शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

धारा 376 मे जानिए क्या सज़ा होती है


भारतीय कानून या CRPC IPC (Indian Panel Code) महिला के साथ जबरन Sex Rape या बलात्कार की गंभीर श्रेणी में गिना जाता है बलात्कार के अपराधी पर संगीन धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता व इसी के तहत सजा देने का प्रावधान है हम यहाँ पर जानेंगे के IPC 376 Dhara के बारें में और जानेगे क्या सजा हो सकती है आईपीसी की धारा 376 में Maximum सजा कितनी हो सकती है  आईपीसी की धारा 376 में मुकदमा चलाया जाता और है और यदि Crime Prove हो जाता है तो तो दोषी या अपराधी को Minimum सात साल (7 years और Maximum दस साल (10 वर्ष) की सजा के साथ with Fine का भी प्रावधान है अभी पीछे ही इसमें Amendment किया गया था जिसमे की शोषित महिला को जल्दी न्याय मिल सके इसके लिए Fast Track Court में सुनवाई की जाती है क्या पत्नी से जबरन सेक्स को भी बलात्कार की श्रेणी में गिना जाता है  यदि अमुक व्यक्ति ने महिला से बलात्कार किया है जोकी अपराधी की पत्नी है, और पत्नी की आयु 12 वर्ष से कम नहीं है (क्योंकि 18 वर्ष से कम भारत में विवाह वर्जित या कानूनी मान्यता नही है), तो आरोप सिद्ध होने पर अपराधी 2 years की Punishment हो सकती है या जुर्माना भी लगाया जा सकता है हालाँकि कई मामलों में Court Sufficiant और resonable avidence से सजा को कम कर सकती हैं अब बात हो गयी धारा 376 की लेकिन Dhara 375 Section क्या होती है? IPC की धारा 376 से खौफ खाते हैं अपराधी (ipc 376 in hindi) Rape को Defines करती है Section IPC की धारा 375, यदि अमुक पुरुष किसी महिला के साथ इच्छा के विरुद्ध सेक्स करता है, तो उसी को बलात्कार कहते हैं चाहे किसी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं लेकिन कानूनन वह बलात्कार ही कहलायेगा, हालाँकि की इस अपराध के लिए  अलग-अलग हालात और Category के हिसाब से इसे Section 375, 376, 376A, 376B, 376C, 376D के रूप में Divide किया गया है. What Say IPC Section धारा 375 कोई पुरुष किसी महिला की इच्छा विरुद्ध, उसकी सहमति के बिना, उसे धमकाकर डराकर, दिमागी रूप से कमजोर या पागल महिला को धोखा देकर उसका नकली पति बनकर और महिला को  शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं होने पर उसके साथ सम्भोग (sex ) करता है तो वह रेप ही माना जाएगा यदि महिला 16 years  से कम Age की है तो उसकी इच्छा या बिना सहमति के होने वाला सम्भोग भी बलात्कार ही माना जायेगा यदि कोई पुरुष पति अपनी 15 वर्ष से कम उम्र की wife के साथ सम्भोग करता है तो वह भी  रेप की श्रेणी में गिना जायेगा इन सभी स्थितियों में आरोपी को सजा हो सकती है हर स्थिति में लागू होता है यह कानून (Section 376 in The Indian Penal Code) Subsection (2) के अन्तर्गत बताया गया है कि कोई Investigation Officer (Police Officer) या Public Servant अपने पद और Administrative Powers और Positions का फायदा उठाकर उसकी Custody या उसकी Subordinate महिला Officer या Employee के साथ Sex करेगा, तो वह भी बलात्कार माना जाएगा  यह Law जेल, Hospitals , Government Offices, Child and Woman  सुधार गृहों पर भी लागू होता है उपरोक्त बताये दोषियों को कठोर कारावास समेत अधिकतम सजा होगी जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी

कानून की इस धारा 302 के तहत मिल सकती है सजा-ए-मौत

IPC की इस धारा के तहत मुजरिम को सजा-ए-मौत या उम्रकैद दी जाती है

हम अक्सर सुनते और पढ़ते हैं कि हत्या के मामले में अदालत ने आईपीसी यानी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत मुजरिम को हत्या का दोषी पाया है. ऐसे में दोषी को सज़ा-ए-मौत या फिर उम्रकैद की सजा दी जाती है. लेकिन धारा 302 के बारे में अभी भी काफी लोग नहीं जानते. आइए संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं कि क्या है भारतीय दण्ड संहिता यानी इंडियन पैनल कोड और उसकी धारा 302.

क्या भारतीय दण्ड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता यानी Indian Penal Code, IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा औ दण्ड का प्राविधान करती है. लेकिन यह जम्मू एवं कश्मीर और भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती है.

अंग्रेजों ने बनाई थी भारतीय दण्ड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1862 में लागू हुई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि में भी लागू कर दिया गया था.

भारतीय दंड संहिता की धारा 302
आईपीसी की धारा 302 कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है. कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है. अगर किसी पर हत्या का दोष साबित हो जाता है, तो उसे उम्रकैद या फांसी की सजा और जुर्माना हो सकता है. कत्ल के मामलों में खासतौर पर कत्ल के इरादे और उसके मकसद पर ध्यान दिया जाता है. इस तरह के मामलों में पुलिस को सबूतों के साथ ये साबित करना होता है कि कत्ल आरोपी ने किया है. आरोपी के पास कत्ल का मकसद भी था और वह कत्ल करने का इरादा भी रखता था.

कई मामलों में नहीं लगती धारा 302
हत्या के कई मामले मामलों में इस धारा को इस्तेमाल नहीं किया जाता. यह ऐसे मामले होते हैं जिनमें किसी की मौत तो होती है पर उसमें किसी का इरादतन दोष नहीं होता. ऐसे केस में धारा 302 की बजाय धारा 304 का प्रावधान है. इस धारा के तहत आने वाले मानव वध में भी दंड का प्रावधान है.

आईपीसी की धारा 299 में है मानव वध की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में अपराधिक मानव वध को परिभाषित किया गया है. अगर कोई भी आदमी किसी को मारने के इरादे से या किसी के शरीर पर ऐसी चोटें पहुंचाने के इरादे से हमला करता है जिससे उसकी मौत संभव हो, या जानबूझकर कोई ऐसा काम करे जिसकी वजह से किसी की मौत की संभावना हो, तो ऐसे मामलों में उस कार्य को करने वाला व्यक्ति आपराधिक तौर पर 'मानव वध’ का अपराध करता है.  

धारा 299 में कुछ स्पष्टीकरण

1. कोई व्यक्ति किसी विकार रोग या अंग शैथिल्य से ग्रस्त दूसरे व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुंचाता है और इस से उस व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो यह समझा जाएगा कि पहले व्यक्ति ने दूसरे की हत्या की है.

2. जिस मामले शारीरिक क्षति की वजह से किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, और अगर मारे गए व्यक्ति को उचित चिकित्सा सहायता मिलने पर बचाया जा सकता था, तो भी यह माना जाएगा कि उस व्यक्ति की हत्या की गई है.

भारतीय दंड संहिता के तहत धारा 299 के अलावा धारा 300 में भी हत्या के मामलों को परिभाषित किया गया है. जिनका विवरण अदालती कार्रवाई के दौरान मिल जाता है. लेकिन हत्या के मामलों में धारा 302 को सबसे अधिक गंभीर और मजबूत मानी जाती है. जिसके तहत दोषी को दंडित किया जाता है

