मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

यहाँ देखिये मेघवाल समाज का ऐसा इतिहास जो की आपको सोचने पर मजबूर कर देगा

इतिहास तो बाद की बात हैपहले कुछ ऐतिहासिक सवाल हैं -
मेघों का इतिहास है तो उन्होंने युद्ध भी लड़ा होगाइसके पर्याप्त सबूत हैं कि मेघवंशी या मेघ-भगत योद्धा रहे हैं हालाँकि उनकेअधिकतर इतिहास का लोप कर दिया गया हैनवल वियोगी जैसे इतिहासकारों ने 


 तथ्यों के साथ इतिहास को फिर से लिखाहै और बताया है कि इस देश के प्राचीन शासक नागवंशी थेआपने मेघ ऋषि के बारे में सुना होगा उसे वेदों में 'अहि' यानि'नाग' कहा गया है.

''मेघवंश'


 एक मानव समूह है जो उस कोलारियन ग्रुप से संबंधित है जो मध्य एशिया से ईरान के रास्ते इस क्षेत्र में आया था.इसका रंग गेहुँआ (wheetish) है.

मेघवंशी सत्ता में रहे हैं जिसे 'अंधकार युग' (dark period या dark agesकहा जाता थालेकिन के.पीजायसवालनवल वियोगीएस.एनरॉय-शास्त्री (जिन्होंने मेघ राजाओं के सिक्कों और शिलालेखों का अध्ययन कियाऔर आर.बीलाथम ऐसे इतिहासकार हैं जिनकी खोज ने उस समय का इतिहास खोजाआज इतिहास में कोई 'अंधकार काल' नहीं है.

मेघवंशी रेस ने मेडिटेरेनियन साम्राज्य की स्थापना की थी जो सतलुज और झेलम तक फैला थापर्शियन राज्य की स्थापना के बाद यह समाप्त हो गया और मेदियन साम्राज्य के लोग बिखर गए होंगे इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है.

आर्यों के आने से पहले सप्तसिंधु क्षेत्र में बसे लोग 'मेघ ऋषि' जिसे 'वृत्र' भी कहा जाता है के अनुगामी थे या उसकी प्रजा थे.उसका उल्लेख वेदों में आता हैकाबुल से लेकर दक्षिण में नर्बदा नदी तक उसका आधिपत्य (Suzerainty) थासप्तसिंधु का अर्थ है सात दरिया यानि सिंधसतलुजब्यासराविचिनाबझेलम और यमुनाआर्यों का आगमन ईसा से लगभग 1500 वर्ष पूर्व माना जाता है और मेदियन साम्राज्य ईसा से 600 वर्ष पूर्व अस्तित्व में थाइस दौरान आर्यों के बड़ी संख्या में आने की शुरूआत हुई और इस क्षेत्र में मेघवंशियों के साथ लगभग 500 वर्ष तक चले संघर्ष के बाद आर्य जीत गएयह लड़ाई मुख्यतः दरियाओं के पानी और उपजाऊ जमीन के लिए लड़ी गई.

आर.एलगोत्रा जी ने लिखा है कि 'वैदिक साहित्य के अनुसार मेघ या वृत्र से जुड़े लगभग लाख मेघों की हत्या की गई थी'.धीरे-धीरे आर्यों का वर्चस्व स्थापित होता चला गया जो बुद्ध के बाद पुष्यमित्र शुंग के द्वारा असंख्य बौधों की हत्या तक चला जिसमें बौधधर्म के मेघवंशी प्रचारक भी बड़ी संख्या में शामिल थेकालांतर में ब्राह्मणीकल व्यवस्था स्थापित हुईमनुस्मृति जैसा धार्मिक-राजनीतिक संविधान पुष्यमित्र ने स्मृति भार्गव से लिखवायाजात-पात निर्धारित हुई और मेघवंशियों का बुरा समय शुरू हुआ.

मेघों का प्राचीन इतिहास भारत में कम और पुराने पड़ोसी देशों के इतिहास में अधिक हैयह उनके लिए दिशा संकेत है जो खोजी हैं.

ख़ैरबहुत आगे चल कर आर्य ब्राह्मणों की बनाई हुई जातिप्रथा में शामिल होने से मेघवंश से कई जातियाँ निकलींपंजाब और जम्मू-कश्मीर के मेघ-भगत एक जाति है तथापि मेघवंश से राजस्थान के मेघवाल भी निकले हैं और गुजरात के मेघवार भीकई अन्य जातियाँ भी मेघवंश से निकली हैं जिन्हें आज हम पहचाने से इंकार कर देते हैं लेकिन पहचानने की कोशिशें तेज़ हो रही है.

आपके गोत्र में आपका थोडा-सा इतिहास रहता है और आपका सामाजिक स्तर भी. गोत्र से उन सारी बातों का प्रचार हो जाता हैजो याद दिलाती रहती हैं कि कौन सा वर्ण सबसे ऊँचा है या सबसे ऊँचे से कितना नीचे है.

