मंगलवार, 30 जनवरी 2018

परम श्रध्देय श्री बंशीदास जी महाराज की प्रथम बरसी पर शत-शत नमन.....


स्मृति शेष....
संघर्षशील वयक्तित्व के धनी परम श्रद्धेय श्री बंशीदास जी महाराज सांगलपति
 (मेघवाल समाज के नवरत्न मंडुसिया के  सामाजिक ब्लॉग की ओर से स्वामी बंशी दास जी महाराज को शत शत नमन
भीम प्रवाह न्यूज, सीकर। राजस्थान का शेखावाटी क्षैत्र वीर सपूतो की संत महापुरूषो की धरा के नाम से जाना जाता है। यहां कि धरा पर हजारो ऐसे शूरवीर हुए है जिन्होने देश सेवा में अपने प्राणो की आहुति देकर शेखावाटी व देश का नाम रोशन किया है। यहां का रहन शहन,खान-पान,भाषा व भोगोलिक वातावरण देश में अपनी अलग पहचान रखता हैं। यहां के धार्मिक स्थलों के कारण क्षैत्र की देशभर में विशेष पहचान हैं। यहां के साधु संतो व्दारा लोककल्याणार्य करवाए गए कार्य सदैव जन जन की जुबान पर रहते हैं।
 शेखावाटी के सीकर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर सांगलिया नामक गांव स्थित हैं। इस गांव की धार्मिक पीठ बाबा लक्कड़दास आश्रम,सांगलिया धूणी के कारण आज देशभर में इसकी विशेष पहचान हैं। धूणी पर प्रतिवर्ष देश के कौने कौने से हजारो लोग पहुंचते है व यहां के संतो व्दारा करवाए गए अनुकरणीय कार्यो का स्मरण करते हैं।

धूणी की स्थापना लगभग 400 वर्ष पूर्व बाबा लक्कड़दास ने की थी। बाबा के बारे में अनेक दंतकथाए प्रचलित हैं। गांव की चौपाल पर बैठे लोग आज भी उनके चमत्कार व पर्चो के बारे में बताते रहते हैं। धूणी पर बाबा मलूकदास,मंगलदास,दुलादास,रामदास,अघोरीदास,मानदास,कूमदास,लादूदास,खींवादास,भगतदास सहित अनेक संतो ने अपनी वाणी से अनवरत जन चेतना की अलख जगाई। ऐसे ही संतो की श्रृंखला में परम श्रध्देय श्री खींवादासजी महाराज के परम शिष्य श्री बंशीदास जी महाराज हुए।

बंशीदास जी महाराज का जीवन परिचय

 12 अक्टूबर 1974 को सीकर जिले के लांपुवा गांव में माता श्रीमती ग्यारसी देवी की कोख से पिता श्री घीसाराम जी बरवड़ के घर एक बहुमुखी प्रतिभाशाली बालक का जन्म हुआ। बचपन से ही शोम्य व श्यामवर्णी इस बालक का नाम माता पिता ने बंशी रखा। बालक बंशी अपने सभी भाई बहनो में सबसे ज्यादा चंचल थे। बालक बंशी की बाल्यकाल की गतिविधीयो से परिवारजनो को भी ये लगने लगा था कि ये जरूर आगे चलकर बड़ा नाम कमायेगा। ये ही बालक बंशी बाद में सांगलिया धूणी के पीठाधीश्वर खींवादासजी महाराज के उतराधिकारी बना व सांगलिया पीठ की गद्दी पर पदासीन किए गए।
बंशीदासजी की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक ग्राम लांपुवा तथा आभावास व रींगस में हुई। मैट्रीक तक की शिक्षा के बाद सन-1993 में आप अपने बड़े भाई जगदीश प्रसाद बरवड़ प्र.अ. के साथ प्रतियोगी परिक्षाओ की तैयारी हेतु सीकर आ गए। लेकिन पढ़ाई में मन नही लगने के कारण आप बार - बार सांगलिया धूणी आते रहे। उच्च शिक्षा ग्रहणकर अच्छी नौकरी के प्रयास करने हेतु आपके पिताजी, बड़े भाई लक्ष्मणसिंह,जगदीश प्रसाद व सुरेश बरवड़ ने उनको काफी समझाईश की पर वे नही माने और उन्होने मन की बात बताते हुए कहा कि मैं तो साधु बनूंगा। माता -पिता के लिए ये किसी वज्रपात से कम नही नही था।

सन्यास व धूणी से पारिवारिक जुड़ाव

सांगलिया धूणी से पारिवारिक जुड़ाव का होना भी बंशीदास का सन्यास की ओर रूख होने का मुख्य कारण रहा। आपके ननिहाल दांतला,रेलवाली ढ़ाणी व दिल्ली प्रवासी आपके मामाजी रामदेव जी व गणपत जी गर्वा के यहां धूणी के भूतपूर्व पीठाधीश्वर लादूदास जी व खींवादास जी महाराज का लगातार आना जाना रहता था। आपके सबसे छोटे मामाजी मंगलाराम गर्वा बताते है कि बाबाजी एक-एक महिने तक अपने घर पर प्रवास पर रहते थे। इस दौरान भजन,सत्संग व ज्ञान चर्चाएं होती रहती थी। वे बताते है की बंशीदास का भी ननिहाल में आना जाना और संतो की संगत से बाबा खींवादास जी की ओर रूझान हुआ। इसी से उसने संत मार्ग का रूख किया। तथा उन्होने 7 जून 1995 को बाबा खींवादास जी महाराज से दीक्षा ली। दीक्षा से कुछ दिनो पहले की बातो को याद करते हुए आपके बड़े मामा मालाराम जी गरवा बताते हैं कि उनके विषय में बात करते हुए खींवादासजी महाराज ने पूछा था कि मालाराम ये बंशी तेरा भांजा है क्या? ये साधु बनना चाहता हैं और तेरा भांजा है तब तो आगे चलकर ठीक ही निकलेगा।

मास्टर, बंशीदास नही मैं खुद ही आया हूं.....

