रविवार, 23 जुलाई 2017

बोरावड़ के भीम सेनिक संजय साणेल वकालत के साथ साथ समाज सेवा मे भी अव्वल

नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //बोरावड़ नागौर //जब मे आगे देखता हूँ तो मुझे समाज सेवी नज़र आते है और पीछे मुड़कर देखता हूँ तो उनकी बाते समाज सेवा की ही होती है ऐसा नजारा मुझे मिला है राजस्थान प्रांत के नागौर जिले के बोरावड़ कस्बे के मेघवाल समुदाय के युवा समाज जनसेवक संजय साणेल दोस्तो आजाद हिंदुस्तान मे दिनप्रतिदिन समाज सेवकों की इतनी बढ़ोत्तरी हो रही है जेसे पुलिस फोर्स मे सेनिकों की लेकिन यह समाज सेवा भी किसी से कम नही है क्यों की समाज सेवा भी समाज का भविष्य होता है संजय साणेल बोरावड के निवासी है इन्होने गुजरात से लॉ की डिग्री प्राप्त किया है संजय साणेल का उद्देश्य समाज सेवा के साथ साथ वकालत करनी भी है क्यों की साणेल कहते है की वकालत भी समाज मे बहूत महत्वपूर्ण है यह वकालत समाज का हिस्सा होता है जिसमे समाज मे हो रहे अत्याचार मिट सके और समाज का नाम आगे बढ़ते भी रहे सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह  है  इसी कारण संजय वकालत के साथ.साथ समाज सेवा मे भी अव्वल है की संजय साणेल  एक 22 साल का युवा है और इतनी छोटी सी उम्र मे समाज सेवा का नशा बहूत ही कम देखने को मिलता है  तथा संजय बाबा साहेब के विचारो से बहूत प्रभावित हुवे है और लोगो को बाबा साहेब के मार्ग पर चलने के लिये लोगो को प्रेरित करते रहते है इस लिये मेरे अनुसार संजय मेघवाल के विचार  बौद्धिक संपदा अधिकारों में उभरते नए आयाम मुद्दे व चुनौतियों आदि हो सकती है संजय साणेल का कहना है की कानूनविदों को वकालत का पेशा नैतिकता और समाजसेवा के रूप में अपनाना चाहिए।
वकालत केवल पेशा ही नहीं,बल्कि समाज के प्रति एक सेवा भी है। वकील के जरिए ही जरूरतमंद को न्याय मिलता है उसकी देश के संविधान के प्रति आस्था बढ़ती है। इसलिए देश हित में सभी वकील अपने दायित्व का पालन करें। ये सभी सोच रखते है संजय और इनके साथियों ने बोरावड़ मे निःशुल्क कोचिंग का भी संचालन कर रखा है जिसमे दलित और गरीबी रेखा से नीचे गुजरने वाले बच्चो को निःशुल्क शिक्षा देते है जिसमे आसपास मे बहूत चर्चाऔ के आयाम बन चुके है संजय साणेल गरीबो के हितैषी है तथा हमेशा गरीबो की सेवा करने के लिये तत्पर रहते है :-नवरत्न मन्डुसिया की कलम से 