लोगों को आपने जन्म-मरणविवाह के संस्कारों के समय अपना गोत्र छिपाते हुए देखा होगावे केवल ऋषि गोत्र से काम चलाना चाहते हैंवे जानते हैं कि गोत्र बता कर वे अपनी जाति और अपने सामाजिक स्तर की घोषणा खुद करते हैं जो उन्हें अच्छा नहीं लगतागोत्र की परंपरा का बोलबाला देख कर मेघों ने भी ख़ुद को ब्राह्मणवादी व्यवस्था में मिलाते हुए इस गोत्र व्यवस्था कोअपनायागोत्र-परंपरा ब्राह्मणी परंपरा से ली गई प्रथा है.

आमतौर पर ब्राह्मण परंपरा में गोत्र को रक्त-परंपरा (अपना ख़ूनऔर वंश के अर्थ में लिया जाता हैइसलिए ब्राह्मण हमेशाब्राह्मण ही रहेगामेघवंशी मेघवंशी ही रहेगावह आर्य या ब्राह्मण नहीं बन सकताएक अन्य परंपरा के अनुसार मेघों की पहचान वशिष्टी के नाम से ही की जाती थीइसलिए सारे भारत में मेघ वाशिष्ठीवशिष्टा या वासिका नाम से जाने गएफिरकई भू-भागों में यह वशिष्टा नाम धीरे-धीरे लुप्तप्राय हो गया.

आदिकाल से ही मेघ लोग अपने मूलपुरुष के रूप में मेघ नामधारी महापुरुष को मानते आए हैंयह मूल पुरुष ही उनका गोत्रकर्ता(वंशकर्ताहैइसे सभी मेघवंशी मानते हैं.

मेघों का धर्म
क्या मेघों का अपना कोई पुराना धर्म हैइतिहास खुली नज़र से इसका भी रिकार्ड देखता है. मेघ समुदाय में मेघों के धर्म के विषय पर कुछ कहना टेढ़ी खीर हैजम्मू के एक उत्साही युवा सतीश एक विद्रोही ने इस विषय पर एक चर्चा आयोजित की थी जिसमें बहुत-सी बातें उभर कर आई थींवैसे आज धर्म नितांत व्यक्तिगत चीज़ है.

राजस्थान के बहुत से मेघवंशी अपने एक पूर्वज बाबा रामदेव में आस्था रखते हैंगुजरात के मेघवारों ने अपने पूर्वज मातंग ऋषिऔर ममई देव के बारमतिपंथ को धर्म के रूप में सहेज कर रखा है और उनके अपने मंदिर हैंपाकिस्तान में भी हैंप्रसंगवश मातंग शब्द का अर्थ मेघ ही हैमेघवार अपने सांस्कृतिक त्योहारों में सात मेघों की पूजा करते हैंसंभव है वे सात मेघवंशी राजा रहे होंममैदेव महेश्वरी मेघवारों के पूज्य हैं जो मातंग देव या मातंग ऋषि के वंशज हैंममैदेव का मक़बरा जिस कब्रगाह में है उसे यूनेस्को ने विश्वधरोहर (World Heritage) के रूप में मान्यता दी हैइस प्रकार एक मेघवंशी का निर्वाण स्थल विश्वधरोहर में है.

मेघ कई अन्य धर्मों/पंथों में गए जैसे राधास्वामीनिरंकारीब्राह्मणीकल सनातन धर्मसिखिज़्मआर्यसमाजईसाईयतविभिन्न गुरुओं की गद्दियाँडेरे आदिसच्चाई यह है कि जिसने भी उन्हें 'मानवता और समानताका बोर्ड दिखाया वे उसकी ओर गए.लेकिन उनका सामाजिक स्तर वही रहाधार्मिक दृष्टि से उनकी अलग पहचान और एकता नहीं हो पाईमेघों ने सामूहिक निर्णय कम ही लिए हैं.

लेकिन इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि आर्यसमाज द्वारा मेघों के शुद्धीकरण के बाद मेघों का आत्मविश्वास जागाउनकी राजनीतिक महत्वाकाँक्षा बढ़ी और स्थानीय राजनीति में सक्रियता की उनकी इच्छा को बल मिलावे म्युनिसपैलिटी जैसी संस्थाओं में अपनी नुमाइंदगी की माँग करने लगेइससे आर्यसमाजी परेशान हुए.

मेघों की नई पीढ़ी कबीर की ओर झुकने लगी है ऐसा दिखता है और बुद्धिज़्म को एक विकल्प के रूप में जानने लगी हैयह भी आगे चल कर मेघों के धार्मिक इतिहास में एक प्रवृत्ति (tendencyके तौर पर पहचाना जाएगामेघों में संशयवादी(scepticism) विचारधारा के लोग भी हैं जो ईश्वर-भगवानमंदिरधर्मग्रंथोंधार्मिक प्रतीकों आदि पर सवाल उठाते हैं और उनकी आवश्यकता महसूस नहीं करतेमेघों की देरियाँ भी उनके पूजास्थल हैं जो अधिकतर जम्मू में और दो-तीन पंजाब में हैं.

