सोमवार, 30 अप्रैल 2012

संत आचार्य गरीब साहेब (पर्माण) garib saheb

१.गरीब दास जी की वानी मे(गरीब दास जी को कबीर साहेब ने सत लोक भी दिखाया था और यम राज को भी डान्ट लगाई थी. )

"गरीब, काल डरे कर्तार से, जय जय जय जग्दीश!!
जोरा जोरी झाड्ती, पग रज डारे शीश!!"
यह काल, कबीर भग्वान से डर्ता है और यह मोत कबीर के जूते झाड्ती है(नौकर के समान है).
फिर उस धूल को अप्ने सर पर लगाती है कि जिस्को मार ने का आदेश दोगे उस के पास जाओन्गी, नही तो मै नही जाउन्गी.

२.गरीब, "काल जो पिसे पिस्ना, जोरा है पनेहार!
ये दो असल मज़्दूर है, मेरे साहेब के दर बार"
यह काल, कबीर भग्वान का नौकर है और मोअत विशेश नौकरानी है.

३.कबीर साहेब ने रानी इन्द्र्मती की उम्र ८० साल कर दी थी, जब की रानी इन्द्र्मती को काल साप रूप मे मार ने के लिये ४० साल के उम्र के वक्त आया था, तब कबीर साहेब ने रानी इन्द्र्मती को बचाया था.

वेदो मे भेद:-->
१.कबीर देव अप्ने भक्त के सान्स भी बढा देता है.(वो निर्धन को माया/बान्झ को पुत्र/शरीर को ठीक/अन्धे को आन्ख दे सक ता है)

२.कबीर"सत गुरु जो चाहे सो कर हे, १४ कोटी दूत जम डर हे,
उत-भूत जम त्रास निवारे, चित्र्गुप्त के कगज फारे"
यहा चित्र्गुप्त के कागज फाड्ने का मत लब उम्र बधाना ही है.

३.कबीर"मासा घटे ना तिल बढे, विध्नी लिखे जो लेख,
साच सत्गुरु मत के उपर लिख्दे लेख"
ईस मे फिर से उम्र बधाने की बात की गयी है.

४.दादु जी-->"आदम की आयु घटे, तब यम घेरे आये, सुमिरन किया कबीर का दादु लिया बचाय"
दादु जी-->"सुन-२ साखी कबीर की काल नवाये माथ, धन्ये-२ हो ३ लोक मे, दादु जोडे हाथ"

पर्माण:-->कबीर साहेब और धर्म राज के बीच वार्ता, जब कबीर साहेब ने गरीब दास जी को सत्लोक दिखाया और बाद मे धर्म राज का लोक भी)
१.गरीब दास जी कह्ते है की कबीर साहेब अप्नी समर्थता दिखाने के लिये मुझे धर्म रज क लोक मे ले गये. धर्म राज के दर बार मे जब कबीर साहेब गये तो धर्म राज अप्नी कुर्सी त्याग कर खडा
हो गया और कह ने लगा की "व्राजो भग्वान!"
फिर कबीर साहेब ने धर्म राज को डान्ट लगात हुवे कहा कि
"धर्म राज दर्बार मे, दई कबीर तलाक!
मेरे भूले चूके हन्स को, तु पक्डो मत कज़ाक!!
(जीस ने मेरे भेजे सन्त से नाम ले रखा हो उस को तु मत पकड्ना! उस का लेखा-झोखा भी मत लेना!
अगर मेरे हन्स को तूने पकड लिया तो मेरे से बुरा तेरे लिये कोइ नही होगा!)

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तब धर्म राज हाथ जोड कर बोला"बोले पुरुष कबीर से, धर्म राज कर जोड!
तुम्हारे हन्स को चम्पु नही, दोहि लाख करोड"
हे मालिक कबीर साहेब तेरे हन्स को मै नही पक्डुन्गा, दोनो हाथ जोड्ता हू, लेकिन एक वीन्ति है, आप के सन्त से नाम लैने से पह ले के पाप कर्म मेरी बाही मे चढे हुवे है और मेरे को ईस्लीये उन्को दन्द देना पडेगा! ये मेरी मज्बूरी है
"कर्मो सैति रत थे, अब मूख से कहे कबीर!
उन्को निश्चये पक्डुन्गा, जड दू तोक ज़न्ज़ीर"



गरीब"कर्म भर्म ब्रह्मन्द के पल मे कर दून नेश!
जिन हम री दोही देइ, करो हमारे पेश!!"
कबीर साहेब ने कह की मै कर्म-भर्म सब खतम कर दुन्गा!
जीस्ने हमारे नाम की दुहाइ दी हो उस को हमारे साम ने लाना. तु कुछ मत कह ना उस को!

