शनिवार, 15 अप्रैल 2017

पति पत्नी के पवित्र रिश्ते पर एक दूसरे पर विश्वास करना चाहिये जिसमे रिश्ते मे मज़बूती बढ़ाएगी


husband wife romance
पवित्र अगि्न को साक्षी मानकर लिए गए सात फेरे जिंदगी का अहम हिस्सा होते हैं जिसमें प्यार, संयम, समझदारी के साथ जिंदगी भर साथ निभाने का वादा होता है। इसलिए अगर आप भी विवाह के पवित्र बंधन में बंधने जा रहे हैं तो इन वचनों का खास ध्यान रखें ताकि रिश्तों में नयापन, प्यार और विश्वास ताउम्र बना रहे। हमेशा से ही सात नंबर को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण और चिरायु प्रदान करने वाली संख्या माना जाता रहा है, क्यों कि सात नंबर अपने अंदर ब़डे गूढ़, आध्यात्मिक दर्शन और पारलौकिक अर्थ छिपाए हुए हैं। इस पुण्य संख्या के साथ ही जुडी है सप्तपदी यानि दो आत्माओं के मिलन के लिए मांगी गई ईश्वरीय स्वीकृ ति। इस रीति के बिना विवाह संपन्न नहीं हो सकता क्यों कि जब तक वर-वधू ये सात कदम नहीं चलते, विवाह अधूरा ही रहता है। सप्तपदी ही एक ऎसी रस्म है जहां साथ रखे हर कदम के साथ वर-वधू एक-दूसरे से सात जन्म तक का साथ साथ निभाने का वादा करते हैं, पर आज के बदलते परिवेश में ये सात वचन कब टूट जाते हैं पता ही नही चलता, इसलिए अगर आप चाहते हैं कि सात जन्मों का साथ वाकई सात जन्मों तक बना रहे तो सात फेरों के साथ जरूरी है इन बातों का ख्याल रखना ताकि आपके रिश्तों में प्यार की मिठास और खुशियां बनी रहे-
1- दाम्पत्य की अटूट कडी है " विश्वास " और विश्वास पर ही पति-पत्नी का रिश्ता टिका होता है, इसलिए इसमें शक न लाएं क्योंकि अगर यह एक बार आ जाता है तो पूरी जिंदगी लग जाती है टूटी कडी जोडने में, इसलिए जरूरी है कि विश्वास की नींव हिलने न दें बल्कि इतनी मजबूत बनाएं कि प्रचंड आंधी भी इसे हिला न सके।
2-विवाह के बाद अपनी गृहस्थी, बचत व निवेश की योजनाएं बनाएं और इसके साथ फैमिली प्लानिंग भी करके चलें ताकि अनचाहे गर्भ से बचा जा सके और अपनी सुविधानुसार फैमिली बढाई जा सके। 3-कोई इंसान परफेक्ट नही होता है, इसलिए एक-दूसरे में गलतियां न निकालें बल्कि गलतियों को सुधारने का मौका दें। अपने प्यार में इतनी ताकत लाएं कि सामने वाला अपनी कमियों को आपके कहे बिना ही सुधार लें।
4-उनकी पसंद के अनुरूप कार्य करें, मतलब ये नियम अपनाएं "जो तुमको हो पसंद वही बात कहेगें" फिर चाहे वह टीवी देखने का हो या फिर घूमने का, उनकी पसंद को अपनी पसंद बनाएं।
5-अगर पार्टनर खर्चीली प्रवृत्ति वाला है तो कोशिश करें कि खर्चे की सफाई ना मांगे, क्यों कि उनके अपने भी खर्चे होते हैं जिन्हें पूछना व बताना, झग़डे को बढ़ावा देने जैसा होता है, क्यों कि खर्चे करने का हक दोनों का होता है।
6-एक-दूसरे को सरप्राइज जरूर दें। पर झटके वाले ना हों, मतलब जिससे आपका बजट ना बिगडे और पार्टनर भी सरप्राइज देखकर खुश हो जाए।
7-आप चाहें कितने भी व्यस्त क्यों ना हों, पर एक-दूसरे को समय जरूर दें क्यों कि कई बार समय की कमीं के कारण रिश्ते बिखरने लगते हैं, इसलिए अपने पार्टनर के लिए समय जरूर निकालें।
8-रिश्ते में एक-दूसरे के घर की कमियां जरूर गिनाई जाती हैं, इसलिए ऎसे समय पर बुराई तो करें पर बुराई को झगडे का रूप ना दें।
9-गलती होने पर माफी जरूर मांगे, क्यों कि सॉरी कहना बुरी बात नहीं है और ना ही माफ करना मुश्किल काम है,साथ ही माफी मांगने से झगडा आगे नही बढता, इसलिए माफी मांगने में कंजूसी ना करें।
