शुक्रवार, 2 जून 2017

परिवार की उत्पति महत्व और परिचय


(मन्डुसिया लेखन )//परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाहऔर दत्तक प्रथा द्वारा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।

परिचय एवं महत्व

सभी समाजों में बच्चों का जन्म और पालन पोषण परिवार में होता है। बच्चों का संस्कार करने और समाज के आचार व्यवहार में उन्हें दीक्षित करने का काम मुख्य रूप से परिवार में होता है। इसके द्वारा समाज की सांस्कृतिक विरासत एक से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है। व्यक्ति की सामाजिक मर्यादा बहुत कुछ परिवार से ही निर्धारित होती है। नर-नारी के यौन संबंध मुख्यत: परिवार के दायरे में निबद्ध होते हैं। औद्योगिक सभ्यता से उत्पन्न जनसंकुल समाजों और नगरों को यदि छोड़ दिया जाए तो व्यक्ति का परिचय मुख्यत: उसके परिवार और कुल के आधार पर होता है। संसार के विभिन्न प्रदेशों और विभिन्न कालों में यद्यपि रचना, आकार, संबंध और कार्य की दृष्टि से परिवार के अनेक भेद हैं किंतु उसके यह उपर्युक्त कार्य सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं। उसमें देश, काल, परिस्थिति और प्रथा आदि के भेद स एक या अनेक पीढ़ियों का और एक या अनेक दंपतियों अथवा पति-पत्नियों के समूहों का होना संभव है, उसके सदस्य एक पारिवारिक अनुशासन व्यवस्था के अतिरिक्त पति और पत्नी, भाई और बहन, पितामह और पौत्र, चाचा और भतीजे, सास और पुत्रवधू जैसे संबंधों तथा कर्तव्यों एवं अधिकारों से परस्पर आबद्ध, अन्य सामाजिक समूहों के संदर्भ में एक घनिष्टतम अंतरंग समूह के रूप में रहते हैं। परिवार के दायरे में स्त्री और पुरुष के बीच कार्यविभाजन भी सार्वत्रिक और सार्वकालिक है। स्त्रियों का अधिकांश समय घर में व्यतीत होता है। भोजन बनाना, बच्चों की देख रेख और घर की सफाई करना और कपड़ों की सिलाई आदि ऐसे काम हैं जो स्त्री के हिस्से में आते हैं। पुरुष बाहरी तथा अधिक श्रम के कार्य करता है, जैसे खेती, व्यापार, उद्योग, पशुचारण, शिकार और लड़ाई आदि। तब भी यह कार्यविभाजन सब समाजों में एक सा नहीं है, कोई बड़ी सामान्य सूची भी बनाना कठिन है क्योंकि कई समाजों में स्त्रियाँ भी खेती और शिकार जैसे कामों में हिस्सा लेती हैं।

उत्पत्ति

विवाह के रूपों से परिवार के रूपों का घनिष्ट संबंध है। लेविस मार्गन आदि विकासवादियों का मत है कि मानव समाज की प्रारंभिक अवस्था में विवाह प्रथा नहीं थी और पूर्ण कामाचार प्रचलित था। इसके बाद सामाजिक विकासक्रम में यूथ विवाह (कई पुरुषों और कई स्त्रियों का सामूहिक रूप से पति पत्नी होना), बहुपतित्व, बहुपत्नीत्व और एकपत्नीत्व या एकपतित्व की अवस्था आई। वस्तुत: बहुविवाह और एकपत्नीत्व की प्रथा असभ्य और सभ्य सभी समाजों में पाई जाती है। अत: यह मत साक्ष्यसंमत नहीं प्रतीत होता। मानव शिशु के पालन पोषण के लिए लंबी अवधि अपेक्षित है और पहले बच्चें की बाल्यावस्था में ही अन्य छोटे बच्चे उत्पन्न होते रहते हैं। गर्भावस्था और प्रसूतिकाल में माता की देख-रेख आवश्यक है। फिर, पशुओं की भाँति मनुष्य में रति की कोई विशेष ऋतु नहीं है। अत: संभवत: मानव समाज के प्रारंभ में या तो पूरा समुदाय या फिर पति पत्नी तथा बच्चों का समूह ही परिवार था।