अतीत के पन्नो पर नजर डालते हुए सोटवारा के मोहनलाल जी बजाड़ बताते है कि बाबा जी को व्यक्ति की बहुत ज्यादा पहचान थी। वे बार बार बंशीदास जी के बारे में बोलते थे कि मास्टर मैने एक साधु चुना है मैरे जाने के बाद इस सांगलपंथी संप्रदाय के वारिस हेतु, ये बंशीदास ठीक नजर आता हैं क्या ? मैरा भी ये ही जवाब रहता था बाबाजी आपने जिसको चुना ही वह ठीक नही सर्वोतम हैं। 
वर्ष 2000 के अंतिम दिनो में बाबाजी का स्वास्थय खराब रहने लगा था। इस दौरान वे सत्संग कार्यक्रम तो ले लेते थे पर जा नही पाते थे। इन सत्संग आयोजनो मे वे बंशीदासजी को ही भेजते थे। मोहन जी बताते हैं कि मैने भी अपने दिवं. सुपुत्र गुरूदयाल की प्रतिमा स्थापना कार्यक्रम में बाबा जी को आमंत्रित किया था पर बाबा जी स्वास्थय कारणो से नही आए तथा उन्होने बंशीदासजी को भेजा। जब बाबा जी को टेलिफोन पर उनके नही आने की पीड़ा मैने उनके सामने वयक्त की तो बाबाजी बोले मास्टर मैं नही आ सकता। अब मैरी सत्संग करने की क्षमता नही है। आप ये मानो ये बंशीदास नहीं मैं खुद ही आया हूं। तब मुझे साफ स्पष्ठ समझ आ चुका था कि बाबाजी का वारिस बंशीदास ही हैं। वे बताते है कि सांगलिया धूणी में आज तक बंशीदासजी जैसा निडर व दबंग साधु नही हुआ।

बाबा खींवादास जी की विशेष अनुकंपा

जीवन के 75 बसंत देख चुके धूणी के भक्त सोटवारा (झुंझुनूं) निवासी मोहनलाल जी बजाड़ का कहना कि भगतदास जी और बंशीदास जी महाराज में शुरू से ही विशेष प्रेम था। ये प्रेम भ्रात्तवभाव वाला था। वे दोनो हमेशा सगे भाई की तरह रहे। खींवादास जी महाराज व्दारा 1993 में हरिदास जी महाराज के निधन के पश्चात भगतदास जी को भंडारी की चादर दी गई थी। 1995 में बंशीदास जी महाराज ने खींवादास जी महाराज से दीक्षा ली। खींवादास जी महाराज की उम्र के अंतिम पड़ाव व बाबा खींवादास महाविद्यालय के स्थापनाकाल में बंशीदास के आने के बाद खींवादास बाबा जी स्वयं को काफी हद तक सुरक्षित व तनावमुक्त समझने लगे थे। बाबा जी को भी ये लगने लगा था कि अब धूणी व कॉलेज के कामकाज को संभालने वाला योग्य शिष्य आ गया है। इसी के चलते उन्होने बंशीदास जी को बाबा खींवादास सांगलपीठ शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के कोषाध्यक्ष का कार्यभार सौपा। बाबा खींवादास महाविद्यालय का संपूर्ण निर्माण कार्य बंशीदास जी की देखरेख में पूर्ण हुआ। बाबा जी का आप पर विशेष स्नेह,विश्वास और अनुकंपा थी।

संघर्षशील वयक्तित्व के धनी

बाबा बंशीदास शुरू से ही संघर्षशील वयक्तित्व के धनी रहें। बाबा खींवादासजी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनके उतराधिकारी चयन को लेकर जो कुछ सांगलिया धूणी में हुआ। वो किसी से छुपा हुआ नही हैं। उनके स्मृति दिवस पर मैं वो सब यहां बयां नही करूंगा। बाबाजी के निधन के बाद धूणी की गद्दी पर भगतदासजी महाराज को पदासीन किया गया। 24 मई 2001 में उन्होने सांगलिया गांव में ही धूणी के समतुल्य बाबा बंशीदास आश्रम की स्थापना की व आश्रम में खींवादास जी महाराज की प्रतिमा स्थापित की। अभी बंशीदास आश्रम का नवनिर्माण पूरा भी नही हुआ था।  लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था और 4 फरवरी 2004 को भगतदास जी महाराज का आकस्मिक निधन हो गया। जिसके बाद ग्रामवासियो व धूणी के भक्तो की भावनाओ की कद्र करते हुए उन्होने धूणी का कार्यभारा संभाला व सांगलपति बने।

अविस्मरणीय योगदान

शिक्षा स्वास्थय व समाज सेवा के क्षैत्र में बंशीदासजी महाराज का योगदान युगो युगो तक याद किया जायेगा। आपके व्दारा खींवादासजी व्दारा स्थापित बाबा खींवादास महाविद्यालय,छात्रावास,गौशाला,सैकड़ो छोटे बड़े आश्रमो का सफल संचालन किया गया। तथा विविध लोक कल्याण के कार्यक्रम संचालित किए गये। सैकड़ो निराश्रित बच्चो को उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृतियां दी गई। गरीब व अनाथ बालिकाओ की शादियो में भी बाबाजी का सदैव सहयोग रहा। आपके द्वारा लगभग तीन दर्जन विविध स्थानो पर बाबा खींवादासजी की प्रतिमाएं स्थापित की गई। बाबा लक्कड़दास आश्रम,खींवादास महाविद्यालय व अन्य संस्थाओ में भी आपके द्वारा करोड़ो रूपये का नवनिर्माण कार्य करवाए गए।

अंतिम यात्रा में उमड़े देशभर के हजारों अनुयायी

सांगलिया धूणी के पीठाधीश्वर बंशीदास जी महाराज का 4 फरवरी 2017 को प्रात: 7.40 बजे आकस्मिक निधन हो गया।  दो दिन पूर्व अचानक तबीयत खराब होने पर उनको महात्मा गांधी अस्पताल जयपुर में एडमीट करवाया गया था। जहां सुधार नही होने पर रात्रि 1बजे उन्हे धूणी लाया गया था। जहां प्रात:4 फरवरी को 7.40बजे सांगलिया आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। बाबा की पार्थिव देह अंतिम दर्शनार्थ सांगलिया धूणी पर रखी गई। जहा शाम तक हजारों भक्तो व साधु संतो ने बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित कर अंतिम दर्शन किए। आश्रम पर 17 दिन तक हुई श्रध्दांलि सभा में भी देश के कोने कोने से हजारो अनुयायी सांगलिया पहुंचे।

जब तक सूरज चांद रहेगा बाबा तेरा नाम रहेगा....