10-कहते हैं रिश्ते में स्पेस जरूरी होता है क्यों कि दूरी से प्यार झलकता है। इसलिए अपने रिश्ते में थोडी दूरी बनाए रखें ताकि आपको उनकी कमी का एहसास हो।
11-सेक्स दाम्पत्य की धुरी है इसलिए एसे अनदेखा ना करें और हर रोज इसमें कुछ नया करने की कोशिश करें। पर जो भी क्रिया करें उसमें पार्टनर की सहमति जरूर होनी चाहिए।
12-अपने पार्टनर के लिए हमेशा ईमानदार रहें और कोई भी ऎसी बात ना छुपाएं जो बाद में पता चलने पर दिल को ठेस पहुंचाए।
13-घर का फैसला हो या फिर अपने लिए कोई भी फैसला अकेले ना लें, बल्कि एक,दूसरे के सलाह-मशविरा लेकर ही फैसला करें।
14- कहते हैं कि खुशियां हमारे आस-पास ही होती हैं,बस उन्हें ढूंढने की जरूरत होती है इसलिए जीवन के हर पल में खुशियां ढूंढे।
15-पति-पत्नि का रिश्ता एक दूसरे के लिए समर्पित होता है,इसलिए अगर आपको लगता है कि आपके पार्टनर व घर के लोगों की जिसमें खुशी है वो आपसे ही पूरी हो सकती है तो उसके लिए कुर्बानी देने में जरा भी संकोच ना करें।
16-अपने साथी की खूबियों की तारीफ करें और इस तारीफ को हो सके तो घर वालों के सामने भी कहें। इससे आत्मविश्वास बढता है।
17-थैंक्यू शब्द जादू का काम करता है, इसलिए अगर आपके पार्टनर ने आपके घर व आपके लिए कुछ किया है तो थैंक्यू जरूर कहें। आपके द्वारा कहा गया थैंक्यू उनको कितनी खुशी देगा उसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते।
18- कभी-कभी हार मान लेना गलत नहीं होता है, इसलिए अगर आपकी गलती नहीे है तो भी हार मान लें। आपका ये व्यवहार देखकर वो आपके आभारी हो जाएंगे।
19-अगर किसी बात को लेकर बहस हो रही है तो उस बात का बतंग़ड ना बनाएं बल्कि तुरन्त खत्म करने की काशिश करें।
20-माना आपकी शादी हो गई है और आप चाहते हैं कि आपका साथी हमेशा आपके साथ रहे तो इस जिद को छोडे और उन्हें दोस्तों के साथ घूमने का मौका भी दें।
 21-अगर आपका किसी बात पर झगडा हो गया है तो बिस्तर पर जाने से पहले झगडे को खत्म कर लें ताकि बिस्तर पर बातें हों तो सिर्फ प्यार की।
22-शादी के बाद अगर आपके साथी का कोई शौक पूरा नहीं हो पाया हैे तो उसे पूरा करने का मौका व सहयोग दें और उसके शौक व रूचियों को बरकरार रखें। शौक को पूरा करने में मददगार बनें न कि दीवार।
23-अगर आपकी कोई फरमाइश है तो उसे साथी को बताएं ना कि फरमाइशों को चाय के प्याले के साथ परोसें।
24-शादी के बाद डेटिंग जैसी चीजों को खत्म ना करें बल्कि मौका मिलते ही डेटिंग पर जाएं ताकि पुरानी यादें ताजा हो सकें।
25-"आई लव यू" ये तीन शब्द सारे गुस्से और झगडे को खत्म कर देता है इसलिए इसे कहने से ना चूकें।
26-अगर आपके पार्टनर ने कुछ नया किया है तो उसे कॉम्पलीमेंट जरूर दें,उससे उसका हौसला बढता है।
27-माना ईगो इंसानी व्यक्तित्व का गुण है,जो समाज में आपकी पहचान के साथ अपने आप विकसित होने लगता है, पर इसका मतलब ये नहीं कि रिश्ते में ईगो लाएं।
28-आपसी तालमेल के दौरान हमेशा अदब व शिष्टाचार रखें। कभी भी अपशब्द का इस्तेमाल ना करें। तर्क-वितर्क करते समय आपा ना खोएं।
29-बार-बार अपने पार्टनर को छोड देने की धमकी ना दें,इससे रिश्ते की डोर कमजोर होती है। 30-आमतौर पर ये माना जाता है कि शादी के बाद प्रेम और परिपक्व हो जाता है,इसलिए प्रेम को और बढाएं ना कि कम होने दें।
31-एक -दूसरे को सम्मान दें, क्यों कि आपके द्वारा दिया गया सम्मान तीसरे की नजर में भी आता है, इसलिए गरिमा बनाए रखें।
32-विवाहित जीवन का भविष्य बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे के प्रशंसनीय पक्ष पर ध्यान दें।

