मंगलवार, 30 जनवरी 2018

परम श्रध्देय श्री बंशीदास जी महाराज की प्रथम बरसी पर शत-शत नमन.....


स्मृति शेष....
संघर्षशील वयक्तित्व के धनी परम श्रद्धेय श्री बंशीदास जी महाराज सांगलपति
 (मेघवाल समाज के नवरत्न मंडुसिया के  सामाजिक ब्लॉग की ओर से स्वामी बंशी दास जी महाराज को शत शत नमन
भीम प्रवाह न्यूज, सीकर। राजस्थान का शेखावाटी क्षैत्र वीर सपूतो की संत महापुरूषो की धरा के नाम से जाना जाता है। यहां कि धरा पर हजारो ऐसे शूरवीर हुए है जिन्होने देश सेवा में अपने प्राणो की आहुति देकर शेखावाटी व देश का नाम रोशन किया है। यहां का रहन शहन,खान-पान,भाषा व भोगोलिक वातावरण देश में अपनी अलग पहचान रखता हैं। यहां के धार्मिक स्थलों के कारण क्षैत्र की देशभर में विशेष पहचान हैं। यहां के साधु संतो व्दारा लोककल्याणार्य करवाए गए कार्य सदैव जन जन की जुबान पर रहते हैं।
 शेखावाटी के सीकर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर सांगलिया नामक गांव स्थित हैं। इस गांव की धार्मिक पीठ बाबा लक्कड़दास आश्रम,सांगलिया धूणी के कारण आज देशभर में इसकी विशेष पहचान हैं। धूणी पर प्रतिवर्ष देश के कौने कौने से हजारो लोग पहुंचते है व यहां के संतो व्दारा करवाए गए अनुकरणीय कार्यो का स्मरण करते हैं।

धूणी की स्थापना लगभग 400 वर्ष पूर्व बाबा लक्कड़दास ने की थी। बाबा के बारे में अनेक दंतकथाए प्रचलित हैं। गांव की चौपाल पर बैठे लोग आज भी उनके चमत्कार व पर्चो के बारे में बताते रहते हैं। धूणी पर बाबा मलूकदास,मंगलदास,दुलादास,रामदास,अघोरीदास,मानदास,कूमदास,लादूदास,खींवादास,भगतदास सहित अनेक संतो ने अपनी वाणी से अनवरत जन चेतना की अलख जगाई। ऐसे ही संतो की श्रृंखला में परम श्रध्देय श्री खींवादासजी महाराज के परम शिष्य श्री बंशीदास जी महाराज हुए।

बंशीदास जी महाराज का जीवन परिचय

 12 अक्टूबर 1974 को सीकर जिले के लांपुवा गांव में माता श्रीमती ग्यारसी देवी की कोख से पिता श्री घीसाराम जी बरवड़ के घर एक बहुमुखी प्रतिभाशाली बालक का जन्म हुआ। बचपन से ही शोम्य व श्यामवर्णी इस बालक का नाम माता पिता ने बंशी रखा। बालक बंशी अपने सभी भाई बहनो में सबसे ज्यादा चंचल थे। बालक बंशी की बाल्यकाल की गतिविधीयो से परिवारजनो को भी ये लगने लगा था कि ये जरूर आगे चलकर बड़ा नाम कमायेगा। ये ही बालक बंशी बाद में सांगलिया धूणी के पीठाधीश्वर खींवादासजी महाराज के उतराधिकारी बना व सांगलिया पीठ की गद्दी पर पदासीन किए गए।
बंशीदासजी की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक ग्राम लांपुवा तथा आभावास व रींगस में हुई। मैट्रीक तक की शिक्षा के बाद सन-1993 में आप अपने बड़े भाई जगदीश प्रसाद बरवड़ प्र.अ. के साथ प्रतियोगी परिक्षाओ की तैयारी हेतु सीकर आ गए। लेकिन पढ़ाई में मन नही लगने के कारण आप बार - बार सांगलिया धूणी आते रहे। उच्च शिक्षा ग्रहणकर अच्छी नौकरी के प्रयास करने हेतु आपके पिताजी, बड़े भाई लक्ष्मणसिंह,जगदीश प्रसाद व सुरेश बरवड़ ने उनको काफी समझाईश की पर वे नही माने और उन्होने मन की बात बताते हुए कहा कि मैं तो साधु बनूंगा। माता -पिता के लिए ये किसी वज्रपात से कम नही नही था।

