सोमवार, 1 जनवरी 2018

बेटी चली पिया संग

चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के – 2
जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सज-धज के – 2
चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के छलकें मात-पिता की अँखियाँ रोवे तेरे बचपन की सखियां भैया करे पुकार हो भैया करे पुकार ना जा घर-आंगन तज के जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सज-धज के चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के दूर देश मेरे पी की नज़रिया वो उनकी मैं उनकी संवरिया बांधी लगन की डोर हो बांधी लगन की डोर मैंने सब सोच-समझके जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सज-धज के चली कौनसे देश गुजरिया तू सज-धज के

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बहोत प्यारी कविता है जी । सर

नवरत्न मन्डुसिया

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