सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

भँवर मेघवंशी ने किया अपना देहदान

एक जरुरी फैसला - देहदान का !


मैं जो भी हूँ ,आप सबके प्यार ,स्नेह और मार्गदर्शन की वजह से हूँ। इसलिए आप सबका खूब खूब धन्यवाद ,साधुवाद,आभार ।

आज(25 फरवरी 2017) को  42 साल पूरे हुए ,43 वा  प्रारम्भ हुआ। हालाँकि यह दिन भी और दिनों जैसा ही है। अलग कुछ भी नहीं । लेकिन कई वर्षों की एक इच्छा को आज पूरा होते देख रहा हूँ । एक जरुरी फैसला जो कि कुछ वर्षों से लंबित था ,वह ले पाने का सुकून महसूस रहा हूँ ।

कई बरसों से देह दान की इच्छा रही ,वह अब जा कर साथी कमल टाँक एवं ललित दार्शनिक के सहयोग से पूरी हुई। मैं हृदय से आभारी हूँ कमल जी और ललित जी का कि उनकी मदद से यह महत्वपूर्ण कार्य हो सका। आभारी हूँ अपने परिजनों का भी कि उन्होंने सहमति दी।

कई सालों से मेरा यह सोच रहा है कि आखिरी सांस तक जमकर देश और समाज के लिए काम किया जाये और जब मौत आ जाये तो उसके बाद इस देह का उपयोग मेडिकल छात्रों के शोध व अध्ययन के लिए हो ।

मैं इस मौके पर कहना चाहता हूँ कि मेरी स्वाभाविक मौत हो या अस्वाभाविक ,घर पर हो या सड़क पर अथवा आंदोलन या अभियान में । मौत के तुरंत बाद बिना कोई रीति रिवाज किये शांतिपूर्ण ढंग से देह को एस एम एस मेडिकल कॉलेज ,जयपुर को दे दिया जाये।

अपनी देह को जलाने या दफनाने के काम के  बजाय मैं यही पसंद करूँगा कि वह मेडिकल विज्ञान के लिए काम आये ।अगर कुछ अंग जरूरतमंदों के लिए उपयोगी हो तो उन्हें भी काम में ले लिया जाये।

मैं किसी प्रकार का अंतिम संस्कार नहीं चाहता । कोई तीसरा या उठावना नहीं चाहता और ना ही 12 दिन तक बैठ कर शोक मनाने के निठल्ले काम से मेरी सहमति है। किसी तरह की शोक सभा नहीं की जानी चाहिए :, मृत्युभोज और गंगा जल ,पिंडदान तथा तर्पण और नदी नाले में ले जा कर अस्थियों के विसर्जन जैसी अवैज्ञानिक चीजे तो कतई नहीं की जाये,क्योकि इनमें मेरा कोई यकीन  नहीं है।

आत्मा की शांति ,परमात्मा की प्राप्ति ,स्वर्ग- नरक तथा पुनर्जन्म जैसे खोखले शब्दों से मैं स्वयं को दूर करता हूँ।मैं नहीं चाहता कि मेरे विदा होने के बाद किसी तरह की स्मृति बाकी रहे ,किसी समाधि ,किसी मूर्ति या किसी चित्र की कोई आवश्यकता नहीं है।

अगर आप मुझसे प्यार करते है तो मेरे मरने के बाद नहीं ,मेरे जीते जी साथ जुड़े ,सहयोग करें और वंचितों ,पीड़ितों ,दलितों ,दमितों के लिए न्याय और समानता पर आधारित समाज रचना के अभियान में साथ चलें ।

सब कुछ इस लोक में कीजिये ,परलोक में मेरा विश्वास नहीं है ।सब कुछ जीते जी ,अभी और यहीं ,बाद मरने के कुछ भी मान्य नहीं होगा।


                       भँवर मेघवंशी जी लब्ज  

नवरत्न मन्डुसिया

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