(गरीब साहेब) राजस्थान की माटी के प्रज्ञा पुintroduction to garib saheb ji maharajरुष

सद्गुरु श्री गरीब साहेब का जन्म ९ मार्च, १९७१३ को भोजपुरा ( जयपुर) में हुआ. इनकी प्रतिभा बचपन में ही मुखर होने लगी थी. अदम्य साहस और तीव्र बुद्धि के कारण सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक चेतना जागृत में अपना जीवन अर्पित किया. साहेब का दर्शन कबीर से प्रभावित रहा. इन्होने "बीजक" का गहन अध्ययन कर उसे आत्मसात किया. इन्होने कई कृतियाँ लिखी, इनकी मुख्य कृति "ज़िन्दबोध प्रकाश" है, जो जन मानस में ज्ञान और प्रेरणा का स्त्रोत है.

" है ताको जाने नहीं, तासो विमुख होय !
नाहीं को जाना चाहे,नास्तिक कहिये होय !!".........गरीब साहेब

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

राजस्थान के जोधपुर और जैसलमेर क्षेत्र के मेघवाल समुदाय स्थानीय ऊन को संकीर्ण पट्टी में बिन कर उन से विभिन् प्रकार के उत्पाद जैसे बर्डी ओड़नी, पट्टू कशीदा – कमखाब ओड़नी, दुपट्टा , कुशन कवर , टेबल रुन्नेर , कुर्ता - अंगरखा, सलवार - ढीली पतलून और बैग, आदि सील के बनाये जाते हैं. के आधार कपड़ा या तो सादा है या टवील और रूपांकनों एक क्षेत्र में अतिरिक्त बाने के प्रयोग के अकेले आकृति तक ही सीमित के माध्यम से बनाई गई हैं. अतिरिक्त कपड़ा आधार कपड़ा के विपरीत रंग के आम तौर पर होता है और हर दो चुनता के बाद डाला जाता है, इस तरह पतले कढ़ाई कपड़े की एक धारणा का निर्माण किया.

Jodhpur and Jaisalmer area of ​​Rajasthan Meghwal community, local wool narrow strip of the different types of products such as those in the bin Odni Birdy, plaids needlework - Kmkhab Odni, scarf, cushion covers, Table Runner, shirt - tunic, salwar - loose trousers and bags, etc. are made of seal. The basis of either plain or twill fabric motifs in an area containing only limited to the use of extra weft are made through. Additional fabric base cloth is usually of the opposite color, and after every two picks are inserted, thus producing an impression of finely embroidered clothes....

http://themecrafts.in/ProductType/Hand_Crafted_Stoles-hi-IN-294.aspx

हमारे उद्देश्य: - मेघवाल समुदाय समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक. मृत्यु भोज, शराब दुरुपयोग, बाल विवाह, बहुविवाह, दहेज, विदेशी शोषण, अत्याचार और समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपराधों को रोकने के लिए और समाज के कमजोर लोगों का समर्थन की तरह प्रगति में बाधा कार्यों से छुटकारा पाने की कोशिश करो

राजस्थान मेघवाल परिषद पर श्री पन्नालाल 30.3.1984.Rajsthan मेघवाल परिषद के जिला शाखा जोधपुर Pemi निवासी बीकानेर के द्वारा स्थापित किया गया था सबसे पहले उसके बाद beginned श्री Natthulram भाटी द्वारा कलक्टरी बनने.

परिषद के सदस्य की अवधि थे: -

Mr.Natthram भाटी
Mr.Modaram 22-08-1999 से 25-05-2003 तक Likhniya
Mr.Kaluram 25-05-2003 से 2009/08/03 के लिए Sonel
2009/12/04 से आज तक Mr.Pukhraj कटारिया

राजस्थान मेघवाल परिषद जोधपुर सोसायटी के उत्थान के लिए कई गतिविधियों का इंतजाम किया. जो युवा आदमी - औरत परिचय एवं सामूहिक विवाह के आयोजन के समय और पैसे की बर्बादी को रोकने के लिए, गरीब और असहाय लोगों और उचित मार्गदर्शन और रोजगार और शिक्षा के लिए धन के लिए आर्थिक मदद चल रहे हैं.

हमारे उद्देश्य: -



मेघवाल समुदाय समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक.

मृत्यु भोज, शराब दुरुपयोग, बाल विवाह, बहुविवाह, दहेज, विदेशी शोषण, अत्याचार और समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपराधों को रोकने के लिए और समाज के कमजोर लोगों का समर्थन की तरह प्रगति में बाधा कार्यों से छुटकारा पाने की कोशिश करो.

मेघ सेवादल जो सेवा के लिए अपने सर्वर को प्रशिक्षित गठन.

समाज के विकलांग, अनाथ और असहाय लोगों के लिए आर्थिक मदद और उनके लिए भोजन, आवास और रोजगार की व्यवस्था.

बंधुआ श्रमिकों की मुक्ति के लिए प्रयास करते हैं.