धारा 201 आईपीसी - इंडियन पीनल कोड 

जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप, इस आशय से कारित करेगा कि अपराधी को वैध दंड से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है ; 
यदि अपराध मॄत्यु से दंडनीय हो--यदि वह अपराध जिसके किए जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मॄत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ; 
यदि आजीवन कारावास से दंडनीय हो--और यदि वह अपराध 3[आजीवन कारावास] से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के, कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ; 
यदि दस वर्ष से कम के कारावास से दंडनीय हो--और यदि वह अपराध ऐसे कारावास से इतनी अवधि के लिए दंडनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से उतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा । 
दृष्टांत 
क यह जानते हुए कि ख ने य की हत्या की है ख को दंड से प्रतिच्छादित करने के आशय से मॄत शरीर को छिपाने में ख की सहायता करता है । क सात वर्ष के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से, और जुर्माने से भी दंडनीय है । 

IPC में धाराओं का मतलब

Published by Navratna Mandusiya
पूरे भारतवर्ष में आय दिन कुछ न कुछ घटनाएँ होती रहती है, जैसे चोरी, किडनैपिंग, बलात्कार, गिरफ्तारी, इत्यादि जैसी घटनाएँ. हर तरह के केस में अलग अलग IPC धाराएँ होती है. जब आप कंप्लेंट करते हैं. उस कंडीशन में आपके दिए बयाँ के मुताबिक पुलिस उसमें धरा लगाकर केस रजिस्टर्ड करती है. यह पोस्ट में आपको बताना चाहते है कि कौन सी धाराएँ होती हैं और क्या आपके अधिकार है.

धारा 307 = हत्या की कोशिश
धारा 302 =हत्या का दंड
धारा 376 = बलात्कार
धारा 395 = डकैती
धारा 377= अप्राकृतिक कृत्य
धारा 396= डकैती के दौरान हत्या
धारा 120= षडयंत्र रचना
धारा 365= अपहरण
धारा 201= सबूत मिटाना
धारा 34= सामान आशय
धारा 412= छीनाझपटी
धारा 378= चोरी
धारा 141=विधिविरुद्ध जमाव
धारा 191= मिथ्यासाक्ष्य देना
धारा 300= हत्या करना
धारा 309= आत्महत्या की कोशिश
धारा 310= ठगी करना
धारा 312= गर्भपात करना
धारा 351= हमला करना
धारा 354= स्त्री लज्जाभंग
धारा 362= अपहरण
धारा 415= छल करना
धारा 445= गृहभेदंन
धारा 494= पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0
धारा 499= मानहानि
धारा 511= आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड।
हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण  हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।

तो चलिए ऐसे ही कुछ  “5 रोचक फैक्ट्स” की जानकारी आपको देते है, जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.

1.  शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती-

कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.

2. सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है-

पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.

3. कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है-

इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई  कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.

4. गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता-

मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो  उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.

5. पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता-

आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1  साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.

इन रोचक फैक्ट्स को हमने आपके लिए ढूंढ निकाला है.

ये वो रोचक फैक्ट्स है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है. हमारी कोशिश होगी कि हम आगे भी ऐसी बहोत सी रोचक बाते आपके समक्ष रखे, जो आपके जीवन में उपयोगी हो

मृत्यु भोज में जाना भी है अपराध

published by Navratna Mandusiya

मृत्यु भोज को रोकने के लिए राज. मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 पारित किया हुआ हैं। उक्त एक्ट की धारा 3 में कहा गया हैं कि कोई भी व्यक्ति राज्य में मृृत्युभोज का आयोजन नहीं करेगा न ही उसमें शामिल होगा।

दण्ड

यदि कोई व्यक्ति मृत्युभोज का आयोजन करता है या दुष्प्रेरित करता हैं या उसमें सहायता करता हैं तो उसे एक वर्ष के साधारण कारावास या एक हजार रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है। यह भी प्रावधान है कि मृत्यु भोज करने के लिए उधार धन की मांग करने पर उधार नहीं देगा। यदि इस कारण धन उधारी देने का कोई करार किया गया हैं तो ऐसा करार कानूनन लागू नहीं किया जा सकता।