बाबा की अंतिम यात्रा 1बजे सांगलिया गांव के मुख्य मार्गो से निकली। अंतिम यात्रा में भक्तो ने जब तक सुरज चांद रहेगा बाबा तेरा नाम रहेगा,बाबा बंशीदास अमर रहे,बाबा बंशीदास की जय के जयकारो से आसमान गुंजा दिया। इसके पश्चात सांय 4बजे बाबा लक्कड़दास आश्रम सांगलिया में उनको उनके गुरू खींवादासजी महाराज की  समाधी के सम्मुख समाधि दी गई। इसके पश्चात धूणी की महाआरती का आयोजन हुआ। शिक्षा, स्वास्थ्य व समाज सेवा के क्षेत्र मे बाबा के योगदान को युगो युगो तक याद किया जायेगा।

अजीब संयोग...
4 फरवरी का अजीब संयोग...
विदित रहे कि बाबा खींवादास जी महाराज के देहावशान के पश्चात धूणी के पीठाधीश्वर बने संत भगतदास महाराज का निधन भी 4 फरवरी (वर्ष -2004) को हुआ था। तथा बंशीदास जी महाराज का निधन भी 4 फरवरी को ही हुआ। ये अजीब संयोग उनके अनुयायियो में विशेष चर्चा का विषय रहा।

रोते बिलखते पहुंचे देश के कौने कौने से अनुयायी,नही जले चूल्हे....

सांगलिया पीठाधीश्वर बंशीदास जी महाराज निधन के सूचना मिलते ही देश के कौने कौने में मौजूद उनके भक्तो व अनुयायियों में शोक की लहर फैल गई। आज अंतिम यात्रा में राजस्थान प्रांत के साथ साथ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व यूपी सहित कई राज्यो के हजारों भक्तो रोते बिलखते आश्रम पहुंचे। बाबा के पैतृक गांव लांपुवा से भी बाबा के बड़े भाई लक्ष्मण सिंह,जगदीश प्रसाद अ. इंजीनियर सुरेश बरवड़ व मदनलाल सहित परिजन व सैकड़ो ग्रामवासी अंतिम दर्शनार्थ पहुंचे। आश्रम में उमड़ी भीड़ से शाम तक परिसर में तिल रखने को भी जगह नही थी। जिससे पुलिस प्रशासन के जवानों को भी व्यवस्था संभालने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। बाबा के शोक में सांगलिया व आस पास के गांवो में चूल्हे तक नही जले तथा बाजार में प्रतिष्ठान भी बंद रहे।

नारियल प्रसाद से भरे आश्रम के बरामदे......
बाबा बंशीदास के निधन पर धूणी पहुंचे उनके अनुयायियों व भक्तो व्दारा चढ़ाये गए नारियल प्रसाद व अगरबती से आश्रम के बरामदे भर गए। बाबा के निधन की सूचना पर देर रात तक लोगो के आने जाने का तांता लगा रहा।

इन्होने भी किए अंतिम दर्शन.......
बाबा बंशीदासजी के आकस्मिक निधन पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए सुबह से ही उनके अनुयायियों के साथ ही वीआईपीज की भी कतार लगी रही। अनेक अधिकारी व राजनेताओं ने बाबा की प्रार्थिव देह पर पुष्पांजलि अर्पित की। कई संप्रदायो के संत महंतो व हजारों भक्तो ने बाबा के अंतिम दर्शन कर उन्हे श्रदांजलि दी।

सीकर में सर्व समाज ने दी श्रध्दांजलि,बताया अपूर्णीय क्षति

 अखिल भारतीय सांगलिया धूणी के पीठाधीश्वर परम श्रध्देय श्री बंशीदास जी महाराज के आकस्मिक निधन पर सीकर जिला मुख्यालय पर स्थित अंबेडकर सर्किल पर मंगलवार 7फरवरी 2017 को सांय 3.30 बजे श्रद्धांजलि सभा का आयोजन डॉ.अंबेडकर विचार प्रचार प्रसार संस्थान के तत्वावधान में किया गया। श्रद्धांजलि सभा में जिले के सभी सामाजिक संगठनो व सर्वसमाज के लोगों ने बाबा बंशीदास को श्रद्धासुमन अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इस दौरान वक्ताओं ने बाबा के जीवन पर प्रकाश डाला व उनके निधन को समाज के लिए अपूर्णीय क्षति बताया।

मुझे भी 10 साल तक आपके सानिध्य में रहकर सांगलिया धूणी में सेवा करने का मौका मिला। वास्तव में ही महाराज श्री का मार्गदर्शन व आशीर्वाद अकल्पनीय हैं। जिसका शब्दो में वर्णन नहीं किया जा सकता। आपके जीवन संघर्ष,सात्विक मनोवृति,चितचरित्र व योगदान का वर्णन करना संभव नही हैं। आपके जीवन दर्शन पर कई ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। हम सब के बीच से आपका यूं अचानक चले जाने की खामी और पीड़ा सदैव सताती रहेंगी। आज भी सदैव आप हमारी स्मृतियो में बने हुए हो। ऐसा लगता हैं जैसे आज भी आप हमारे बीच ही  हो। प्रथम पुण्यतिथी पर कोटी कोटी नमन.....। एक बार पुन: अश्रपुरित श्रदांजलि।

बीरबल सिंह बरवड़
संपादक - भीम प्रवाह पाक्षिक समाचार-पत्र
नि.- लांपुवा, तह. श्रीमाधोपुर, सीकर (राज.)
मो. 7891189451

