गुरुवार, 15 जून 2017

भारत मे दलितों की स्थिति के बारे मे जानकार रह जायेंगे दंग पढ़िये पूरी रिपोर्ट

नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //दलितों को लेकर देश की राजनीति गर्म है। ऐसा हमेशा से होता आया है। लेकिन देश में दलितों की स्थिति में आजादी के बाद से ही कोई खास सुधार नहीं हुआ है। देश में अनुसूचित जाति की आबादी 20 करोड़ है, जिन्हें दलित कहा जाता है। इनकी जनसंख्या करीब 20% की दर से बढ़ी है लेकिन आज भी बड़ी सरकारी पोस्ट्स पर इनकी मौजूदगी न के बराबर है। हालांकि दलित एंटरप्रेनोयर बढ़ रहे हैं। दलितों की स्थिति पर रिपोर्ट...
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए 2014 में प्रोफेसर अमिताभ कुंडु ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। 

- इसमें बताया गया था कि आज देश में एक तिहाई दलितों के पास जीवन की सबसे कम जरूरतों को पूरा करने वाली सुविधाएं नहीं हैं।
-  गांवों में 45 फीसदी दलित परिवारों के पास जमीन नहीं हैं और वह छोटी-मोटी मजदूरी कर गुजारा करते हैं।
- हालांकि सरकार ने साल 2016-17 में दलितों के ऊपर उठाने के लिए 38,832 करोड़ रुपए का आवंटन किया है, यह आंकड़ा पिछले बजट में 30 हजार करोड़ था।
पत्रकार रामा लक्ष्मी अपनी रिपोर्ट में कहती हैं कि दलित युवा अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए टि्वटर का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। 
- कोलकाता में कुछ महीने पहले जब ब्रिज गिरा और दर्जनों लोग मारे गए तब कंस्ट्रक्शन कंपनी पर सवाल उठने लगे।

- इसी दौरान एक अमीर व्यवसायी मोतीलाल ओसवाल ने ट्वीट किया कि यह देश के उन इंजीनियर्स के कारण हुआ है, जो टैलेंट के दम पर नहीं बल्कि जाति का लाभ लेकर इंजीनियर बनते हैं। 
- उनके इस ट्वीट के बाद सैकड़ों दलितों ने उनके विरोध में ट्वीट किया। मामला इस कदर बढ़ा कि घंटे भर के अंदर उन्होंने न केवल अपना ट्वीट डिलीट किया बल्कि माफी भी मांगी।उन्होंने ओसवाल के ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी खूब शेयर किया। 
- ऐसा ही एक कैंपेन ट्वीटर पर दलितों ने देश की उस कंपनी के खिलाफ चलाया जिसने अपने एक ऐड में आरक्षण का फायदा लेने से इंकार करने वाले लोवर कास्ट स्टूडेंट को दिखाया था। 
- दलित राइटर चंद्रभान प्रसाद कहते हैं कि अपर कास्ट लोगों के लिए ट्विटर बना होगा लेकिन दलितों के लिए क्रांति का जरिया है। 
- इन्होंने ही हाल ही में दलित फूड्स के नाम से ऑनलाइन स्टार्टअप शुरू किया है। इसकी खासियत यह है कि ये वेबसाइट्स पर बिकने वाले सभी प्रोडक्ट्स दलितों द्वारा बनाए हुए लेते हैं। 

