शनिवार, 29 अप्रैल 2017

मेघवाल समाज की बेटी अनु मेघवाल समाज का एक युवा चेहरा

दोस्तो आप सब जानते है की एक तरफ़ भूर्ण हत्यायें हो रही है लोग बेटियाँ को कलंक मानते है और जन्म से पहले ही बेटियों  मौत के घाट उतार दिये जाते है और दूसरी तरफ़ जयपुर की सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज की छात्रा अनु मेघवाल इस समय बहूत जोर शोर से समाज.सेवा के साथ साथ  राजनीति मे अपना अच्छा योगदान दे रही है अनु मेघवाल का कहना है की बेटी एक देवी का रुप होती है हमे बेटियों की पूजा करनी चाहिये और मुख्य रुप से यह भी इनका कहना है की.यदि समाज मे नारियों की इज्जत होगी तो समाज का उथ्थान होगा और समाज मे नारियों का मनोबल बढेगा क्यों आजाद हिंदुस्तान मे समानता का अधिकार है इस कारण हम बेटियों को डरना नही चाहिये बल्कि विपरीत परिस्मेथियों का सामना होगा ये सौच है एक दलित बेटी अनु मेघवाल की मे  नवरत्न मन्डुसिया बहिन अनु जी मेघवाल को तहदील से आभार प्रकट करता हूँ धन्यवाद देता हूँ की आप मेघवाल समाज मे जन्म लेकर यह साबित कर दिया है की समाज मे बेटी भी किसी से कम नही है और सबको यह बता दिया है की कोई भी दलित बेटी किसी से कम नही है यदि वह कूछ ठान ले तो वह बेटी अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच सकती है अनु मेघवाल वर्तमान मे जयपुर के सबसे बड़े महाविद्यालय सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज की अध्यक्ष पद पर आसीन है और अभी नयी दिल्ली मे सरकारी चिकित्सक पद पर चयन हुवा है और यह भी सबसे बड़ी बात है की दिल्ली जेसे प्रदेश मे एक मेघवाल समाज की बेटी सेवायें देगी अनु मेघवाल अपने परिवार और मित्रों को आदर्श मानती है तथा राजनीति मे जाने के लिये तथा शिक्षा के बहूत प्रेरित करती है और गरीबो की सेवा करना मुख्य आधार मानती है अनु मेघवाल बीस साल की मेघवाल समाज की युवा चेहरा है और इन्होने सरकारी कॉलेज से एम.बी.बी.एस किया है अनु मेघवाल अपने टिव्टर फेसबुक इन्स्टोग्राम यू ट्य्युब आदि सोशियल अकाउंट पर सक्रिय रहती है
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
सामाजिक जनसेवक
अनु मेघवाल और साथ मे मानवीय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी और अमित शाह जी 

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

भीम प्रवाह' समाचार-पत्र का उद्देश्य बहुजन मीडिया को मजबूती प्रदान करना हैं - बरवड़

आज मीडिया की ताकत को हर व्यक्ति जानता है। जिसने मीडिया की ताकत को पहचान लिया और उपयोग कर लिया तो समझो उसने अपना मिशन जीत लिया। हमारे लोग मनुवादी मीडिया, मनुवादी मीडिया चिल्लाते रहते हैं। लेकिन ये तो सोचिए आप अपने मीडिया ( बहुजन सामाजिक मीडिया) के लिए कुछ कर रहे हैं या बस मनुवादी मीडिया पर ही अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। मनुवादी मीडिया अपना काम कर रहा है और बहुजन समाज का तबीयत से बैंड बजा रहा है।
समझ में यह नहीं आ रहा है कि हम हमारे अपने बहुजन सामाजिक मीडिया ( प्रिंट,  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया) को सपोर्ट क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या कारण है कि हम अपना मीडिया तंत्र विकसित करने में आपना योगदान नहीं दे रहे हैं ? मनुवादी मीडिया को गाली देने से कुछ नहीं होगा। आप अपना मीडिया विकसित करें। कौन रोकता है ?
हमारे इतने झुझारू समाज बंधु सामाजिक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,चैनलों का प्रकाशन, प्रसारण कर रहे हैं लेकिन हम उन्हें अपना सपोर्ट नहीं दे रहे हैं। हम केवल हमारे अपने संपादक, प्रेस रिपोर्टर की बुराई करने में आगे रहते हैं लेकिन मनुवादी मीडिया के सामने हमारी घिग्घी बंध जाती है।
बहुजन मीडिया की कड़ी के रूप में राजस्थान के सीकर जिला मुख्यालय से प्रकाशित सामाजिक न्याय को समर्पित
 'भीम प्रवाह' पाक्षिक समाचार - पत्र शोषण अन्याय व अत्याचार के विरूध्द गरीब कमजोर वर्ग की आवाज बुलंद करने का मुख्य वाहक माना जाता है। भीम प्रवाह पाक्षिक समाचार-पत्र की स्थापना 1 सितंबर 2015 को हुई। समाचार- पत्र आर्थिक,सामाजिक व राजनैतिक सहित विभिन्न झंझावतों को झेलते हुए वर्ष 2017 सितंबर माह में अपने सफलतम तीन वर्ष का मुकाम तय करेगा।
इसके सम्पादक मेघवाल समाज में जन्मे बीरबल सिंह बरवड़ जो कि राजस्थान प्रांत के सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील के ग्राम लापुवां के निवासी है। आपकी किसी से कोई व्यक्तिगत लड़ाई नही है, लड़ाई है तो अत्याचार व जुल्म से है क्यों की यह गरीबो पर जुल्म अत्याचार होते हुए नही देख सकते। पीड़ित को न्याय दिलाने में मीडिया की मुख्य भूमिका रहती है। अत: इस सोच को मूर्तरूप देने के लिए उन्होंने एक समाचार - पत्र के प्रकाशन का मानस बनाया। जो कि आज हम भीम प्रवाह के रूप में देख रहे हैं। लेखन के क्षैत्र में सदा से ही आपकी रूचि रही है। विभिन्न सामाजिक पत्र - पत्रिकाओ के आपकी रचनाएं पिछले 15 वर्षों से लगातार प्रकाशित होती रहती हैं।
संपादक बरवड़ बताते है कि 'भीम प्रवाह' समाचार-पत्र का मुख्य उध्देश्य गरीबो को न्याय दिलाना कमजोर वर्गों को साथ देना और संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर के आदर्शों व उनकी विचारधारा को आमजन तक पहुंचाना और लागू करवाने में अपनी भूमिका अदा करना है ।

'भीम प्रवाह' समाचार-पत्र का माध्यम

समाचार-पत्र सूचनाओं व मानवीय संवेदनाओं के आदान-प्रदान का प्रमुख स्तंभ है । इसका इतिहास अपेक्षाकृत प्राचीन है । प्राचीन काल में यह क्षेत्र विशेष तक ही सीमित था परंतु छपाई की कला में नित नए अन्वेषणों व इसकी उपयोगिता को देखते हुए समाचार-पत्रों में समय के साथ व्यापकता आई हैं। आज के जमाने मे समाचार-पत्रों की व्यापकता इतनी अधिक हो गई है कि ये जन-मानस का प्रमुख अंग बन चुके हैं । तथा दिन-प्रतिदिन इनसे जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा है । विश्वभर में अनेकों भाषाओं में समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं । हमारे देश में भी अधिकांश पत्र हिंदी भाषा में प्रकाशित होते हैं। आगे हमे अंग्रेजी भाषा में राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक समाचार-पत्रों के प्रकाशन की आवश्यकता हैं । इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में क्षेत्रीय भाषाओं में भी समाचार-पत्र प्रकाशित करने की जरूरत है। इस क्षैत्र में 'भीम प्रवाह' का प्रयास सराहनीय हैं। आज हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि गाँव गाँव, ढाणी - ढाणी मे 'भीम प्रवाह' को पहुंचाने हेतु सफल और सकारात्मक पहल कर  बाबा साहब अंबेडकर व बहुजन महापुरूषों की विचारधारा को घर घर पहुंचाने में अपना अपेक्षित सहयोग प्रदान करें।
'भीम प्रवाह' समाचार-पत्र प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं । इसके माध्यम से व्यक्ति अपने भावों,अनुभवों व संवेदनाओं को समाज व राष्ट्र के सम्मुख निष्पक्ष और निर्भय होकर व्यक्त कर सकता है। समाचार-पत्र के माध्यम से किसी विशेष विषय से संबंधित लोगों का मत या उनकी राय भी जानी जा सकती है। इस पत्र के माध्यम से देश-विदेश की राजनीतिक उथल-पुथल व नेताओं के वक्तव्य आदि की जानकारी हम घर बैठे ही प्राप्त कर लेते हैं । इसके अतिरिक्त किसी राजनीतिक पहलू पर लिए गए किसी विशेष निर्णय के संदर्भ में प्रबुध्दजनो व राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा प्रस्तुत समीक्षा का भी हम अवलोकन कर सकते हैं । साथ ही साथ उस विशेष निर्णय अथवा घटना के संदर्भ में वांछित अपनी राय व अपना मत हम देश के सम्मुख रख सकते हैं ।
'भीम प्रवाह' ने कम समय में ही पाठकों के दिलों में सम्मानजनक जगह बनाई हैं। समाचार पत्र डाक सेवा से राजस्थान के हर जिले में 15 दिन से दस्तक देता है। इसके साथ ही यूपी. ,हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब , हरियाणा आदि प्रदेशों में भी समाचार पत्र के बहुतायत रूप में पाठक हैं। भीम प्रवाह सोसल मीडिया में  बहुजन समाज के समाचार पत्रों में सर्वाधिक प्रचारित अखबार हैं।