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

नवरत्न मंडुसिया के ब्लॉग के दो लाख से भी अधिक व्यू

बोल भारत




बोल भारत वेबसाइट पर न्यूज़ देखने के लिए यहां click करे 
http://bolbharat.com/2018/01/31/ssrdhpsvvfynl/.
मेघवाल समाज का एक ब्लॉग है जो की देश विदेश मे बहूत ज्यादा देखा जा रहा है इस ब्लॉग का नाम मन्डुसिया डॉट ब्लॉग्सपोट डॉट कॉम है इसका संचालन राजस्थान प्रांत के सीकर जिले के सुरेरा नामक गाँव के नवरत्न मन्डुसिया नामक 23 वर्षीय युवा कर रहे है इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य मेघवाल समुदाय समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक. मृत्यु भोज, शराब दुरुपयोग, बाल विवाह, बहुविवाह, दहेज, विदेशी शोषण, अत्याचार और समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपराधों को रोकने के लिए और समाज के कमजोर लोगों का समर्थन की तरह प्रगति में बाधा कार्यों से छुटकारा पाने की कोशिश करने का है तथा इस ब्लॉग मे बाबा साहेब डॉक्टर भीव राव अम्बेडकर ज्योतिबा फुले सावत्री बाई बाबा रामदेव जी महाराज डाली बाई मेघवाल झरकारी बाई राजा राम मेघवाल करनी माता के ग्वाले दशरथ मेघवाल अखिल भारतीय सांगलिया धूणी तथा मेघवाल समाज के भारत के लोकसभा विधानसभा उच्च पदों पर विराजमान अधिकारियों के नाम पद उनकी जीवनियां आदि के बारे मे जानकारियां दे रखी है इस ब्लॉग का संचालन मेघवाल समाज के लाडले नवरत्न मन्डुसिया ने सन 2011 मे किया गया था मंडूसिया की शिक्षा बी.ए.बी.एड़ और एम.ए इतिहास ओर आई.टी.आई है मंडुसिया ने मेघवाल समाज के बारे अनेक तथ्य व पुस्तकें लिखी तथा इस ब्लॉग मे ब्लॉग मे मेघवाल समाज के गोत्र मेघवाल समाज की उत्पति आदि के बारे मे जानकारी देख सकते है और इस ब्लॉग को भारत के अलावा अन्य देशों मे बहूत तेजी से देख रहे है तथा अब तक लाखो लोग नवरत्न मन्डुसिया के ब्लॉग्स को देख चुके है तथा इस ब्लॉग को  यूएसए ने 58वी रेंक से भी नवाजा गया है और इस मेघवाल समाज के ब्लोग की खास बात यह है की दुनिया की किसी भी भाषा हो आप उस भाषा मे देख सकते है इसके अलावा मंडुसिया का सर्व समाज के बढ़ते अग्रसर क़दम नाम का भी ब्लॉग चलता है

गुरुवार, 4 जनवरी 2018

मेघवाल (बलाई) समाज में जन्मे संत श्री भिखा दास जी महाराज का जीवन परिचय


                           
संत भिखा दास जी महाराज 
मन्डुसिया न्यूज़ ब्लॉग पोर्टल ¦ संत श्री भिखा जी  महाराज का जन्म मालवांचल के  टोकखुर्द नगर जिला देवास मध्यप्रदेश मे चैत्र शुक्ल पूर्णिमा विक्रम संवत 1500 के लगभग बड़ावदिया परिवार मे हुआ था ।इनके पिता श्री बाला जी और माता जानकी देवी के पवित्र गर्भ से प्रथम पुत्र के रुप मे इनका जन्म हुआ था ।
इनकी माता धार्मिक पृवत्ति की थी व कूछ वर्ष बाद इनके माता पिता परलोक सिधार गये । माता पिता के स्वर्गवास हुआ उस वक्त भीखा जी की उम्र 5 वर्ष की थी ।माता पिता जब भीखा को छोड़कर चले गये तब कूछ लोगो ने भिखा से कहा की बेटा इस दुनिया मे तुम्हारा कोई नही रहा भिखा इसलिये तुम अब राजा साहब की सेवा मे जाओ ।
हमारे राजा साहब बहूत ही दयालु ज्ञानी एवं तपस्वी है , वे धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते है इसलिए वे तुम को भी काम काज दे देंगे और तुमहारा भविष्य उज्वल बनाने का प्रयास करेगे ।
तब भिखाजी के मन मे राजा साहब से मिलने की उत्सुकता हुई और सोचने लगे कि देश का राजा भगवान समान होता है उनसे मिलने कि इच्छा उत्पन्न हुई । कहा जाता है कि - राजा निर्भयसिंह जी चावडा के रावला (महल)  के मुख्य द्वार पर ब्रम्ह मुहूर्त मे भिखा जी खड़े हो गये ।
छोटे से बालक को द्वार पर खड़ा देखकर द्वारपालो ने पूछा कि तुम कोन हो बालक ? तुम यहाँ क्यों आये हो ? तब भिखा जी बोले : मै बाला जी पुत्र भिखा हूँ ।
मेरे माता पिता परलोक सिधार गये है , मेरा अब कोई नही रहा इसलिए मैं राजा साहब कि शरण मे आया हूँ और उनसे मिलना चाहता हूँ , उनकी सेवा करना चाहता हूँ ।
तब द्वारपाल बोले - तुम भीखा अभी बच्चे हो और तुम राजा साहब कि किसी प्रकार कि सेवा नही कर सकोगे ।इसलिये यहाँ से वापस चले जाओ ।
लेकिन भिखा जी ने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि उन्हे राजा साहब से मिलना ही है ।अपनी हठ कि वजह से भिखा जी लगातार 7 दिवस महल के द्वार पर ही खड़े रहे ।
जब द्वारपालो को लगा कि सच मे यह बालक सात दिनो से बिना अन्य जल ग्रहण किये द्वार पर बैठा रह सकता है तो क्या यह बालक हमारे राजा साहब से मिलने योग्य भी नही है ।
जब द्वारपालो ने राजा निर्भय सिंह जी को सूचना दी कि एक गुणवान बालक 7 दिनो से उनसे मिलने कि आस मे प्रवेश द्वार पर इंतजार कर रहा है तब वह धर्म के प्रति अटूट आस्था रखने वाला राजा द्वारपालो को आदेश करता है कि उस बालक को आदर सहित दरबार मे लेकर आये ।
राजा साहब बोले - तुम कौन हो बालक और मुझसे क्यों मिलना चाहते हो ?
भिखा बोले - राजा साहब मै भिखा हूँ । आपके ही नगर का निवासी हूँ । मेरे माता पिता का स्वर्गवास हो गया है ,अब मेरा कोई नही है इस दुनियाँ मे इसलिए मैं आपके शरण मे आया हूँ ,अब आप ही मेरे दाता हो ।मै आपकी सेवा कर जीवन यापन करना चाहता हूँ ।
तब राजा साहब बोले भिखा तुम अभी बहूत छोटे हो रावला का काम कैसे करोगे । महल मे काम करना कोई छोटी बात थोड़ी है । तब भिखा जी ने कहा कि आप मुझे अवसर तो दीजिये ।
तब राजा साहब बोले ठीक है आज से तुम यही रहकर कृषि के काम को करना।
भिखा जी  बचपन से ही धार्मिक पृवत्ति के थे ।
  राजा साहब ने भिखा जी को कृषि क्षेत्र की पूर्ण जिम्मेदारी सौंप रखी थी । भिखा प्रतिदिन गौ माताओ के भोजन पानी की व्यवस्थाओं को करते फ़िर खेत से गौ माताओ के लिये चारे की व्यवस्था करते थे।
राजा साहब को भिखा जी के आने से कई लाभ प्राप्त हुये और दुग्ध व्यापार मे भी वृध्दि हुई । जिससे राजा साहब का भिखा जी पर विश्वास बढ़ते गया ।
कूछ अंतराल के बाद नगर मे रामदली वाले संत श्री गुलालदास जी महाराज का आगमन हुआ ।
पूजनीय संत गुलालदास जी महाराज अपनी जमात के साथ टोंक खुर्द नगर में आये थे , जिनकी सूचना जब राजा साहब को मिली तो उन्होने संत श्री की सेवा मे अपने सबसे अधिक विश्वसनीय भिखा को आदेश दे दिया की
भिखा गौ वंश की सेवा के साथ गुलालदास जी महाराज की भी सेवा करना।  संत श्री गुलालदास महाराज भिखा जी  की सेवा से प्रसन्न हुये और उन्होने स्वयं के भोजन से दो माल पूए भिखा जी को दिये और बोले बेटा भिखा मेरे साथ आप भी भोजन करो । तब भिखा जी भी भोजन करने लगे ।

