ने हार पहना कर तथा गुलदस्ते भेंट कर ‘अतिथि देवो भवः’ की परिकल्पना को साकार कर दिया।

शहीद राजाराम मेघवाल के बलिदान दिवस पर रक्तदान से दी श्रद्धांजलि


जोधपुर। मेहरानगढ़ की नींव में जीवित समाधि लेने वाले शहीद राजाराम मेघवाल के बलिदान दिवस पर रविवार को महात्मा गांधी अस्पताल में रक्तदान शिविर आयोजित किया गया।

इसमें 51 युवाओं ने रक्तदान कर मेघवाल को श्रद्धांजलि अर्पित की। संस्थान के अध्यक्ष सुरेश मेघवाल, इन्द्रजीत गुढ़ा, पूर्व मंत्री मोहन मेघवाल, पूर्व संसदीय सचिव जोगाराम पटेल, लूणी प्रधान तुसलीराम मेघवाल व भाजपा जिलाध्यक्ष नरेन्द्रसिंह कच्छवाहा सहित कई लोगों ने रक्तदाताओं का उत्साह बढ़ाया। इसी तरह मारवाड़ गौरव परिषद् के तत्वावधान में अर्जुन गुन्देचा की स्मृति में उम्मेद अस्पताल के ब्लड बैैंक में रक्तदान शिविर लगाया गया। शिविर संयोजक तरूण कटारिया ने बताया कि गुन्देचा के माता-पिता ने रक्तदान कर उसे श्रद्धांजलि दी। कटारिया ने 53वीं बार रक्तदान किया। शिविर में 52 जनों ने रक्तदान किया।

गांव-गांव में बैठकें, 27 को बीकानेर पहुंचने की अपील / मेघवाल समाज का महासम्मेलन


बीकानेर, 21 दिसम्बर। आगामी 27 दिसम्बर को मेघवाल समाज के महासम्मेलन में अधिकाधिक जनभागीदारी हेतू बीकानेर गंगाशहर इकाई मेघवंशीय समाज संगठन के अध्यक्ष प्रकाश बारुपाल के सानिध्य में युवा मेघवाल कार्यकर्ताओं ने कोलायत क्षेत्र के अकासर, कोलायत, दियातरा, गजनेर, सियाणा आदि स्थानों पर बैठकें की। बारुपाल ने बताया कि मेघवंशीय समाज चेतना संस्थान (राजस्थान) द्वारा समाज में जागरुकता को लेकर जो आयोजन किया जा रहा है उसके लिए समाज में निरन्तर कुरीतियां मृत्यु भोज से लेकर दहेज प्रथा एवं बाल विवाह तक मिटाने के लिए आयोजन स्थल सार्दुल क्लब में रविवार को पहुंचे। उनके साथ लालचन्द पड़िहार (ग्रामसेवक) एवं अमरचन्द, मनोज, विजय, आनन्द आदि युवा मेघवंशीय समाज के कार्यकर्ताओं ने होने वाले आयोजन को सफल कराने की अपील की। लालचन्द पड़िहार ने सुरदासर, अकासर, उदयरामसर, जामसर, लूणकरणसर आदि गांवों में आयोजन का प्रचार-प्रसार किया। सम्पत सिंह राजपुरोहित ने मेघवंशीय समाज के इस आयोजन को सराहनीय बताया और कहा कि सभी समाज में इसका संदेश पहुंचेगा। प्रकाश बारुपाल ने बताया कि आज गंगाशहर में जयपुर से आए मदनगोपाल मेघवाल (आर. पी. एस.) की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें पन्नालाल मेघवाल ने कहा कि युवा आज देश के लिए जागरुक है वहीं समाज के लिए भी युवाओं को आगे आकर अधिक से अधिक कुरीतियों के खिलाफ आयोजन में भाग लेने के लिए लोगों को जागरुक करें।

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  meghwal samaj ke  log  meghwal samaj ko  aage bhadhane par  vichar vimarh  karte  hue

  b.j.p ke  shanshad (mp) shree arjun ram meghwal  ko samanit  karte  huee  megh bhandu

  meghwal samaj ko  aage  bhadhane  ko lekar sakriye  meghwal bandhu 

  meghwal samaj mandal me upishtat  meghwal balikaye or  meghwal samaj ke  log
                                                                   Meghwal society (मेघवाल समाज)
Bikaner, 21 December. Greater public participation in the upcoming congress of the society began on December 27 Meghwal Megvanshiy Bikaner Gangashhr unit of society be with the organization's president at the young Meghwal light Barupal Kolayt sector workers Acasr, Kolayt, Diatra, Gajner, Siana and places of meetings. The social consciousness Barupal Megvanshiy Institute (Rajasthan) to be held by the society which is the awareness in society for the dowry system and child marriage continue Kuritian death to the banquet venue for deletion Sardul arrived at the club on Sunday . He Lalchand Pdihar (Gramsevk) and Amrchand, Manoj, Vijay, fun and young Megvanshiy social workers to make the event successful appeal. Lalchand Pdihar the Surdasr, Acasr, Udayramsr, Jamsar, Lunkrnsr and promote events in the villages - has spread.more prejudices than to participate in events to educate people.