स्टे करना

न्यायालय मृत्युभोज के आयोजन पर स्टे जारी कर सकता है। न्यायालय के स्टे की अवहेलना करने पर एक वर्ष तक का दण्ड दिया जा सकता हैं। मृत्युभोज की सूचना देने का कर्तव्य सरपंच, पंच, पटवारी एवं नम्बरदार पर है। यदि वे नजदीक के मजिस्ट्रेट को सूचना नहीं देते हैं तो उन्हें तीन माह तक की जेल हो सकती हैं।

सती प्रथा

सती से किसी भी विधवा को उसके मृत पति के शरीर के साथ या पति से सम्बद्ध किसी भी वस्तु, पदार्थ या चीज के साथ जीवित जलाना अभिप्रेत है। भले ही ऐसा जलना या जलाया जाना उस विधवा की इच्छा से या अन्यथा हो।

सती प्रथा को रोकने के लिए राजस्थान सरकार ने वर्ष 1987 में राजस्थान सती (निवारण) अधिनियम, 1987 बनाया है। जिसके तहत सती होने का प्रयत्न करना, सती का दुष्प्रेषण एवं सती के गौरवान्वयन के लिए किए गए कार्यों को कठोर सजा से दण्डनीय बनाया गया है। सती के मामले में सामान्य कानून से विचरित सबूत का भार मुलजिम पर ही रहता हैं। इस कानून में सती का अपराध होने या उसके गौरवान्वयन का अपराध होने से रोकने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन यथा जिला मजिस्ट्रेट को दी गई है। 

यदि सती को गौरवान्वित करते हुए कोई मंदिर भी बनाया जाता है तो उसे तुड़ाने या हटाने का आदेश भी जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है। यदि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सती संबंधी अपराध को रोकने के लिए या ऐसे किसी मंदिर इत्यादि को हटाने का आदेश दिया गया हैं और कोई व्यक्ति ऐसा आदेश नहीं मानता हैं तो ऐसा व्यक्ति सात वर्ष तक के कारावास एवं 30 हजार रुपए तक के अर्थदण्ड का प्रावधान है।

पशु बलि प्रथा

देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशु एवं पक्षियों की बलि को रोकने के लिए राज. पशु और पक्षी बलि (प्रतिषेध) अधिनियम, 1975 पारित किया गया हैं, जिसके अनुसार मन्दिर अथवा धार्मिक पूजा स्थलों में पशु और पक्षियों की बलि देना निषेधित हैं। पशु पक्षियों की बलि देने पर छ: माह तक के कारावास या जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है