विशेष आग्रह :-
मेरा आग्रह है अपना मीडिया तैयार करें। हमारे समाज बंधु जो सामाजिक समाचारों का प्रकाशन कर रहे हैं उनका तन मन धन से सपोर्ट करें। यह कार्य जरूर करें -
1 प्रत्येक परिवार में एक ना एक सामाजिक समाचार पत्र अवश्य आये।
2. फ्री में सामाजिक समाचार पत्र मंगाने, पढने की गंदी आदत छोड़ दें। जो व्यक्ति सामाजिक समाचार पत्रों को मंगाते हैं लेकिन मासिक/वार्षिक शुल्क नहीं देते हैं ऐसे लोगों के लिए कौनसा शब्द काम में लिया जाये यह मैं शब्दकोश में ढूंढ रहा हूँ।
3. सामाजिक समाचार पत्रों/पत्रिकाओं को प्रकाशित करने वाले हमारे संपादक बहुत मेहनत से काम करते हैं। इनका उत्साहवर्धन करें। समाचार पत्र प्रकाशित करना बहुत ही मेहनत का काम है।
4. हमें इनका तन मन धन से सहयोग करना चाहिए। यदि नहीं कर सकते तो मनुवादी मीडिया से अपनी बेइज्जती कराते रहें।
5. मैं बहुजन समाज के उन लोगों से निवेदन करना चाहूँगा जो उच्च शिक्षित हैं, उच्च पदों पर बैठे हैं, सामाजिक समाचार पत्रों को सपोर्ट करें। आर्थिक सहयोग दें। इनकी ताकत बनें। यदि कोई मुफ्त में सामाजिक समाचार पत्रों को पढने की आदत रखता है तो किसी मनोचिकित्सक से उसका उपचार करायें। क्यों कि ऐसे लोग मनुवादी अखबारों को मुफ्त में पढने की हिम्मत नहीं रखते हैं।
जागो!  जागो!!  जागो!!!
अपनी आवाज जन-जन तक पहुंचाने के लिए अपना मीडिया तैयार करो। ऐसा कोई अपना घर ना हो जहाँ हमारा अपना सामाजिक समाचार पत्र नहीं आता हो।
एक बात पूंछू :-
क्या आपके घर अपना सामाजिक अखबार आता है ? यदि नहीं तो अब क्या सोच रहे हो ? मंगवाना शुरू कर दो जी।
'भीम प्रवाह' समाचार पत्र की सदस्यता ( सहयोग राशि वार्षिक शुल्क 200/- त्रैवार्षिक 600/- आजीवन शुल्क 2100/-) हेतु संपादक के मो. व व्हाट्स अप नं. 07891189451 पर संपर्क किया जा सकता हैं। हम अकसर शिकायत करते हैं कि बहुजन समाज का मीडिया नहीं है। कई मौकों पर वंचित वर्ग के मीडिया की बहुत जरूरत महसूस की जाती हैं। इस हेतु भीम प्रवाह एक स्थायी व कारगर व्यवस्था साबित हो सकती हैं। 'भीम प्रवाह' का चौथे वर्ष में प्रवेश एक नई उम्मीद जगाती हैं। अत: आप सभी नौकरी पेशा कर्मचारी वर्ग, उध्द्मियो व समाज के भामाशाहों से अपील की जाती है कि आप समाचार पत्र के सफल संचालन हेतु यथा सहयोग करें।

"अपना मीडिया, अपनी आवाज।
कदम बढा ले, ऐ जांबाज।।"

*नवरत्न मन्डुसिया की कलम से*

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

नवरत्न मन्डुसिया का मेघवाल समाज का ब्लॉग देश विदेशो मे चमका*

(मन्डुसिया लेखन )मेघवाल समाज का एक ब्लॉग है जो की देश विदेश मे बहूत ज्यादा देखा जा रहा है इस ब्लॉग का नाम मन्डुसिया डॉट ब्लॉग्सपोट डॉट कॉम के नाम से संचालन किया जा रहा है इस मेघवाल समाज के ब्लॉग को राजस्थान प्रांत के सीकर जिले के सुरेरा नामक गाँव के नवरत्न* *मन्डुसिया नामक 23 वर्षीय युवा चला रहा है इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य: - मेघवाल समुदाय समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक. मृत्यु भोज, शराब दुरुपयोग, बाल विवाह, बहुविवाह, दहेज, विदेशी शोषण, अत्याचार और समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपराधों को रोकने के लिए और समाज के कमजोर लोगों का समर्थन की तरह प्रगति में बाधा कार्यों से छुटकारा पाने की कोशिश करने का है तथा इस ब्लॉग मे बाबा रामदेव जी महाराज डाली बाई मेघवाल झरकारी बाई राजा राम मेघवाल*
*करनी माता के ग्वाले दशरथ मेघवाल*
*अखिल भारतीय सांगलिया धुनी के संत श्री लादू दास जी महाराज गरीबो के मसीहा संत श्री खीवा दास जी* *महाराज तथा शिक्षा रत्न संत श्री बंशी दास जी महाराज संत श्री भगत दास जी महाराज मेघवाल समाज के रत्न गरीब दास जी महाराज तथा मेघवाल समाज के भारत के लोकसभा* *विधानसभा उच्च पदों पर विराजमान अधिकारियों के नाम पद उनकी जीवनियां आदि के बारे मे जानकारियां दे रखी है तथा यह ब्लॉग बहूत तेजी से कर रखा है इस ब्लॉग का संचालन मेघवाल समाज  लाडला नवरत्न मन्डुसिया ने सन 2011 मे किया गया था बी.ए. और बी.एड़ और एम.ए इतिहास की पढ़ाई में मन लगा और तीनो डिग्रीया पूरी हुई। और इसके साथ साथ नवरत्न मन्डुसिया ने आई.टी.आई ईलेट्रीसीयन* *(विधुतकार )से करने के बाद मे मेघवाल समाज के बारे अनेक तथ्य लिखे तथा अनेक पुस्तकें लिखी तथा इस ब्लॉग का उदेश्य मेघवाल समाज की सेवा करना ही* *उदेश्य हैं आप मेघवाल समाज के इस ब्लॉग से जानकारी देख सकते हैं  तथा आप इस मेघवाल समाज के ब्लॉग मे मेघवाल समाज की रहन सहन वेश भूसा धार्मिक कार्य और आप इस ब्लॉग मे मेघवाल समाज के गोत्र मेघवाल समाज की.उत्पति आदि के बारे मे जानकारी देख सकते है*
*और इस ब्लॉग को भारत के अलावा*
*यू एस ए "फ्रांस " चीन " नेपाल " यू ए इ " लंदन सिंगापुर रूस अफ्रीका के देशों मे तथा बांग्लादेश* मॉरीशस इटली नाइजीरिया केर्नौफौर्निया 
*पाकिस्तान आदि देशों मे बहूत तेजी से देख रहे है तथा इस ब्लॉग को जो भी देखता है तो नवरत्न मन्डुसिया को बधाई देने से नही रोक पाता है नवरत्न मन्डुसिया को एक दिन मे हजारो कॉलों का सामना करना पड़ता है*तथा अब तक लाखो लोग नवरत्न मन्डुसिया के ब्लॉग्स को देख चुके है तथा नवरत्न मन्डुसिया के विदेशो मे रह रहे मित्र यह बताते है की आपका ब्लोग बहूत ही अच्छा है और और इस मेघवाल समाज के ब्लोग की खास बात यह है की दुनिया की कोई सी भी भाषा हो आप उस भाषा मे देख सकते हो और नवरत्न मन्डुसिया को समाज हित मे काम करने के कारण विदेशो मे लाखो रुपयो के ऑफर आ रहे है की आप हमारी कम्पनियों का हिस्सा बनकर आप हमारे से जुड़े और हमारे साथ काम करे 