कानून परिषदों का गठन करने के लिए और सस्ता न्याय के लिए पहुँच प्रदान करते हैं.

राष्ट्रीयता, चरित्र निर्माण की भावना जगाने और देश और समाज के लिए स्वच्छ वातावरण बनाए रखने के लिए प्रयास करें.

सांस्कृतिक, साहित्यिक, कलात्मक और खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन से प्रतिभाशाली लोगों को प्रोत्साहित करते हैं.

पत्रिकाओं को प्रकाशित करने के लिए संदेशों के सभी प्रकार के द्वारा समाज के हर घर के बारे में पता करना है.

गांव, तहसील और जिले के स्तर पर संगठनात्मक इकाइयों का गठन करने के लिए.

सामूहिक विवाह को व्यवस्थित करने के लिए उच्च लागत से बचने के लिए.

भेद दूर एक धागे में सभी मेघवाल (JATA Baseera), Sutrakar, Bhambhi, चमार, Bunkar, Balai, Baiwa, Hrishyan, ramdosiyan, Chandor, Ravidasi, Mehar, Deshi, Meghwanshi आदि बांधने और नाम करने के लिए मेघवाल नाम फोन करने की कोशिश खुद.

निर्माण और दाताओं से एक उपहार के रूप में प्राप्त करने के द्वारा हॉस्टल, हॉल, सार्वजनिक, सामाजिक उपयोग के लिए धर्मशाला, अचल संपत्ति मूल्य खरीदने के लिए.

हमसे संपर्क करें

श्री Pukh राज कटारिया
अध्यक्ष
वेबसाइट: http://www.meghwalparishad.com
ईमेल आईडी - contact@meghwalparishad.com

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

सामूहिक शक्ति से ही समाज का विकास

 भास्कर न्यूज. झालावाड़ ( Last Updated 02:24(25/03/12)
सभी अजा के लोगों को अपनी सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन करना होगा। सरकार बहुमत की भाषा समझती है। मेघवाल समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से विकास का संकल्प लेना होगा। यह बात शनिवार का सर्किट हाउस में समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल ने कही। वे यहां मेघवाल युवा परिषद की ओर से आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मेघवाल समाज को अन्य विकसित समाजों से प्रेरणा लेने की जरूरत है। सेमिनार में प्रदेश अध्यक्ष नंदलाल केसरी, प्रदेश कोषाध्यक्ष गोपाल मेघवाल, प्रदेश सचिव सीताराम मेघवाल, जिलाध्यक्ष प्रहलाद मेघवाल, कोषाध्यक्ष राजेंद्र मेघवाल, सचिव भगवानसिंह, संरक्षक नंदलाल वर्मा, रामनारायण मेघवाल, गोपाललाल मेघवाल ने भी विचार व्यक्त किए। प्रदेश अध्यक्ष नंदलाल केसरी व अन्य पदाधिकारियों के नेतृत्व में सुबह साढ़े 11 बजे राष्ट्रीय अध्यक्ष डेनवाल, पुलिस महानिरीक्षक आरपी सिंह का स्वागत नरेंद्र मेघवाल, गिरिराज मेघवाल, भगवानसिंह आदि मेघ सैनिकों ने किया।
ट्रैक तैयार, समाज को बढऩा होगा आगे
मेघवाल समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल ने शनिवार सुबह 9 बजे सर्किट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अनुसूचित जाति को कभी भी आगे बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए। समाज का पिछड़ापन अभी तक है। भाजपा हो या फिर कांग्रेस उन्होंने केवल वोट बैंक की तरह समाज का इस्तेमाल किया है। मेघवाल समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति दयनीय है, लेकिन समाज को जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमने शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि हमारा समाज शिक्षित होगा तो उन्हें कोई भी गलत इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते हमने समाज को देश भर में जागरूक करने का अभियान चलाया। आगे बढऩे के लिए ट्रैक तैयार किया अब आगे समाज को बढऩा है। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि सरकार कोई भी हो इस समाज को भी राजनैतिक रूप से चुनावों में उम्मीदवारी में अधिक स्थान मिलना चाहिए।



गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

सामूहिक शक्ति से ही समाज का विकास:-

झालावाड़
सभी अजा के लोगों को अपनी सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन करना होगा। सरकार बहुमत की भाषा समझती है। मेघवाल समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से विकास का संकल्प लेना होगा। यह बात शनिवार का सर्किट हाउस में समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल ने कही। वे यहां मेघवाल युवा परिषद की ओर से आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मेघवाल समाज को अन्य विकसित समाजों से प्रेरणा लेने की जरूरत है। सेमिनार में प्रदेश अध्यक्ष नंदलाल केसरी, प्रदेश कोषाध्यक्ष गोपाल मेघवाल, प्रदेश सचिव सीताराम मेघवाल, जिलाध्यक्ष प्रहलाद मेघवाल, कोषाध्यक्ष राजेंद्र मेघवाल, सचिव भगवानसिंह, संरक्षक नंदलाल वर्मा, रामनारायण मेघवाल, गोपाललाल मेघवाल ने भी विचार व्यक्त किए। प्रदेश अध्यक्ष नंदलाल केसरी व अन्य पदाधिकारियों के नेतृत्व में सुबह साढ़े 11 बजे राष्ट्रीय अध्यक्ष डेनवाल, पुलिस महानिरीक्षक आरपी सिंह का स्वागत नरेंद्र मेघवाल, गिरिराज मेघवाल, भगवानसिंह आदि मेघ सैनिकों ने किया।
ट्रैक तैयार, समाज को बढऩा होगा आगे
 मेघवाल समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल ने शनिवार सुबह 9 बजे सर्किट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अनुसूचित जाति को कभी भी आगे बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए। समाज का पिछड़ापन अभी तक है। भाजपा हो या फिर कांग्रेस उन्होंने केवल वोट बैंक की तरह समाज का इस्तेमाल किया है। मेघवाल समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति दयनीय है, लेकिन समाज को जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमने शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि हमारा समाज शिक्षित होगा तो उन्हें कोई भी गलत इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते हमने समाज को देश भर में जागरूक करने का अभियान चलाया। आगे बढऩे के लिए ट्रैक तैयार किया अब आगे समाज को बढऩा है। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि सरकार कोई भी हो इस समाज को भी राजनैतिक रूप से चुनावों में उम्मीदवारी में अधिक स्थान मिलना चाहिए।
Last Updated 02:24(25/03/12)

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

झलकारी बाई दलित-पिछड़े समाज से थीं और निस्वार्थ भाव से देश-सेवा में रहीं। ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना हमारे लिए जरुरी है

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरांगना झलकारी बाई का महत्त्वपूर्ण प्रसंग हमें 1857 के उन स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है, जो इतिहास में भूले-बिसरे हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेलियों में से एक थी और झलकारी बाई ने समर्पित रुप में न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया बल्कि झाँसी की रक्षा में अंग्रेजों का सामना भी किया।

झलकारी बाई दलित-पिछड़े समाज से थीं और निस्वार्थ भाव से देश-सेवा में रहीं। ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना हमारे लिए जरुरी है। इस नाते भी जो जातियाँ उस समय हाशिये पर थीं, उन्होंने समय-समय पर देश पर आई विपत्ति में अपनी जान की परवाह न कर बढ़-चढ़कर साथ दिया। वीरांगना झलकारी बाई स्वतंत्रता सेनानियों की उसी श्रृंखला की महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं।
इस उपन्यास को लिखने के लिए लेखक ने सम्बधित ऐतिहासिक और सामाजिक परिस्थितियों पर शोध कार्य के साथ स्वयं झाँसी जाकर झलकारी बाई के परिवार के लोगों, रिश्तेदारों आदि से भी मुलाकात की है।


न धर्म रक्षा और न जाति रक्षा, झलकारी ने चूड़ियाँ पहनना छोड़ देश-रक्षा के लिए बन्दूक हाथ में ले ली थी। उसे न महल चाहिए थे, न कीमती जेवर और न रेशमी कपड़े और न दुशाले। वह न तो रानी थी और न ही पटरानी। वह किसी सामन्त की बेटी भी नहीं थी तथा किसी जागीरदार की पत्नी भी नहीं। वह तो गाँव भोजला के एक साधारण कोरी परिवार में पैदा हुई थी और पूरन को ब्याही गयी थी। पिता भी आम परिवार से थे और पति भी, लेकिन देश और समाज के प्रति प्रेम और बलिदान ने उन्होंने इतिहास में खास जगह बनाई थी। दुःखद बात यह कि जाति विशेष के चश्माधारी इतिहासकारों, साहित्यकारों और पत्रकारों में से किसी ने भी दलित समाज की उस वीरांगना झकलारी बाई की खबर नहीं ली थी।