कब तक हम जश्न ऐ मौत मनायेंगे

जश्न-ऐ-मौत :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से 
इंसान स्वार्थ व खाने के लालच में कितना गिरता है उसका नमूना होती है सामाजिक कुरीतियां।ऐसी ही एक पीड़ा देने वाली कुरीति है -मृत्युभोज। मानव विकास के रास्ते में यह गंदगी कैसे पनप गयी, समझ से परे है। जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर दुःख प्रकट करते हैं, इंसानी बेईमान दिमाग की करतूतें देखो कि यहाँ किसी व्यक्ति के मरने पर उसके साथी, सगे-सम्बन्धी भोज करते हैं। मिठाईयाँ खाते हैं।किसी घर में खुशी का मौका हो, तो समझ आता है कि मिठाई बनाकर, खिलाकर खुशी का इजहार करें,खुशी जाहिर करें। लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाईयाँ परोसी जायें, खाई जायें, इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें?इंसान की गिरावट को मापने के पैमाना कहाँ खोजे?इस भोज के भी अलग-अलग तरीके  हैं। कहीं पर यह एक ही दिन में किया जाता है। कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें-तेहरवें दिन तक चलता है। कई लोग श्मशान घाट से ही सीधे मृत्युभोज का सामान लाने निकल पड़ते हैं। मैंने तो ऐसे लोगों को सलाह भी दी कि क्यों न वे श्मशान घाट पर ही टेंट लगाकर जीम लें ताकि अन्य जानवर आपको गिद्ध से अलग समझने की भूल न कर बैठे !रिश्तेदारों को तो छोड़ो ,पूरा गांव का गाँव व आसपास का पूरा क्षेत्र टूट पड़ता है खाने को!तब यह हैसियत दिखाने का अवसर बन जाता है। आस-पास के कई गाँवों से ट्रेक्टर-ट्रोलियों में गिद्धों की भांति जनता इस घृणित भोज पर टूट पड़ती है। जब मैंने समाज के बुजुर्गों से बात की व इस कुरीति के चलन के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि उनके जमाने में ऐसा नहीं था। रिश्तेदार ही घर पर मिलने आते थे। उन्हें पड़ोसी भोजन के लिए ले जाया करते थे। सादा भोजन करवा देते थे। मृत व्यक्ति के घर बारह दिन तक कोई भोजन नहीं बनता था। 13 वें दिन कुछ सादे क्रियाकर्म होते थे।परिजन बिछुड़ने के गम को भूलने के लिए मानसिक सहारा दिया जाता था।लेकिन हम कहाँ पहुंच गए!परिजन के बिछुड़ने के बाद उनके परिवार वालों को जिंदगी भर के लिए एक और जख्म द्दे देते है।जीते जी चाहे इलाज के लिए 2हजार रुपये उधर न दिए हो लेकिन मृत्युभोज के लिए 2-5लाख का कर्जा ओढ़ा देते है। ऐसा नहीं करो तो समाज में इज्जत नहीं बचे!क्या गजब पैमाने बनाये हैं हमने इज्जत के? इंसानियत को शर्मसार करके, परिवार को बर्बाद करके इज्जत पाने का पैमाना!कहीं-कहीं पर तो इस अवसर पर अफीम की मनुहार भी करनी पड़ती है। इसका खर्च मृत्युभोज बराबर ही पड़ता है।जिनके कंधों पर इस कुरीति को रोकने का जिम्मा है वो नेता-अफसर खुद अफीम का जश्न मनाते नजर आते है।कपड़ों का लेन-देन भी ऐसे अवसरों पर जमकर होता है। कपड़े, केवल दिखाने के, पहनने लायक नहीं। बरबादी का ऐसा नंगा नाच, जिस समाज में चल रहा हो, वहाँ पर पूँजी कहाँ बचेगी बच्चे कैसे पढ़ेंगे?बीमारों का इलाज कैसे होगा घिन्न आती है जब यह देखते हैं कि जवान मौतों पर भी समाज के लोग जानवर बनकर मिठाईयाँ उड़ा रहे होते हैं।गिद्ध भी गिद्ध को नहीं खाता!पंजे वाले जानवर पंजे वाले जानवर को खाने से बचते है।लेकिन इंसानी चोला पहनकर घूम रहे ये दोपाया जानवरों को शर्म भी नहीं आती जब जवान बाप या माँ के मरने पर उनके बच्चे अनाथ होकर, सिर मुंडाये आस-पास घूम रहे होते हैं। और समाज के प्रतिष्ठित लोग उस परिवार की मदद करने के स्थान पर भोज कर रहे होते हैं जब भी बात करते है कि इस घिनौने कृत्य को बंद करो तो समाज के ऐसे-ऐसे कुतर्क शास्त्री खड़े हो जाते है कि मन करता है कि इसी के सिर से सिर टकराकर फोड़ दूं!इनके तर्क देखिए