रविवार, 23 अप्रैल 2017

इंसान की पहचान पहनावे से नहीं, कर्म से होती है :- नवरत्न मन्डुसिया

जिस तरह दीपक की पहचान उसकी लौ से होती है, न कि उसके रंग-रूप या बनावट से। उसी प्रकार इंसान अपने स्वभाव से जाना जाता है। उसकी पहचान उसके कर्म से होती है। न कि उसकी शक्ल, सूरत व पहनावे से।’ सुरेरा के मेघवाल समाज के मोहल्ले  में आयोजित मेघवाल समाज की साधारण सभा मे सामाजिक कार्यकर्ता नवरत्न मन्डुसिया (सुरेरा) ने   यह विचार रखे। उन्होंने कहा कि सूरत से तो बगुला-हंस, भूंड-भंवरा एक से लगते हैं, पर कर्म से पहचाने जाते हैं कि कौन क्या है। ऐसे ही इंसान की भी स्थिति है। कोई पाताल में बैठकर नेकी कर रहा है वो भी प्रकट होगी। कोई यदि किसी कोने में छिपकर बदी कर रहा है, वो भी सामने आएगी। अपने आपसे न कोई बचा है, न बच सकता है। हर इंसान अपने स्वभाव के अधीन होता है। चाहे कोई लाख यत्न कर ले, पर अपनी सोच, कर्म, फितरत को नहीं छिपा सकता। उन्होंने कहा कि अपने अंदर के विपरीत भाव का रुपांतरण किया जा सकता है। जब बड़े-बड़े पापी-कपटी, कामी-क्रोधी, लोभी बदल सकते हैं, तो हम क्यों नहीं बदल सकते। बस वैसा कर्म करना पड़ेगा। पहले भी पारस छूने से लोहा सोना बन जाता था, आज भी वैसा ही है। इंसान भी सही मार्ग दर्शन से अच्छाई का मार्ग अपना सकता है। इसके लिए पूर्ण सतगुरु की शरण में जाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह मानव तन हम सभी को बहुत सौभाग्य से मिला है। इसलिए हमें अपने जीवन में कोई भी पाप व बुरे कर्म नहीं करने चाहिए।
और सबसे बड़ा धर्म माता पिता की सेवा करना है समाज को आगे बढाना है तो नारियों का समान करना और महिलाओं को इज्जत देना ही सबसे बड़ा धर्म है आजाद हिंदुस्तान मे दिन प्रतिदिन महिलाओं की लज्जा भंग उनके साथ बलात्कार यॆ हमारे समाज के लिये बहूत ही शर्म की बात है इसलिए सारी कुरुतीयो को त्याग कर हमे समाज की इज्जत करनी चाहिये और भाईचारे की भाँति रहना चाहिये और अन्य धर्मों की हिफाजत भी करनी चाहिये और सभी धर्मों को समान रुप से मानना चाहिये और हमे अन्य धर्मों की मर्यादाओं को भंग नही करना चाहिये हमे हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल देना चाहिये
                                  नवरत्न मन्डुसिया की कलम से 

हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती

नन्हीं चींटीं जब दाना ले कर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगॊं मे साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती

डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गेहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किए बिना ही जयजयकार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती

                                 …….हरिवंशराय बच्चन

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

पहले मे दलितों का हितेसी हूँ बाद मे पार्टी :- ऊदा राम मेघवाल


पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले की शिव तहसील के देदडीयार गाँव में 54 वर्ष पहले एक अत्यंत गरीब मेघवाल परिवार में उदाराम मेघवाल जन्मे .वे अपनी चार बहनों तथा दो भाइयों में सबसे छोटे थे .जब उनकी उम्र महज छह साल थी तभी पिताजी होठीराम गुजर गये. राजकीय प्राथमिक पाठशाला बालेवा में उन्होंने पांचवी तक पढाई की ,लेकिन छठी क्लास में प्रवेश के लिए 14 रूपये की फीस नहीं जुटा पाने की वजह से उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा .घर में कोई कमाई का जरिया भी नहीं था ,इसलिये उन्हें अपना पूरा बचपन गाँव के ही सक्षम लोगों के यहाँ हाली ( बंधुआ श्रमिक ) के रूप में गुजारना पड़ा .

सन 1980 में उन्हें नेहरू युवा केंद्र की ओर से बाड़मेरी चद्दर की प्रिंटिंग सीखने का अवसर मिला . गलीचा बनाने का! हुनर तो उनमें था ही ,इस ट्रेनिंग ने उनके लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिये .1982 में उन्हें गुजरात के राजकोट जिले के जेतपुर तालुका में साड़ी प्रिंट का काम मिल गया ,जहाँ पर रह कर उन्होंने लगातार कईं साल काम किया और अपने परिवार की आर्थिक हालत सुधारी .पारिवारिक स्थिति ठीक हुई तो उन्हें अपनी अधूरी छूट गई पढाई की याद आई .इन्हीं दिनों में उनकी मुलाकात पटवारी उदाराम और मुकनाराम परिहार से हुई,जिन्होंने उन्हें आगे पढ़ने को प्रेरित किया तथा स्वयंपाठी छात्र के रूप में दाखिला भी करा दिया .अब वे दिन में मजदूरी और रात में पढाई करने लगे .1987 में उन्होंने दसवीं पास कर ली और 1989 में उन्होंने सीनियर सेकेंड्री का एग्जाम पास कर लिया . बाद में राजकीय महाविद्यालय बाड़मेर से रेगुलर छात्र के रूप में उन्होंने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त कर अपने पढ़ने के मिशन को कामयाब बना डाला .

कॉलेज स्टूडेंट रहते हुये उदाराम में सामाजिक कार्यों की चेतना आई तथा उन्होंने विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र लोगों को दिलाने और हर दिन अस्पताल जा कर लोगों की सेवा करने जैसे कार्यों को करना शुरू किया .तब तक न कोई दिशा थी और ना ही किसी का मार्गदर्शन. विचारधारा की तो कोई समझ थी ही नही .किसी तरह आगे बढ़ना था ,नाम करना था और कुछ कर दिखाना था .उनकी सक्रियता तथा सेवा भाव को देखते हुए बाड़मेर भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष महानंद शर्मा ने उन्हें बीजेपी में शामिल कर लिया और भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चे का जिला महासचिव नियुक्त कर दिया .भाजपा में वे शीघ्र ही जोगेश्वर गर्ग ,टीकमचंद कान्त ,किशन सोनगरा तथा कैलाश मेघवाल जैसे भाजपाई दलित नेताओं के करीबी बन गये.सम्पर्क बढ़े तो जिले में भाजपा संगठन में भी कद ऊँचा हुआ ,इस तरह वे भाजपा के जिला उपाध्यक्ष के पद तक पंहुच पाने में कामयाब रहे .

राजस्थान में उन दिनों भाजपा का शासन ही था कि 1998 में बाखासर गाँव के लीला धर मेघवाल की हत्या हो गई ,हुआ यह कि बाखासर के नामी डाकू बलवंत सिंह के परिवार से जुड़े लोगों ने लीलाधर व एक अन्य दलित को चलती हुईगाड़ी से फेंक दिया .लीलाधर की तो मौके पर ही मौत हो गई .लीलाधर की मौत ने बाड़मेर के दलित समुदाय को झकझोर कर रख दिया .पूरा जोधपुर संभाग आक्रोश से सुलग उठा .उस वक़्त आक्रोशित दलित समाज के साथ उदाराम मेघवाल पार्टी की परवाह किये बगैर आ खड़े हुये. दलित समुदाय ने उनमें भरोसा जताया तथा उनको दलित संघर्ष समिति बाड़मेर का संयोजक बनाया .30 दिन लम्बा संघर्ष चला .पूरा पुलिस प्रशासन बदल दिया गया ,मगर दलितों की नाराजगी इस कदर थी कि उन्होंने सामूहिक रूप से भाजपा का बहिष्कार कर दिया .भाजपा के जिला उपाध्यक्ष उदाराम मेघवाल ने अपने नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन में अपनी ही पार्टी के बहिष्कार का निर्णय ले कर सबको चौंका दिया .उदाराम मेघवाल उन दिनों को याद करते हुए बताते है कि – “ यह मेरे समाज का निर्णय था , जिसे मुझे मानना ही था ,मेरे लिए तब से अब तक पार्टी से पहले मेरा दलित समाज ही है और आगे भी रहेगा “

भाजपा से खफा उदाराम मेघवाल ने 1998 के चुनावों में भाजपा का विरोध करते हुए खुलकर कांग्रेस का प्रचार किया .प्रदेश में अशोक गहलोत सत्तासीन हुये.उन्होंने अपना वादा निभाया और सरकार बनते ही बाखासर कांड के सभी आरोपियों के खिलाफ चालान करवाया और सभी आरोपी जेल पंहुचे और उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली .इस जीत ने उदाराम मेघवाल को बाड़मेर ही नहीं बल्कि जोधपुर संभाग में भी दलित अत्याचारों के लिए पार्टी हितों से ऊपर उठाकर संघर्ष करने वाले सामाजिक राजनितिक कार्यकर्ता के रूप में स्थापित कर दिया .

कांग्रेस में भी जल्दी ही उनकी लडाई यथास्थिति बरक़रार रखने वाले तत्वों से शुरू हो गई.ग्राम पंचायतों के डीलिमिटेशन को लेकर विधायक आमीन खान से उनकी भिडंत हो गई.दूसरी तरफ नोहडीया के तला के चांदाराम की साजिशन हत्या के विरुद्ध छेड़े गये आन्दोलन की वजह से विधायक अब्दुल हादी भी खिलाफ हो गये.इसके बाद मकाराम मेघवाल तरासर मठ की हत्या और सवाई राम गर्ग हत्याकांड जैसे मामले उठाने की वजह से भी सत्तारूढ़ कांग्रेस से उनके रिश्ते ख़राब हो गये.एक बार फिर उदाराम राजनितिक रूप से चौराहे पर थे .अपने समर्थकों की सलाह पर उन्होंने वापस भाजपा का दामन थाम लिया ,पर ना वो पार्टी को अपना पाये और ना ही पार्टी उनको .2003 वसुंधराराजे मुख्यमंत्री बनी .भाजपा शासन में भी दलित अत्याचारों में कोई कमी नहीं आई. बाड़मेर अत्याचारों की दृष्टि से अव्वल ही बना रहा ,संघर्ष जारी रहा .अंततः उन्होंने भाजपा को अलविदा कह दिया और लोकसभा चुनाव आते आते वे पुनः कांग्रेस में चले गये.हैरत की बात इसलिए भी नहीं थी क्योंकि राजस्थान जैसे प्रदेश में जहाँ भाजपा कांग्रेस जैसी दो ही पार्टियाँ बहुमत प्राप्त करती रहती है तथा किसी मजबूत तीसरे विकल्प के नहीं होने से राजनीती की धुरी बनी हुयी है ऐसे में सदैव ही दलित राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भ्रमित रह कर वे दोनों पार्टियों के बीच फुटबाल बने रहते है .इस विकल्पहीनता को ख़त्म करने की दिशा में काम किये जाने की सख्त जरुरत है .