भला हो स्वयं उन दलित और पिछड़े समाज के लेखक, पत्रकार तथा नाट्यकारों का, जिन्होंने छोटी-छोटी पुस्तकें लिखकर इतिहास के उन महत्त्वपूर्ण तथ्यों को उजाले में लाने का प्रयास किया, जो बरसों से अंधेरे में पड़े थे। वही पुस्तिकाएं तथा लेख लिए ऐतिहासिक दास्तावेज साबित हुए। जिसने इस उपन्यास का कथानक रचने-बुनने में मुझे मदद मिली। इसी सम्बन्ध में मैंने गाँव भोजला तथा झाँसी में झलकारी बाई की ससुराल जाकर भी बात की। झांसी के किले के भीतर कई बार गया। महल देखे, उनमें रचीं-बसी शेष रही संस्कृति तथा परम्पराओं को नजदीक से जाना। झाँसी की गलियाँ, बाजारों ऐतिहासिक दरवाजों, बुर्जियों के भीतर बाहर के परिवेश में अतीत की गूँज सुनी। मुझे उम्मीद है कि पुस्तक के माध्यम से दलित और पिछड़े समाज के गौरवशाली इतिहास के भीतर छुपी हुई कई महत्त्वपूर्ण बातें सामने आएँगी। जिनके सवर्णों के अधिकांश लेखक, पत्रकारों, समीक्षकों के साथ इतिंहासकारों को जहाँ सबक मिलेगा वहीं दलितों की नई पीढ़ी को प्रेरणा भी मिलेगी, इसलिए कि वे अपने नायकों से रू-ब-रू हो सकेंगे। उपन्यास लेखन के दौरान झाँसी में रह रहे बहुत-साथियों ने मुझे सहयोग दिया, उनमें विशेष हैं डॉ.शुभेश, प्राधानाचार्य, फाइन आर्ट्स कॉलेज, झाँसी, सत्येन्द्र सिंह, हिंदी अधिकारी, झाँसी मंडल रेलवे।

मोहनदास नैमिशराय

वीरांगना झलकारी बाई


झाँसी से चार कोश दूरी पर भोजला गाँव। गाँव बड़ा न था, पर उसके भीतर एक बड़ा इतिहास पल रहा था। वह इतिहास था क्रान्ति और संघर्ष का। छल और प्रपंच से जीते गए प्रदेशों, रियासतों तथा रजवाड़ों में ब्रिटिश साम्राज्य का बुलडोजर गाँव-गाँव और नगर-नगर आगे ही बढता जा रहा था। झाँसी में भी उसकी दस्तक हो चुकी थी, पर दहल अभी होनी शेष थी। झाँसी के रणबाँकुरों के सीनों में अंग्रेजों के खिलाफ आग ही आग थी। उसी आग के भीतर एक और आग धधक रही थी। चिनगारियाँ इधर-उधर छिटक रहीं थी। बुन्देलखंड की जमीन के कतरे-कतरे में कसक थी। छोटी-छोटी रियासतों तथा जागीरों के घाव रिस रहे थे। उन घावों में असीम पीड़ा थी। उनमें उन्माद था और प्रमाद भी। रियासतदारों और जागीरदारों की तलवारें अभी जंग नहीं खाई थीं। खूब चमकती-दमकती थीं पर आपस में ही टकराती थीं। झाँसी के भीतर तथा बाहर एक जैसी स्थिति थी। वहाँ बहुत कुछ पल रहा था, बीत रहा था। सूरज के उगने और अस्त होने जैसी नियति इतिहास की नहीं थी। वह करवटें ले रहा था। उसके भीतर बवंडर था। आदमी सोया नहीं था। जमीन तप रही थी। टोरियाँ और नदियाँ मौन थीं। उनका लिबास बदल रहा था। नदियों में पानी कम खून अधिक बह रहा था। जंगल और वन कट रहे थे। राजनीतिक मौसम बदल रहा था और तूफान के आने का शोर चारों तरफ बढ रहा था।

भोजला गाँव के भीतर भी बहुत कुछ रच-बस रहा था। गाँव में स्कूल न था, मन्दिर था। पर लोगों के बीच जानने-समझने की धार तेज थी। उस समय पाठ्यक्रम ही शायद ही कोई किताब उत्तरी भारत में छपी होगी। स्कूलों का स्वरूप भी वैसा नहीं था। शिक्षक और शिक्षा का स्वभाव अलग था। धर्म में प्रयोग और विश्लेक्षण की नवीन प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी थी। धर्म ही शिक्षा था और शिक्षा ही धर्म थी। दोनों एक दूसरे के पूरक थे। गाँव के आसपास सब कुछ वैसा ही था। जमीन से मिटटी उड़ती तो वैसी ही पर रंग लाल था उसका। गाँव का आकाश भी नीला ही था। सड़के पक्की न थीं। कच्चे रास्ते गर्द-गुबार से भरे रहते थे। खेत थे, नाले थे, पथरीले रास्ते थे और उनके आसपास थी बुन्देलखंडी अस्मिता और पहचान। जिसकी रौनक अभी भी लोगों के चेहरों पर बरकरार थी। उनकी भाषा में मिठास और सहजता थी, पर मिजाज में गर्मी थी, आक्रोश था और जमीन-आकाश को एक कर देने की बुलन्दगी थी। इसलिए उस लाल मिट्टी का अपना एक गौरवपूर्ण इतिहास था। तत्कालीन शासक और सत्ता ने जिसे और भी प्रभावकारी बना दिया था।