1. माँ-बाप जीवन भर तुम्हारे लिए कमाकर गये हैं, तो उनके लिए हम कुछ नहीं करोगे इमोशनल अत्याचार शुरू कर देते है!चाहे अपना बाप घर के कोने में भूखा पड़ा हो लेकिन यहां ज्ञान बांटने जरूर आ जाता है! हकीकत तो यह है कि आजकल अधिकांश माँ-बाप कर्ज ही छोड़ कर जा रहे हैं। उनकी जीवन भर की कमाई भी तो कुरीतियों और दिखावे की भेंट चढ़ गयी। फिर अगर कुछ पैसा उन्होंने हमारे लिए रखा भी है, तो यह उनका फर्ज था। हम यही कर सकते हैं कि जीते जी उनकी सेवा कर लें। लेकिन जीते जी तो हम उनसे ठीक से बात नहीं करते। वे खोंसते रहते हैं, हम उठकर दवाई नहीं दे पाते हैं। अचरज होता है कि वही लोग बड़ा मृत्युभोज या दिखावा करते हैं,जिनके माँ-बाप जीवन भर तिरस्कृत रहे। खैर! चलिए, अगर माँ-बाप ने हमारे लिए कमाया है, तो उनकी याद में हम कई जनहित के कार्य कर सकते हैं, पुण्य कर सकते हैं। जरूरतमंदो की मदद कर दें, अस्पताल-स्कूल के कमरे बना दें, पेड़ लगा दें।परन्तु हट्टे-कट्टे लोगों को भोजन करवाने से कैसा पुण्य होगा?कुछ बुजुर्ग तो दो साल पहले इस चिंता के कारण मर जाते है कि मेरी मौत पर मेरा समाज ही मेरे बच्चों को नोंच डालेगा!मरने वाले को भी शांति से नहीं मरने देते हो!कैसा फर्ज व कैसा धर्म है तुम्हारा?

2. आये मेहमानों को भूखा ही भेज दें? पहली बात को शोक प्रकट करने आने वाले रिश्तेदार और मित्र, मेहमान नहीं होते हैं। उनको भी सोचना चाहिये कि शोक संतृप्त परिवार को और दुखी क्यों करें? अब तो साधन भी बहुत हैं। सुबह से शाम तक वापिस अपने घर पहुँचा जा सकता है। इस घिसे-पिटे तर्क को किनारे रख दें। मेहमाननवाजी खुशी के मौकों पर की जाती है, मौत नहीं। बेहतर यही होगा कि हम जब शोक प्रकट करने जायें, तो खुद ही भोजन या अन्य मनुहार को नकार दें। समस्या ही खत्म हो जायेगी।

3. तुमने भी तो खाया था तो खिलाना पड़ेगा यह मुर्ग़ी पहले या अंडा पहले वाला नाटक बंद करो। यह कभी नहीं सुलझेगी!अब आप बुला लो, फिर वे बुलायेंगे। फिर कुछ और लोग जोड़ दो। इनसानियत पहले से ही इस कृत्य पर शर्मिंदा है, और न करो। किसी व्यक्ति के मरने पर उसके घर पर जाकर भोजन करना ही इंसानी बेईमानी की पराकाष्ठा है और अब इतनी पढ़ाई-लिखाई के बाद तो यह चीज प्रत्येक समझदार व्यक्ति को मान लेनी चाहिए। गाँव और क़स्बों में गिद्धों की तरह मृत व्यक्तियों के घरों में मिठाईयों पर टूट पड़ते लोगों की तस्वीरें अब दिखाई नहीं देनी चाहिए।