खैर, सन 2005 के पंचायती राज चुनाव में उदाराम मेघवाल शिव पंचायत समिति में कर्नल सोना राम के सहयोग से प्रधान बनने में सफल रहे .सूबे में सरकार भाजपा की थी , इसलिए प्रधानी का सफ़र काफी मुश्किलों भरा रहा .लेकिन प्रधान रहते हुए भी उदाराम दलित अत्याचारों के मामले में संघर्ष करने में सदैव अग्रणी रहे .उन्होंने अपने पद की परवाह किये बगैर दलित अत्याचार निवारण समिति के बैनर तले लगातार 65 दिन तक धरने पर बैठ कर रिकॉर्ड कायम किया तथा शिवकर के दलितों की जिस जमीन पर सामंत कब्ज़ा जमा बैठे थे ,उसे ना केवल मुक्त करवा दिया बल्कि अवैध रूप से जबरन दलितों की भूमि कब्जाने वाले सभी 22 सामंतों को जेल की सलाखों के पार पंहुचा कर ही दम लिया .

फरवरी 2010 से कांग्रेस से जिला परिषद् के सदस्य भी रहे .सत्ता पुनः कांग्रेस की आ ही चुकी थी .उदाराम मेघवाल कांग्रेस से प्रधान रहने के बाद अब जिला परिषद् के सदस्य थे कि सूचना के अधिकार कार्यकर्ता मंगला राम के हाथ पांव कांग्रेस से ही जुड़े एक सरपंच ने तोड़ दिये. उदाराम मंगलाराम को न्याय दिलाने के संघर्ष में आगेवान हो गये.उन्होंने बिना डरे कांग्रेस की सत्ता से लौहा लिया .प्रदेश अध्यक्ष तथा मुख्यमंत्री तक के पुतले फूंके ,नतीजा यह निकला कि उनके खिलाफ उन्हीं की पार्टी की सरकार ने 4 मुकदमे दर्ज करवा दिए.  फंसाने तथा डराने की हर संभव कोशिस की .उदा राम न डरे और न ही फंसे .चारों मुकदमें झूठे साबित हुये.सरकार ने अपनी लाज उन्हें बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का जिला उपाध्यक्ष बना कर बचाई.

आरटीआई एक्टिविस्ट मंगला राम की न्याय की लडाई के दौरान ही 2011 में मेरी मुलाकात उदाराम जी से हुई,तब से मैं उनको निरंतर मोर्चे पर अग्रणी देखता हूँ .अनथक लड़ते हुये. बेलोस, बेबाक, बेखौफ बोलते हुये. बाड़मेर जिले की प्रतिभाशाली छात्रा डेल्टा मेघवाल के यौन शोषण तथा उसकी रहस्यमय परिस्थितियों में हुए मौत के मामले में हुये आन्दोलन में भी उदाराम मेघवाल काफी सक्रिय रहे है .वर्ष 2016 के अगस्त में उन्होंने बाड़मेर जिले के दलित अत्याचारों के 27 प्रकरणों को लेकर दलित अत्याचार निवारण समिति के ज़रिये 22 दिन लम्बा एक ऐतिहासिक ‘दलित महापड़ाव’ आयोजित किया ,जिसमे हर दिन सैंकड़ों की तादाद में लोगों की उत्साहवर्धक मौजूदगी देखने को मिली .इस महापड़ाव में उठाये गए ज्यादातर प्रकरणों में चालान हो गया है .हालाँकि कुछ मामलों में एफआर भी लगी है . आन्दोलन की वजह से उदाराम मेघवाल तथा उनके साथियों के विरुद्ध एक केस भी दर्ज हुआ है ,पर इस तरह की बातों से वे घबराते नहीं है .लड़ना ही उनकी ज़िन्दगी का मकसद बन चुका है .आजकल वे अपने जिले के एसपी गगन दीप सिंघला से भिड़े हुये है .

दलित अत्याचार निवारण समिति बाड़मेर के जिला संयोजक उदाराम मेघवाल के मुताबिक –“ जिले में दलित अत्याचार के मामले बढ़ते ही जा रहे है .जातिगत अपमान ,मारपीट,जमीने छीनना ,सामूहिक हमला करना , हत्या कर देना तथा दलित महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे गंभीर मामले हर रोज दर्ज हो रहे है ,मगर पुलिस संवेदनशील नहीं है .दलित अत्याचार निवारण कानून में संशोधन होने के बाद अब तक 247 मामले दर्ज हुए है ,जिनमे से 74 में चालान पेश हुआ है .87 को झूठा बता दिया गया है .86 में तफ्तीश जारी होना बताया जाता है ,जो कि अनुसन्धान के लिए प्रदत्त 60 दिनों की अवधि से भी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद अनुसन्धान जारी ही है .हद तो यह है कि अजा जजा अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 संशोधित हो चुका है , 26 जनवरी 2016 से नया कानून लागू हो गया है.14 अप्रैल 2016 से अजा जजा अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम के नियम भी लागू किये जा चुके है ,मगर इसके बावजूद भी बाड़मेर जिले में लगभग 40 दलित अत्याचार के मामले पुराने कानून की विभिन्न धाराओं में दर्ज किये गए ,उसी में उनका अनुसन्धान किया गया तथा न्यायालय में चालान तक पुराने कानून की धाराओं में ही कर दिया गया है .ऐसी अंधेरगर्दी मचा रखी है पुलिस ने ,जिसके खिलाफ हम संघर्षरत है .एसपी हम लोगों को किसी न किसी मामले में फंसा देना चाहता है ,ताकि दलितों की आवाज दब जाये .मगर हम चुप होने वालों में से नहीं है “ उदाराम मेघवाल इस मामले को हाईकोर्ट ले जा रहे है ताकि ठीक से सुनवाई हो सके .

बार बार राजनीतिक प्रतिबद्धताओं में परिवर्तन होने तथा एक ऐसे राजनीतिक दल के सदस्य होने जिसे अम्बेडकरवादी समूह सही नहीं मानते है ,सम्बन्धी सवालों पर उदाराम मेघवाल का कहना है कि –“ मैं कांग्रेस का सदस्य जरुर हूँ ,पर विचारधारा से बाबा साहब के मिशन के करीब हूँ ,मेरे लिए मेरा दलित बहुजन समाज ही प्रथम है .अगर मेरी पार्टी और मेरे समाज के मध्य हितों का टकराव होता है तो मैं अव्वल और आखिरी समाज के ही साथ खड़ा होऊंगा ,मेरे लिए बाबा साहब की विचारधारा ही प्राथमिकता में है “

निश्चित रूप से उदाराम मेघवाल जैसे राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता जय भीम की सेना के वे वफादार सिपाही है ,जो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो रखते है ,मगर वे उसे पाने के लिए मुंह सिल कर नहीं बैठते .मुखर हो कर बोलते है .सड़कों पर उतरते है ,मुट्ठियाँ बांधते है और आकाश में नारे भी उछालते है . अपने ही नेताओं के पुतलों को आग के हवाले भी करते है तथा अपने लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते है क्योंकि उन्हें पूना पैक्ट की खरपतवार कहलाना पसंद नहीं है . विभिन्न राजनीतिक दलों में गुलाम की भांति हाथ जोड़े ,मुंह सिले ,जबड़े भींचे बैठे पदलोलुप दलित बहुजन लीडरों को उदाराम मेघवाल जैसे राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता से सीखना चाहिये कि अपने लोगों के लिए लड़ते हुए भी अपनी शर्तों पर राजनीती में कैसे रहा जा सकता है .

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

मेघवाल समाज के लाडले भजन गायक कलाकार चुन्नी लाल बिकूनिया के भजनों को अफ्रीका फिलिपीन्स मालावाई फ्रांस मे सराया

एक बार फिर से चमक रहे सी.एल.बी.ग्रूप के डायरेक्टर सिंगर चुन्नी लाल बिकूनिया

दोस्तो मेने अफ्रीका मे मालावाई क्षेत्र मे चुन्नी लाल बिकूनिया के गाने को शेयर किया था तो उन्होने  चुन्नी लाल जी के गाने को खूब सराया और उन्होने अफ्रीका फिलिपीन्स नाईजीरीया फ्रांस आदि देशों के लोगो ने बधाई संदेश भेजे दोस्तो यदि यह मेघवाल समाज का युवा अपनी गायकी के क्षेत्र को बढ़ायेंगे तो इनका मार्गदर्शन अन्य देशों मे.शुरू हो जायेगा और अफ्रीका मे बहूत जल्द ही बिकूनिया को गायकी के क्षेत्र मे सम्मानित किया जायेगा और अफ्रीका जाने की आने जाने की व्यवस्था बहूत जल्द ही तेयार होगी इनकी गायकी इतनी मीठी है की कोई भी चुनी लाल जी बिकूनिया के गानों को सुनने का मन करता है