राजा की तुलना उन दिनों भगवान से की जाती थी। जमीन पर वह उसका प्रतिनिधि था। वैसे अंग्रेजों के बारे में कुछ लोगों की अलग राय थी। वे ब्रिटिश हुक्मरनों को स्वर्ग से आए भगवान के प्रतिनिधि समझते थे। आम आदमी की न दरबार में पहुँच थी और न ही अंग्रेजों की कोठियों और बंगलों में। पर उस राजा और अंग्रेजीं शासकों दोनों से न्याय की उम्मीद होती थी।। राजा न्याय करे या अन्याय, जनता-जनार्धन की उस पर आस्था थी। राजा और प्रजा के रिश्ते परम्पराओं और संस्कारों ने अटूट बना दिए थे। उन रिश्तों के बीच अजीब-सी गन्ध होती थी। दोनों को एक-दूसरे से लगाव भी होता था, पर अलग-अलग तरह का।

समय तेजी के साथ बदल रहा था, जैसे तेज गति से दौड़नेवाले रथ पर सवार हो वह। जमीन-आकाश एक करने को आतुर, चाबुक लगनेवाले घोड़े-से बिदकने जैसा। लम्बी-लम्बी छलाँग लगाते हुए समय बढ़ रहा था। समय के भीतर और बाहर सब कुछ बदल रहा था। शहर से गाँव जुड़ने को लालायित थे। गाड़ी भर-भरकर गाँव से शहर की ओर सामान ढोया जा रहे था। वह युग विस्तार का था। व्यवसाय और उद्योगों के स्वभाव बदल रहे थे। गाँव-शहर सब तरफ बाजार पसर रहे थे। लोगों के खान-पान के तौर-तरीकों में बदलाव आ रहे थे।

ग्वालियर रोड से भोजला गाँव नजदीक था। खेतों में हरी-भरी चने की फसल लहरा रही थी। चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिले थे। प्रकृति अपने अनोखे श्रृंगार में थी। उन्हीं की अनुपम छटा निहारते हुए राहगीर सड़क से उतरकर छोटे रास्ते पर आ गया था। दिन  का समय था। चारों तरफ धूप फैली थी। गाँव की विराट संस्कृति का अनूठा सौन्दर्य अपनी अस्मिता और पहचान के साथ सर्वत्र दिखाई देता था। अलग-बगल से गुजरते हुए लोग। उनके अलग-अलग सम्बोधन। पर उन सम्बोधनों में खुशबू एक जैसी ही थी। उसके स्वर में रिश्तों की गर्माहट थी। राहगीर कुछ के लिए अपना था और अन्य के लिए पराया, पर अजनबी नहीं था। जमीन की गन्ध जितनी बाहर थी उतनी ही उसके भीतर भी। खेत पार कर अचानक राहगीर की निगाहें छः सात वर्षीय एक लड़की की ओर उठ गई। उसका रंग थोड़ा साँवला था। आँखों में ढेर सारी चमक, बिखरे बाल। राहगीर ने पलभर सोचा। उसे ध्यान आया। पहले इस लडकी को कहीं देखा है। वह व्यक्ति गाँव में दो-तीन बरस पहले भी आ चुका था। उसी व्यक्ति ने मन में सोचा। कहीं यह सदोवा की मोड़ी* तो नहीं है। राहगीर पास आया, तो पूछ बैठा वह, ‘‘बिन्नू का कर रई ?’’

मिट्टी के ढेर पर बैठी लड़की के कानो में अनजाने व्यक्ति की आवाज पड़ी तो चौंक-सी उठी वह। उसने देखा अधेड़ उम्र का आदमी उसके पास आकर ठहर गया था।
————————————————
*लड़की

उसके होंठों पर हल्की मूँछें थीं। सिर पर सफेदी बिखरी हुई थी। शरीर पर मटमैला कुर्ता और धोती, पाँव में साधारण जूतियाँ, जो धूल-मिट्टी से अटी हुई थीं। लगता था जैसे वह काफी दूर से पैदल चलकर आया हो। बिना किसी हिचकिचाहट के तपाक से उसने कहा था, ‘‘किलौ बनाई रई हूँ।’’
पूछने वाले के मुँह से आश्चर्य से निकला, ‘‘क्या ?’’
झलकारी फिर बोली, ‘‘किलौ, तोय सुनाई नई दैरयौ।’’
उसके स्वर में थोड़ी तुर्शी थी। सुनने वाले को बुरा लगा। थोड़ा नाराजगी के स्वर में बोला, ‘‘बिन्नू तैं तो भौतई खुन्नस खा रई। य्य तो बतला, कौन की मोड़ी है तू ?’’
झलकारी इस बार धीरे से बोली, ‘‘सदोवा मूलचन्द्र की।’’
सुनकर आगन्तुक जाने के लिए पीछे मुड़ा ही था कि वह पूछ बैठी, ‘‘हमाय बारे में पूछ लयो अपने बारे में नई बताओ कछु।’’