सामंतवाद के गढ़ में लड़ता एक निडर भीमसैनिक मेघवंशी भगवानाराम

दक्षिणी पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिला मुख्यालय से महज 18 किलोमीटर दूर स्थित गाँव मांडवला के 46 वर्षीय भगवाना राम वैसे तो कमठा मजदूर है .परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने की वजह से उन्हें 1984 में  आठवीं कक्षा उतीर्ण करने के बाद पढाई छोड़ कर काम करने जाना पड़ा. तब से अब तक वे मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं आजकल उन्होंने राजमिस्त्री के काम में ही छोटे मोटे ठेके लेना शुरू कर दिए है, जिससे उन्हें परिवार चलने लायक आमदनी हो जाती है. कहने का मतलब सिर्फ यह है कि भगवाना राम अत्यंत साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं मगर बाबा साहब के मिशन को समझ कर काम असाधारण करते हैं. सबसे खास बात यह है कि आजकल वे सामंतवाद को सीधे सीधे चुनौती दे रहे हैं.
भगवाना राम वर्ष 2005 में बसपा नेता धर्मवीर अशोक के संपर्क में आये तो बाबा साहेब के मिशन के बारे में जानने का मौका मिला, फिर उन्होंने बामसेफ के कुछ कैडर लिये. इससे उन्हें समझ में आया कि दलित समुदाय का भला डॉ. अम्बेडकर को अपनाने से ही होगा. जल्द ही उनमें  बाबा साहब के विचारों को ज्यादा से ज्यादा जानने का जुनून पैदा हो गया. भगवाना राम ने बाबा साहब के सारे वोल्यूम ख़रीदे तथा उनको पढ़ कर ही माने. इतना ही नहीं बल्कि उन्हें जहाँ से भी बाबा साहब से सम्बंधित साहित्य मिला, उसे लिया और पढ़ डाला. वे बड़े ही गर्व से बताते हैं कि अब उनके पास गाँव में बाबा साहब की विचारधारा के साहित्य की एक छोटी सी लाईब्रेरी हो गई है.
वर्ष 2011 में उनकी बेटी विद्या कुमारी को 12 वीं पास करने के बाद जब गवर्नमेंट कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाया तो उन्होंने उसे कम्प्युटर साईंस पढ़ने एक निजी कॉलेज में प्रवेश दिला दिया. बेटी के लिए घर पर एक कम्प्यूटर भी ले आये और इंटरनेट के लिए डाटा कार्ड भी ले आये. इस तरह इस अत्यंत साधारण  पृष्ठभूमि के दलित परिवार तक इंटरनेट की पंहुच हो गई. भगवाना राम सुबह शाम अपनी बेटी के साथ बैठ कर कम्प्यूटर सीखने लगे, नेट चलाने लगे. यहीं उनकी मुलाकात सोशल मीडिया के उस आभासी संसार से हुई, जहां असीम संभावनाएं व्याप्त थी. उन्हें लगा कि वे बाबा साहब के मिशन की बातें इसके जरिये फैला सकते हैं. उन्होंने ऑरकुट पर अपना खाता खोला, मगर ज्यादा लोग उधर नहीं मिल पाए. फिर वे फेसबुक पर आये, यहाँ उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली. हौंसला बढा. इतने में बेटी ग्रेजुएट हो गई. बेटी ने मांडवला गांव में ही ई-मित्र का सेंटर ले लिया.
अब तो भगवाना राम के लिए नेट पर काम करना और भी सरल हो गया. वे और अधिक सक्रिय हो गए और फिर आया व्हाट्सअप. उसमें भी ग्रुप बनाने की सुविधा. भगवाना राम तथा उनके जैसे लाखों दलित बहुजन युवाओं के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर बन गया. वे लग गए बाबा के मिशन को आगे बढ़ाने में. बाबा साहेब की यह साईबर आर्मी आज भी देश भऱ में लगी हुयी है. ये लोग सोशल मीडिया पर मनुवादी तत्वों की तरह चुटकुले बाज़ी में अपना वक़्त जाया नहीं करते बल्कि विचारधारा की बातों को फ़ैलाने में अपना डाटा खर्चते है. इस तरह भारत में एक मौन मगर अत्यंत प्रभावी इन्टरनेट अम्बेडकरी क्रांति आकार ले रही है. भगवाना राम भी इस क्रांति का एक हिस्सा है, वे दिन भर कमठे पर कड़ी मेहनत करते हैं और शाम के वक़्त लग जाते है बुद्ध, फुले, कबीर, अम्बेडकर तथा कांशीराम के विचारों का प्रचार प्रसार करने में.
महज 8 वीं पास यह निर्माण श्रमिक आज एक ब्लोगर भी है और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट भी. लेकिन सिर्फ इन्टरनेट वीर नहीं कि एक पोस्ट डाल कर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्ति पा ली, बल्कि संघर्ष के मोर्चे पर भी खड़े रहने की कला उन्होंने अपने में विकसित की है. सोशल मीडिया से लेकर सडकों तक होने वाले संघर्ष में आगेवान की भूमिका निभाने का प्रयास भगवाना राम कर रहे हैं. उन्होंने कुछ सुधार अपने गाँव, अपने समुदाय तथा अपने घर से करने की शुरुआत की है.

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...