राजस्थान मे अब चुन्नी लाल बिकूनिया को अब दलित वर्ग और अन्य क्षेत्र मे भीम गायकी के नाम से जाने जाने वाले भारत में अब अपनी आवाज के जादू से गायकी में धाक जमाने वाले कलाकार अपनी गायकी के जरिये इस नागौर जिले का नाम पुरे भारत एवं देश विदेश में नाम रोशन करते जा रहे है। इन्ही सुरीली आवाजों में से एक कलाकार जो की जिले के एक छोटे से गाँव के रहने वाले चुन्नी लाल बिकूनिया ने एलबमौ तक अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेर रहे  है।

परबतसर के चुन्नी लाल बिकूनिया की गायकी का हर कोई कायल हो गया। चुन्नी लाल बिकूनिया ने विभिन्न प्रोग्राम में हिंदी, राजस्थानी एवं फोल्क गानो पर अपनी प्रस्तुति दी है।तथा अनेक भजन गाये
हम इनके उज्जवल भविष्य की कामनाये करते है की चुन्नी लाल बिकूनिया अपनी गायकी को बढ़ाते रहे

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

राजस्थान के यो यो सी.एल.बी ग्रूप के सिंगर चुन्नी लाल बिकूनिया ने गाया जय भीम जय भीम सॉन्ग ने पूरे विश्व मे धूम मचाई

मन्डुसिया लेखन // राजस्थान प्रांत के नागौर जिले के परबतसर  का एक और युवा इन दिनों गायकी के क्षेत्र में नाम कमा रहा है। मेघवाल समाज के युवा गायक चुन्नी लाल बिकूनिया  की  म्यूजिक एलबम जय भीम जय भीम  इन दिनों सोशल मीडिया पर धूम मचा रही है। यू-ट्यूब पर यौ यौ सी.एल.बी के नाम से महसूर हो गये है दोस्तो चुन्नी लाल बिकूनिया केवल 22 साल का युवा है चुन्नी लाल बिकूनिया ने जब जय भीम जय भीम गाना गाया  गया तो पूरे देश विदेशो मे छा गये  इस मेघवाल समाज के युवा ने हजारो भजन गजलें गाकर पूरे दोस्तो को अपने काबू मे कर लिया है और अब देश विदेशो से गायकी के ऑफर आ रहे है चुन्नी लाल जी बिकूनिया  के जय भीम जय भीम सांग ये लाखो लोग सुनकर सी एल बी की मधुर आवाज को सराह चुके हैं।


जय भीम जय भीम  इस गीत को अब तक सोशल मीडिया पर करीब लाखो. (करीबन 3 लाख ) लोग सुन चुके हैं  बाद से यह गाना युवाओं की जुबां पर है।
खास बात यह है कि इस गीत में चुन्नी लाल बिकूनिया की सुरीली आवाज के साथ अब राष्ट्रीय देशों मे जगह बना रहे है इस  बेहतरीन वीडियोग्राफी और म्यूजिक के चलते यह गीत कम समय में ही बहुत हिट हो चुका है। नागौर के परबतसर कस्बा निवासी बिकूनिया  ने वर्षों तक संगीत की तालीम लेने के बाद कड़ा रियाज करके अपने सपने को पंख लगाए हैं।
चुन्नी लाल बिकूनिया  कहते हैं कि बचपन से ही मेरा सपना एक अच्छा  गायक कलाकार बनने का है। स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद मैंने गायन का प्रशिक्षण लेना आरंभ कर दिया। इस दौरान कई बेहतरीन संगीतकारों और गायकों ने हौसला बढ़ाया। यहीं से मेरा मनोबल बढ़ा व कई सालों की
कड़ी मेहनत के बाद अपनी जय भीम जय भीम  एलबम लांच करने में सफल रहा हूं। बिकूनिया  प्रदेश के कई प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रमों, महोत्सवों में स्टेज पर अपनी गायकी का जादू दिखा चुके हैं। वहीं, चुन्नी लाल बिकूनिया गीत लिखने और संगीतबद्ध करने में भी पारंगत हैं। बिकूनिया का सपना अब गायन के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय फलक पर नाम कमाने का है। और अब देश विदेश से भी ऑफर आने लग गये है जब मेने बिकूनिया साब को गाना फिलिपीन्स के मेरे फेसबुक मित्र जीसेल कूइजोन को जय भीम जय भीम गाना भेजा तो उनको बहूत पसंद भी आया और मुझे चुन्नी लाल जी बिकूनिया साब के लिये बधाई संदेश भेजा और फ़िर मेने अफ्रीका के मालावाई देश के अब्रेन ऐअन और फ्रांस के च्यूम चेन उरिय्र को जय भीम जय भीम गाना भेजा तो इन्होने यह भारतीय गाने को  भिव राव अम्बेडकर जी की 126 वी जयंती पर बजाया गया और बधाई संदेश दिया गया
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से 

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

पति पत्नी के पवित्र रिश्ते पर एक दूसरे पर विश्वास करना चाहिये जिसमे रिश्ते मे मज़बूती बढ़ाएगी


husband wife romance
पवित्र अगि्न को साक्षी मानकर लिए गए सात फेरे जिंदगी का अहम हिस्सा होते हैं जिसमें प्यार, संयम, समझदारी के साथ जिंदगी भर साथ निभाने का वादा होता है। इसलिए अगर आप भी विवाह के पवित्र बंधन में बंधने जा रहे हैं तो इन वचनों का खास ध्यान रखें ताकि रिश्तों में नयापन, प्यार और विश्वास ताउम्र बना रहे। हमेशा से ही सात नंबर को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण और चिरायु प्रदान करने वाली संख्या माना जाता रहा है, क्यों कि सात नंबर अपने अंदर ब़डे गूढ़, आध्यात्मिक दर्शन और पारलौकिक अर्थ छिपाए हुए हैं। इस पुण्य संख्या के साथ ही जुडी है सप्तपदी यानि दो आत्माओं के मिलन के लिए मांगी गई ईश्वरीय स्वीकृ ति। इस रीति के बिना विवाह संपन्न नहीं हो सकता क्यों कि जब तक वर-वधू ये सात कदम नहीं चलते, विवाह अधूरा ही रहता है। सप्तपदी ही एक ऎसी रस्म है जहां साथ रखे हर कदम के साथ वर-वधू एक-दूसरे से सात जन्म तक का साथ साथ निभाने का वादा करते हैं, पर आज के बदलते परिवेश में ये सात वचन कब टूट जाते हैं पता ही नही चलता, इसलिए अगर आप चाहते हैं कि सात जन्मों का साथ वाकई सात जन्मों तक बना रहे तो सात फेरों के साथ जरूरी है इन बातों का ख्याल रखना ताकि आपके रिश्तों में प्यार की मिठास और खुशियां बनी रहे-
1- दाम्पत्य की अटूट कडी है " विश्वास " और विश्वास पर ही पति-पत्नी का रिश्ता टिका होता है, इसलिए इसमें शक न लाएं क्योंकि अगर यह एक बार आ जाता है तो पूरी जिंदगी लग जाती है टूटी कडी जोडने में, इसलिए जरूरी है कि विश्वास की नींव हिलने न दें बल्कि इतनी मजबूत बनाएं कि प्रचंड आंधी भी इसे हिला न सके।
2-विवाह के बाद अपनी गृहस्थी, बचत व निवेश की योजनाएं बनाएं और इसके साथ फैमिली प्लानिंग भी करके चलें ताकि अनचाहे गर्भ से बचा जा सके और अपनी सुविधानुसार फैमिली बढाई जा सके। 3-कोई इंसान परफेक्ट नही होता है, इसलिए एक-दूसरे में गलतियां न निकालें बल्कि गलतियों को सुधारने का मौका दें। अपने प्यार में इतनी ताकत लाएं कि सामने वाला अपनी कमियों को आपके कहे बिना ही सुधार लें।
4-उनकी पसंद के अनुरूप कार्य करें, मतलब ये नियम अपनाएं "जो तुमको हो पसंद वही बात कहेगें" फिर चाहे वह टीवी देखने का हो या फिर घूमने का, उनकी पसंद को अपनी पसंद बनाएं।
5-अगर पार्टनर खर्चीली प्रवृत्ति वाला है तो कोशिश करें कि खर्चे की सफाई ना मांगे, क्यों कि उनके अपने भी खर्चे होते हैं जिन्हें पूछना व बताना, झग़डे को बढ़ावा देने जैसा होता है, क्यों कि खर्चे करने का हक दोनों का होता है।
6-एक-दूसरे को सरप्राइज जरूर दें। पर झटके वाले ना हों, मतलब जिससे आपका बजट ना बिगडे और पार्टनर भी सरप्राइज देखकर खुश हो जाए।
7-आप चाहें कितने भी व्यस्त क्यों ना हों, पर एक-दूसरे को समय जरूर दें क्यों कि कई बार समय की कमीं के कारण रिश्ते बिखरने लगते हैं, इसलिए अपने पार्टनर के लिए समय जरूर निकालें।
8-रिश्ते में एक-दूसरे के घर की कमियां जरूर गिनाई जाती हैं, इसलिए ऎसे समय पर बुराई तो करें पर बुराई को झगडे का रूप ना दें।
9-गलती होने पर माफी जरूर मांगे, क्यों कि सॉरी कहना बुरी बात नहीं है और ना ही माफ करना मुश्किल काम है,साथ ही माफी मांगने से झगडा आगे नही बढता, इसलिए माफी मांगने में कंजूसी ना करें।
10-कहते हैं रिश्ते में स्पेस जरूरी होता है क्यों कि दूरी से प्यार झलकता है। इसलिए अपने रिश्ते में थोडी दूरी बनाए रखें ताकि आपको उनकी कमी का एहसास हो।
11-सेक्स दाम्पत्य की धुरी है इसलिए एसे अनदेखा ना करें और हर रोज इसमें कुछ नया करने की कोशिश करें। पर जो भी क्रिया करें उसमें पार्टनर की सहमति जरूर होनी चाहिए।
12-अपने पार्टनर के लिए हमेशा ईमानदार रहें और कोई भी ऎसी बात ना छुपाएं जो बाद में पता चलने पर दिल को ठेस पहुंचाए।
13-घर का फैसला हो या फिर अपने लिए कोई भी फैसला अकेले ना लें, बल्कि एक,दूसरे के सलाह-मशविरा लेकर ही फैसला करें।
14- कहते हैं कि खुशियां हमारे आस-पास ही होती हैं,बस उन्हें ढूंढने की जरूरत होती है इसलिए जीवन के हर पल में खुशियां ढूंढे।
15-पति-पत्नि का रिश्ता एक दूसरे के लिए समर्पित होता है,इसलिए अगर आपको लगता है कि आपके पार्टनर व घर के लोगों की जिसमें खुशी है वो आपसे ही पूरी हो सकती है तो उसके लिए कुर्बानी देने में जरा भी संकोच ना करें।
16-अपने साथी की खूबियों की तारीफ करें और इस तारीफ को हो सके तो घर वालों के सामने भी कहें। इससे आत्मविश्वास बढता है।
17-थैंक्यू शब्द जादू का काम करता है, इसलिए अगर आपके पार्टनर ने आपके घर व आपके लिए कुछ किया है तो थैंक्यू जरूर कहें। आपके द्वारा कहा गया थैंक्यू उनको कितनी खुशी देगा उसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते।
18- कभी-कभी हार मान लेना गलत नहीं होता है, इसलिए अगर आपकी गलती नहीे है तो भी हार मान लें। आपका ये व्यवहार देखकर वो आपके आभारी हो जाएंगे।
19-अगर किसी बात को लेकर बहस हो रही है तो उस बात का बतंग़ड ना बनाएं बल्कि तुरन्त खत्म करने की काशिश करें।
20-माना आपकी शादी हो गई है और आप चाहते हैं कि आपका साथी हमेशा आपके साथ रहे तो इस जिद को छोडे और उन्हें दोस्तों के साथ घूमने का मौका भी दें।
 21-अगर आपका किसी बात पर झगडा हो गया है तो बिस्तर पर जाने से पहले झगडे को खत्म कर लें ताकि बिस्तर पर बातें हों तो सिर्फ प्यार की।
22-शादी के बाद अगर आपके साथी का कोई शौक पूरा नहीं हो पाया हैे तो उसे पूरा करने का मौका व सहयोग दें और उसके शौक व रूचियों को बरकरार रखें। शौक को पूरा करने में मददगार बनें न कि दीवार।
23-अगर आपकी कोई फरमाइश है तो उसे साथी को बताएं ना कि फरमाइशों को चाय के प्याले के साथ परोसें।
24-शादी के बाद डेटिंग जैसी चीजों को खत्म ना करें बल्कि मौका मिलते ही डेटिंग पर जाएं ताकि पुरानी यादें ताजा हो सकें।
25-"आई लव यू" ये तीन शब्द सारे गुस्से और झगडे को खत्म कर देता है इसलिए इसे कहने से ना चूकें।
26-अगर आपके पार्टनर ने कुछ नया किया है तो उसे कॉम्पलीमेंट जरूर दें,उससे उसका हौसला बढता है।
27-माना ईगो इंसानी व्यक्तित्व का गुण है,जो समाज में आपकी पहचान के साथ अपने आप विकसित होने लगता है, पर इसका मतलब ये नहीं कि रिश्ते में ईगो लाएं।
28-आपसी तालमेल के दौरान हमेशा अदब व शिष्टाचार रखें। कभी भी अपशब्द का इस्तेमाल ना करें। तर्क-वितर्क करते समय आपा ना खोएं।
29-बार-बार अपने पार्टनर को छोड देने की धमकी ना दें,इससे रिश्ते की डोर कमजोर होती है। 30-आमतौर पर ये माना जाता है कि शादी के बाद प्रेम और परिपक्व हो जाता है,इसलिए प्रेम को और बढाएं ना कि कम होने दें।
31-एक -दूसरे को सम्मान दें, क्यों कि आपके द्वारा दिया गया सम्मान तीसरे की नजर में भी आता है, इसलिए गरिमा बनाए रखें।
32-विवाहित जीवन का भविष्य बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे के प्रशंसनीय पक्ष पर ध्यान दें।