80 फीसदी दलित ग्रुप-डी और सी नौकरियों में

भारत सरकार के पूर्व ज्वाइंट सेक्रेटरी ओपी शुक्ला कहते हैं कि सरकारी नौकरियों में 80 फीसदी दलित ग्रुप-डी और सी की नौकरियों में थे, जिसे 6ठवें वेतनमान के बाद सरकार ने मिलाकर ग्रेड 3 कर दिया है। 
- चपरासी, सफाई कर्मचारी, ऑफिस ब्वाय, क्लर्क और डाटा ऑपरेटर आदि पदों पर 80 फीसदी कर्मचारी ठेके पर रखे जा रहे हैं, इसलिए सरकार ने जहां से सबसे ज्यादा दलित नौकरियों में आते थे, उसे एक तरह से बंद कर दिया है।
- नेशनल कमिशन फॉर शेड्यूल कास्ट के चेयरमैन पीएल पुनिया के अनुसार देश में 1064 जातियां अनुसूचित जाति या दलित वर्ग के तहत आती हैं। इनकी आबादी कुल जनसंख्या की 16.6 फीसदी हैं। 
- वहीं उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में करीब 50 पिछड़ी जातियां ऐसी हैं जो खुद को एसी वर्ग में शामिल करने की मांग कर रही हैं। 

 कोटा 15% का ; नौकरियों में हैं 17% क्योंकि 40% सिर्फ सफाई कर्मचारी 

 कुल सरकारी नौकरियों में 17 फीसदी दलित हैं, जबकि कोटा 15 फीसदी है। बढ़ोतरी का यह आंकडा इसलिए है क्योंकि 40 फीसदी सफाई कर्मचारी दलित जाति से हैं। 
- इसी के चलते क्लास फोर्थ यानी ग्रुप डी की नौकरियों में दलित 19.3 फीसदी हैं, जबकि ग्रुप सी में 16 फीसदी हैं।
- हालांकि हर साल 30% बढ़ रहे हैं दलित एंटरप्रेन्योर। 2001 में देश में दलित एंटरप्रेन्योर 10.5 लाख थे। जो 2006-07 में बढ़कर 28 लाख हो गए। 
- एक अनुमान के मुताबिक अब इनकी संख्या 87 लाख से अधिक है। वर्तमान में हर साल 30% एंटरप्रेन्योर उद्यमी बढ़ रहे हैं।
सोर्स- नेशनल सैंपल सर्वे आॅर्गेनाइजेशन-इकाॅनाॅमिक डाटा, सेंसस 2011, लोकसभा में पेश रिपोर्ट, एनसीआरबी रिपोर्ट, दलित इंडियन चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री

दलित शब्द कहा से आया जानिये दलित शब्द के बारे मे

नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //आज तक मे सोचता था की ये दलित शब्द क्या है लेकिन दलित शब्द के बारे मे पूरी तरह पढ़ने के बाद पता चला की दलित शब्द का तो सर्वप्रथम 1831 मे पाया गया था 

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विवेक कुमार बताते हैं कि दलित शब्द का जिक्र सबसे पहले 1831 की मोल्सवर्थ डिक्शनरी में पाया जाता है. फिर बाबा भीमराव अंबेडकर ने भी इस शब्द को अपने भाषणों में प्रयोग किया.
क्या आपको पता है कि ‘दलित’ शब्द कहां से आया है? किसने इस शब्द को सबसे पहले इस्तेमाल किया? किसने इस शब्द को समाज के पिछड़े तबके से जोड़ा?

इस स्टोरी में हम इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे. आपको बता दें कि ये रिपोर्ट दलित चिंतकों, रिसर्चर, प्रोफेसर्स, वरिष्ठ पत्रकारों और समाजिक कार्यकर्ताओं से की गई बातचीत पर आधारित है.
अक्सर आप अखबार के पहले या फिर बीच के पन्नों में दलितों पर हो रही हिंसा की खबरें देखते होंगे. क्विंट हिंदी भी दलितों के खिलाफ हिंसा के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाता रहा है. लेकिन इस बीच हमने एक कोशिश की है ‘दलित’ शब्द के इतिहास को टटोलने की.

दलित शब्द का जिक्र

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विवेक कुमार बताते हैं कि दलित शब्द का जिक्र सबसे पहले 1831 की मोल्सवर्थ डिक्शनरी में पाया जाता है. फिर बाबा भीमराव अंबेडकर ने भी इस शब्द को अपने भाषणों में प्रयोग किया.