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गुरुवार, 16 जून 2011

Meghwal मेघवाल


Several aspects of Meghwar history and history of its literature are so shrouded into mist that we cannot differentiate the porous border of the historical events and the mythological beliefs where the Pauranic references have been diffused into the historical facts. So is the case with the great Meghwar personalities who lived historical lives in the mediaeval history of Indian Subcontinent. We encounter difficulties when the identity of Megh Rikh, Megh Dharu, Megh Mahya or Meghwar itself is questioned. In this article we will try to understand the historical identity of Megh Rikh and Megh Dharu. There is common belief that Megh Rikh was the prime ancestor of Meghwar. In the Meghwar traditional literature and oral stories he is considered as the most revered personality among all the Meghwars alike. Meghwar consider themselves as the descendents of this great saint. It is also said that he got divine knowledge directly from God Shiva and handed down to his son named Megh Dharu who later endowed it to the Meghwar Jati or Meghwar community. Literally, Megh means Rain and Rikh is a local Rajasthani or Kutchhi dialect meaning Rishi. Both the terms Megh and Rishi have come from Sanskrit language. As described, Megh means ‘rain’ but in the mythological context the term is usually attributed to the ‘Rain god’1. While another term Rikh, an abrogated form of the original Sanskrit term Rishi, which in the Hindu religious customs is referred to an ascetic or a seer. A Rishi is an ancient religious person who was often involved into the religious practices at a secluded place in the jungle or on the mountain. It has been noticed that the term Rikh in its local form was found or became famous first time into the Meghwar traditions and has now become an identity of this community. Similarly the term Rikhesar is also known which means the ‘Chief Rikh’ or ‘Chief Rishi’. It is probable that this terminology might have been used for Megh Rikh also.
The Meghwars belonging to different panths and religious orders have their own versions about the origin of Megh Rikh however a similarity lies in the deep to all the versions of the tradition. In the Megh Mahatamaya2 it is said that God Shiva uttered the Agama Nigama to Megh Rikh who handed down them to his son Megh Dharu. Megh Dharu endowed the divine words to the Meghwar Jati or members of Meghwar community for their religious life. Barmati traditional literature also tells that ‘Megh Rikh had directly descended from the Hindu god Brahma’.3 An eminent anthropologist Dr Dominique-Sila Khan4 who has done considerable research on Meghwar people and their different beliefs also expounds on this term in an explicit manner. She also traces the famous tradition about the origin of Meghwar Jati and points out that the members of Meghwar were previously known by this name and still the name is repeated in their religious texts as honorified name of ancestors of Meghwar cast
Generally the name Meghwar is composed of two words Megh meaning ‘Rain’ and War meaning one who wards off or stops’ hence ‘one who wards off or stops the rain. Numerous historical texts about the origin of Meghwars of Sindh, Kutchh, Gujarat and Rajasthan where members of this community live, mention the versions of the same tradition. For instance, Rose states that ‘The Meghwal claim descent from Megh-rikh who was created by Narain’.5 Enthoven states that ‘the one who stops or wards off rain is called Meghwal’.6 Mohsin Ali Mohsin tells about Meghwar that ‘Megh means rain + War means to fall it!’.7 But the question is who was Megh Rikh and when and where he lived? Some Meghwar traditions claim that Megh Rikh lived thousands of years ago. A hardcore Meghwar tradition states that Megh Rikh was Rikhesar or Rishi. In this regard, the tradition goes in such a way that:
‘In the Sat Yuga, a group of Rikhesars were engaged in the worship of god Shiva. Feared by their continuous worship, all the gods in the heaven gathered to determine to stop the worship. The god Vishnu in the guise of a Brahman along with a mysterious cow (Kavli Gaw) ascended on the earth and appeared before those Rikhesars. The god Vishnu asked them if they would care his cow for some time, however the god allowed them to drink its milk as much as they wanted. Everyday Rikhesars drank delicious milk from that mysterious cow. One day they thought that its milk is so delicious how much would be tasty its meat. Overwhelmed by that thought, they cut the cow and ate its meat. When Vishnu returned after few days, he could not find his cow and suspected that the Rikhesars had eaten it. Vishnu demanded his cow but Rikhesars lied that they did not know about it. At the same time, the parts the cow began to make sounds from their abdomens. By knowing this, Vishnu became furious, he cursed to the Rikhesars that they would be deserted into jungles for up to three yugas, but however in the fourth Kali Yuga their sin would be removed and be liberated when Matang Dev would come as an Incarnation of God Mahesh.’8 In this tradition it is however not known that who was Megh Rikh among that group of Rikhesars? Whatever the matter be, this is a mythological story and even Puranas do not support it. The most significant point in this tradition lies in the fact that Matang Dev is believed as the Tenth Incarnation of God Mahesh (Shiv).
Another Meghwar tradition seems more relevant and is often recounted in such a way that: ‘A certain Rishi named Ekal Shringi (who had grown one horn on his head) was busy in the deep meditation. All the year he remained in that condition but his meditation came to an interruption when it rained on the earth. He determined to stop the rain forever. Thus he captured the Twelve Meghs (the gods of Rain) and tied them into his horn. By this he could succeed in stopping the rain and the next year there was no rain on the earth. This situation created severe drought and due to scarcity of water the people and the animals began to die. Cultivation had completely destroyed. The people who survived went to the gods and vowed them to save their lives from the tyranny of Ekal Shringi. All gods and goddesses appealed to god Shiva to end the miseries of the human beings and got them relief by freeing the Twelve Meghs from the bondage of the tyrant. God Shiva agreed the request he took a guise of a mendicant and came into the colony of the low caste people where a person named Megh Dharu was living along with his wife and one daughter. It was the same Megh Dharu who was the son of great Megh Rikh. Megh Dharu like his father was truthful and honest. He had always spoken truth and had nothing done wrong in his entire life. Megh Mahatamaya tells that the Megh Rikh was a scion of a certain Parmar king. His previous name was Megh Singh but he sought protection and became a disciple into the hermit of the rishi Dadhichi after an attack on his own country, he came to be known as Megh Rikh’.9 The further detail can be seen in my Ph.D. thesis where I have described all traditions and their historical analysis.