हिन्दू समाज मे सात फेरे और सात वचन


वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कारों को जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं। विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है।

शाब्दिक अर्थ

विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

सात फेरे और सात वचन

विवाह एक ऐसा मौक़ा होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। भारतीय विवाह में विवाह की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है। जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।

सात फेरों के सात वचन

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है। कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

प्रथम वचन

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवासअथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है। जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं, वही सुखद फलदायक होता है। पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

द्वितीय वचन

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!
(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है--गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

तृतीय वचन

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!
(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)

चतुर्थ वचन

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!
(कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)
इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है। विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पाएगी। इसलिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।

पंचम वचन

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!
(इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
यह वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है। बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है, साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

षष्ठम वचनः

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!
(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं। विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है। वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं। ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा। यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।

सप्तम वचनः

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!
(अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है। इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

बहुजन संघर्ष दल के प्रदेशाध्यक्ष कपिल मेघवाल की खास बात

राजस्थान में इन दिनों संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर के नाम पर भीम मेले लग रहे हैं और इन मेलों में उमड़ रही दलित युवाओं की भीड़, समाज में दलित जागृति की नई शुरूआत मानी जा रही है। ऐसे ही भीम मेले इन दिनों राजस्थान के मारवाड़ अंचल में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
जोधपुर। जिले में बहुजन संघर्ष दल के नेतृत्व में लग रहे भीम मेलों में बड़ी संख्या में दलित युवाओं की भीड़ उमड़ रही है। इन भीम मेलों की खास बात ये है कि यहां आने वाले दलित युवाओं को दलित आंदोलनों की ऐतिहासिक जानकारी दी जाती है साथ ही देश के संविधान से लेकर कानून और प्रशासन की जानकारी भी इन युवाओं को दी जा रही है। राजस्थान में पहला भीम मेला जोधपुर जिले के ओसियां में पंडित जी की ढाणी में आयोजित किया गया था। उसके बाद जुलाई में नागौर जिले में खींवसर के आकला गांव में भीम मेला मेला लगाया गया जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुचे। मेले में बहुजन संघर्ष दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष फूलसिंह बरैया के साथ ही संत नानकदास कबीरपंथी भी मौजूद रहे ।
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बहुजन संघर्ष दल के प्रदेशाध्यक्ष कपिल मेघवाल बताते हैं कि ऐसे भीम मेले राजस्थान में पहली बार आयोजित किए जा रहे हैं। जिनमें बढ रही दलित युवाओं की भागीदारी हम सब का मनोबल बढ़ाती है। ऐसे ही भीम मेले महाराष्ट्र में पहले भी लगते रहे हैं। जिनमें दलितों में नई चेतना की जागृति और बाबा साहेब के संदेशों को आमजन तक पहुंचाने काम किया जाता रहा है। सदियों से दलित समाज हर तरह से शोषण का शिकार रहा है और ग्रामीण इलाकों में लोगों के शिक्षित नहीं होने की वजह से जागृति की कमी होती है । इसी कमी को दूर करने के लिए हमने भीम मेले लगाने का निर्णय किया । कपिल मेघवाल कहते हैं कि देशभर के साथ राजस्थान में दलित उत्पीड़न में बढोतरी हुई है। इसकी एक वजह ये भी है कि लोगों को उनके हकों की जानकारी नहीं होना है । हम भीम मेलों में दलितों को कानूनों की जानकारी भी देते हैं। साथ ही उनके हक और अधिकारों को लेकर भी चर्चा करते हैं । खास बात ये भी है कि दलित स्वास्थ कैसे रहे इस बात की जानकारी भी इन मेलों में दी जा रही है। आत्मरक्षा के लिए जुडो-कराटे, व्यायाम और योग की बारिकियां भी दलित युवा इन भीम मेलों के सीख रहे हैं।
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भीम मेले में क्या है खास –
इन भीम मेलों में दलित उत्पीड़न को लेकर बनाए गए कानून, देश के संविधान की जानकारी, प्रशासनिक ढांचे के साथ ही अधिकारियों के बारे में जानकारी और साथ ही बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के किए गए कार्यों की जानकारी भी दलित युवाओं को दी जा रही है। वहीं किसी के भी साथ अत्याचार होने की स्थिति में कैसे एफआईआर दर्ज करवाएं और थाने में मामला दर्ज नहीं होने पर क्या करें इन सब कानूनी पहलुओं को लेकर जानकारी दी जाती है और सरकारी योजनाओं के बारे में भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। राजनैतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े दलितों के लिए ये जानकारी काफी फायेदेमंद साबित हो रही है। इतना ही नहीं भीम मेले में दलित युवाओं को आत्मरक्षा के गुर भी सिखाए जा रहे हैं । जिससे युवा सामाजिक उत्पीड़न का प्रतिकार कर सकें ।

बाबा साहेब की 18 बाते

14 अप्रैल को पूरे विश्व मे बाबा साहेब की जयन्ती बड़े धूम धाम से मनाई जाती  है, और यह भारत के इतिहास का वह ऐतिहासिक दिन है जब सन् 1891 में भीमराव अंबेडकर का जन्म मऊ, मध्य प्रदेश में हुआ था. “बाबा साहेब” के नाम से बाद में प्रचलित हुए इस शख़्स के बारे में आज कुछ भी कहना और लिखना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है. मगर सब कुछ हमेशा से ऐसा ही नहीं था. बाबा साहेब को पूरा देश जिस एक चीज़ के लिए जानता है वो यह है कि वे भारत राष्ट्र के संविधान निर्माता थे और इसी परिप्रेक्ष्य में उनकी दूरदृष्टि और व्यापकता को नज़रअंदाज किया जाता है. बाबा साहेब का जन्म हिन्दू धर्म की महार जाति में हुआ था, जिसे तब के समाज में अछूत का दर्जा दिया गया था. मगर आज आज़ादी के कई वर्षों के बाद भी स्थितियाँ बिलकुल से बदल गई हों ऐसा कतई नहीं है. आज भी हमारे समाज में धार्मिक और जातिगत गैरबराबरी बदस्तूर जारी है. और इसी गैरबराबरी को हटाने के लिए बाबा साहेब अपनी अंतिम सांस तक अनवरत लड़ते रहे और उनका ये संदेश आज़ादी के दौरान जितना प्रासंगिक लगता था, आज उससे कहीं ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होता है.