 भिखा जी एक ही माल पुआ खा सके और बचे एक माल पुए को अपनी जेब मे कपड़े से लपेटकर रख लिया ताकि जब भूख लगे तब खा सके ।
दिन भर के अपने दैनिक कार्य के बाद रात को भिखा जी ने भोजन करने के लिये जेब मे से माल पुवा निकालकर देखा तो उन्होने पाया की कपड़े मे दो माल पुए है । भिखाजी इस चमत्कार को देखकर आश्चर्य चकित हो गये । भिखा उसी समय जमात मे गुरुजी से मिलने गये लेकिन जमात वहाँ से जा चुकी थी । भिखा जी राजा साहब के पास गये और उनसे निवेदक किया की मुझे कल अवकाश देवे , मै कल काम पर नही आ सकुंगा । राजा साहब ने भिखा की बातो को सुनकर कहा की ठीक है भिखा कल छुट्टी पर चले जाना लेकिन तुम्हारी जिम्मेदारी किसी और को सौंप जाना । अगले ही दिन भिखा जी जमात की तलाश मे निकल पड़े व देवली पहुँचे फ़िर वहाँ के लोगो से पूछा की क्या यहाँ जमात आई है ।
तब वहाँ के लोगो ने कहा की जमात यहा से जा चुकी है अब जमात का डेरा कजलास मे रहेगा । कजलास की जानकारी लगते ही भिखा जी शाम तक कजलास पहुँच गये ।
 वहाँ जब जमात के एक शिष्य ने देखा तो उन्होने भिखा जी से पूछा - भिखा तुम किसे तलाश कर रहे हो मै जानता हूँ  ? गुलाल दास जी महाराज को मै अच्छी तरह से जानता हूँ , उनकी शरण मे आने वाले हर भक्त का कल्याण होता है । आप महाराज गुलालदास जी से मिलना चाहते हो इसके लिये आपका साधुवाद है । यह भयंकर संसार सागर केले के पत्ते की भाँति सारहिन है । इसमे दु :ख की अधिकता है । काम क्रोध इसमे पूर्णरुप से व्याप्त है । इंद्रिय रूपी भँवर और कीचड़ के कारण यह दुस्तर है । नाना प्रकार के सैकड़ो रोग यहाँ भँवर के समान है ।यह संसार पानी के बुलबुले की भाँति भंगुर है ।इसमे रहते हुये जो आपके मन मे गुलाल दास की आराधना का विचार उत्पन्न हुआ यह बहूत उत्तम है । महाभाग : आईये मै आपके आने की
इसकी सूचना संत श्री गुलालदास जी महाराज तक पहुँचाता हूँ  । सूचना मिलते ही संत श्री गुलाल दास जी महाराज ने भिखा को पास बुलाया और पूछा की भिखा आप राजा साहब के महल का काम छोड़कर यहाँ क्या कर रहे हो ? तब भिखा जी बोले गुरुजी मै आपके साथ रहना चाहता हूँ ,आपकी सेवा करना चाहता हूँ ।
तब गुलालदास जी ने कहाँ हम खुद ही मानव समाज सेवक है तुमसे सेवा नही करवा सकते । मै तुमको गुरुमंत्र देता हूँ ! । तुम इस गुरु मंत्र को धारण करो और मानव समाज की सेवा करना ।
भिखा जी वापिस रावला आ गये और गुरुमंत्र का दिन रात सुमिरन करने लगे  जिससे कूछ ही समय मे भिखा का गुरुमंत्र सिद्ध हो गया । भिखा जी महाराज के गुरुमंत्र सिध्द होते ही वे सांसारिक कार्यों को करते हुयभी वे एक हीे समय अलग अलग स्थानों पर कार्य करने लगे दिन दुखियो की सेवा के लिये उनका एक रुप सदैव भ्रमण करता और लोगो मे भगवन भक्ति के प्रति जागरूक करने के लिये स्वयं भजन रचना कर उनको गाँव गाँव मे घूमकर समाज को सतमार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते और एक रुप सदैव रावला के कार्यों को करता रहता...  एक बार संत श्री भीखा जी के गुरु भाई श्री गंगदास जी महाराज बड़ी चूरलाय वाले के सानिध्य मे बड़ी चूरलाय मे राम नवमी का भंडारा रखा गया । इस भंडारे मे श्री संत श्री भिखा जी  को भी आमंत्रित किया गया था ।बड़ी चूरलाय मे संत श्री भिखा जी  को कोई नही जानता था , जिस स्थान पर भंडारे के लिये भोजन बन रहा था उस स्थान पर जाकर जब संत श्री ने लोगो से पूछा की खाने मे रामजी के लिये क्या क्या बना रहे हो और जितना बना रहे हो क्या वो पर्याप्त है । यहाँ उपस्थित लोगो ने यह कहते हुये संत श्री का अपमान किया कि तुमको इससे क्या मतलब और तुम यहाँ कैसे आये हो शीघ्र ही इस स्थान से चले जाओ । भिखा जी वहाँ से आ जाते है और गाँव से बाहर आकर ध्यान मग्न होकर बैठ जाते है यहाँ गाँव मे भंडारे के लिये बन रहा भोजन दूषित हो जाता है ।सभी गाँव वाले चिंतित हो जाते है और वे सभी संत श्री गंगदास जी को दूषित भोजन होने कि बात बताते है ।
सभी गाँव के श्रध्दालूओ कि बातो को सुनकर गंगदास जी महाराज अपनी अध्यात्म शक्ति से पता लगाते है कि ऐसा अशुभ कार्य क्यों हुआ ।
जब गंगदास जी महाराज को पता चलता है कि गाँव वालो ने संत का अपमान किया है जिसके वजह से भोजन दूषित हुआ है।
तब गंगदास जी महाराज और गाँव वाले अपनी गलती का पश्चाताप करने के लिये संत श्री के पास जाते है , जहाँ वो ध्यान मग्न बैठे है सभी गाँव वाले हाथ जोड़कर संत श्री से उनके द्वारा किये गये व्यवहार के लिये क्षमा याचना करते है और उनसे पुन : भंडारे मे चलने के लिये निवेदक करते है । लेकिन संत श्री उनको कहते है कि आप चिंतित न हो राम जी के लिये बनाया गया भोजन पुन : ठीक हो जायेगा । मैं तो प्रभु कि भक्ति मे यही बैठा हूँ ।इतना कहते हुये संत श्री ने अपने कमंडल से जल निकालकर गाँव वालो को दिया और बोले कि आप लोग इस जल को पाँच बार भोजन पर छिड़क दीजियेगा ।
संत श्री भिखा जी कि बातो को सुनकर उन्हे आत्मग्लानि होती है