बलात्कार और समाज के साथ साथ हमारी सोच


बलात्कार और समाज और हमारी सोच
          लेखक नवरत्न मन्डुसिया (सुरेरा)
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //समाज मे बलात्कार जेसे संगीन अपराध बहूत ही खतरनाक किस्म के मामले होते है समाज मे ऐसे मामले बहूत ही शर्मनाक होते है जो कुछ भी हो रहा है, भयावह है। लग रहा है जैसे सती-युग लौट आया है। कब तक ये भयावहता देखती रहेगी वो बलात्कार की पीड़ीता और न्यूज़पेपर वाले और  चैनल खबर चला रहे हैं- की सरकार सदमें मे है और जल्द ही पीडिता को न्याय दीलायेगी और विपक्ष सरकार की जुबान खींचने मे लगी हुवी है तो सरकार न्याय दिलाने की सांत्ना डे रही है और बचाव करते हुवे कह रही है की हमारी सरकार और केन्द्र सरकारसदमें मे है लेकिन मे नवरत्न मन्डुसिया आपको बता देना चाहता हूँ की  सदमे में तो हम हैं। जिसके साथ बलात्कार होता है उसको पता रहता है की उसमे क्या बीत रही है क्या क्या वो समाज से ताने बाने सुन रही है इसलिए मेरे हिसाब से अब समाज मे जमीर नाम की कोई भी चीज़ हमारे समाज मे नही रही सबसे बड़ी बात तो यह की जो लोग रेप करते है वो ये भी नही देखते है की यदि हम समाज मे बलात्कार जेसे संगीन अपराध करेंगे तो क्या हमारा समाज कही पर बोलने लायक रहेगा लेकिन उनको पता है की समाज बोलने  लायक नही रहता है फ़िर भी समाज मे वे लोग बलात्कार करके औरतो की लड़कियों की जिंदगी खराब कर देते है अब मे समाज से पूछना चाहता हूँ की  स्त्री अब क्या करेगी, कैसे जिएगी, कैसे अपना मुंह सबको दिखाएगी वो लड़कियाँ केसे आगे बढ़ पायेगी ये है क्या हमारे भारत देश की संस्कृति अब तो ऐसा लग रहा हमारे देश मे संस्कृति नाम की कोई भी जगह नही है  ये कैसे सवाल हैं? लोग रो रहे हैं, दुखी हैं, और कह रहे हैं अब तन ढकने से क्या, बेचारी का जो था सो तो सब लुट गया। इज्जत सरेआम रौंद डाली गई। अब तो बेचारी तिल-तिल कर घुट-घुट कर मरेगी। यह सब क्या है। यह कैसी सहानुभूति है, जो बलात्कार का शिकार हुई स्त्री को स्वाभाविक जीवन जीता देखना गवारा नही करती। जिस लड़की या औरत के साथ बलात्कार होता है तो तो उसका परिवार उस दर्द को कभी भी भूल नही सकता केसे जियेंगे हम केसे केसे अपराध कर है ये हमारे समाज के लोग मेरे हिसाब से जो लोग बलात्कार करते है उनके ऊपर सरकार को गम्भीर क़दम उठाना चाहिये और आरोपियों को श्री आम फाँसी देनी चाहिये जब लड़कियों के साथ बलात्कार होता है तो सरकार उनको आर्थिक सहायता देती है और वही लड़कियाँ जब कॉलेज विद्यालय जाती है बाहर बेठे असामाजिक तत्व उनको बोलते है की ये देखो ये दस हजार वाली ये बीस हजार वाली मतलब की हमारे धर्म मे ऐसी नीच सोच वाले लोग बेठे है उनको पता जिस लड़कियों को वो बुरी नजर से देख रहे है उनके भी घर मे माँ बेटियाँ है
संसद में बैठी शक्तिशाली स्त्रियां नहीं जानतीं कि रोजाना सार्वजनिक वाहनों में सफर करना महिला के लिए कैसा अनुभव होता है? वे नही जानतीं कि सड़क पर चलना क्या होता है। एक सामान्य पुरुष साथी की तरह खुली हवा में सांस लेने, कभी-कभार फिल्म-पिकनिक की मौज-मस्ती के लिए स्त्री को मानसिक रूप से कितना तैयार होना पड़ता है