मानव वैज्ञानिकों को कोई ऐसा समाज नहीं मिला जहाँ विवाह संबंध परिवार के अंदर ही होते हों, अत: पितृस्थानीय परिवार में पत्नी को और मातृस्थानीय परिवार में पति को अतिरिक्त सदस्यता प्रदान की जाती है। युगल परिवार में पति और पत्नी मिलकर अपनी पृथक् गृहस्थी स्थापित करते हैं। किंतु अधिकांश समाजों में यह परिवार बृहत्तर कौटुंबिक समूह का अंग माना जाता है और जीवन के अनेक प्रसंगों में परिवार पर बृहत्तर कौटुबिक समूह का, घनिष्ट संबध के अतिरिक्त, नियंत्रण होता है। अमरीका जैसे उद्योगप्रधान देशों में कुटुंबियों के सम्मिलित परिवार के स्थान पर युगल परिवार की बहुलता हो गई है। यद्यपि वहाँ का समाज पितृवंशीय है, फिर भी युगल परिवार वहाँ किसी एक बृहत्तर कुटुंब का अंग नहीं माना जाता। युगल परिवार में पति पत्नी और, पैदा होने पर, उनके अविवाहित बच्चे होते हैं। सम्मिलित परिवारों में इनके अतिरिक्त विवाहित बच्चे और उनकी संतान, विवाहित भाई अथवा बहन और उनके बच्चे साथ रह सकते हैं। सम्मिलित परिवार में रक्त संबंधियों की परिधि भिन्न भिन्न समाजों में भिन्न भिन्न है। भारत जैसे देश में एक सम्मिलित परिवार में साधारणत: 10-12 सदस्य होते हैं, किंतु कुछ परिवारों में सदस्यों की संख्या 50-60 या 100 तक होती है।

विवाह, वंशावली, स्वामित्व और शासनाधिकार के विभिन्न रूपों के आधार पर परिवारों के विभिन्न रूप और प्रकार हो जाते हैं। मातृस्थानीय परिवार में पति अपनी पत्नी के घर का स्थायी या अस्थायी सदस्य बनता है, जबकि पितृस्थानीय परिवार में पत्नी पति के घर जाकर रहती है। मातृस्थानीय परिवार साधारणत: मातृवंशीय और पितृस्थानीय परिवार पितृवंशीय होते हैं। बहुधा परिवार की संपत्ति का स्वामित्व पितृस्थानीय परिवार में पुरुष को और मातृस्थानीय परिवार में नारी को प्राप्त है। प्राय: संपत्ति का उत्तराधिकारी ज्येष्ठ संतान होती है। किंतु यह आवश्यक नहीं है। भारत की गारो जैसी जनजाति में सबसे छाटी लड़की ही पारिवारिक संपत्ति की स्वामिनी होती है। अनेक समाजों में परिवार के सभी स्त्री या पुरुष सदस्यों में स्वमित्व निहित होता है और कुछ में पुरुष तथा स्त्री दोनों को संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त है। परिवार का शासन अधिकांश समाजों में पुरुषों के हाथ होता है। अंतर इतना है कि पितृवंशीय परिवारों में साधारणत: पिता अथवा घर का सबसे बड़ा पुरुष और मातृवंशीय परिवारों में मामा या माता का अन्य सबसे बड़ा रक्तसंबंधी (पुरुष) घर का मुखिया होता है। अत: संसार के अधिकांश भागों में और समाजों में पुरुष की प्रधानता पाई जाती है।