इधर ''मेघऋषि'' का मिथ धर्म और पूजा पद्धति में प्रवेश पाने के लिए आतुर हैमेघऋषि की कोई स्पष्ट तस्वीर तो नहीं है लेकिन कल्पना की जाती है कि एक जटाधारी भगवा कपड़े पहने ऋषि रहा होगा जो पालथी लगा कर जंगल में तपस्या करता थाइसी पौराणिक इमेज के आधार पर गढ़ाजालंधर में एक मेघ सज्जन सुदागर मल कोमल ने अपने देवी के मंदिर में मेघऋषि की मूर्ति स्थापित की हैराजस्थान में गोपाल डेनवाल ने मेघ भगवान और मेघ ऋषि के मंदिर बनाने का कार्य शुरू किया हैइसके लिए उन्होंने मोहंजो दाड़ो सभ्यता में मिली सिन्धी अज्रुक पहने हुए पुरोहित-नरेश (King Preist) की 2500 .पू.की एक प्रतिमा जो पाकिस्तान के नेशनल म्यूज़ियमकराचीमें रखी है उसकी इमेज या छवि का भी प्रयोग किया है. मेघ भगवान की आरतियाँचालीसास्तुतियाँ तैयार करके CDs बनाई और बाँटी गई हैं.

कमज़ोर आर्थिक-सामाजिक स्थिति की वजह से राजनीति के क्षेत्र में मेघों की सुनवाई लगभग नहीं के बराबर है और सत्ता में भागीदारी बहुत दूर की बात हैएक सकारात्मक बात यह है कि पढ़े-लिखे मेघों ने बड़ी तेज़ी से अपना पुश्तैनी कार्य छोड़ कर अपनी कुशलता कई अन्य कार्यों में दिखाई और उसमें सफल हुएव्यापार के क्षेत्र में इनकी पहचान बने इसकी प्रतीक्षा है.

मेघों के इतिहास के ये कुछ पृष्ठ ख़ाली पड़े हैं.

1. अलैक्ज़ेंडर कन्निंघम ने अपनी खोज में मेघों की स्थिति को सिकंदर के रास्ते में बताया हैहालाँकि राजा पोरस पर कई जातियाँ अपना अधिकार जताती हैंतथापि यह देखने की बात है कि उस समय पोरस की सेना में शामिल योद्धा जातियाँ कौन-कौन थींभूलना नहीं चाहिए कि उस क्षेत्र में मेघ बहुत अधिक संख्या में थे जो योद्धा थेकुछ इतिहासकारों ने बताया है कि पोरस ने ही सिकंदर को हराया था.

2. केरन वाले भगता साध की अगुआई में कई हज़ार मेघों ने मांसाहार छोड़ायह एक तरह का एकतरफा करार थाइस करार की शर्तों और पृष्ठभूमि को देखने की ज़रूरत है.

3. कुछ मेघों ने विश्वयुद्धों मेंपाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्धों में हिस्सा लिया हैवे दुश्मन की सामाओं में घुस कर लड़े हैंउनके बारे में जानकारी नहीं मिलती.

4. दीनानगर की अनीता भगत ने बताया था कि एक मेघ भगत मास्टर नरपत सिंहगाँव बफड़ींतहसील और ज़िला हमीरपुर(हिमाचल प्रदेश), (जीवन काल सन् 1914 से 1992 तक) स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा पा चुके हैं. अनीता ने उनके बारे में जानकारी और फोटोग्राफ इकट्ठे करके भेजे हैंउस वीर को 1972 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए ताम्रपत्र भेंट किया थागाँव की पंचायत ने उनके सम्मान में स्मृति द्वार बनवाया हैएक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिसके शरीर पर गोलियों के छह निशान थेऐसे लोग शायद और भी मिलेंदेखिएढूँढिए.

5. मेघवंश के लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का रिकार्ड तैयार करने की भी ज़रूरत हैएडवोकेट हंसराज भगतभगत दौलत राम जी के बारे में कुछ जानकारी मिली हैयह सूची अधूरी है.

6. ऐसे ही मेघों के राजनेताओं की जानकारी का संकलन अभी तक नहीं हो पाया है.

जो अब तक कहा गया है उसे अंत में आप मेघों के इतिहास की हेडलाइन्स समझ कर संतोष करें.

मेघ इतने दमन के बावजूद बेदम नहीं हुए बल्कि आज वे पहले से अधिक प्रकाशित हैंअन्य जातियों के साथ मिला कर वे देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैंआने वाले समय में इनकी भूमिका बहुत एक्टिव होगी और स्पेस भी अधिक होगापनेपिछले इतिहास को थोड़ा-सा जान लिया हैअब अपने आज को सँवारिए और भविष्य बनाइए जो आपका है.

जय मेघजय भारत.

भारत भूषण भगत
 चंडीगढ़.

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...