Shiva brought him to the place where Ekal Shringi was lost into meditation. Shiva told Megh Dharu to take a handful dust from under his own feet and threw it on the horn of Ekal Shringi. As soon as he did so, the horn cracked and the Twelve Meghs were freed from the bondage. They instantly returned to the sky at their original place. Afterwards there was no drought and no scarcity of water or food on the earth.’10
However Baghvant states in such a way that ‘god Shiva asked from him three things: Roti, Beti and Langoti i.e. bread, a daughter and a piece of cloth which he immediately provided to the man about whose identity he did not know. Being pleased of his generosity and honesty, god Shiva appeared into his divine form only to show that he was his god, Shiva.’11
In the fourteenth century A.D. the king Ra Navghan (S.-/A.D. 1235?)
12 who ruled the famous state of Junagadh, as the Barmati Panth sources in a Ginan, traces a tradition that ‘Ra Navghan was informed by one of his royal astrologers called Barot
13 that a twelve years long drought is alarming at the doors of his country and he must be prepared for it. The king was influenced by the prediction and ordered his men not to carry any one the water from the country’s reservoirs. He employed there guards to check this. Near to a water tank, there was a colony of the low caste people who were followers of the great spiritual guide Shree Mamai Dev. The spiritual guru had been staying in the colony in order to preach his followers. In the morning, the followers told that the king had imposed order not to take a single drop of water from the water tank, due to which they could not maintain the purity.
14 ‘Mamai Dev determined to meet with Ra Navghan and removed his apprehensions based on false prediction of the royal astrologers. Ra Navghan had already in contact with Mamai Dev and was familiar with the miraculous power of the guru of the low castes. When Mamai Dev reached at the court, he offered him a high seat and asked if he wanted to say something. Mamai Dev told him that his imposition on the supply of water and food reservoirs is not appropriate. He called him to open water and food to the public because there is no drought at all instead of it there would be a heavy rain. This time the king was under the influence of the royal astrologer and was not seemed to be agreed with the Mamai Dev’s prediction. Mamai Dev left the palace. He worshipped at a place near a village Dhandhosan and then mounted on the Girnar’s top hill where he initiated hard practices to please God to make it rain on Junagadh. In very melodious tone, Mamai Dev uttered Ginans and called the Meghs, the rainy clouds. Suddenly, the clouds began to gather over Junagadh and heavy rain began to fill whole of the city. The rain continued to fall for up to three days. King feared that if Mamai Dev would not stop uttering the divine song, the rain would continue to fall and the whole city would be submerged in the flood. So he along with his guards and Meghwars mounted on Girnar and began to call for the mercy of the spiritual guide to bring an end that heavy rain.’
15‘Mamai Dev however told that the rain could be halted only when his beard will be submerged by the rain water. Then, one of his followers moved forward and took some rainy water into a vessel and submerged his beard with it. Mamai Dev was pleased of this pretty trick as the condition had been fulfilled and as it was done by his own follower so Mamai Dev ordered to Meghs to return to their original place and as such rain came to a halt.’ This whole narration can been found in Megh Vinti16 of the Barmati Panth sacred scripture. For the first time, the title was bestowed as Meghwar to the Barmati followers by Mamai Dev himself.
The above historical event states that how the name Meghwar came into existence and that it is not only a name but a title to the followers of Barmati Panth. It is also known that the title Meghwar was coined into the times of Mamai Dev who frequently used it in his own Ginans.
From the above three examples we evaluate that mythological stories about Megh Rikh and Megh Dharu are the only depictions of the historical event which is attached with Shree Mamai Dev’s miraculous event mentioned above as about him a number of historical events may be confirmed from the history. Mamai Dev lived between the second half of the thirteenth century A.D. and the first half of the fourteenth century A.D.
17 He was the great grandson of Matang Dev (11th century A.D.),
18 grand son of Lurang Dev (12th century A.D.)
19 and son of Matai Dev (13th century A.D.
20 He was the fourth spiritual guide of Maheshvari Meghwars – the followers of Barmati Panth. Thus it is now clear that the name Meghwar as previously supposed to be the ancient at least before the time of Mamai Dev is not correct. Rather from the different religious as well as historical evidences it may be established that the title Meghwar came into existence in the time of Mamai Dev. It is right that in the Ginans the word Meghwar has often been used with the narration of Shree Dhani Matang Dev, for instance, the Ginans Megh Vinti
21, Guru Vaso
22, Punje Purkhe Ji Vagat
23. etc but it should be kept in mind that mostly these Ginans were composed by Mamai Dev in whose time the name Meghwar had come into existence and he therefore used the Meghwar title for followers of Matang Dev as well.
The identities of Megh Rikh and Megh Dharu will continue to be mysterious and hardly we can find any clue about their origin in history until we see their traditions in the Meghwar historical personalities which we have tried above. The inhibition of Megh Dharu, the son of Megh Rikh, as the weaver and his life as the low caste in the downtrodden colony helps to compare him with the low caste follower of Matang Dev or Mamai Dev. As we know that weaving was the main profession in which Meghwar people excelled to highest degree. An eminent anthropologist Dr Dominique Sila Khan24 informs that Matang Dev is also regarded as Matang Rikh in Rajasthan in except of the fact that Maheshvari Meghwars consider Matang Dev as their spiritual father (Dada) while Mahya vanshis25 call Megh Rikh as Megh Matang also.