सन्यास व धूणी से पारिवारिक जुड़ाव

सांगलिया धूणी से पारिवारिक जुड़ाव का होना भी बंशीदास का सन्यास की ओर रूख होने का मुख्य कारण रहा। आपके ननिहाल दांतला,रेलवाली ढ़ाणी व दिल्ली प्रवासी आपके मामाजी रामदेव जी व गणपत जी गर्वा के यहां धूणी के भूतपूर्व पीठाधीश्वर लादूदास जी व खींवादास जी महाराज का लगातार आना जाना रहता था। आपके सबसे छोटे मामाजी मंगलाराम गर्वा बताते है कि बाबाजी एक-एक महिने तक अपने घर पर प्रवास पर रहते थे। इस दौरान भजन,सत्संग व ज्ञान चर्चाएं होती रहती थी। वे बताते है की बंशीदास का भी ननिहाल में आना जाना और संतो की संगत से बाबा खींवादास जी की ओर रूझान हुआ। इसी से उसने संत मार्ग का रूख किया। तथा उन्होने 7 जून 1995 को बाबा खींवादास जी महाराज से दीक्षा ली। दीक्षा से कुछ दिनो पहले की बातो को याद करते हुए आपके बड़े मामा मालाराम जी गरवा बताते हैं कि उनके विषय में बात करते हुए खींवादासजी महाराज ने पूछा था कि मालाराम ये बंशी तेरा भांजा है क्या? ये साधु बनना चाहता हैं और तेरा भांजा है तब तो आगे चलकर ठीक ही निकलेगा।

मास्टर, बंशीदास नही मैं खुद ही आया हूं.....

अतीत के पन्नो पर नजर डालते हुए सोटवारा के मोहनलाल जी बजाड़ बताते है कि बाबा जी को व्यक्ति की बहुत ज्यादा पहचान थी। वे बार बार बंशीदास जी के बारे में बोलते थे कि मास्टर मैने एक साधु चुना है मैरे जाने के बाद इस सांगलपंथी संप्रदाय के वारिस हेतु, ये बंशीदास ठीक नजर आता हैं क्या ? मैरा भी ये ही जवाब रहता था बाबाजी आपने जिसको चुना ही वह ठीक नही सर्वोतम हैं। 
वर्ष 2000 के अंतिम दिनो में बाबाजी का स्वास्थय खराब रहने लगा था। इस दौरान वे सत्संग कार्यक्रम तो ले लेते थे पर जा नही पाते थे। इन सत्संग आयोजनो मे वे बंशीदासजी को ही भेजते थे। मोहन जी बताते हैं कि मैने भी अपने दिवं. सुपुत्र गुरूदयाल की प्रतिमा स्थापना कार्यक्रम में बाबा जी को आमंत्रित किया था पर बाबा जी स्वास्थय कारणो से नही आए तथा उन्होने बंशीदासजी को भेजा। जब बाबा जी को टेलिफोन पर उनके नही आने की पीड़ा मैने उनके सामने वयक्त की तो बाबाजी बोले मास्टर मैं नही आ सकता। अब मैरी सत्संग करने की क्षमता नही है। आप ये मानो ये बंशीदास नहीं मैं खुद ही आया हूं। तब मुझे साफ स्पष्ठ समझ आ चुका था कि बाबाजी का वारिस बंशीदास ही हैं। वे बताते है कि सांगलिया धूणी में आज तक बंशीदासजी जैसा निडर व दबंग साधु नही हुआ।

बाबा खींवादास जी की विशेष अनुकंपा

जीवन के 75 बसंत देख चुके धूणी के भक्त सोटवारा (झुंझुनूं) निवासी मोहनलाल जी बजाड़ का कहना कि भगतदास जी और बंशीदास जी महाराज में शुरू से ही विशेष प्रेम था। ये प्रेम भ्रात्तवभाव वाला था। वे दोनो हमेशा सगे भाई की तरह रहे। खींवादास जी महाराज व्दारा 1993 में हरिदास जी महाराज के निधन के पश्चात भगतदास जी को भंडारी की चादर दी गई थी। 1995 में बंशीदास जी महाराज ने खींवादास जी महाराज से दीक्षा ली। खींवादास जी महाराज की उम्र के अंतिम पड़ाव व बाबा खींवादास महाविद्यालय के स्थापनाकाल में बंशीदास के आने के बाद खींवादास बाबा जी स्वयं को काफी हद तक सुरक्षित व तनावमुक्त समझने लगे थे। बाबा जी को भी ये लगने लगा था कि अब धूणी व कॉलेज के कामकाज को संभालने वाला योग्य शिष्य आ गया है। इसी के चलते उन्होने बंशीदास जी को बाबा खींवादास सांगलपीठ शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के कोषाध्यक्ष का कार्यभार सौपा। बाबा खींवादास महाविद्यालय का संपूर्ण निर्माण कार्य बंशीदास जी की देखरेख में पूर्ण हुआ। बाबा जी का आप पर विशेष स्नेह,विश्वास और अनुकंपा थी।

