बुधवार, 13 नवंबर 2013

धारुजी गोत्र पंवार (अग्नि वंश )मेघवंशी थे !

धारुजी गोत्र पंवार (अग्नि वंश )मेघवंशी थे !ये राव जोधाजी राठोड (जोधपुर संस्थापक )के पड्पोत्र तथा गांगाजी के पुत्र रावल मालदेव के समय मोजूद थे !मालदेवजी की स्त्री रूपादे और धारुजी ग्राम दुधवा (मारवाड़ )के रहने वाले थे ,दोनों बचपन से ही एक साथ रहते थे ,बाद में उगमसिंह भाटी से दीक्षा लेकर दोनों सत्संग में प्रवृत हो गये !रूपादे का विवाह जब मालदेव जी के साथ हुआ तब धारुजी को उनके दहेज़ में देकर रूपादे के साथ गढ़ मेंहवा (मालाणी)में भेज दिया था तब से वे वही रहने लगे !धारु जी साधू संतो की सत्संग में अधिक रहा करते थे और समय समय पर इनके यंहा भी संतो का समागम (सत्संग )होता रहता था ,बाई रूपादे भी कभी कभी चोरी चुपके धारुजी के घर सत्संग में आ जाया करती थी !सत्संगी होने की वजह से इनमे परस्पर किसी प्रकार का भेद-भाव जातीयता के आधार पर नही था !धारुजी अपना जातीय व्यवसाय (वस्त्र बुनने का कार्य करके अपनी जीविका निर्वाह करते )और साधू संतो की सेवा करते थे !

मुग़ल काल में बहती उगमसिंह ,धारुजी ,रूपादे ओर तत्कालीन अन्य साधू संत भी सत्संग ओर संत मत (कुंडा पंथ ) के द्वारा सेकड़ो दलित जातियों को शुद्ध तथा संगठन का हिन्दू धर्म की बड़ी भारी से सेवा की थी !
एक समय भाटी उगमसिंह धारुजी के घर आये ओर सत्संग करने का निश्चय करके समस्त सत्संगी तथा संतजनों को धारुजी द्वारा निमंत्रण दिया गया ,बाई रूपादे को भी निमंत्रण दिया गया !शाम को सत्संग शुरू हुआ ,सर्व संतजन उपस्थित हो गये ,मगर रूपादे की अनु उपस्थिती सबको खटक रही थी !बाई रूपा बड़ी कठिनता से मालदेवजी से छिपकर कई मुसीबतों का सामना करती हुई धारुजी के घर पहुंची !इधर किशी प्रकार से मालदेवजी की दूसरी पत्नी चंद्रावल की दासी ने उसे देख लिया ओर तत्काल रावल मालदेव को जगाया ओर रूपा दे के वंहा जाने की खबर दी तथा उनका क्रोध बढ़ने के लिए दो -चार चुभने वाली बाते बताई !रावल मालदेव उसी समय धारुजी के घर आये तो आगे सत्संग में रूपादे कोटवाली (सेवा टहल )करते देखकर आग बबूला हो गए लेकिन साधू संतो के पराक्रम से डरकर वंहा तो कुछ नही कह सके किन्तु वापिस आकर दरवाजे को रोक कर बैठ गये !रूपादे को मालदेवजी के आने खबर लग गई थी ,उसने विदा होते समय सब संतो से प्राथना की कि मेरा यह अंतिम प्रणाम है,क्योकि मालदेवजी स्वय यंहा आकर देख कर गये हैं ,अत:वे अब मुझे कदापि जीवित नही छोडेगे !यह सुनकर सबको बड़ा दुःख हुआ ओर उनकी रक्षा के लिए भगवान श्री रामदेवजी से प्रार्थना करने लगे !जब ज्यो ही किले के दरवाजे पर पंहुची ,तयो ही मालदेवजी ने उसे रोक कर तलवार निकाल शीश काटने उधत हो गये ,किन्तु तत्काल भगवान श्री रामदेवजी ने गुप्त रूप से तलवार को ऊपर ही रोक दिया !यह देखकर मालदेवजी बड़े शंकित हुए ,फिर भी उन्होंने रूपादे से पुछा कि रात्रि में तू कंहा गई थी ?रूपा दे ने जवाब दिया कि बाग में फुल लेन गई थी !मालदेवजी ने कहा कि यंहा नजदीक में कोई बाग ही नही हैं ,झूठ क्यों बोलती हो मैने तुझे धारु मेघवाल के घर देखा हैं ,फिर भी तू अगर बाग के लिए कहती हैं तो मुझे फुल बता !रूपादे ने बह्ग्वान से प्रार्थना कि हे प्रभु जिस प्रकार आपने द्रोपदी कि लाज रखी थी उसी प्रकार आज मेरी भी रक्षा करे !यह कहकर ज्यो ही उसने थाल को निकालकर दिखाया तो तो क्या देखते हैं की रूपादे सत्संग से जो प्रसाद ली थी उसके फुल बन गये हैं !रूपादे की इस चमत्कृत शक्ति को देख कर स्वयं मालदेव जी उसके पैरो में गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगे !रूपादे ने कंहा की यह सब भाई धारू मेघवाल की कृपा हैं !वही तुम्हे माफ़ कर सकता हैं !रावल मॉलदेवजी बड़े आतुर होकर रूपा दे से प्राथना करने लगे की मझे धारुजी के घर इसी समय ले चलो और मुझे क्षमा करके तुम्हारी सत्संग में ले लो !रूपादे मॉलदेवजी को साथ लेकर उसी समय धारुजी के घर आई और सब संतो ने उन्हें क्षमा करके दुसरे दिन किले में सत्संग नियत कर सर्व संत महात्माओ को धारुजी सहित वह बुलाकर सवयम मॉलदेवजी ने दीक्षा ली और जीवन पर्यन्त सत्संग में लीं रहकर अंत में धारुजी के बताये मार्ग पर चलकर अपने योगबल के द्वारा विक्रम संवत 1619 इ., सन 1562 अंतर्ध्यान हो गये !कहते हैं की ये सात जीव एक ही साथ योगबल द्वारा अंतर्ध्यान हुए थे !इनके नाम ये हैं १ रावल मॉलदेवजी २ बाई रूपादे ३ धारूजी ४ माता देवू (धारू जी के बड़े भाई की स्त्री )५ एलू ६ दलु कुम्हार ७ नाम देव छिपा!इनमे धारुजी सबमे मुख्य मने जाते थे और अन्यसब इन्हें गुरु के सामान मानकर इनके बताये मार्ग पर चलते थे !