References:

1.Malsi Ladha Baghvant. (1991). Matang Puran ane Meghwar samaj ni utpati. (Matang Puran and Origins of Meghwar society). Kutchh: Printed by Jatashankar Baghvant. p.131. Please see also Unpublished Manuscript. Shree Mamai Dev. See also Unpublished Manuscript. Shree Mamai Dev. Ginan:Megh Vinti. Sur: Sindhoro. Total 7 verses. 14th century A.D. Originally written in Shastri Bhasha. Copied by Kheraj Velji Thonthya in Gujarati script under the same title of the Ginan. 1957. Note Book No.3; p.68. The Ginans of Barmati Panth. Personal collection. Also see Note Book No.3. p.145.



2.Jeevannathji Sadanand Nathaji. (n.d.). Shri Megh Mahatamaya: Meghwar Sant Bhakto na Jivan no tunk parichaya. Narmadateerath Brighu Rishi Ashram Niwasi Maharaj Shri Jeevan Nathji Sadanand Nathji.pp.143-158. It is also called Shiv Sarodha Gyan.



3.Versi R. Lalan, Matang Smriti. Printed by Ramji Mangliya. Mahesh Panthi Sahitya Prakashan. Gandhidham (Kutchh). 2004, p1.



4.See Dominique-Sila Khan, Conversions and Shifting Identities: Ramdev Pir and Ismailis in Rajasthan, 1997, Manohar Publishing Co. Delhi.



5.H.A.Rose. A Glosssary of the tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier. Nirmal Publishers and Distributors, New Delhi.1997.p.148.
6.R.E. Enthoven. The tribes and Castes of Bombay, Vol-III.1922. Bombay Govt. Central Library, Rept. Vol-III, 1975, Cosmo Publications, Delhi, pp.43-52.
7.Tarikh-e-Alam. Printed by the author, Sanghar (Sindh),1991,p.204.
8.ibid. Baghvant,1991, pp.22-26.
9.ibid. Baghvant. P.14.
10.ibid. Jivannathji. n.d. pp.14-19.
11.ibid. Baghvant. P.42.
12.James Burgess. Antiquities of Kutch and Kathiawar, Sindhi Adabi Board, 1991. p.165. Hyderabad. According to the dynastic table of the kings of Junagadh given by James Burgess, he might be Ra Mahipal II (Sam.1421/A.D. 1371) who existed in the time of Mamai Dev.
13.A traditional genealogist who used to keep register to note down a family’s lineage and important facts.
14.ibid. Baghvant. 1991. p.122.
15.ibid. Baghvant. p.133.
16.See note 1.
17.Mohan Devraj Thontya. PhD Thesis titled History and Culture of Meghwar: From the earliest times to the modern age submitted in July 2009 at the University of Karachi for award of degree. p.177.
18.Thontya. ibid. p.180
19.ibid. p.182.



20.ibid. p.182
21.See above note
16.
22.See above note 16.
23.Unpublished Manuscript. Shree Mamai Dev. Ginan:Panje Purkhe Ji Vagat. Sur Sindhoro. Total 5 verses+Vel. 14th century A.D. Originally written in Shastri Bhasha. Copied by Kheraj Velji Thonthya in Gujarati script under the same title of the Ginan. 1957. Note Book No.4; pp.14-16. The Ginans of Barmati Panth. Personal collection.



24.See Dominique-Sila Khan. ibid.


25.See Jivannathji. ibid. p.94.
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मेघवाल और उसके साहित्य के इतिहास के इतिहास के कई पहलुओं ताकि धुंध में डूबा रहे हैं कि हम ऐतिहासिक घटनाओं और पौराणिक मान्यताओं जहां Pauranic संदर्भ ऐतिहासिक तथ्यों में दूर तक फैला हुआ है की झरझरा सीमा नहीं अंतर कर सकते हैं. तो महान Meghwar व्यक्तित्व जो भारतीय उपमहाद्वीप के मध्यकालीन इतिहास में ऐतिहासिक जीवन रहते थे के साथ मामला है. हम कठिनाइयों का सामना जब मेघ Rikh, मेघ Dharu, मेघ Mahya या खुद Meghwar की पहचान पूछताछ की है. इस लेख में हम मेघ Rikh और मेघ Dharu की ऐतिहासिक पहचान को समझने की कोशिश करेंगे. वहाँ आम धारणा है कि मेघ Rikh Meghwar के प्रधानमंत्री पूर्वज किया गया है. Meghwar पारंपरिक साहित्य और मौखिक कहानियों में वे सब एक जैसे Meghwars बीच सबसे श्रद्धेय व्यक्तित्व के रूप में माना जाता है. Meghwar स्वयं को इस महान संत के वंशज के रूप में विचार. यह भी कहा है कि वह दिव्य ज्ञान सीधे भगवान शिव से हो गया और उसके मेघ Dharu नामित बेटा है जो बाद में यह Meghwar जाति या Meghwar समुदाय को संपन्न करने के लिए नीचे हाथ. सचमुच, मेघ वर्षा का अर्थ है और Rikh एक स्थानीय राजस्थानी या Kutchhi बोली अर्थ ऋषि है. दोनों पदों मेघ और ऋषि संस्कृत भाषा से आए हैं. के रूप में वर्णित है, मेघ 'बारिश' का अर्थ है लेकिन पौराणिक संदर्भ में शब्द का आमतौर पर 'वर्षा god'1 को जिम्मेदार ठहराया है. जबकि एक अन्य शब्द Rikh, मूल संस्कृत शब्द ऋषि, जो हिंदू धार्मिक रिवाजों में एक तपस्वी या एक द्रष्टा में जाना जाता है की एक निराकृत फार्म. एक ऋषि एक प्राचीन धार्मिक व्यक्ति है जो अक्सर जंगल में एक सुनसान जगह पर या पहाड़ पर धार्मिक प्रथाओं में शामिल किया गया है. यह देखा गया है कि अपने स्थानीय रूप में पद Rikh पाया गया था या Meghwar परंपराओं में प्रसिद्ध पहली बार बन गया है और अब इस समुदाय के एक पहचान बन गया है. इसी अवधि Rikhesar भी जाना जाता है जो 'चीफ Rikh' या 'चीफ ऋषि' का अर्थ है. यह संभव है कि इस शब्दावली मेघ Rikh के लिए किया गया हो सकता भी इस्तेमाल किया.