हिन्दू समाज मे सात फेरे और सात वचन


वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कारों को जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं। विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है।

शाब्दिक अर्थ

विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

सात फेरे और सात वचन

विवाह एक ऐसा मौक़ा होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। भारतीय विवाह में विवाह की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है। जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।

सात फेरों के सात वचन

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है। कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

प्रथम वचन

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवासअथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है। जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं, वही सुखद फलदायक होता है। पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

द्वितीय वचन

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!
(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है--गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

तृतीय वचन

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!
(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)

चतुर्थ वचन

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!
(कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)
इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है। विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पाएगी। इसलिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।

पंचम वचन

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!
(इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
यह वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है। बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है, साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

षष्ठम वचनः

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!
(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं। विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है। वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं। ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा। यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।

सप्तम वचनः

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!
(अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है। इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

बहुजन संघर्ष दल के प्रदेशाध्यक्ष कपिल मेघवाल की खास बात

राजस्थान में इन दिनों संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर के नाम पर भीम मेले लग रहे हैं और इन मेलों में उमड़ रही दलित युवाओं की भीड़, समाज में दलित जागृति की नई शुरूआत मानी जा रही है। ऐसे ही भीम मेले इन दिनों राजस्थान के मारवाड़ अंचल में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
जोधपुर। जिले में बहुजन संघर्ष दल के नेतृत्व में लग रहे भीम मेलों में बड़ी संख्या में दलित युवाओं की भीड़ उमड़ रही है। इन भीम मेलों की खास बात ये है कि यहां आने वाले दलित युवाओं को दलित आंदोलनों की ऐतिहासिक जानकारी दी जाती है साथ ही देश के संविधान से लेकर कानून और प्रशासन की जानकारी भी इन युवाओं को दी जा रही है। राजस्थान में पहला भीम मेला जोधपुर जिले के ओसियां में पंडित जी की ढाणी में आयोजित किया गया था। उसके बाद जुलाई में नागौर जिले में खींवसर के आकला गांव में भीम मेला मेला लगाया गया जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुचे। मेले में बहुजन संघर्ष दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष फूलसिंह बरैया के साथ ही संत नानकदास कबीरपंथी भी मौजूद रहे ।
IMG-20160723-WA0014
बहुजन संघर्ष दल के प्रदेशाध्यक्ष कपिल मेघवाल बताते हैं कि ऐसे भीम मेले राजस्थान में पहली बार आयोजित किए जा रहे हैं। जिनमें बढ रही दलित युवाओं की भागीदारी हम सब का मनोबल बढ़ाती है। ऐसे ही भीम मेले महाराष्ट्र में पहले भी लगते रहे हैं। जिनमें दलितों में नई चेतना की जागृति और बाबा साहेब के संदेशों को आमजन तक पहुंचाने काम किया जाता रहा है। सदियों से दलित समाज हर तरह से शोषण का शिकार रहा है और ग्रामीण इलाकों में लोगों के शिक्षित नहीं होने की वजह से जागृति की कमी होती है । इसी कमी को दूर करने के लिए हमने भीम मेले लगाने का निर्णय किया । कपिल मेघवाल कहते हैं कि देशभर के साथ राजस्थान में दलित उत्पीड़न में बढोतरी हुई है। इसकी एक वजह ये भी है कि लोगों को उनके हकों की जानकारी नहीं होना है । हम भीम मेलों में दलितों को कानूनों की जानकारी भी देते हैं। साथ ही उनके हक और अधिकारों को लेकर भी चर्चा करते हैं । खास बात ये भी है कि दलित स्वास्थ कैसे रहे इस बात की जानकारी भी इन मेलों में दी जा रही है। आत्मरक्षा के लिए जुडो-कराटे, व्यायाम और योग की बारिकियां भी दलित युवा इन भीम मेलों के सीख रहे हैं।
IMG-20160723-WA0015
भीम मेले में क्या है खास –
इन भीम मेलों में दलित उत्पीड़न को लेकर बनाए गए कानून, देश के संविधान की जानकारी, प्रशासनिक ढांचे के साथ ही अधिकारियों के बारे में जानकारी और साथ ही बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के किए गए कार्यों की जानकारी भी दलित युवाओं को दी जा रही है। वहीं किसी के भी साथ अत्याचार होने की स्थिति में कैसे एफआईआर दर्ज करवाएं और थाने में मामला दर्ज नहीं होने पर क्या करें इन सब कानूनी पहलुओं को लेकर जानकारी दी जाती है और सरकारी योजनाओं के बारे में भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। राजनैतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े दलितों के लिए ये जानकारी काफी फायेदेमंद साबित हो रही है। इतना ही नहीं भीम मेले में दलित युवाओं को आत्मरक्षा के गुर भी सिखाए जा रहे हैं । जिससे युवा सामाजिक उत्पीड़न का प्रतिकार कर सकें ।

