शनिवार, 15 अप्रैल 2017

बाबा साहेब की 18 बाते

14 अप्रैल को पूरे विश्व मे बाबा साहेब की जयन्ती बड़े धूम धाम से मनाई जाती  है, और यह भारत के इतिहास का वह ऐतिहासिक दिन है जब सन् 1891 में भीमराव अंबेडकर का जन्म मऊ, मध्य प्रदेश में हुआ था. “बाबा साहेब” के नाम से बाद में प्रचलित हुए इस शख़्स के बारे में आज कुछ भी कहना और लिखना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है. मगर सब कुछ हमेशा से ऐसा ही नहीं था. बाबा साहेब को पूरा देश जिस एक चीज़ के लिए जानता है वो यह है कि वे भारत राष्ट्र के संविधान निर्माता थे और इसी परिप्रेक्ष्य में उनकी दूरदृष्टि और व्यापकता को नज़रअंदाज किया जाता है. बाबा साहेब का जन्म हिन्दू धर्म की महार जाति में हुआ था, जिसे तब के समाज में अछूत का दर्जा दिया गया था. मगर आज आज़ादी के कई वर्षों के बाद भी स्थितियाँ बिलकुल से बदल गई हों ऐसा कतई नहीं है. आज भी हमारे समाज में धार्मिक और जातिगत गैरबराबरी बदस्तूर जारी है. और इसी गैरबराबरी को हटाने के लिए बाबा साहेब अपनी अंतिम सांस तक अनवरत लड़ते रहे और उनका ये संदेश आज़ादी के दौरान जितना प्रासंगिक लगता था, आज उससे कहीं ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होता है.

शिक्षित बनो! संगठित रहो! संघर्ष करो!

1. मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है.2. जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए .3. एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है क्योंकि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है. 4. दिमाग का विकास मानव अस्तित्व का परम लक्ष्य होना चाहिए. 5. हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं.
6. हिंदू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है 7. मनुष्य नश्वर है. ऐसे विचार होते हैं. एक विचार को प्रचार-प्रसार की ज़रूरत है जैसे एक पौधे में पानी की ज़रूरत होती है. अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे.

8. मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री द्वारा करता हूँ. 9. इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र में संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है. निहित स्वार्थों को स्वेच्छा से कभी नहीं छोड़ा गया है जब तक कि पर्याप्त बल लगा कर मजबूर न किया गया हो. 10. हर व्यक्ति जो “MILL” का सिद्धांत जानता है, कि एक देश दूसरे देश पर राज करने में फिट नहीं है, उसे ये भी स्वीकार करना चाहिये कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर राज करने में फिट नहीं है. 11. लोग और उनके धर्म सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए. अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा.
12. एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ़ असंतोष का होना काफ़ी नहीं है. आवश्यकता है राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व, ज़रुरत व न्याय का पूर्णतया गहराई से दोषरहित होना  13. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए. 14. यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा.
15. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है. 16. समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा. 17. राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं हैं और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है. 18. अपने भाग्य के बजाय अपनी मजबूती पर विश्वास करो.

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नवरत्न मन्डुसिया

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