शिक्षित बनो! संगठित रहो! संघर्ष करो!

1. मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है.2. जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए .3. एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है क्योंकि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है. 4. दिमाग का विकास मानव अस्तित्व का परम लक्ष्य होना चाहिए. 5. हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं.
6. हिंदू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है 7. मनुष्य नश्वर है. ऐसे विचार होते हैं. एक विचार को प्रचार-प्रसार की ज़रूरत है जैसे एक पौधे में पानी की ज़रूरत होती है. अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे.

8. मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री द्वारा करता हूँ. 9. इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र में संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है. निहित स्वार्थों को स्वेच्छा से कभी नहीं छोड़ा गया है जब तक कि पर्याप्त बल लगा कर मजबूर न किया गया हो. 10. हर व्यक्ति जो “MILL” का सिद्धांत जानता है, कि एक देश दूसरे देश पर राज करने में फिट नहीं है, उसे ये भी स्वीकार करना चाहिये कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर राज करने में फिट नहीं है. 11. लोग और उनके धर्म सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए. अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा.
12. एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ़ असंतोष का होना काफ़ी नहीं है. आवश्यकता है राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व, ज़रुरत व न्याय का पूर्णतया गहराई से दोषरहित होना  13. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए. 14. यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा.
15. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है. 16. समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा. 17. राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं हैं और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है. 18. अपने भाग्य के बजाय अपनी मजबूती पर विश्वास करो.

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

डॉ. अम्बेडकर के विचार देश के लिए आज भी प्रेरणादायक- ईश्वर चंद मन्डुसिया


सुरेरा :- भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 126 वीं जयन्ती के अवसर पर रविदास चौक मे  अम्बेडकर प्रतिमा पर पुष्प चढाकर श्रृद्धासुमन अर्पित किये गये। इस अवसर पर सुरेरा गाँव के सरपंच व उपसरपंच जयवीर सिंह शेखावत तथा गाँव के सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर चंद मन्डुसिया और प्रकाश मीना राकेश वर्मा मूल चंद पिपरालिया राजलिया दिनेश पिपरालिया राजलिया राकेश पिपरालिया राजलिया आदि  ने अम्बेडकर की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हे याद किया। ईश्वर चंद मन्डुसिया  कहा कि डॉ. अम्बेडकर के विचार आज भी समाज को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं अब उनके विचारों को अंगीकार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने महिला एवं समाज के पिछडे लोगों के उत्थान की जो पहल की थी उसके लिए आने वाली पीढियां हमेशा ऋणी रहेगी। भारतीय संविधान के निर्माण में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता इस अवसर पर सुरेरा गाँव के अनेक युवा साथी और बुजुर्ग तथा बच्चे शामिल थे तथा दसवीं और बाहरवी के बच्चो ट्रोफिया देकर सम्मानित किया गया 

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

यहाँ देखिये मेघवाल समाज का ऐसा इतिहास जो की आपको सोचने पर मजबूर कर देगा

इतिहास तो बाद की बात हैपहले कुछ ऐतिहासिक सवाल हैं -
मेघों का इतिहास है तो उन्होंने युद्ध भी लड़ा होगाइसके पर्याप्त सबूत हैं कि मेघवंशी या मेघ-भगत योद्धा रहे हैं हालाँकि उनकेअधिकतर इतिहास का लोप कर दिया गया हैनवल वियोगी जैसे इतिहासकारों ने 


 तथ्यों के साथ इतिहास को फिर से लिखाहै और बताया है कि इस देश के प्राचीन शासक नागवंशी थेआपने मेघ ऋषि के बारे में सुना होगा उसे वेदों में 'अहि' यानि'नाग' कहा गया है.

''मेघवंश'


 एक मानव समूह है जो उस कोलारियन ग्रुप से संबंधित है जो मध्य एशिया से ईरान के रास्ते इस क्षेत्र में आया था.इसका रंग गेहुँआ (wheetish) है.

मेघवंशी सत्ता में रहे हैं जिसे 'अंधकार युग' (dark period या dark agesकहा जाता थालेकिन के.पीजायसवालनवल वियोगीएस.एनरॉय-शास्त्री (जिन्होंने मेघ राजाओं के सिक्कों और शिलालेखों का अध्ययन कियाऔर आर.बीलाथम ऐसे इतिहासकार हैं जिनकी खोज ने उस समय का इतिहास खोजाआज इतिहास में कोई 'अंधकार काल' नहीं है.

मेघवंशी रेस ने मेडिटेरेनियन साम्राज्य की स्थापना की थी जो सतलुज और झेलम तक फैला थापर्शियन राज्य की स्थापना के बाद यह समाप्त हो गया और मेदियन साम्राज्य के लोग बिखर गए होंगे इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है.

आर्यों के आने से पहले सप्तसिंधु क्षेत्र में बसे लोग 'मेघ ऋषि' जिसे 'वृत्र' भी कहा जाता है के अनुगामी थे या उसकी प्रजा थे.उसका उल्लेख वेदों में आता हैकाबुल से लेकर दक्षिण में नर्बदा नदी तक उसका आधिपत्य (Suzerainty) थासप्तसिंधु का अर्थ है सात दरिया यानि सिंधसतलुजब्यासराविचिनाबझेलम और यमुनाआर्यों का आगमन ईसा से लगभग 1500 वर्ष पूर्व माना जाता है और मेदियन साम्राज्य ईसा से 600 वर्ष पूर्व अस्तित्व में थाइस दौरान आर्यों के बड़ी संख्या में आने की शुरूआत हुई और इस क्षेत्र में मेघवंशियों के साथ लगभग 500 वर्ष तक चले संघर्ष के बाद आर्य जीत गएयह लड़ाई मुख्यतः दरियाओं के पानी और उपजाऊ जमीन के लिए लड़ी गई.

आर.एलगोत्रा जी ने लिखा है कि 'वैदिक साहित्य के अनुसार मेघ या वृत्र से जुड़े लगभग लाख मेघों की हत्या की गई थी'.धीरे-धीरे आर्यों का वर्चस्व स्थापित होता चला गया जो बुद्ध के बाद पुष्यमित्र शुंग के द्वारा असंख्य बौधों की हत्या तक चला जिसमें बौधधर्म के मेघवंशी प्रचारक भी बड़ी संख्या में शामिल थेकालांतर में ब्राह्मणीकल व्यवस्था स्थापित हुईमनुस्मृति जैसा धार्मिक-राजनीतिक संविधान पुष्यमित्र ने स्मृति भार्गव से लिखवायाजात-पात निर्धारित हुई और मेघवंशियों का बुरा समय शुरू हुआ.

मेघों का प्राचीन इतिहास भारत में कम और पुराने पड़ोसी देशों के इतिहास में अधिक हैयह उनके लिए दिशा संकेत है जो खोजी हैं.

ख़ैरबहुत आगे चल कर आर्य ब्राह्मणों की बनाई हुई जातिप्रथा में शामिल होने से मेघवंश से कई जातियाँ निकलींपंजाब और जम्मू-कश्मीर के मेघ-भगत एक जाति है तथापि मेघवंश से राजस्थान के मेघवाल भी निकले हैं और गुजरात के मेघवार भीकई अन्य जातियाँ भी मेघवंश से निकली हैं जिन्हें आज हम पहचाने से इंकार कर देते हैं लेकिन पहचानने की कोशिशें तेज़ हो रही है.

आपके गोत्र में आपका थोडा-सा इतिहास रहता है और आपका सामाजिक स्तर भी. गोत्र से उन सारी बातों का प्रचार हो जाता हैजो याद दिलाती रहती हैं कि कौन सा वर्ण सबसे ऊँचा है या सबसे ऊँचे से कितना नीचे है.