विभिन्न panths और धार्मिक आदेशों से संबंधित Meghwars मेघ Rikh की उत्पत्ति के बारे में अपने स्वयं के संस्करणों लेकिन एक समानता गहरे में परंपरा के सभी संस्करणों में निहित है. यह मेघ Mahatamaya2 में कहा जाता है कि भगवान शिव मेघ Rikh जो उन्हें नीचे उनके पुत्र मेघ Dharu को सौंप दिया Agama Nigama बोला. मेघ Dharu उनके धार्मिक जीवन के लिए Meghwar जाति या Meghwar समुदाय के सदस्यों को दिव्य शब्दों संपन्न. Barmati पारंपरिक साहित्य भी बताता है कि .3 एक प्रख्यात मानव विज्ञानी डॉ. डोमिनिक-Sila Khan4 जो Meghwar लोगों और उनके अलग मान्यताओं पर काफी शोध किया है, 'मेघ Rikh सीधे हिंदू देवता ब्रह्मा से उतरा था' भी एक स्पष्ट तरीके से इस पद पर expounds. वह भी Meghwar जाति की उत्पत्ति के बारे में प्रसिद्ध परंपरा निशान और बताते हैं कि Meghwar के सदस्यों को पहले से इस नाम से जाने जाते थे और अभी भी नाम Meghwar जाति के पूर्वजों की honorified नाम के रूप में उनके धार्मिक ग्रंथों में भी दोहराया है.



आम तौर पर नाम Meghwar दो मेघ अर्थ 'वर्षा' और युद्ध के अर्थ एक है जो बंद वार्ड शब्दों से बना है या 'इसलिए' एक वार्डों कौन रोकता है बंद या बारिश रुक जाती है. सिंध, Kutchh, गुजरात और राजस्थान की Meghwars जहाँ इस समुदाय के सदस्यों जीने की उत्पत्ति के बारे में कई ऐतिहासिक ग्रंथों, इसी परंपरा के संस्करण का उल्लेख है. उदाहरण के लिए, राज्यों गुलाब कि 'मेघ-rikh से मेघवाल दावा वंश जो नारायण द्वारा बनाया गया था' .5 Enthoven कहा गया है कि .6 मोहसिन अली मोहसिन 'जो बंद हो जाता है या बारिश बंद वार्ड मेघवाल कहा जाता है' Meghwar के बारे में बताता है कि 'मेघ साधन बारिश + युद्ध करने के लिए इसे! '.7 गिरावट का मतलब है लेकिन सवाल यह है जो मेघ Rikh था और जब और जहां वह रहता है? कुछ Meghwar परंपराओं का दावा है कि मेघ Rikh हजारों साल पहले रहते थे. एक कट्टर Meghwar परंपरा कहा गया है कि मेघ Rikh Rikhesar या ऋषि था. इस संबंध में, परंपरा इस तरह है कि में चला जाता है:



'शनि युग में, Rikhesars के एक समूह को भगवान शिव की उपासना में लगे हुए थे. उनकी निरंतर आराधना से डर था, स्वर्ग में सभी देवताओं की पूजा करना बंद कर निर्धारित इकट्ठा. भगवान विष्णु एक रहस्यमय गाय (Kavli Gaw) के साथ एक ब्रह्म की आड़ में पृथ्वी पर चढ़ा और उन Rikhesars से पहले दिखाई दिया. भगवान विष्णु ने उन से पूछा कि अगर वे कुछ समय के लिए उसकी गाय की देखभाल, लेकिन भगवान उन्हें अपने दूध पीते हैं के रूप में ज्यादा के रूप में वे चाहते थे की अनुमति होगी. हर दिन Rikhesars कि रहस्यमय गाय से स्वादिष्ट दूध पिया. एक दिन उन्होंने सोचा कि इसकी दूध इतना स्वादिष्ट है कितना स्वादिष्ट इसके मांस होगा. उस विचार से अभिभूत हैं, वे गाय कटौती और उसके मांस खा लिया. जब विष्णु कुछ दिनों के बाद लौट आए, वह अपनी गाय नहीं मिल रहा है और संदेह है कि Rikhesars खा सकता था. विष्णु उसकी गाय की मांग की लेकिन Rikhesars झूठ बोला था कि वे इसके बारे में पता नहीं था. इसी समय, गाय भागों में उनके पेट से लगता है बनाना शुरू कर दिया. यह जानने के द्वारा, विष्णु उग्र हो गया, वह Rikhesars कि वे तीन युगों के लिए जंगलों में वीरान हो जाएगा करने के शाप दिया, लेकिन फिर चौथे में युग काली उनके पाप हटा दिया जाएगा और मुक्त हो सकता है जब Matang देव का एक अवतार के रूप में आया होगा भगवान महेश की इस परंपरा में '8 लेकिन यह ज्ञात है कि कौन Rikhesars की कि समूह के बीच मेघ Rikh नहीं किया गया.? जो भी मामला हो, यह एक पौराणिक कथा है और यहां तक ​​कि पुराणों में इसे समर्थन नहीं करते. इस परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु इस तथ्य है कि Matang देव भगवान महेश (शिव) की दसवीं अवतार के रूप में माना जाता है में निहित है.