इनका स्थान तलवाडा (मालाणी) बालोतरा जिला बाड़मेर राजस्थान में लूनी नदी के किनारे ,रावल मल्लिनाथजी के मंदिर के पास हैं !धारुजी भी इस मेघवंश जाती के प्रशिद्ध भक्त थे !इस मेघवंश जाती में " मालाणी"धुणी(जो चार धुणीयो ,में समसवाणी ,रामनिवाणी,हरचंदवाणी और चार मालाणी इन्ही से मानी जाती हैं !

शेर नर राजाराम मेघवाल भी जोधपुर नरेशो के हित के लिए बलिदान हो गए थ

शेर नर राजाराम मेघवाल भी जोधपुर नरेशो के हित के लिए बलिदान हो गए थे !मोर की पुंछ के आकर !वाले जोधपुर किले की नीव जब सिंध के ब्राह्मण ज्योतिषी गनपत ने राव जोधाजी के हाथ से वि ० स० 1516 में रखवाई गई तब उस नीव में मेघवंशी राजाराम जेठ सुदी 11 शनिवार (इ ० सन 1459 दिनाक 12 मई ) को जीवित चुने गए क्यों की राजपूतो में यह एक विश्वास चला आ रहा था की यदि किले की नीव में कोई जीवित पुरुष गाडा जाये तो वह किला उनके बनाने वालो के अधिकार में सदा अभय रहेगा !इसी विचार से किले की नीव में राजाराम (राजिया )गोत्र कडेला मेघवंशी को जीवित गाडा गया था ! उसके उअपर खजाना और नक्कार खाने की इमारते बनी हुई हैं ,इनके साथ गोरा बाई सती हुई थी !राजिया के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड ने उनके वंशजो को जोधपुर किले पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी जो राज बाग के नाम से प्रसिद्ध हैं !और होली के त्यौहार पर मेघवालो की गेर को किले में गाजे बजे साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाती को नही हैं !परन्तु उस वीर के आदर्श बलिदान के सामने यह रियायते कुछ भी नही हैं !

कंही -कंही राजिया और कालिया दो पुरुषो को नीव में जीवित गाड़े जाने का वर्तान्त भी लिखा मिलता हैं जो दोनों ही मेघवाल जाती के थे !

इस अपूर्व त्याग के कारण राज्य की और से प्रकाशित हुई कई हिंदी और अंग्रेजी पुस्तको में राजिया भाम्बी के नाम का उल्लेख श्रदा के साथ किया हैं !