जो महिलायें हो या पुरुष हो वे सिर्फ अपने स्वार्थ की को छोड़कर जिन जिन महिलाओ और लड़कियों के साथ अन्याय हुवा है उनको न्याय दिलाये वेसे  महिलाओं को विलाप करते देखना अजीब लगता है। जिनके पास सत्ता की ताकत है, कानून बनाने और उसे क्रियान्वित करने की क्षमता है, जिन्हें अपनी इस जिम्मेदारी को कब का पूरा कर देना चाहिए था उनकी आंखों में सिर्फ आंसू आ रहे हैं, वे सिर्फ मार्मिक भाषण दे रही हैं, वे नम आंखों से निहार रही हैं, वे आक्रोश प्रदर्शित कर रही हैं। अरे ये सारे काम तो संसद से बाहर बैठी महिलाएं भी कर रही हैं, फिर संसद की क्या जिम्मेदारी है आप ये जूठे ड्रामा मत करो आप अन्याय का साथ मत दो वरना एक दिन हमारा भारत देश ऐसे दलदल मे फँस जायेगा की किसी को समझ मे तक नही आयेगा और हमारा भारत देश वापिस गुलामी की जंजीरों मे जकड़ जायेगा
इस अपराध पर त्वरित कार्रवाई करवाने में सक्षम लोग कार्रवाई करवाने की जगह आंसू बहा रहे हैं, संवेदनशील भाषण कर रहे हैं। और धरने प्रदशन कर रहे है बड़ी बड़ी रेलियां निकाल रहे है महाआंदोलन कर रहे है लेकिन आम जनता के पास इनके अलावा कर भी तो क्याकर सकते है मुझे तो सोचते सोचते केवल आँसुओं के अलावा कूछ भी नज़र नही आता है कमाल है- संसद रो रही है, संसद सदमे में जा रही है। आपको याद होगा, हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल में तो इस लुटी इज्जत के लिए बाकायदा ‘बलात्कार बीमा योजना’ तक लाने पर चर्चा हुई थी। महिला संगठनों और बुद्धिजीवियों की कड़ी आलोचना के बाद उस शर्मनाक प्रस्ताव को वापस ले लिया गया। उस बहूत से लोगो ने इस प्रस्ताव का घोर विरोध किया था क्या अब बलात्कार पीडिता इस बीमे से जोड़े क्या केसे केसे लोग है हमारे समाज मे यदि उस बलात्कार बीमे की जगह कोई कठोर कानून बनता तो आज हमारे देश मे ये नौबत नही आती आज के ज़माने मे बेटियाँ कही पर बिल्ट सुरक्षित नही है
इस कांड पर गमगीन सिर्फ महिलाओं को दिखाया गया। तमाम चैनल महिला सांसदों के आंसू और भाषण दिखाते रहे। ज्यादातर पुरुष सांसद इस घटना पर मौन थे या चैनलों ने उन्हें दिखाना जरूरी नहीं समझा। यह भी अजीब है। महिला के साथ अपराध हो तो उस पर महिलाओं का ही नजरिया दिखाया जाएगा। क्यों भाई, पुरुषों का क्यों नहीं? क्या यह एक सामाजिक अपराध नहीं है? क्या इससे पुरुष प्रभावित नहीं होता? क्या ऐसे समाज में पुरुष निश्चिंत होकर सो सकता है?
क्या बलात्कार के लिए फांसी देने से बलात्कार रुक जाएगा, जैसी कि लगातार मांग बनाई जा रही है? बलात्कारी के शिश्नोच्छेद की मांग हो रही है। ऐसी मांग का क्या अर्थ है? फांसी दो-फांसी दो न्याय दो न्याय मुर्दाबाद मुर्दाबाद इन नारों से क्या समाज मे हो रहे रेप रुक जायेगा । कोई बुनियादी सवाल सुनने तक को तैयार नहीं है। फांसी की भूखी भीड़ को कुछ लाशें चाहिए ही चाहिए जिससे उसकी क्षुधा कुछ देर को शांत हो। फिर उन्माद का कोई और मुद््दा आ जाएगा। क्या मृत्युदंड से इन घटनाओं को काबू किया जा सकता है जब तक हमारी सोच बदलेगी तब ये बलात्कार जेसे अपराध रुकेंगे :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से



नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

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