बाबा साहेब की 18 बाते

14 अप्रैल को पूरे विश्व मे बाबा साहेब की जयन्ती बड़े धूम धाम से मनाई जाती  है, और यह भारत के इतिहास का वह ऐतिहासिक दिन है जब सन् 1891 में भीमराव अंबेडकर का जन्म मऊ, मध्य प्रदेश में हुआ था. “बाबा साहेब” के नाम से बाद में प्रचलित हुए इस शख़्स के बारे में आज कुछ भी कहना और लिखना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है. मगर सब कुछ हमेशा से ऐसा ही नहीं था. बाबा साहेब को पूरा देश जिस एक चीज़ के लिए जानता है वो यह है कि वे भारत राष्ट्र के संविधान निर्माता थे और इसी परिप्रेक्ष्य में उनकी दूरदृष्टि और व्यापकता को नज़रअंदाज किया जाता है. बाबा साहेब का जन्म हिन्दू धर्म की महार जाति में हुआ था, जिसे तब के समाज में अछूत का दर्जा दिया गया था. मगर आज आज़ादी के कई वर्षों के बाद भी स्थितियाँ बिलकुल से बदल गई हों ऐसा कतई नहीं है. आज भी हमारे समाज में धार्मिक और जातिगत गैरबराबरी बदस्तूर जारी है. और इसी गैरबराबरी को हटाने के लिए बाबा साहेब अपनी अंतिम सांस तक अनवरत लड़ते रहे और उनका ये संदेश आज़ादी के दौरान जितना प्रासंगिक लगता था, आज उससे कहीं ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होता है.

शिक्षित बनो! संगठित रहो! संघर्ष करो!

1. मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है.2. जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए .3. एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है क्योंकि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है. 4. दिमाग का विकास मानव अस्तित्व का परम लक्ष्य होना चाहिए. 5. हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं.
6. हिंदू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है 7. मनुष्य नश्वर है. ऐसे विचार होते हैं. एक विचार को प्रचार-प्रसार की ज़रूरत है जैसे एक पौधे में पानी की ज़रूरत होती है. अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे.

8. मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री द्वारा करता हूँ. 9. इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र में संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है. निहित स्वार्थों को स्वेच्छा से कभी नहीं छोड़ा गया है जब तक कि पर्याप्त बल लगा कर मजबूर न किया गया हो. 10. हर व्यक्ति जो “MILL” का सिद्धांत जानता है, कि एक देश दूसरे देश पर राज करने में फिट नहीं है, उसे ये भी स्वीकार करना चाहिये कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर राज करने में फिट नहीं है. 11. लोग और उनके धर्म सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए. अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा.
12. एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ़ असंतोष का होना काफ़ी नहीं है. आवश्यकता है राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व, ज़रुरत व न्याय का पूर्णतया गहराई से दोषरहित होना  13. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए. 14. यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा.
15. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है. 16. समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा. 17. राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं हैं और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है. 18. अपने भाग्य के बजाय अपनी मजबूती पर विश्वास करो.

नवरत्न मन्डुसिया

खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल

  सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...