सभी गाँव वाले जल लेकर गाँव आते है तब श्री गंगदास जी महाराज उनको बोलते है कि संत श्री भिखा जी कि जय बोलो और जल छिड़कना प्रारम्भ करो ।
5 बार भोजन पर जल छिड़का गया और पाँच बार ही संत श्री भिखा जी महाराज कि जय बोली गई ।
कूछ ही समय पाश्चात्य जल कि चमत्कारिक शक्ति के प्रभाव से दूषित भोजन ठीक हो गया उस दिन श्री गंगदास जी महाराज ने लोगो को उपदेश दिया कि हिन्दु समाज मे जब भी कोई शुभ कार्य किया जाये तो संत श्री भिखा जी महाराज कि जय बोलकर उनको स्मरण किया जाये ताकि भविष्य मे कोई भी कार्य अच्छे से पूर्ण हो एवं भोजन कभी भी ख़त्म व दूषित न हो ।
उसी समय से मालवांचल मे किसी भी मांगलिक कार्य मे भोजन करने से पूर्व संत श्री भिखा जी महाराज कि जय बोल कर स्मरण करने का प्रचलन शुरू हुआ ।
संत श्री भिखा महाराज कि महिमा चारो ओर फैल चुकी थी लोग उनके दर्शन करने के लिये दुर दुर से आने लगे सभी वर्ग के स्त्री पुरुष भी चरण छूकर आशीर्वाद माँगते थे ।महिलाओ को संत श्री आदिशक्ति का स्वरूप मानते थे । अत : बहनों और माताऑ को अपने चरण स्पर्श नही करने देते थे जब मना करने पर भी नही मानती तो वे स्वयं महिलाओ के चरण स्पर्श करते थे ।
संत श्री अपने समकालीन साधु संतों के साथ मे मिलकर समाज के लोगो को धर्म के प्रति जागरूक करने के लिये सत्संगो का आयोजन किया वे स्वयं ही रचना रचकर भजन गाया करते थे उनके द्वारा रचित भजन आज भी लोकवाणी मे गाये जाते है उन्होने घूमघूम कर मानव समाज के लोगो को सदचरित्र , सदव्यवहार व भागवत भक्ति का उपदेश दिया । उनका उपदेश था कि जो मानव अज्ञानी ,मनबुध्दि कम समझ व साधारण लोग है उनको तत्व के ज्ञाता संत महापूरूषो कि शरण मे जाकर सत्संग का लाभ लेना चाहिये
भगवान उपासना ,साधना करनी चाहिये ताकि इस संसार से दुखों से मुक्ति पाकर परम गति को पा सके । संत श्री भिखा जी महाराज जिस बीमार व्यक्ति के सिर पर हाथ रख देते थे वह तत्काल अच्छा हो जाता था ।संत भिखा जी  के पास ऐसी अलौकिक एवं आध्यात्मिक शक्ति थी की उनको कोई भी दुखी भक्त स्मरण करता तो उसके दुख के निवारण चमत्कारिक ढंग से हो जाते ,उनके साधना स्थल ग्राम भैंसा खेडी के जंगल मे दो शेर उनके सेवक के रुप मे सदैव बैठे रहते थे । वे संत श्री भिखा की आज्ञा का पालन करने के लिये सदैव तत्पर रहते थे । अगर कोई भक्त संत श्री के साधना स्थल पर आता तो शेर अदृश्य हो जाते । भक्ति की अवस्था मे भी वे अपने ही हाथ से भोजन बनाते थे , वे तीन पाव आटा लेते और उसमे 8-10  व्यक्ति दो शेर भोजन व स्वयं भोजन कर लेते थे ।
भिखा जी कहाँ करते थे की हमारे अंदर ही ज्ञान रूपी हीरा ,मोति ,माणिक सबकुछ विधमान है लेकिन हम इस ज्ञान को जीवन मे उतारते नही है और जिस दिन हमने इन तत्वों को जानकर जीवन मे उतार लिया तो दुनियाँ मे हमसे बढ़कर कोई नही ।