जाते-जाते मंद-मंद मुस्कराते हुए कहा था राहगीर ने, ‘‘तेय बाबा को बताँव।’’ उसे घर की ओर जाते देख मन ही मन बुदबुदायी थी झलकारी, ‘‘बाबा को बताँव।’’
आसपास कोई न था। ढलान के उस पार थी तो केवल एक गाय जो खेत में चर रही थी। मिट्टी के टीले पर वह अकेली थी। थोड़ी चुप्पी के फिर उसने अपने-आप से कहा, ‘‘ऐसो कौन आदमी है, जो मोए नई बताँव।’’
मन में उभरा सवाल भला कहाँ चैन लेने देता झलकारी को। जिज्ञासावश उसने गरदन घुमाकर फिर देखा। राहगीर उसके घर की तरफ ही जा रहा था। उसके भीतर हुड़क-सी उठी। कौन आदमी हो सकता है यह ? उसके भीतर बार-बार जिज्ञासा उभर रही थी।
‘‘सहर से आया होगा...। पर तभी स्वयं का जवाब आया था, ‘‘सहरी मानस तो नइ लगता।’’
‘फिर ?’’

उसके भीतर से पुनः सवाल उभरा, ‘‘हो सकत माँ के गाँव से हो।’’ सवाल के बाद स्वयं ने जवाब भी दे दिया था, ‘‘पर माँ के गाँव से काय आया होगा ? गाँव से तो मामा आते हैं।’’
अपने ही सवाल-जवाबों की कशमश में थी वह। आगन्तुक ने बीच में आकर एक भोली-भाली लड़की को अजीब-सी मुश्किल में डाल दिया था। उसके भीतर से कभी सवाल उभरते तो कभी जवाब आते। वह असमंजस में थी। बिन बुलाए आई इसी मुश्किल से पीछा छुड़ाते हुए अन्ततः वह बुदबुदा उठी थी।, ‘‘होंगे कोई, गाँव में कितने आदमी आते-जाते हैं। हमें क्या।’’
तभी उसके बाल-सखा चन्ना और रमची ने दूर से देखा। मिट्टी के ढेर पर बैठी झलकारी कुछ बना रही थी। पास आते ही वे पूछ बैठे, ‘‘किलौ जैसो का बना रही हो बहना ?’’
उनकी तरफ देखकर जवाब दिया था झलकारी ने, ‘‘किलौ जैसो कछु नई याँ, पर किलौ ऐन है।’’
इस बार चन्ना-रमची दोनों का संयुक्त स्वर उभरा था, ‘‘किलौ !’’ बिना किसी विलम्ब के बोली थी वह, ‘‘कै दयी किलौ.....किलौ....कलौ, कछु और जानबी ?’’
बाल सुलभ मन से पूछा था फिर उन्होंने, ‘‘पर की किलौ।’’
इस बार भी तुरन्त उत्तर दिया था झलकारी ने, ‘‘हमाओ किलौ ?’’
उसका जवाब सुनकर आश्चर्य से उभरे थे चन्ना-रमची के स्वर ‘‘तुमाओ किलौ ?’’

दूसरी ओर झलकारी के स्वर में विश्वास उभरा था, ‘‘हाँ हाँ, हमाओ किलौ ? हुई नई सकत, हम किलौ में नई रह सकत ?’’
इस पर दूसरा दो-टूक जवाब था, ‘‘नई।’’
तभी झलकारी ने प्रतिवाद में कहा था, ‘‘काय ?’’
उसके प्रतिवाद में पहले दोनों हँस रहे थे तो दूसरी तरफ झलकारी उन दोनों की ओर अजीब-सी नज़रों से देख रही थी। उसकी आँखों में गुस्सा था। वैसे ही गुस्से से भरा स्वर फूटा था उसके होंठों से, ‘काए हो-हो कर रहे हो बिलात देर से, काय कौ, हम किलौ में नई रह सकत हैं ?’’ इस बार चन्ना-रमची दोनों ने बुजर्गों की तरह जवाब दिया था, ‘‘तैं इतेक बाउत नइ समझ सकत, हम कौन राजा-महाराजा हम। और किलौ में तो राजा रत्त रानी रउतीं।’’
पर झलकारी के स्वर में अभी भी आत्मविश्वास था, ‘‘अरै, हम रानी से काउ कम है।’’

दोनों बच्चों ने सुना तो वे और भी चिढाने लगे, ‘‘ऊहूँ, रानी....।’’ झलकारी उठकर उन्हें मारने को दौड़ी। वह चन्ना के पीछे भागी तो रमची उसके बनाए हुए किले की ओर आया। झलकारी ने पीछे मुड़कर देखा और डांटने के स्वर में बोली, देख रमची हमाय किलौ को कछु न हो।’’
रमची ने जैसे ही मिट्टी के किले को छूने की कोशिश की, झलकारी ने उसी तरफ झपटते हुए कहा, ‘‘ठहर पहले तोयस बतलाऊँ।’’

