गुरुवार, 4 मई 2017

सामाजिक जीवन मे रिश्ते के महत्व के दो पहलू :- नवरत्न मन्डुसिया

सामाजिक जीवन में सामान्यतः रिश्तों को दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक रिश्ता वह जो खून से बंधा होता है, दूसरा रिश्ता जो हम स्वयं गढ़ते हैं। भारतीय परिवेश में खून के रिश्तों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है और माना जाता है कि खून का रिश्ता ही सही मायने में जीवन का जुड़ाव होता है, और इससे बढ़कर रिश्ता होता है वैवाहिक संबंधों का।
इससे इतर जो रिश्ते होते हैं वे न तो खून से बंधे होते हैं और न उनमें सामाजिक दायित्वों का ही कोई बंधन होता है। दरअसल सही रिश्ते वे ही होते हैं, जो सारे बंधनों से मुक्त होकर सिर्फ दिल से बंधे होते हैं। इस बात से कई लोगों को एतराज भी हो सकता है, पर सच यही है कि खून के रिश्ते तो इत्तफाक से बनते हैं।
एक परिवार के सदस्यों का आपस में रिश्ता सिर्फ इसलिए होता है कि उन्हें इत्तफाक ने मिलाया होता है। कुछ हद तक यही बात सामाजिक परिवेश में तय होने वाले वैवाहिक संबंधों पर भी लागू होती है। सिर्फ एक नजर में एक-दूसरे को देखकर वैवाहिक संबंधों की स्वीकृति दे देना और फिर जीवनभर उस रिश्ते को निभाना वास्तव में रिश्तों में बंधना नहीं बल्कि समझौता है।
असल रिश्ता तो वह है, जो हम अपनी पूरी समझ-बूझ और परख के साथ तथा अपनी पसंद से बनाते हैं। फिर चाहे वह रिश्ता दो दोस्तों के बीच का हो या फिर प्रेमियों का या फिर पड़ोसियों के बीच का पारिवारिक-सा रिश्ता ही क्यों न हो। सभी में यह बात 'कॉमन' है। कोई भी रिश्ता इत्तफाक या सामाजिक दबाव में नहीं बना।
अपने पूरे जीवन में हम कई लोगों से मिलते हैं। कुछ हमें अच्छे लगते हैं तो कुछ को हम पहली नजर में खारिज कर देते हैं। संपर्क में आने वाले कुछ लोगों से बार-बार मिलने और बात करने की इच्छा होती है और यही आकर्षण दोस्ती या प्रेम की मजबूत गाँठ बन जाता है। ठीक यही बात समीप रहने वाले दो परिवारों के बीच भी होती है। बहुत सारे लोगों के बीच रहकर भी ऐसे लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही होते हैं, जिन्हें हम अपने बहुत नजदीक मानते हैं।
उन्हें अपने दिल की बात बताने का भी मन करता है और उनके दिल की बात सुनने की भी इच्छा होती है। अक्सर देखा जाता है कि स्कूल, कॉलेज या दफ्तरों में कई जोड़ी दोस्त होते हैं। सभी एक साथ रोज मिलते तो जरूर हैं पर सभी को जब भी बातचीत का अवसर मिलता है, वे गुटों में बंट जाते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यही है कि जो जिसके साथ निकटता महसूस करता है, वह उसी के साथ समय भी गुजारना चाहता है।
रिश्तों को जीवन की सफलता और असफलता के मामले में भी एक बड़ा मानक माना गया है। कब, कौन-सा रिश्ता या कौन-सी दोस्ती व्यक्ति को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा दे, कहा नहीं जा सकता लेकिन यदि परिस्थितियां अनुकूल न हों तो इसका उलट भी हो सकता है। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जब किसी साथी की मदद से व्यक्ति शिखर पर पहुंच गया, पर सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर है कि आप अपने रिश्ते के प्रति कितने गंभीर हैं।
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से

नवरत्न मन्डुसिया

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