मंगलवार, 9 मई 2017

सामूहिक विवाह और गरीब

सामूहिक  विवाह  :- गरीबों की शादी कराना महान कार्य है। समाज में अपनी बहन बेटियों की शादी करना तो हम सबका पारिवारिक दायित्व है परंतु किसी और की बेटी और खासकर गरीब की बेटी के हाथ पीले कर एक साथ ज्यादा से ज्यादा घरों को बसाना एक महान यज्ञ के समान है । इस प्रकार के सामाजिक कार्यों के लिए हम सबको खुले हृदय से आगे आना चाहिये ।
सामूहिक विवाह सम्मेलन वर्तमान की आवश्यकता -- क्या समाज के संरक्षक स्वयं आगे आएंगे।
सम्मेलन की ही तरह सामूहिक विवाहों के आयोजन किए जाना समाज के लिए अच्छा कदम हें। इस कार्यक्रम के माध्यम से जो धन, झूठे सामर्थ्य प्रदर्शन व्यय होता हे वह, नई दम्पत्ति के लिए उन्नति का सहारा हो सकता हे। कुछ लोग कह सकते हें की हम इस विवाह व्यय का बोझ उठाने में समर्थ हें। वे यह क्या यह भूल जाते हें की इससे असमर्थ व्यक्तियों पर मानसिक दवाव बनता हे। वे भी अपनी पुत्र या पुत्री के लिए सक्षम परिवार में रिश्ता करना चाहते हें, इस लिए सामुहिक विवाह को नहीं अपना कर, अन्य पक्ष की इच्छा या मानसिकता के आधार पर सामर्थ्य से अधिक व्यय कर आर्थिक बोझ के नीचे दव जाते हें। ओर यह भी हे की कोई भी स्वयं को असमर्थ या कमजोर ,गरीब साबित नहीं होने देना चाहता, चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े, कितना भी कर्ज क्यों न लेना पड़े।
नव जवान युवक ओर युवतियों से आज यह आशा की जा सकती हे, की इन बातों को वे समझ कर अपने परिवार को सामूहिक विवाह के लिए तेयार कर सकते हें, ओर अपने पालको को इस धन की बरबादी से बचा कर कर्ज के खड्डे में, गिरने से बचा सकते हें। यही बात दूसरी ओर भी लागू होती हे की क्या कोई जमाई यह चाहेगा की उसके ससुराल पक्ष को एसी कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़े। यदि कोई जमाई एसा चाहे तो वह जमाई बनाने लायक हो ही नहीं सकता, लालची जमाई ओर परिवार में कोई बेटी सुखी हो ही नहीं सकती।
सामूहिक विवाह जेसी सामाजिक गतिविधि को आगे बड़ाने, ओर उसके लिए किसी को भी तैयार करने की कोशिश करने वाले महानुभवों को अक्सर यह ताना मिलता हे की स्वयं ने तो सामूहिक विवाह नहीं अपनाया पर हमको शिक्षा दे रहें हें। पर भाई यदि उनसे भूल हो गई हे, ओर वे इसी बात को समझ कर आपसे अनुरोध कर रहे हें, तो क्या आप बात को समझ कर भी सबक नहीं लेंगे? क्या जब तक आप स्वयं की हानी न हो जाए अनुभव से सबक नहीं लेंगे ?
अनुभव में आया हे, की सामर्थवानों के द्वारा अपनाए किसी भी कार्यक्रम को अन्य सभी शीघ्र स्वीकार कर लेते हें, क्या अब वक्त नहीं हे की सभी सक्षम भी अपने पुत्र- पुत्रियों के सामूहिक विवाह में उनका विवाह कर समाज का नेत्रत्व करें। वे सम्पन्न होने के साथ साथ हर तरह से सक्षम भी हें। "महाजनौ येन गता सुपन्था" अर्थात बड़े व्यक्ति जिस राह पर चलते हें वही सच्चा मार्ग हे, के इस शास्त्र वचन को सार्थक कर हम ब्राह्मण अर्थात सर्व श्रेष्ठ होने की बात सार्थक करें।
सामूहिक विवाह के आयोजन से केवल स्वयं का धन ही नहीं बचता, देश की संपदा, के साथ व्यर्थ श्रम ओर बहुत सारी परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाता हे। यह सब श्रम पूरा समाज मिलकर कर लेता हे।
कुछ विशेषकर नवजवानों का यह सोच होता हे की हम परिवार सहित विवाह में बहुत मजा [सेलिब्रेट] करेंगे, पर मित्रो क्या एसा हो पाता हे, परिवार के सारे सदस्य तो व्यवस्था स्वागत सत्कार में जुटें होते हें, ओर थक कर चूर हो जाते हें, आने वाले अपना स्वागत करवाने/ ओपचारिक उपस्थिती/आशीर्वाद दे कर ओर अच्छा केवल भोजन कर जाने की इच्छा रखते हें। इनमें से किसी भी प्रकार की कमी उनकी असंतुष्टि बनकर "कटाक्ष" जो सबको कष्टकारी होती हे का कारण बन वैमनस्य का बीजारोपण भी करती हें।
हमारे प्राचीन शास्त्रो में भी सोलह संस्कारों में से कुछ संस्कार जिनमें यज्ञोपवीत जो शिक्षा का प्रारम्भ, विवाह जो ग्रहस्थ जीवन का प्रारम्भ, से लेकर अंतिम संस्कार तक के सभी संस्कारों को पूरे समाज के कार्यों से जोड़ा गया हे। इन्हे सारे समाज को मिलकर करना होता हे। विवाह के अवसर पर सारे समाज द्वारा दी जाने वाली भेंट का मूल उद्देश्य भी यही हे। ओर सामर्थ्य अनुसार पित्र संपत्ति से पुत्री को मिलने वाला स्त्रीधन जिसे कालांतर में विक़ृत 'दहेज' के नाम से जाना जाने लगा, इसी व्यर्थ प्रदर्शन ओर अमर्यादित अहम के झूठे प्रदर्शन से उत्पन्न हुआ हे, ने ही विवाह रूपी पुनीत कार्य जिस पर संतानों का भविष्य टिका होता हे को दूषित कर दिया हे। क्या यह समाज के सभी सक्षम जिम्मेदार बड़े कहाने वाले अग्रणी महानुभवों का कर्तव्य नहीं की वे समाज का सच्चा नेत्रत्व करें, ओर नई चेतना उत्पन्न करें। उन्हे आगे आकर आज अपने पुत्र ओर पुत्रियों का विवाह सामूहिक विवाह सम्मेलन में करना ही होगा, अन्यथा करनी कथनी का फर्क समाज को नष्ट कर देगा

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नवरत्न मन्डुसिया

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