कुछ जानकार बताते हैं कि 1921 से 1926 के बीच ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल ‘स्वामी श्रद्धानंद’ ने भी किया था. दिल्ली में दलितोद्धार सभा बनाकर उन्होंने दलितों को सामाजिक स्वीकृति की वकालत की थी.

दलित शब्द का संविधान में कोई जिक्र नहीं

2008 में नेशनल एससी कमीशन ने सारे राज्यों को निर्देश दिया था कि राज्य अपने आधिकारिक दस्तावेजों में दलित शब्द का इस्तेमाल न करें. 

दलित पैंथर्स ने दिया पिछड़ों को नया नाम

साल 1972 में महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स मुंबई नाम का एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन बनाया गया. आगे चलकर इसी संगठन ने एक आंदोलन का रूप ले लिया.

नामदेव ढसाल, राजा ढाले और अरुण कांबले इसके शुरुआती प्रमुख नेताओं में शामिल हैं. इसका गठन अफ्रीकी-अमेरिकी ब्‍लैक पैंथर आंदोलन से प्रभावित होकर किया गया था.

यहीं से ‘दलित’ शब्द को महाराष्ट्र में सामाजिक स्वीकृति मिल गई. लेकिन अभी तक दलित शब्द उत्तर भारत में प्रचलित नहीं हुआ था.

नॉर्थ इंडिया में दलित शब्द को प्रचलित कांशीराम ने किया. DS4 जिसका मतलब है दलित शोषित समाज संघर्ष समिति. इसका गठन कांशीराम ने किया था और महाराष्ट्र के बाद नॉर्थ इंडिया में अब पिछड़ों और अति-पिछड़ों को दलित कहा जाने लगा था.


चंद्रभान प्रसाद, दलित चिंतक

ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़ बाकी सब DS4 - कांशीराम का नारा


लंबे समय से ये शब्द इस्तेमाल में रहा है, लेकिन इसका पॉपुलर इस्तेमाल दलित पैंथर्स ने ही किया. अंबेडकर ज्यादातर डिप्रेस्ड क्लास शब्द का ही इस्तेमाल करते थे, अंग्रेज भी इसी शब्द का इस्तेमाल करते थे और फिर यहीं से ‘दलित’ शब्द बना.


विवेक कुमार, प्रोफेसर, सोशल सिस्टम और सोशल साइंस सेंटर, जेएनयू

1929 में लिखी एक कविता में राष्ट्रकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भी ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल किया था, जो इस बात की पुष्टि करता है कि ये शब्द प्रचलन में तो था, लेकिन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं किया जाता था. 1943 में ‘अणिमा’ नाम के काव्य संग्रह में उनकी ये कविता छपी.

दलित जन पर करो करुणा।
दीनता पर उतर आये प्रभु,
तुम्हारी शक्ति वरुणा।

राजनीतिक विश्लेषक और रिसर्चर मनीषा प्रियम कहती हैं कि ‘दलित’ शब्द दरअसल लोकभाषा के शब्द दरिद्र से आया है. किसी जाति विशेष से ये शब्द नहीं जुड़ा है इसलिए इसे स्वीकृति भी बड़े पैमाने पर मिली:- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से 