लोगों को आपने जन्म-मरणविवाह के संस्कारों के समय अपना गोत्र छिपाते हुए देखा होगावे केवल ऋषि गोत्र से काम चलाना चाहते हैंवे जानते हैं कि गोत्र बता कर वे अपनी जाति और अपने सामाजिक स्तर की घोषणा खुद करते हैं जो उन्हें अच्छा नहीं लगतागोत्र की परंपरा का बोलबाला देख कर मेघों ने भी ख़ुद को ब्राह्मणवादी व्यवस्था में मिलाते हुए इस गोत्र व्यवस्था कोअपनायागोत्र-परंपरा ब्राह्मणी परंपरा से ली गई प्रथा है.

आमतौर पर ब्राह्मण परंपरा में गोत्र को रक्त-परंपरा (अपना ख़ूनऔर वंश के अर्थ में लिया जाता हैइसलिए ब्राह्मण हमेशाब्राह्मण ही रहेगामेघवंशी मेघवंशी ही रहेगावह आर्य या ब्राह्मण नहीं बन सकताएक अन्य परंपरा के अनुसार मेघों की पहचान वशिष्टी के नाम से ही की जाती थीइसलिए सारे भारत में मेघ वाशिष्ठीवशिष्टा या वासिका नाम से जाने गएफिरकई भू-भागों में यह वशिष्टा नाम धीरे-धीरे लुप्तप्राय हो गया.

आदिकाल से ही मेघ लोग अपने मूलपुरुष के रूप में मेघ नामधारी महापुरुष को मानते आए हैंयह मूल पुरुष ही उनका गोत्रकर्ता(वंशकर्ताहैइसे सभी मेघवंशी मानते हैं.

मेघों का धर्म
क्या मेघों का अपना कोई पुराना धर्म हैइतिहास खुली नज़र से इसका भी रिकार्ड देखता है. मेघ समुदाय में मेघों के धर्म के विषय पर कुछ कहना टेढ़ी खीर हैजम्मू के एक उत्साही युवा सतीश एक विद्रोही ने इस विषय पर एक चर्चा आयोजित की थी जिसमें बहुत-सी बातें उभर कर आई थींवैसे आज धर्म नितांत व्यक्तिगत चीज़ है.

राजस्थान के बहुत से मेघवंशी अपने एक पूर्वज बाबा रामदेव में आस्था रखते हैंगुजरात के मेघवारों ने अपने पूर्वज मातंग ऋषिऔर ममई देव के बारमतिपंथ को धर्म के रूप में सहेज कर रखा है और उनके अपने मंदिर हैंपाकिस्तान में भी हैंप्रसंगवश मातंग शब्द का अर्थ मेघ ही हैमेघवार अपने सांस्कृतिक त्योहारों में सात मेघों की पूजा करते हैंसंभव है वे सात मेघवंशी राजा रहे होंममैदेव महेश्वरी मेघवारों के पूज्य हैं जो मातंग देव या मातंग ऋषि के वंशज हैंममैदेव का मक़बरा जिस कब्रगाह में है उसे यूनेस्को ने विश्वधरोहर (World Heritage) के रूप में मान्यता दी हैइस प्रकार एक मेघवंशी का निर्वाण स्थल विश्वधरोहर में है.

मेघ कई अन्य धर्मों/पंथों में गए जैसे राधास्वामीनिरंकारीब्राह्मणीकल सनातन धर्मसिखिज़्मआर्यसमाजईसाईयतविभिन्न गुरुओं की गद्दियाँडेरे आदिसच्चाई यह है कि जिसने भी उन्हें 'मानवता और समानताका बोर्ड दिखाया वे उसकी ओर गए.लेकिन उनका सामाजिक स्तर वही रहाधार्मिक दृष्टि से उनकी अलग पहचान और एकता नहीं हो पाईमेघों ने सामूहिक निर्णय कम ही लिए हैं.

लेकिन इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि आर्यसमाज द्वारा मेघों के शुद्धीकरण के बाद मेघों का आत्मविश्वास जागाउनकी राजनीतिक महत्वाकाँक्षा बढ़ी और स्थानीय राजनीति में सक्रियता की उनकी इच्छा को बल मिलावे म्युनिसपैलिटी जैसी संस्थाओं में अपनी नुमाइंदगी की माँग करने लगेइससे आर्यसमाजी परेशान हुए.

मेघों की नई पीढ़ी कबीर की ओर झुकने लगी है ऐसा दिखता है और बुद्धिज़्म को एक विकल्प के रूप में जानने लगी हैयह भी आगे चल कर मेघों के धार्मिक इतिहास में एक प्रवृत्ति (tendencyके तौर पर पहचाना जाएगामेघों में संशयवादी(scepticism) विचारधारा के लोग भी हैं जो ईश्वर-भगवानमंदिरधर्मग्रंथोंधार्मिक प्रतीकों आदि पर सवाल उठाते हैं और उनकी आवश्यकता महसूस नहीं करतेमेघों की देरियाँ भी उनके पूजास्थल हैं जो अधिकतर जम्मू में और दो-तीन पंजाब में हैं.

इधर ''मेघऋषि'' का मिथ धर्म और पूजा पद्धति में प्रवेश पाने के लिए आतुर हैमेघऋषि की कोई स्पष्ट तस्वीर तो नहीं है लेकिन कल्पना की जाती है कि एक जटाधारी भगवा कपड़े पहने ऋषि रहा होगा जो पालथी लगा कर जंगल में तपस्या करता थाइसी पौराणिक इमेज के आधार पर गढ़ाजालंधर में एक मेघ सज्जन सुदागर मल कोमल ने अपने देवी के मंदिर में मेघऋषि की मूर्ति स्थापित की हैराजस्थान में गोपाल डेनवाल ने मेघ भगवान और मेघ ऋषि के मंदिर बनाने का कार्य शुरू किया हैइसके लिए उन्होंने मोहंजो दाड़ो सभ्यता में मिली सिन्धी अज्रुक पहने हुए पुरोहित-नरेश (King Preist) की 2500 .पू.की एक प्रतिमा जो पाकिस्तान के नेशनल म्यूज़ियमकराचीमें रखी है उसकी इमेज या छवि का भी प्रयोग किया है. मेघ भगवान की आरतियाँचालीसास्तुतियाँ तैयार करके CDs बनाई और बाँटी गई हैं.

कमज़ोर आर्थिक-सामाजिक स्थिति की वजह से राजनीति के क्षेत्र में मेघों की सुनवाई लगभग नहीं के बराबर है और सत्ता में भागीदारी बहुत दूर की बात हैएक सकारात्मक बात यह है कि पढ़े-लिखे मेघों ने बड़ी तेज़ी से अपना पुश्तैनी कार्य छोड़ कर अपनी कुशलता कई अन्य कार्यों में दिखाई और उसमें सफल हुएव्यापार के क्षेत्र में इनकी पहचान बने इसकी प्रतीक्षा है.

मेघों के इतिहास के ये कुछ पृष्ठ ख़ाली पड़े हैं.

1. अलैक्ज़ेंडर कन्निंघम ने अपनी खोज में मेघों की स्थिति को सिकंदर के रास्ते में बताया हैहालाँकि राजा पोरस पर कई जातियाँ अपना अधिकार जताती हैंतथापि यह देखने की बात है कि उस समय पोरस की सेना में शामिल योद्धा जातियाँ कौन-कौन थींभूलना नहीं चाहिए कि उस क्षेत्र में मेघ बहुत अधिक संख्या में थे जो योद्धा थेकुछ इतिहासकारों ने बताया है कि पोरस ने ही सिकंदर को हराया था.

2. केरन वाले भगता साध की अगुआई में कई हज़ार मेघों ने मांसाहार छोड़ायह एक तरह का एकतरफा करार थाइस करार की शर्तों और पृष्ठभूमि को देखने की ज़रूरत है.

3. कुछ मेघों ने विश्वयुद्धों मेंपाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्धों में हिस्सा लिया हैवे दुश्मन की सामाओं में घुस कर लड़े हैंउनके बारे में जानकारी नहीं मिलती.

4. दीनानगर की अनीता भगत ने बताया था कि एक मेघ भगत मास्टर नरपत सिंहगाँव बफड़ींतहसील और ज़िला हमीरपुर(हिमाचल प्रदेश), (जीवन काल सन् 1914 से 1992 तक) स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा पा चुके हैं. अनीता ने उनके बारे में जानकारी और फोटोग्राफ इकट्ठे करके भेजे हैंउस वीर को 1972 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए ताम्रपत्र भेंट किया थागाँव की पंचायत ने उनके सम्मान में स्मृति द्वार बनवाया हैएक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिसके शरीर पर गोलियों के छह निशान थेऐसे लोग शायद और भी मिलेंदेखिएढूँढिए.

5. मेघवंश के लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का रिकार्ड तैयार करने की भी ज़रूरत हैएडवोकेट हंसराज भगतभगत दौलत राम जी के बारे में कुछ जानकारी मिली हैयह सूची अधूरी है.

6. ऐसे ही मेघों के राजनेताओं की जानकारी का संकलन अभी तक नहीं हो पाया है.

जो अब तक कहा गया है उसे अंत में आप मेघों के इतिहास की हेडलाइन्स समझ कर संतोष करें.

मेघ इतने दमन के बावजूद बेदम नहीं हुए बल्कि आज वे पहले से अधिक प्रकाशित हैंअन्य जातियों के साथ मिला कर वे देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैंआने वाले समय में इनकी भूमिका बहुत एक्टिव होगी और स्पेस भी अधिक होगापनेपिछले इतिहास को थोड़ा-सा जान लिया हैअब अपने आज को सँवारिए और भविष्य बनाइए जो आपका है.

जय मेघजय भारत.

भारत भूषण भगत
 चंडीगढ़.

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...