आज से लगभग 135 वर्ष पहले इ ० सन 1874 (विक्रम संवत 1931 )में जोधपुर राज्य ने "THI JODHPUR FORT "नाम की अंग्रेजी पुस्तिका प्रकाशित की थी ,उनके पेज 1 पंक्ति 12 में अमर शहीद राजाराम मेघवंशी (भाम्बी )के आदर्श त्याग के विषय में यह लिखा हैं :-
-------------"its (Jodhpur )foundation was laid in 1459 A.D. when a man "bhambi rajiya "was interred alive in tha foundeto invoke good fortuneon its defenders and to ensurs its imprognabilityt "............"(vide "tha jodhpur for"page 1 line 12 frist edition ,1874 A.D.published by jodhpur state )
अर्थात ........इस किले (जोधपुर गढ़ ) की नीव इ ० सन 1459 (विक्रम संवत 1516 )में रखी थी तब एक राजिया भाम्बी (मेघवंशी)इस किले के स्थायित्व के लिए जीवित इसकी नीव में चुना गया )
वि ०स ० 1946 फाल्गुन सुदी 3 शनिवार( इ ०सन 1890 तारीख 22 फरवरी )को इंग्लेंड के ,राजकुमार प्रिंस एल्बर्ट विकटर ऑफ़ वेल्स ,भारत यात्रा करते जोधपुर तब स्टेट की और से "गाइड टु जोधपुर "(जोधपुर पथ प्रदर्शक )नाम की अंग्रेजी पुस्तक प्रकाशित हुई !उसके पृष्ठ 7 में राजाराम के लिए छपा :-.......................................
"......."tha fort (jodhpur)...............when tha foundation was laid ,aman rajiya bhambi by name ,was interred alive ,as an ausppicious omen,in a corner over which were built two apartments now occupied by tha treasury and tha nakar khana (country band) .in consideration of this sacrfice ,rao jodha bestowed a piece of land "raj bai bag"near sursagar,on tha desendants of tha deceased and exempted them from "begar"or forced lebour .........("vide guide to jodhpur 1890 A<D<page 7 published by tha order of H.H. tha maharaja jaswant singh G.C.S.I.,and maharaj dhiraj col .sir pratap singh K.C.S.I.&c. jodhpur on tha auspicious of tha visit his royal highness tha prince albert victor of wales. 1890 A.D. page 7)


अर्थात .................जब जोधपुर दुर्ग की नीव (इ ० सन 1459 में )रखी गई तब शुभ सगुन तथा उसके स्थायित्व के लिए राजिया भाम्बी नाम का पुरुष उसमे जिन्दा चुना गया !जन्हा पर खजाना और नक्कारखाना की इमारते बनी हुई हैं !इस क़ुरबानी के लिए राव जोधा ने उसके वंशधरो को कुछ भूमि सूरसागर (जोधपुर )के पास "राजबाग"नाम से इनायत की और उन्हें नि:शुल्क सेवा से बरी कर दिया !"

इ ० सन 1900 (वि ० स ० 1957 ) में राजपुताना के सर्जन लेफ्टिनेन्ट कर्नल डाक्टर एडम्स आई ० ऍम ० एस०; ऍम ० डी ० (इत्यादी)जोधपुर ने "दी वेस्टर्न राजपुताना स्टेट "नाम का अंग्रेजी में सचित्र इतिहास लन्दन में छाप कर पुन :प्रकाशित ! उसके पृष्ठ 81 में भी राजाराम के त्याग का उल्लेख हैं !

इस तरह से तत्कालीन जोधपुरस्टेट द्वारा प्रकाशित कई पुस्तको में राजाराम मेघवाल (राजिया)के बलिदान का उल्लेख मिलता हैं !

राजाराम मेघवाल

जोधाजी का महल बनाने का विचार था मसूरिया नामक पर्वत श्रृँग पर पर जल के अभाव के कारण स्थगित किया| उसी पर्वत पर रहने वाले एक फकीर ने पंचेटिया पर्वत पर बनाने की सलाह दी जो जोधाजी को पसंद आ गई| इसके एवज मेँ फकीर ने दो शर्ते रखी जो जोधा ने स्वीकार कर ली| पहली रामदेवजी के दर्शनार्थी पहले आश्रम मेँ आए|दुसरी वर्ष मेँ दो बार राज्य की तरफ से भेँट दी जाए| मेहरानगढ जिस पर्वत पर बना है उस पर एक झरने के पास एक योगी चिडियानाथ रहता था| उसका आश्रम किले के भीतर ले लिया तो वह नाराज हो जल अभाव का श्राप देकर 9 कोस दूर पालासनी गाँव मेँ चला गया जहाँ उसकी बनी हुई हैँ| जब जोधा को यह बात पता चली तो उसे सरदार मार्केट के पास एक मठ बनाया और योगी को निमंत्रण भेजा पर उसने कुछ दिन बाद आने का वादा किया| अंत मेँ कुछ दिन वहाँ ठहरा और उसी के पास शिवलिँग स्थापित किया| योगी के कहने पर जोधा ने रोज एक रोठ बनाकर साधु सन्यासी को देता था| झरने पास जोधा ने एक कुण्ड व शिवालय बना दिया जो झरनेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुए| विक्रम संवत 1515 जयेष्ठ सुदी 8 को दो मेघवालोँ( एक राजाराम मेघवाल) को नीँव के नीचे दफनकर किले का सुदी 11 कार्यारंभ किया| किले के द्वार की स्थापना मुहुर्त के समय उपयुक्त शिला नही लाए जाने पर वहाँ के पडोसी ऊँट चराने वाले के घर से बाडे की शिला लाकर स्थापित की| उस शिला मेँ द्वार बंद करने के लिए डंडोँ के छेद थ

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...