एक अन्य Meghwar परंपरा अधिक प्रासंगिक लगता है और अक्सर इस तरह है कि में recounted: 'एक निश्चित एकल Shringi (जो उसके सिर पर एक सींग हो गया था) नाम ऋषि गहरे ध्यान में व्यस्त था. सभी वर्ष वह उस हालत में बने रहे, लेकिन उसका ध्यान एक रुकावट के लिए आया था जब यह धरती पर बारिश. वह बारिश हमेशा के लिए बंद निर्धारित की. इस प्रकार वह बारह Meghs (देवताओं वर्षा की) पर कब्जा कर लिया और उन्हें अपने सींग में बंधे. ऐसा करके वह बारिश को रोकने में सफल होने और अगले वर्ष वहाँ पृथ्वी पर कोई बारिश थी. यह स्थिति गंभीर सूखे बनाया और कारण पानी की कमी से लोगों और पशुओं को मरने के लिए शुरू किया. खेती पूरी तरह से नष्ट कर दिया था. जो लोग बच देवताओं के पास गया और उन्हें कसम खाई को एकल Shringi के आतंक से अपनी जान बचाने के लिए. सभी देवी देवताओं भगवान शिव से अपील की कि मनुष्य के दुख अंत और तानाशाह के बंधन से बारह Meghs मुक्त करके उन्हें राहत मिली. भगवान शिव के अनुरोध वह एक भिक्षुक की आड़ ले ली और निम्न जाति के लोगों को जहां एक मेघ Dharu नाम के व्यक्ति साथ में उसकी पत्नी और एक बेटी के साथ रह रहा था की बस्ती में आया पर सहमत हुए. यह वही मेघ Dharu जो महान मेघ Rikh का पुत्र था. अपने पिता की तरह मेघ Dharu सच्चा और ईमानदार था. वह हमेशा सच बोला था और कुछ भी नहीं है अपने पूरे जीवन में गलत किया. मेघ Mahatamaya बताता है कि मेघ Rikh एक निश्चित परमार राजा के वंशज था. उनका पिछले नाम मेघ सिंह था, लेकिन वह सुरक्षा की मांग की और अपने देश पर हमले के बाद Dadhichi ऋषि की एकांतवासी में एक शिष्य बन गए, वह मेघ 'Rikh आगे विस्तार .9 के रूप में जाना जाने लगा मेरे फोन में देखा जा सकता है डी. थीसिस जहाँ मैं सब परंपराओं और उनके ऐतिहासिक विश्लेषण का वर्णन किया है.



शिव ने उस जगह जहां एकल Shringi ध्यान में खो गया था करने के लिए लाया. शिव मेघ Dharu कहा था कि अपने पैरों के नीचे से एक मुट्ठी धूल ले और यह एकल Shringi की सींग पर फेंक दिया. जैसे ही वह वैसा ही किया, सींग फटा और बारह Meghs बंधन से मुक्त किया गया. वे तुरन्त अपने मूल स्थान पर आकाश में लौट आए. बाद में वहाँ कोई सूखा और पृथ्वी पर पानी या भोजन की कोई कमी नहीं था '10.



रोटी बेटी, और Langoti यानी रोटी, एक बेटी और कपड़े का एक टुकड़ा जो वह तुरंत के बारे में आदमी जिनकी पहचान वह नहीं जानता था करने के लिए प्रदान की: इस तरह है कि 'भगवान शिव उसके पास से तीन बातों में पूछा लेकिन Baghvant राज्यों. होने के नाते उसकी उदारता और ईमानदारी की कृपा, भगवान शिव ने अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए केवल दिखाने के लिए कि वह अपने देवता, शिव था '11.



चौदहवें सदी ई. में राजा रा Navghan 12 जो जूनागढ़ के प्रसिद्ध राज्य शासन के रूप में एक Ginan में Barmati पंथ स्रोतों, एक परंपरा है कि 'रा Navghan उनके एक शाही के द्वारा सूचित किया गया था निशान (1235 S.-/AD?) ज्योतिषियों Barot13 कहा जाता है कि एक बारह साल के लंबे सूखे को अपने देश के दरवाजे पर खतरनाक है और वह इसके लिए तैयार रहना चाहिए. राजा भविष्यवाणी से प्रभावित था और उसके आदमियों को ले जाने के लिए नहीं किसी भी एक देश के जलाशयों से पानी का आदेश दिया. वह नियोजित वहाँ के लिए इस चेक गार्ड. एक पानी की टंकी के पास, वहाँ कम जाति के लोगों को जो महान आध्यात्मिक मार्गदर्शक श्री Mamai देव के अनुयायी थे की एक बस्ती थी. आध्यात्मिक गुरु कॉलोनी में रह गया था ताकि उनके अनुयायियों उपदेश. सुबह में, अनुयायियों से कहा कि राजा क्रम लगाया गया था कि पानी की टंकी से पानी की एक बूंद भी नहीं लेते हैं, जो की वजह से वे पवित्रता नहीं निभा सकती '14.