एक बार राजा साहब गंगा जी के दर्शन के लिये जा रहे थे ,उनकी इच्छा राजा साहब थी कि भिखा जी उनके साथ रहे ।राजा साहब ने उनकी यह इच्छा रानी जी से व्यक्त की , तब रानी जी ने कहाँ - भिखा रावला का सबसे विश्वासपात्र है अगर आप उसको साथ मे ले जाओगे तो यहाँ का काम कौन देखेगा ? राजा साहब भिखा जी को रावला की जिम्मेदारी सौपकर गंगाजी दर्शन के लिये चले गये । जिस समय राजा साहब गंगा मे स्नान कर रहे थे उसी समय उन्होने  भिखा जी को स्नान करते देखा राजा साहब ने भिखा जी को पास बुलाकर कहाँ भिखा तुमने ये क्या किया मैं तुमको रावला की जिम्मेदारी सौंपकर आया था और तुम सब छोड़कर यहाँ आ गये ।
तब भिखाजी बोले महाराज आप निश्चिंत रहे रावला का काम सुचारु रुप से चल रहा है ।राजा साहब बोले चलो छोडो आ तो गये हो , अब हमारे साथ रहो और पूजापाठ करो । राजा साहब ने पूजा पाठ करने के बाद प्रसादी भीखा जी को दे दी और कहाँ की ये प्रसादी सम्भालकर रखना इसको तुम्हारी रानी माता को देनी है । भिखा जी प्रसाद को अपने पास रखते है और कूछ समय पश्चात वहाँ से अंतर्ध्यान हो जाते है । राजा जी गंगा तट पर भिखा जी को ढूंढते है लेकिन वहाँ नही मिलते है । शाम  को खेती का कार्य ख़त्म करके भिखाजी जब रावला मे आते है तो उनके मुँह से अचानक निकल जाता है की मै भी गंगा जी गया था एवं राजा साहब ने आपके लिये प्रसाद भेजी है । रानी माता भिखा जी की बातो को सुनकर अनसुना करके प्रसाद को रख देती है , गंगाजी से वापस आने पर राजा साहब ने रानी माता से पूछा की ये भिखा गंगा जी से कितने दिनो मे आया ? तब रानी माता ने जवाब दिया की भिखा तो यही था वो कब गंगाजी गया तब राजा साहब बोले भिखा ने गंगा जी मे मेरे साथ स्नान किया  पूजा पाठ की और मैने उसको प्रसाद भी दी थी ।आपको देने के लिये लेकिन प्रसाद लेकर वो वहाँ से जाने कहाँ चला गया तब रानी ने भिखाजी द्वारा दी गई प्रसाद का दिन व तिथि राजा साहब को बताई दोनो को बहूत आश्चर्य हुआ यह कैसे सम्भव है । इस बात का मंथन करके राजा साहब बोले कूछ तो राज है इसका पता लगाना पड़ेगा ।
अगली सुबह ब्रम्हा मुहूर्त मे भिखा जी के क्रिया कलापों को उन्होने देखा की सुबह उठकर भिखा जी सूरजकुण्ड मे नहाने आए और उन्होने एक कपडा पानी के ऊपर बिछाया और भिखाजी उस कपड़े के ऊपर बैठे हुये है और अपनी साधना शक्ति के द्वारा अपनी आँतों को शरीर से बाहर से निकालकर जल से धो रहे है । राजा साहब ने देखा की जिस कपड़े पर भिखा जी
बैठे हुये थे वो बिलकुल सूखा है ये देखकर राजा साहब आश्चर्य चकित होते उसके बाद वह खेत मे छिपकर देखते है तो भिखाजी का एक स्वरूप ध्यानमग्न बैठा है और पास मे ही हंसिया स्वयं ही घास काट रहा है । शाम होते ही पूरा घास चमत्कारिक रुप से बंधकर भिखा जी के सिर पर आ जाती है राजा साहब ने देखा की घास का गट्ठा सिर से दो उंगल ऊपर है और पशु भी रस्सी के भिखा जी के पीछे पीछे चल रहे है । इतने क्रियाकलापों को राजा साहब जब अपनी आँखो से देखते है तो उनको बहूत पश्चात होता है और वे भिखाजी से पहले रावला आकर सिंहासन सजवाते है जब भिखाजी रावला आते है तो राजा साहब हाथ जोड़कर बोले मुझे माफ कर दीजिये मैने आपको पहचाना नही और आपसे सेवा करवाता रहा आप कैसे संत से सेवा करवाने का मुझे पाप लगा है और मै इसका प्राश्चीत करना चाहता हूँ..कृपा करके आप मुझे सेवा करने का मौका दीजिये । तब भिखा जी बोलते है हमारा जीवन मानव सेवा के लिये हुआ है मै आपसे सेवा नही करवा सकता हूँ । राजा साहब भिखाजी महाराज को सिंहासन पर बैठाने के लिये आगे बढ़ते है लेकिन वो वहाँ से अंतर्ध्यान हो जाते है । राजा साहब उनको ढूंढते के लिये रावला से बाहर आते है तो भिखा जी उनको रास्ते मे मिलते है राजा साहब जैसे ही भिखा जी के पास जाते है ,भिखा जी अंतर्ध्यान हो जाते है और कूछ दुर जा कर वापिस प्रकट हो जाते है । ऐसा करते करते भिखाजी रणायन कला के घने जंगलों मे अंतर्ध्यान हो जाते है ,बड़ी मुश्किल से बहूत खोजने के बाद भिखाजी राजा साहब को दिखे जैसे ही भिखा दिखे राजा साहब हाथ जोड़कर रोने लगे और उनसे विनती करने लगे की मुझे आपकी सेवा का मौका दीजिये आप मुझे ऐसे छोड़कर मत जाओ तब भिखा जी ने कहाँ राजा साहब आप जब भी मुझे याद करोगे मे आपके पास आ जाऊँगा ।
तब राजा साहब ने कहाँ मुझसे क्या गलती हुई जो आप मुझे सेवा का मौका नही दे रहे हो भिखाजी महाराज ने कहाँ मेरा जीवन मानव सेवा के लिये हुआ है और आप भी मानव सेवा ही करना ।इतना कहने के बाद जहाँ भिखा जी महाराज बैठे थे वहाँ ज़मीन चमत्कारिक रुप से गहरी खाई के रुप मे दो भागो ने बट जाती है । तब भिखा जी ज़मीन की उस खाई मे समा गये और ज़मीन पुन : पहले जैसी हो गई ।कूछ पलों मे ही जिस स्थान पर भिखा जी बैठे थे वहाँ पर चमत्कारिक रुप से कुमकुम के पगलिया ( पदचिन्ह )बन गये ।उसके पश्चात राजा साहब ने मजदूरो के द्वारा उस जंगल को साफ करवाया व वहाँ पर एक छोटे से वोटले का निर्माण करवाया ।इस घटना के पश्चात से ही राजा साहब ने भिखा जी को अपने कुल देवता के रुप मे पूजना आरम्भ कर दिया समाधि लेने के पश्चात ही भिखाजी को  लोगो ने गंगा जी के तट पर , खेतों मे काम करते हुये..सूरजकुण्ड मे नहाते हुये एवं उनके साधना स्थल पर ध्यानमग्न बैठे देखा । कहाँ जाता है कि जब भी कोई सच्चे निस्वार्थ भाव से संत श्री भिखा जी महाराज को याद करता है तो उनके द्वारा दुखों का नाश होता है , भिखा जी महाराज आज भी विधमान है.....
संकलन - कृष्णपाल सेन्धालकर,  राष्ट्रीय संयोजक - संत श्री भिखा जी महाराज मंदिर निर्माण अभियान भारत +917869861227

