शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

लोक संचार को जीवंत रखे हैं संत कामड


उदयपुर, लोकजीवन में कई जातियां हजारों वर्षों से अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। उनमें कामड संत एक जाति के रूप में राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे प्रांतों में लोक में धर्म शिक्षण के साथ-साथ अध्यात्म की भावधारा का प्रसार कर रही है और यह क्रम ऐतिहासिक तौर पर पिछले एक हजार वर्षों से प्रमाणित हैं। इनकी एक धारा तेराताली लोकनृत्य के कारण पूरे विश्व में पहचान लिए हुए है।
उक्त विचार लोककलाविद् डॉ. महेंद्र भानावत ने मंगलवार को यहां संप्रति संस्थान की ओर से आयोजित डॉ. चंपालाल कामड के शोधग्रन्थ ‘कामड संत-समुदाय’ के लोकार्पण अवसर पर व्यक्ति किए। उन्होंने कहा कि आज भी लोकसाहित्य अध्ययन की दृष्टि से उपेक्षित ही अधिक है, इस पर शीघ्र और स्तरीय कार्य होना चाहिए अन्यथा यह शीघ्र ही लुप्त हो जाएगा और इसके प्रमाण तक नहीं मिलेंगे। कामड संत समुदाय का अध्ययन समग्र समुदाय का शोध अध्ययन है और इसकी हर विधा पर गंभीर शोध हुआ है, यह बधाई योग्य कार्य है।
बीएसएनएल में वेलफेयर एसोसिएशन के जिला सचिव ओमप्रकाश आर्य ने कहा कि हमें नई पीढी को लोक साहित्य और लोक परंपराओं के बचाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हीरालाल बलाई ने लोक साहित्य को जन-जन का साहित्य बताया और राजस्थान को इस दृष्टि से समृद्ध कहा।
इस अवसर पर रचनाकार डॉ. चंपादास कामड ने ग्रंथ के प्रणयन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि आज कितना ही दूरसंचार का दौर हो किंतु यह समुदाय लोक संचार माध्यमों से न केवल जुडा है बल्कि उनको आज तक जीवंत भी बनाए हुए है। यह अध्ययन मेवाड के उन सैकडों गांवों में बसे कामड लोगों पर आधारित है जो कला के धारक हैं और शैव, शाक्त, वैष्णवी परंपराओं सहित निर्गुणी परंपराओं के पोषक है। आज कामडों की परंपरा लुप्त होने को है और उसे बचाया जाना अति आवश्यक है। साहित्यसेवी राजेंद्र पानेरी ने पुस्तक के प्रकाशन उद्देश्यों की जानकारी दी। संचालन डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ ने किया। धन्यवाद संप्रति के महासचिव डॉ. तुक्तक भानावत ने ज्ञापित किया।
Udaipur, Lokjivn many species have survived for thousands of years.They Teratali a stream of folk around the world have been identified.
Dr. Mahendra Banawat Lokklavid the idea present here on Tuesday organized by the Institute of Dr. Chanpalal Kamd Sodgranth 'Kamd Saint - Community "on the occasion of the release that person.Saint Kamd research community and its study of the overall community is serious research on every genre, this work deserves congratulations.
BSNL district secretary of the Welfare Association Om Prakash Arya said that the new generation of folk literature and folk traditions should be encouraged to save. Hiralal Balai folklore of the public - the public literature and Rajasthan, said the rich.
Hundreds of them settled in villages of Mewar Kamd This study is based on people who are holders of Arts and Shaiva, Shakta, Vaishnavi Nirguni traditions, including traditions, is nutritious. Kamdon today the tradition is disappearing and there must be saved. The objectives of the publication of the book Sahitysevi Rajendra Paneri. Operations Dr. Krishna 'Firefly' did. Currently the Secretary General gave vote of thanks to Dr. limerick Banawat.

लोक कलाकारों ने समा बांधा


नई दिल्ली, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर एवं बाल भवन बोर्ड, दीव के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पहला तटीय पर्व “बीच फेस्टीवल“ का दीव में समापन हुआ।

29 से 31 अक्टूबर तक चले इस उत्सव को दीव के मुक्ताकाशी रंगमंच की दीर्घा में बैठे दर्शकों ने एक ओर क्षितिज को छूते समुद्र के दर्शन किए वहीं भारत की सांस्कृतिक विरासत की गहराई, विविधता एवं व्यापकता के दर्शन किए। बीच फेस्टीवल की परिकल्पना बाल भवन बोर्ड, दीव के निदेशक प्रेमजीत बारिया ने की थी। मंच परिकल्पना एवं प्रस्तुति पश्चिम क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर के कार्यक्रम अधिकारी विलास जानवे ने की थी।