उससे बचने के लिए रमची और तेजी से भागा। झलकारी उसकी तरफ भागी तो चन्ना मिट्टी के आधे बने हुए किलेकी ओर आया। दोनों उसके बनाए हुए किले की ओर बारी-बारी से झपट रहे थे। पर झलकारी ने चन्ना-रमची को किले से अँगुली तक नहीं लगाने दी थी। वह उनकी तरफ दौड़ती-भागती थी। हारकर वे दोनों थक से गए थे, पर झकलारी थकने वाली नहीं, अन्त में वे ही दोनों थककर हाँफते हुए मिट्टी के ढेर पर बैठ गए। किले के पास नहीं, उससे कुछ दूर पर दोनों बैठे हुए अभी भी हाँफ रहे थे। इसलिए कि वे झलकारी के क्रोध को अच्छी तरह से जानते थे। इधर झलकारी फिर से अधूरे किले को बनाने में लग गयी। उसके माथे पर पसीने की कुछ बूँदे चुहचुहाई थीं।

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User: navratna mandusiya surera dantaramgarhReview Date:April 4, 2012, 7:04 am
झलकारी बाई दलित-पिछड़े समाज से थीं और निस्वार्थ भाव से देश-सेवा में रहीं। ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना हमारे लिए जरुरी है।

आराध्य बाल तपस्वी अणसी बाई मेघवाल

भास्कर न्यूज. नाडोल
कस्बे में स्थित आराध्य बाल तपस्वी अणसी बाई की 86 वीं जयंती समारोह पूर्वक मनाई गई। मेघवालों के बड़े बास में स्थित बाल तपस्वी अणसी बाई के जन्म स्थल से शनिवार को पुजारी मांगीलाल मेघवाल के सानिध्य में बैंड बाजा, झांकी व गेर नृत्य के साथ शोभायात्रा निकाली गई।
शोभायात्रा कस्बे के मुख्य मार्गों से गुजरी तो ग्रामीणों ने पुष्प वर्षा से स्वागत किया। इसके बाद खारडा रोड स्थित बाल तपस्वी अणसी बाई समाधि स्थल पर पहुंचकर विसर्जित हुई, जहां पर सैकड़ों श्रद्धालु एवं संतों के सानिध्य में चादर चढ़ाने की रस्म अदा की गई। इसके साथ पूजा-अर्चना कर प्रसादी का वितरण किया गया। पूर्व संध्या पर 'एक शाम श्री बाल तपस्वी अणसी बाई के नामÓ भजन संध्या का आयोजन किया गया। भजन संध्या में गायक कलाकार संत कन्हैयालाल एंड पार्टी आदि कई कलाकारों ने प्रस्तुति दी। समारोह में सहयोग देने वाले दानदाताओं एवं अतिथियों का साफा एवं माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। इस मौके पर कांग्रेस के संयुक्त सचिव मदन सिंह राजपुरोहित, बीडीओ घीसाराम बामणिया, जिला परिषद सदस्य प्रमोद सिंह मेघवाल, सरपंच मनीषा मेघवाल, पंचायत समिति सदस्य ओंकारलाल मेघवाल, मेघवाल युवा समिति के जिला संयुक्त सचिव गौतम चंद गजनीपुरा आदि उपस्थित थे।

रविवार, 1 अप्रैल 2012

मेघवाल समाज की संभाग स्तरीय महापंचायत


भास्कर न्यूजत्नपीपाड़ शहर
राजस्थान मेघवाल समाज के तत्वावधान में मेघवंश महापंचायत 29 अपै्रल को रावण का चबूतरा मैदान, जोधपुर में सुबह 10 बजे आयोजित होगी। समाज के जिला अध्यक्ष नथमल खींची ने बताया कि समाज द्वारा प्रदेश भर में चलाए जा रहे जनजागरण अभियान के तहत प्रदेश के सभी संभाग मुख्यालयों पर संभाग स्तरीय महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है।
इस महापंचायत में पूर्व केन्द्रीय मंत्री योगेन्द्र मकवाना, पूर्व मंत्री चांदराम, पूर्व मंत्री कैलाश मेघवाल, पुलिस महानिरीक्षक आरपी सिंह मुख्य वक्ता समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल डेनवाल होंगे। खीची के अनुसार महापंचायत की तैयारियों को लेकर 13 अप्रैल को जोधपुर के मसूरिया स्थित मेघवाल छात्रावास में आम सभा का आयोजन होगा। जिसमें संभाग क्षेत्र के समाज के बंधुगण शरीक होंगे। इस दौरान समाज के विभिन्न अग्रिम संगठनों से जुड़े प्रमुख जन भी उपस्थित रहेंगे।

Last Updated 01:29(31/03/12)
 


नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...