सोमवार, 1 जनवरी 2018

बलाई (मेघवाल) समाज के महान संतों में संत भिखा दास जी महाराज थे ¦

नवरत्न मन्डुसिया की कलम से ¦¦संत श्री भिखा दास जी महाराज मध्यप्रदेश में महान संतों की श्रेणि में आते है ॥ संत भिखा दास का जन्म मेघवाल बलाई समाज में हुवां वर्तमान में संत भिखा दास जी महाराज का विश्व का सबसे बड़ा मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन के गन्धर्वपूरी में विराजमान है तथा संत भिखा दास जी महाराज मंदिर मध्यप्रदेश के युवा समाज सेवी सेवक कृष्णपाल सेंधालकर की देखरेख में निर्माण किया जा रहा है  तथा इस मंदिर के पाठ भी हर राज्यों में कृष्णपाल सेंधालकार कर रहे है और हर राज्यों में प्रचार प्रसार किया  जा रहा है संत भिखा दास जी महाराज के बारे में बतातें है की हमारे समाज के महान संत भिखा दास जी थे संत भिखादास जी महाराज का जन्म मध्यम परिवार मेघवाल बलाई समाज में हुवा  संत श्री भिखा दास जी महाराज
1. मेरे भिखा जी महाराज कदम कदम पर आप साथ हो मेरे, आपको नमन मैं सदा करता रहूँ जब तक साँस रहें इस तन में मेरे, भिखा जी आपका स्मरण मैं सदा करता रहूँ बोलिए  भिखा जी महाराज की जय 2 .सुनो भिखा जी..मेरी हस्ती कुछ नही थी ,बस तेरे नाम से ही कुछ नाम मेरा हुआ है,आज लाखों साथी मिल गए मुझको,कल तक जो तन्हा रहता था, शुक्र अदा कैसे करूँ तेरा बाबा, इतने भिखा जी के दीवानों से तूने मुझे जो मिलाया है.3. मेरे भिखा जी महाराज  तेरी रहमतो के सहारे मैं पलता हूँ.तेरा ही नाम ले आगे बढ़ता हूँ तू मुझ से नजर न फेरना कभी इक तू ही हैं जिसके सहारे में चलता हूँ. ये जग रूठे तो रूठे मेरा सत्गुरु कभी न रूठे मैं जीऊँ जब तक मेरे भिखा जी महाराज तेरा रणायर धाम कभी न छूटे तेरी सेवा कभी ना छुटे.बोलिए भिखा जी महाराज की जय 4. मुझको मालूम नहीं चाहत क्या है मेरे भिखा जी महाराज मैंने तेरी बातों के सिवा हर बात भुला रखी है मेरे भिखा जी महाराज सफर जीवन का मुश्किल है मालूम है लेकिन,  तुमने मेरी तो हर फ़िक्र मिटा रखी हैै मेरे भिखा जी महाराज 5. सब मिलकर चलेंगे मेरे  भिखा जी के पावन रणायर धाम बुलाएँ भिखा जी तो वहाँ चलेंगे नँगे पाँव
मिले रणायर धाम में पिता का प्यार, माँ के आँचल की छाँव यहीं होगी हम सबकी भव सागर से पार नाव :नवरत्न मन्डुसिया

बेटी चली पिया संग

चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के – 2
जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सज-धज के – 2
चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के छलकें मात-पिता की अँखियाँ रोवे तेरे बचपन की सखियां भैया करे पुकार हो भैया करे पुकार ना जा घर-आंगन तज के जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सज-धज के चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के दूर देश मेरे पी की नज़रिया वो उनकी मैं उनकी संवरिया बांधी लगन की डोर हो बांधी लगन की डोर मैंने सब सोच-समझके जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सज-धज के चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...