“बीच फेस्टीवल“ में उदयपुर (राजस्थान) के “तेरा ताल“ दर्शनीय नृत्य ने खासा प्रभाव छोडा। “तेरा ताल“ कामड समुदाय की महिलाओं द्वारा बाबा रामदेव की आराधना में किए जाने वाले इस विशेष नृत्य को बैठकर किया जाता है। चौतारे की धुन और बाबा रामसा पीर के भजनों पर ढोलक की ताल पर महिलाएं अपने शरीर पर बांधे हुए १३ मंजिरों को बारी-बारी से दक्षतापूर्वक बजाते हुए अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती हैं। गोगुंदा-उदयपुर से आई निर्मला कामड के दल ने तेरा ताल नृत्य पर वाहवाही लूटी।


कार्यक्रम में जामनगर-गुजरात से आए जे.सी. जाडेजा के दल ने लास्य से भरपूर “मिश्ररास“ प्रस्तुत किया, जिसमें हर बाला अपने आपको गोपी तथा हर युवा अपने आपको कृष्ण का सखा समझता है। इसी दल ने बाद मेंडांडिया-रास भी प्रस्तुत कर दर्शकों में ऊर्जा का संचार किया। गोवा से आए महेन्द्र गावकर के दल की महिला कलाकारों ने अपने सिर पर पीतल की समई (प्रज्जवलित दीप स्तंभ) को संतुलित करते हुए नयनाभिराम सामुहिक नृत्य का प्रदर्शन किया। इसी दल ने गोवा के प्रसिद्ध नृत्य “देखणी“ से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। हिन्दी और पाश्चात्य संस्कृति के सुरीले संगम को बताने वाले इस नृत्य के मधुर गीत को दर्शक बाद में भी गुनगुनाते देखे गए। भारत के पूर्वी तट बंगाल की खाडी पर बसे पुरी से आए बाल नर्तकों ने “गोटीपुआ“ नृत्य में अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन किया। चंद्रशेखर गोटीपुआ कलासंसद के गुरू सत्यप्रिय पलई के निर्देशन में इन बाल कलाकारों ने प्रथम प्रस्तुति“दशावतार“ में भगवान विष्णु के दस अवतारों को शारीरिक एवं चेहरे के उत्कृष्ट भावों द्वारा दर्शकों को खासा प्रभावित किया। इन्हीं बच्चों ने “बंधा नृत्य“ द्वारा सामुहिक योगाभ्यास से ओतप्रोत विभिन्न मुद्राओं और कठिनतम शारीरिक भंगिमाओं से दर्शक समुदाय को हतप्रभ कर दिया। असम के कामरूप जिले से आए युवा कलाकारों ने जयदेव डेका के निर्देशन में असम का सदाबहार नृत्य “बिहू“ प्रस्तुत कर दर्शकों को साथ में झूमने के लिए मजबूर कर दिया। नव वर्ष के अवसर पर किये जाने वाले इस पारंपरिक नृत्य में युवकों ने जहां ढोल, पेंपां, गगना और ताल के साथ झूमते हुए प्रेमगीत गाए वहीं युवतियों ने अपने लास्यपूर्ण नृत्य से प्रकृति और पुरूष के प्रेम को बखूबी से प्रदर्शित किया।

बाल भवन बोर्ड, दीव के अधीनस्थ बाल भवन केन्द्र, वणांकबारा के बच्चों ने “जहां डाल-डाल पर सोने की चिडया....“ गीत पर समूह नृत्य प्रस्तुत किया वहीं बाल भवन केन्द्र, घोघला के बच्चों ने “जय हो“ गीत पर समूह नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों की प्रशंसा बटोरी।

कार्यक्रम का महत्वपूर्ण पक्ष “संस्कृति संगम“ रहा, जिसमें असम और गुजरात के मिश्रित ढोल वादन पर न केवल सभी कलाकारों ने बल्कि दर्शकों ने भी झूमकर नृत्य किया। समूचे मंच पर रंग-बिरंगे परिधानों में नाचते हुए कलाकारों ने अनेकता में एकता की परिकल्पना को सार्थक रूप दिया और हर दर्शक को अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व करने का अवसर दिया। इस कार्यक्रम को देखने हेतु दीव के नागरिकों के अलावा भारी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक भी पधारे थे। प्रारंभिक उद्घोषणा दीव की श्रीमती प्रतिभा स्मार्ट ने की।

भारत के पश्चिम तट से जुडे संघीय क्षेत्रा दीव की ऐतिहासिक भूमि, आई.एन.एस. खुकरी स्मारक स्थल के इस भाग को चक्रतीर्थ भी कहते हैं। लोकमान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने जिस सुदर्शन चक्र से जलंधर राक्षस का संहार किया था, वह चक्र यहीं रखा गया था और इसी कारण इस क्षेत्रा का नाम पडा “चक्रतीर्थ“।

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...