संसार में दांपत्य जीवन में प्राय: एकपत्नीत्व ही सबसे अधिक प्रचलित है, यद्यपि अनेक समाजों में पुरुषों को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की भी छूट है। इसके विपरीत टोडा और खस जनजातियों में और तिब्बत के कुछ प्रदेशों में बहुपति प्रथा तथा एक प्रकार के यूथ विवाह की प्रथा है। इसी प्रकार भारत में खासी, गारो और अमरीका में होपी, हैडिया जैसी जनजातियाँ भी हैं जो मातृस्थानीय और मातृवंशीय हैं। विवाह के इन रूपों में परिवार की रचना और स्वरूप में अंतर पड़ जाता है।

आधुनिक औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप परिवार की रचना और कार्यों में गंभीर परिवर्तन परिलक्षित हुए हैं। पहले सभी समाजों में परिवार समाज की सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक संस्था थी। जीवन का अधिकांश व्यापार परिवार के माध्यम से संपन्न होता था। इन औद्योगिक समाजों में परिवार अब उत्पादन की इकाई नहीं है। बच्चों के शिक्षण का कार्य शिक्षण संस्थाओं ने लिया है। रसोई का कार्य व्यावसायिक भोजनालयों तथा जलपानगृहों में चला गया है। मनोरंजन के लिए पृथक् संगठन स्थापित हो गए हैं। सामाजिक सुरक्षा का उत्तरदायित्व राज्य के पास चला गया और धर्म के घटते हुए प्रभाव के कारण धार्मिक कृत्यों का स्थान गौण को गया है। पति और पत्नी का अधिकांश समय घर के बाहर व्यतीत होता है। फिर भी परिवार बना हुआ है और उसके द्वारा कुछ महत्वपूर्ण कार्य संपन्न होते हैं, जिन्हें परिवार का स्थायी या अवशिष्ट कार्य कहा जाता है। नवरत्न मन्डुसिया की कलम से

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/परिवार
1980 के दशक का एक मराठा परिवार 


ईंट भट्टों पर मज़दूरी करने वाली मेघवाल समाज की गरीब महिला ने अस्पताल को दान की पाँच बीघा ज़मीन


 मेघवाल समाज की महिला को सम्मानित करते हुवे 

(मन्डुसिया ब्लोग)//सीकर :-कांवट के निकटवर्ती गांव भादवाड़ी निवासी गरीब परिवार की एक मेघवाल समाज की महिला ने सरकारी अस्पताल को अपनी 5 बीघा जमीन दान कर अनूठी मिसाल कायम की है। भादवाड़ी गांव में फिलहाल पीएचसी का संचालन हो रहा है। अस्पताल का भवन काफी जर्जर है, जहां स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं नहीं हैं। खासकर महिलाओं को प्रसव के लिए दूसरे अस्पतालों में जाना पड़ता है। अव्यवस्थाओं की वजह से रात में डॉक्टर भी अस्पताल में नहीं रुकते हैं।

ईंट भट्टों पर मजदूरी करता है परिवार

55 साल की बिमला देवी मेघवाल  के चार बेटे व दो बेटियां हैं। इनके तीन बेटे दूसरे राज्यों में मार्बल का काम करते हैं। ईंट-भट्टों पर मजदूरी करने वाली बिमला फिलहाल नरेगा में काम कर रही है।
ग्रामीणों ने सराहा
गरीबों की पीड़ा को देखते हुए दलित परिवार की बिमला देवी पत्नी जगदीश प्रसाद मेघवाल ने खुद की 5 बीघा जमीन को दान करने का निर्णय लिया। और  अस्पताल प्रभारी डॉ. कृष्णकांत शर्मा को बिमला देवी ने ग्रामीणों की मौजूदगी में जमीन का दस्तावेज सौंपा। इस मौके पर ग्राम पंचायत और अस्पताल प्रशासन ने बिमला देवी व पति जगदीश प्रसाद मेघवाल को सम्मानित किया। हमे गर्व करने चाहिये हमारे मेघवाल समाज पर जिसमे की एक विश्व लेवल की सोच ने एक सरानीय काम किया है
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...