सूपर स्टार सिंगर चुन्नी लाल बिकूनिया की सुरीली आवाज़ बन रही रही युवाओं की धड़कन

नवरत्न मन्डुसिया की कलम से  //सी.एल.बी म्यूज़िक ग्रूप के अध्यक्ष चुनी लाल जी बिकूनिया के बारे मे अवगत करा रहा हूँ चुनी लाल जी बिकूनिया राजस्थान प्रांत के नागौर जिले के परबतसर गाँव के एक प्राथमिक स्कूल से शिक्षा ली और उसके बाद एक निजी विधालय से 12वी पास करने के बाद अपने गायन क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण जिंदगी की महत्वपूर्ण दिशा समझे और उसके बाद गायन क्षेत्र मे चुनी लाल जी बिकूनिया का बहूत जोरों शोरो से गायन के क्षेत्र मे नाम चलने लग गया मेघवाल समाज मे जन्मे बिकूनिया के गाने आज राजस्थान के अलवा अन्य राज्यों मे भी बहूत महत्वपूर्ण रुप से माँग आ रही है चुन्नी लाल बिकूनिया के जब जय भीम जय भीम गीत बाजार मे आया तो इस भजन से पूरो राज्यों मे धूम सी मचने लग गयी उसके बाद चुन्नी लाल बिकूनिया ने उसके बाद मेघवाल समाज के लोगो को उनकी राजनीति उनकी आर्थिक सामाजिक धार्मिक संस्कॄति सांस्कृतिक विचार धारायें आदि को अपने गीतों के माध्यम से उकेरा गया दोस्तो आज के ज़माने के यह 20 या 22 साल का यह युवा आगे जाकर पूरे देश मे नाम रोशन करेंगे चुन्नी लाल बिकूनिया राजस्थान के मारवाड़ राजस्थानी गानों के   गायक कलाकार है  जो कि मुख्यतः हिन्दी और राजस्थानी फिल्मों में गाने भजन गाये जाते हैं। बिकूनिया  राजस्थानी भाषा मे कई गाने भजन गीत गाये है और अब वर्तमान समय मे  मणिपुरी, गढ़वाली, ओडि़या, तमिल, असामीज, पंजाबी, बंगाली, मलयालम, मराठी, तेलगु और नेपाली आदि भाषाओं की तेयारी कर रहे है बहूत जल्द ही इन भाषाओं मे गायकी के सुर बढ़ायेंगे और जल्द ही इन भाषाओं मे  शामिल होंगे  उनके राजस्थानी पाॅप एल्बम भी रिलीज होने वाले है और पोप एलबम और रीलिज करेंगे और उन्हें कुछ राजस्थानी  फिल्मों में अभिनेता के तौर पर भी काम करने के लिये अपने क़दम बढ़ायेंगे है। वे पुरूषों में कई बड़े बड़े गायक कलाकारों  के बाद ऐसे गायक रहे हैं जिन्होंने सबसे लंबे वक्त तक राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री में राज किया है। उनकी आवाज का जादू कुछ ऐसा हैं कि इसने पूरे देश में उनकी गायकी का लोहा माना और वे हर वर्ग के लोगों की पसंद बन गए चुन्नी लाल बिकूनिया की सुरीली आवाज़ एक नये युग की पहचान बन गयी है चुनी लाल बिकूनिया को नवरत्न मन्डुसिया की तरफ़ से तहदिल से आभार प्रकट करते है और उनके उज्ज्वल जीवन की शुभकामनाएँ देता हूँ मेघवाल समाज मे वेसे बहूत गायक कलाकार है जिसमे चुन्नी लाल बिकूनिया का नाम भी अग्रणी चलता है चुन्नी लाल बिकूनिया अपने आप को भीम पुत्र होने पर बहूत गर्व महसूस करते है  चुन्नी लाल बिकूनिया ने बाबा रामदेव जी महाराज तेजा जी महाराज पाबू जी महाराज देव नारायण चतुर दास जी महाराज मेघवाल समाज के भजन भीम सेना के भजन बालाजी महाराज माता जी के भजन खाटुश्याम जी महाराज के भजन सालासर बालाजी के भजन गणेश जी महाराज के भजन केसरिया कंवर जी महाराज के भजनआदि भजनों मे अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर भजनों की प्रस्तुति दी है चुन्नी लाल बिकूनिया गायकी क्षेत्र के साथ साथ समाज मे भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है बड़े बुजर्गों युवाओ आदि से अपना व्यक्तिगत आधार रखते है और बहूत मिलनासार वाले युवा गायक कलाकार है :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...