संघर्षशील वयक्तित्व के धनी

बाबा बंशीदास शुरू से ही संघर्षशील वयक्तित्व के धनी रहें। बाबा खींवादासजी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनके उतराधिकारी चयन को लेकर जो कुछ सांगलिया धूणी में हुआ। वो किसी से छुपा हुआ नही हैं। उनके स्मृति दिवस पर मैं वो सब यहां बयां नही करूंगा। बाबाजी के निधन के बाद धूणी की गद्दी पर भगतदासजी महाराज को पदासीन किया गया। 24 मई 2001 में उन्होने सांगलिया गांव में ही धूणी के समतुल्य बाबा बंशीदास आश्रम की स्थापना की व आश्रम में खींवादास जी महाराज की प्रतिमा स्थापित की। अभी बंशीदास आश्रम का नवनिर्माण पूरा भी नही हुआ था।  लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था और 4 फरवरी 2004 को भगतदास जी महाराज का आकस्मिक निधन हो गया। जिसके बाद ग्रामवासियो व धूणी के भक्तो की भावनाओ की कद्र करते हुए उन्होने धूणी का कार्यभारा संभाला व सांगलपति बने।

अविस्मरणीय योगदान

शिक्षा स्वास्थय व समाज सेवा के क्षैत्र में बंशीदासजी महाराज का योगदान युगो युगो तक याद किया जायेगा। आपके व्दारा खींवादासजी व्दारा स्थापित बाबा खींवादास महाविद्यालय,छात्रावास,गौशाला,सैकड़ो छोटे बड़े आश्रमो का सफल संचालन किया गया। तथा विविध लोक कल्याण के कार्यक्रम संचालित किए गये। सैकड़ो निराश्रित बच्चो को उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृतियां दी गई। गरीब व अनाथ बालिकाओ की शादियो में भी बाबाजी का सदैव सहयोग रहा। आपके द्वारा लगभग तीन दर्जन विविध स्थानो पर बाबा खींवादासजी की प्रतिमाएं स्थापित की गई। बाबा लक्कड़दास आश्रम,खींवादास महाविद्यालय व अन्य संस्थाओ में भी आपके द्वारा करोड़ो रूपये का नवनिर्माण कार्य करवाए गए।

अंतिम यात्रा में उमड़े देशभर के हजारों अनुयायी

सांगलिया धूणी के पीठाधीश्वर बंशीदास जी महाराज का 4 फरवरी 2017 को प्रात: 7.40 बजे आकस्मिक निधन हो गया।  दो दिन पूर्व अचानक तबीयत खराब होने पर उनको महात्मा गांधी अस्पताल जयपुर में एडमीट करवाया गया था। जहां सुधार नही होने पर रात्रि 1बजे उन्हे धूणी लाया गया था। जहां प्रात:4 फरवरी को 7.40बजे सांगलिया आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। बाबा की पार्थिव देह अंतिम दर्शनार्थ सांगलिया धूणी पर रखी गई। जहा शाम तक हजारों भक्तो व साधु संतो ने बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित कर अंतिम दर्शन किए। आश्रम पर 17 दिन तक हुई श्रध्दांलि सभा में भी देश के कोने कोने से हजारो अनुयायी सांगलिया पहुंचे।

जब तक सूरज चांद रहेगा बाबा तेरा नाम रहेगा....

बाबा की अंतिम यात्रा 1बजे सांगलिया गांव के मुख्य मार्गो से निकली। अंतिम यात्रा में भक्तो ने जब तक सुरज चांद रहेगा बाबा तेरा नाम रहेगा,बाबा बंशीदास अमर रहे,बाबा बंशीदास की जय के जयकारो से आसमान गुंजा दिया। इसके पश्चात सांय 4बजे बाबा लक्कड़दास आश्रम सांगलिया में उनको उनके गुरू खींवादासजी महाराज की  समाधी के सम्मुख समाधि दी गई। इसके पश्चात धूणी की महाआरती का आयोजन हुआ। शिक्षा, स्वास्थ्य व समाज सेवा के क्षेत्र मे बाबा के योगदान को युगो युगो तक याद किया जायेगा।

अजीब संयोग...
4 फरवरी का अजीब संयोग...
विदित रहे कि बाबा खींवादास जी महाराज के देहावशान के पश्चात धूणी के पीठाधीश्वर बने संत भगतदास महाराज का निधन भी 4 फरवरी (वर्ष -2004) को हुआ था। तथा बंशीदास जी महाराज का निधन भी 4 फरवरी को ही हुआ। ये अजीब संयोग उनके अनुयायियो में विशेष चर्चा का विषय रहा।

रोते बिलखते पहुंचे देश के कौने कौने से अनुयायी,नही जले चूल्हे....

