शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

गुजरात मे पैदा हुए समाज के वीर मेधमाया ने अछुतो के अधिकारो के लिए अपने जान का बलिदान दिया था,


वीर मेघमाया : एक विर महापुरुष*
एक विर महापुरुष के बारे में बताना चाहता हूँ। महापुरुष का नाम है- विर मेघमाया। भारत के मूलनिवासी लोगों को यह महापुरुष के बारे में जानकारी नही होगी, क्योंकि इसका सही इतिहास छिपाया गया है। हमारे महापुरुष का इतिहास ज्यादातर लोग जानते ही नहीं है और हमारे लोग जानने की कोशिश भी नही करते है। मैं जितना जानता हूँ, इतना जरूर बता रहा हूँ। विर मेघमाया गुजरात राज्य के धोलका तहेसील के रनोडा गाँव में 12 मी सदी में जन्मा हुआ था, तब गुजरात का पाटनगर पाटन था।12 मी सदी में पाटन राज्य का राजा सिध्धराज सोलंकी था। उस समय पर अछूतों उपर भयानक, दर्दनाक, अत्याचार राजा सिध्धराज सोलंकी की तरह से किया जा रहा था। तब विर मेघमाया ने ठान लिया था कि, अछूतों पर हो रही भयंकर गुलामी में से आझाद करके रहूंगा, चाहे मेरा प्राण क्यूँ चला न जाय। मेघमाया ने उनका मिशन चालू किया। एक-एक अछूत का समजाने का, जागृत करने का अभियान चालू किया। उस समय अछूतों को आगे कूलडी और पीछे झाडू रखना पडता था और सिर्फ रात के समय में ही बहार निकलना था। दिन में अगर अछूत की पडछाइ भी पड गयी तो मृत्युदंड की सजा की जाती थी। ऐसे समय में विर मेघमाया ने अछूतों के साथ हो रहे भयंकर अन्याय के खिलाफ अछूतों को जागृत करता रहा। यह बात राजा के ब्राह्मण सेनापति के कान में आई। ब्राह्मण सेनापति ने विर मेघमाया का पूरा इतिहास जान लिया और राजा सिध्धराज सोलंकी को अछूत विर मेघमाया के बारे में पूरा माहितगार किया। तब राजा ने कहा क्या किया जाय अछूत को, ब्राह्मण सेनापति बडा होशियार था। उस समय पाटन राज्य में लगातार तिन साल से बारिश नही हो रही थी। पूरा पाटन पानी सेे तरस रहा था। तब ब्राह्मण सेनापति ने विर मेघमाया को जान से मारने का प्लान बनाया और राजा सिध्धराज को बताया कि, हमारी प्रजा पानी की तरस से मर रही हैं। हम विर मेघमाया को पाटन की वाव (एक तरह का कूआ) मे बलि चढा दे और प्रजा को बताया जाय कि वाव में बतीस लक्षणों वाला पुरुष का भोग किया जाय तो जरूर चमत्कार से पानी प्रगट होगा। तब प्लान बना के राजा ने ऐलान कर दिया कि बत्रीस लक्षणों का पुरूष की तलाश की जाय, तब ब्राह्मण सेनापति ने विर मेघमाया का नाम बताया और सिध्धराज ने स्वीकार भी कर लिया। यह पूरी जानकारी विर मेघमाया को बताइ गइ। विर मेघमाया पूरा प्लान समज गया था। पर वो भी राजा के हूकम के आगे लाचार थे। विर मेघमाया ने भी नक्की कर लिया कि, मरते-मरते मेरी समाज का भी भला करता जाऊं। विर मेघमाया की बलि का दिन नक्की हो गया। विर मेघमाया को पानी की वाव उतारा गया, तब विर मेघमाया ने राजा को मरने से पहले कूछ वचन मागा गया। एक मेरी समाज के लोगों को आगे कूलडी और पिछे झाडू को नाबूद किया जाय। दूसरा सवणॅ लोग मकान बनाते तब मकान के मोभ अछूत के द्वारा रखा जाए। राजा ने सारी बात मान्य रखी और सेनापति को हूकम दिया। सेनापति ने धारदार तलवार उठाइ और जोर से एक ही झटके में विर मेघमाया का धड गरदन से अलग कर दिया। मेरे प्यारे दोस्तों जरा सोचिए विर मेघमाया का प्राण कैसे गया होगा। गुजरात राज्य में पहला अछूत विर मेघमाया शहीद हो गया। फिर भी हमारे पढे लिखे लोगों को विर मेघमाया की शहादत याद नहीं आ रही है और जो लोग अछूतों को कायम अछूत ही रहे ऐसे प्रयास करने में जो लोग मर गये उनको अपना शहीद मानकर शहादत को याद करके बडे जोर से शोक मनाते हैं।
दोस्तो, मैं बडे दुखसे कहता हूँ कि अगर हमारी समाज में विर मेघमाया, ज्योतिबा फूले, डाॅ.बाबासाहब आंबेडकर जैसे महापुरुषों की देन की ही वजह से ही हम लोग सूख चेन से जि रहे हैं। अगर हमारी समाज मे महापुरुष पैदा नही होते तो न जाने कैसा हाल होता समाज का।

नवरत्न मन्डुसिया

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