'Mamai देव को रा Navghan के साथ मिलने के निर्धारित और शाही ज्योतिषियों की झूठी भविष्यवाणी के आधार पर उसकी आशंकाओं को हटा दिया. रा Navghan Mamai देव के साथ संपर्क में पहले से ही था और निम्न जातियों के गुरू की चमत्कारी शक्ति से परिचित था. जब Mamai देव दरबार में पहुंचे, वह उसे एक उच्च सीट की पेशकश की और पूछा कि क्या वह कुछ कहना चाहते थे. Mamai देव ने उन्हें बताया कि पानी और भोजन जलाशयों की आपूर्ति पर उसकी अधिरोपण उचित नहीं है. उसने उसे जनता के लिए पानी और भोजन के लिए खुला है क्योंकि वहाँ कोई सूखा यह करने के बजाय सभी में है वहाँ एक भारी वर्षा हो जाएगा बुलाया. इस बार राजा शाही ज्योतिषी के प्रभाव के तहत किया गया था और लग रहा था Mamai देव भविष्यवाणी से सहमत होना जरूरी नहीं. Mamai देव महल छोड़ दिया. वह एक गांव Dhandhosan के निकट एक स्थान पर पूजा की और फिर गिरनार ऊपर पहाड़ी पर मुहिम शुरू की जहां उन्होंने कठिन प्रथाओं शुरू करने के लिए भगवान को खुश करने के जूनागढ़ पर यह वर्षा करते हैं. बहुत मधुर स्वर में, Mamai देव Ginans बोला और Meghs, बरसात के बादल बुलाया. अचानक बादलों को जूनागढ़ के ऊपर इकट्ठा करना शुरू किया और भारी बारिश से शहर की पूरी भरने लगे. बारिश करने के लिए तीन दिन के लिए गिरावट जारी रखा. राजा को डर था कि अगर Mamai देव दिव्य गीत बोले बंद नहीं होगा, बारिश गिर करने के लिए जारी रहेगा और पूरे शहर बाढ़ में जलमग्न हो जाएगा. इसलिए उसके गार्ड और गिरनार पर घुड़सवार Meghwars के साथ साथ वह करने के लिए और आध्यात्मिक गाइड की दया के लिए कॉल करने के लिए एक अंत है कि भारी बारिश लाना शुरू किया '15.



'Mamai देव तथापि बताया कि बारिश रुक जा केवल जब उसकी दाढ़ी बारिश के पानी से जलमग्न हो जाएगा. फिर, एक अपने अनुयायियों के आगे चले गए और एक बर्तन में कुछ बरसात के पानी लिया और इसके साथ अपनी दाढ़ी जलमग्न. Mamai देव इस सुंदर चाल के रूप में शर्त को पूरा किया गया था और के रूप में इसे अपने ही अनुयायी द्वारा किया गया था ताकि Mamai देव को अपने मूल स्थान पर वापस आने के Meghs का आदेश दिया और जैसे बारिश एक रोकने के लिए आया था की कृपा है. था 'यह कथन पूरे कर सकते हैं किया गया Barmati पंथ पवित्र शास्त्र के Vinti16 मेघ में पाया. पहली बार, शीर्षक Mamai खुद देव द्वारा Barmati अनुयायियों को Meghwar रूप दिया गया था.



ऊपर ऐतिहासिक घटना कहा गया है कि कैसे नाम Meghwar अस्तित्व में आया और कहा कि यह न केवल एक नाम है लेकिन Barmati पंथ के अनुयायियों के लिए एक शीर्षक है. यह भी ज्ञात है कि शीर्षक Meghwar Mamai देव के समय जो अक्सर वह अपने ही Ginans में इस्तेमाल में गढ़ा गया था.



ऊपर तीन उदाहरण हम मूल्यांकन कि मेघ Rikh और मेघ Dharu के बारे में पौराणिक कहानियों ऐतिहासिक घटना है जो श्री Mamai देव चमत्कारी घटना के साथ जुड़ा हुआ है का केवल चित्रण से हैं के रूप में उसके बारे में ऊपर ऐतिहासिक घटनाओं की एक संख्या के उल्लेख इतिहास से पुष्टि की जा सकती है. Mamai देव तेरहवीं शताब्दी ई. के दूसरी छमाही और चौदहवें AD17 सदी की पहली छमाही वह Matang (11 वीं शताब्दी ई.) देव, 18 Lurang देव की भव्य बेटा (12 वीं शताब्दी ई.) 19 और पुत्र के महान पोता था बीच में रहते थे Barmati पंथ के अनुयायियों - Matai (13 वीं शताब्दी ई.) देव 20 का वह Maheshvari Meghwars के चौथे आध्यात्मिक मार्गदर्शक था. इस प्रकार यह अब स्पष्ट है कि नाम Meghwar के रूप में पहले से Mamai देव का समय सही नहीं है से पहले कम से कम प्राचीन माना जाता. यह अलग रूप में भी धार्मिक ऐतिहासिक प्रमाणों से बल्कि स्थापित किया जाना चाहिए कि शीर्षक Meghwar Mamai देव के समय में अस्तित्व में आया हो सकता है. यह सही है, उदाहरण के लिए Ginans मेघ Vinti21, गुरू Vaso22, Punje Purkhe Vagat23 जी. कि Ginans में शब्द Meghwar अक्सर श्री धानी Matang देव का कथन के साथ प्रयोग किया गया है, आदि, लेकिन यह ध्यान रखें कि ज्यादातर इन Ginans Mamai देव द्वारा समय जिसका नाम Meghwar अस्तित्व में आया था और वह इसलिए देव के रूप में अच्छी तरह से Matang के अनुयायियों के लिए Meghwar शीर्षक इस्तेमाल में बना रहे थे में रखा जाना चाहिए.