सांगलिया पीठाधीश्वर बंशीदास जी महाराज निधन के सूचना मिलते ही देश के कौने कौने में मौजूद उनके भक्तो व अनुयायियों में शोक की लहर फैल गई। आज अंतिम यात्रा में राजस्थान प्रांत के साथ साथ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व यूपी सहित कई राज्यो के हजारों भक्तो रोते बिलखते आश्रम पहुंचे। बाबा के पैतृक गांव लांपुवा से भी बाबा के बड़े भाई लक्ष्मण सिंह,जगदीश प्रसाद अ. इंजीनियर सुरेश बरवड़ व मदनलाल सहित परिजन व सैकड़ो ग्रामवासी अंतिम दर्शनार्थ पहुंचे। आश्रम में उमड़ी भीड़ से शाम तक परिसर में तिल रखने को भी जगह नही थी। जिससे पुलिस प्रशासन के जवानों को भी व्यवस्था संभालने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। बाबा के शोक में सांगलिया व आस पास के गांवो में चूल्हे तक नही जले तथा बाजार में प्रतिष्ठान भी बंद रहे।

नारियल प्रसाद से भरे आश्रम के बरामदे......
बाबा बंशीदास के निधन पर धूणी पहुंचे उनके अनुयायियों व भक्तो व्दारा चढ़ाये गए नारियल प्रसाद व अगरबती से आश्रम के बरामदे भर गए। बाबा के निधन की सूचना पर देर रात तक लोगो के आने जाने का तांता लगा रहा।

इन्होने भी किए अंतिम दर्शन.......
बाबा बंशीदासजी के आकस्मिक निधन पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए सुबह से ही उनके अनुयायियों के साथ ही वीआईपीज की भी कतार लगी रही। अनेक अधिकारी व राजनेताओं ने बाबा की प्रार्थिव देह पर पुष्पांजलि अर्पित की। कई संप्रदायो के संत महंतो व हजारों भक्तो ने बाबा के अंतिम दर्शन कर उन्हे श्रदांजलि दी।

सीकर में सर्व समाज ने दी श्रध्दांजलि,बताया अपूर्णीय क्षति

 अखिल भारतीय सांगलिया धूणी के पीठाधीश्वर परम श्रध्देय श्री बंशीदास जी महाराज के आकस्मिक निधन पर सीकर जिला मुख्यालय पर स्थित अंबेडकर सर्किल पर मंगलवार 7फरवरी 2017 को सांय 3.30 बजे श्रद्धांजलि सभा का आयोजन डॉ.अंबेडकर विचार प्रचार प्रसार संस्थान के तत्वावधान में किया गया। श्रद्धांजलि सभा में जिले के सभी सामाजिक संगठनो व सर्वसमाज के लोगों ने बाबा बंशीदास को श्रद्धासुमन अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इस दौरान वक्ताओं ने बाबा के जीवन पर प्रकाश डाला व उनके निधन को समाज के लिए अपूर्णीय क्षति बताया।

मुझे भी 10 साल तक आपके सानिध्य में रहकर सांगलिया धूणी में सेवा करने का मौका मिला। वास्तव में ही महाराज श्री का मार्गदर्शन व आशीर्वाद अकल्पनीय हैं। जिसका शब्दो में वर्णन नहीं किया जा सकता। आपके जीवन संघर्ष,सात्विक मनोवृति,चितचरित्र व योगदान का वर्णन करना संभव नही हैं। आपके जीवन दर्शन पर कई ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। हम सब के बीच से आपका यूं अचानक चले जाने की खामी और पीड़ा सदैव सताती रहेंगी। आज भी सदैव आप हमारी स्मृतियो में बने हुए हो। ऐसा लगता हैं जैसे आज भी आप हमारे बीच ही  हो। प्रथम पुण्यतिथी पर कोटी कोटी नमन.....। एक बार पुन: अश्रपुरित श्रदांजलि।

बीरबल सिंह बरवड़
संपादक - भीम प्रवाह पाक्षिक समाचार-पत्र
नि.- लांपुवा, तह. श्रीमाधोपुर, सीकर (राज.)
मो. 7891189451

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