मेघ Rikh और मेघ Dharu की पहचान को रहस्यमय होना जारी है और शायद ही हम इतिहास में अपने उद्गम के बारे में कोई सुराग मिल जब तक हम Meghwar ऐतिहासिक व्यक्तित्व जो हम से ऊपर की कोशिश की है में अपनी परंपरा को देख सकते हैं होगा. बुनकर तथा दलित बस्ती में निम्न जाति के रूप में अपने जीवन के रूप में मेघ Dharu, मेघ Rikh के पुत्र का निषेध करने के लिए उसे Matang देव या Mamai देव की निम्न जाति के अनुयायी के साथ तुलना करने में मदद करता है. जैसा कि हम जानते हैं कि बुनाई मुख्य पेशा है जिसमें Meghwar लोग सर्वोच्च डिग्री करने के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था. एक प्रख्यात मानव विज्ञानी डॉ. डोमिनिक Sila Khan24 बताते हैं कि Matang देव भी है राजस्थान में Matang Rikh रूप में तथ्य यह है कि Maheshvari Meghwars उनके आध्यात्मिक पिता के रूप में देव (दादा) Matang पर विचार करते समय Mahya vanshis25 मेघ के रूप में फोन मेघ Rikh भी Matang के सिवाय माना जाता है.



सन्दर्भ:

1.Malsi Ladha Baghvant. (1991). Matang पूरन ane Meghwar समाज नी utpati. (Matang पुराण और Meghwar समाज के मूल). Kutchh: Jatashankar Baghvant द्वारा मुद्रित. p.131. भी अप्रकाशित पांडुलिपि देखें. श्री Mamai देव. भी अप्रकाशित पांडुलिपि को देखें. श्री Mamai देव. Ginan: मेघ Vinti. सुर: Sindhoro. कुल 7 छंद. 14 वीं सदी ई. मूलतः शास्त्री भाषा में लिखा है. Ginan की इसी शीर्षक के अंतर्गत गुजराती लिपि में Kheraj Velji Thonthya द्वारा नकल की. 1957. बुक .3 नोट, p.68. Barmati पंथ के Ginans. निजी संग्रह. इसके अलावा नोट बुक .3 देखें. p.145.



2.Jeevannathji सदानंद Nathaji. (N.d.). श्री मेघ Mahatamaya: Meghwar संत Bhakto ना जीवन नहीं tunk parichaya. Narmadateerath Brighu ऋषि आश्रम Niwasi महाराज श्री जीवन जी Nathji.pp.143 158 सदानंद. यह भी शिव Sarodha ज्ञान कहा जाता है.



3.Versi आर ललन, Matang स्मृति. रामजी मांगलिया द्वारा मुद्रित. महेश Panthi साहित्य प्रकाशन. गांधीधाम (Kutchh). 2004, p1.



4.See डोमिनिक-Sila खान, रूपांतरणों और स्थानांतरण पहचान: रामदेव पीर और Ismailis राजस्थान में, 1997, मनोहर प्रकाशन कंपनी दिल्ली.



5.H.A.Rose. पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमांत के जनजाति और जातियों की एक Glosssary. निर्मल प्रकाशक और वितरक, Delhi.1997.p.148 नई.



6.R.E. Enthoven. जनजातियों और बंबई की जातियों, खंड-III.1922. बंबई सरकार. केन्द्रीय पुस्तकालय, REPT. वॉल्यूम-III, 1975, कॉस्मो प्रकाशन, दिल्ली, pp.43-52.



7.Tarikh ए आलम. लेखक, (सिंध) Sanghar, 1991, p.204 द्वारा मुद्रित.



8.ibid. Baghvant, 1991, pp.22-26.



9.ibid. Baghvant. P.14.



10.ibid. Jivannathji. n.d. pp.14-19.



11.ibid. Baghvant. P.42.



12.James बर्गेस. कच्छ और काठियावाड़, सिन्धी Adabi बोर्ड, 1991 के पुरावशेष. p.165. हैदराबाद. जेम्स बर्गेस द्वारा दिए जूनागढ़ के राजाओं के वंशवादी तालिका के अनुसार, वह रा महिपाल (1371 Sam.1421/AD II) जो Mamai देव के समय में ही अस्तित्व में हो सकता है.



13.A परंपरागत genealogist जो करने के लिए नीचे एक परिवार वंशावली और महत्वपूर्ण तथ्यों नोट रजिस्टर रखने के लिए किया.



14.ibid. Baghvant. 1991. p.122.



15.ibid. Baghvant. p.133.



16.See 1 ध्यान दें.



17.Mohan देवराज Thontya. जल्द से जल्द काल से आधुनिक कराची विश्वविद्यालय में जुलाई 2009 में डिग्री के पुरस्कार के लिए पेश की उम्र तक: पीएचडी थीसिस इतिहास एवं Meghwar की संस्कृति शीर्षक. p.177.



18.Thontya. ibid. p.180.



19.ibid. p.182.



20.ibid. p.182.



16 नोट ऊपर 21.See.



16 नोट ऊपर 22.See.



23.Unpublished पांडुलिपि. श्री Mamai देव. Ginan: Panje Purkhe जी Vagat. सुर Sindhoro. कुल 5 + छंद वेळ. 14 वीं सदी ई. मूलतः शास्त्री भाषा में लिखा है. Ginan की इसी शीर्षक के अंतर्गत गुजराती लिपि में Kheraj Velji Thonthya द्वारा नकल की. 1957. नोट संख्या 4 बुक करें; pp.14 16-. Barmati पंथ के Ginans. निजी संग्रह.



24.See डोमिनिक-Sila खान. ibid.



25.See Jivannathji. ibid. p.94.




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