सोमवार, 15 जून 2015

बाबा रामदेव ने अपनी सगी छोटी बहन डाली बाई के साथ समाज सेवा के लिए एक अभियान चलाया था।

लोककथा के अनुसार बाबा रामदेव ने अपनी सगी छोटी बहन डाली बाई के साथ समाज सेवा के लिए एक अभियान चलाया था। गांव-गांव जाकर छुआछूत के विरूद्ध अपनी आवाज तेज करने लगे तथा धार्मिक जागृति फैलाने लगे व मेघवंशी घरों में जम्मा (जागरण) करने लगे। एक बार भक्त शिरोमणि धारू मेघवंशी के घर जोधपुर के राव मालदेव की राणी रूपादे जो कि रावजी के मना करने के पश्चात् भी इसी जागरण में शामिल हुई जिसका रावजी को पता चलने पर क्रोधित हो कर सबूत के तौर पर नाई औरत के साथ रूपादे की जूती मंगवाई। नाई औरत चमत्कार के कारण जूती नहीं ले जा सकी तो रावजी खुद महल के दरवाजे पर खड़े होकर राणी रूपादे का इंतजार करने लगे और पूजा की थाली के बारे में पूछने लगे इसमें क्या है राणी ने घबराते हुए झूठ ही कह दिया कि वह तो बाग में फूल लाने गई, रावजी को फूलों के साथ पूरा बाग नजर आया और राणी के कदमों में झुक गए व राणी को गुरू की तरह ही खुद के लिए एक समर्थ गुरू का हाथ अपने सिर पर रखवाने का अनुनय-विनय करने लगे जिसेराणी ने मेघवंशियों के घरों में धार्मिक व ऊंच-नीच के लिए चलाए आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। मेघवंशियों को समाज में बराबर का स्थान दिलाने के लिए सवर्णों से उनको उपेक्षा मिली तथा कई समस्याएं पैदा हुई। कई जगह अपमानित तथा लड़ाई-झगड़ा भी करना पड़ा। फिर भी मेघवंशियों के लिए संघर्ष जारी रखते हुए मंदिरों में प्रवेश करवाया, तालाब, बावडि़यों तथा कुओं से पानी भरने से हाने वाली छुआछूत के विरूद्ध जगह- जगह एक अभियान के रूप में समानता दिलाने का प्रयास किया। बाबा रामदेवजी को 33 वर्ष की अल्प आयु में ही समाधि हेतु विवश होना पड़ा।
समाधि से पूर्व भोली-भाली व निष्ठावान मेघवंशी जाति के लिए समाज में बदलाव लाने के लिए धार्मिक अनिवार्यता के रूप में मेघवंशियों को दो वचन दे गए। पहला मेरी समाधि में पांव रखने से पहले डाली बाई के मंदिर के दर्शन व फेरी लगाने पर ही मेरी पूजा होगी। दूसरा भगवान के जम्मा जागरण में आत्मिक रूप से उन्नत मेघवंशी सदस्य की प्रधानता को अनिवार्यता प्रदान करना अन्यथा वह जागरण संपूर्ण नहीं माना जाएगा।



समाधि से पूर्व भोली-भाली व निष्ठावान मेघवंशी जाति के लिए समाज में बदलाव लाने के लिए धार्मिक अनिवार्यता के रूप में मेघवंशियों को दो वचन दे गए। पहला मेरी समाधि में पांव रखने से पहले डाली बाई के मंदिर के दर्शन व फेरी लगाने पर ही मेरी पूजा होगी। दूसरा भगवान के जम्मा जागरण में आत्मिक रूप से उन्नत मेघवंशी सदस्य की प्रधानता को अनिवार्यता प्रदान करना अन्यथा वह जागरण संपूर्ण नहीं माना जाएगा।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

इस लेख में आपने डालीबाई को रामदेव जी की सगी बहिन कहा है जबकि एक अन्य लेख में आपने डालीबाई को रामदेव जी की मूँहबोली बहिन कहा है।

Unknown ने कहा…

इस लेख में आपने डालीबाई को रामदेव जी की सगी बहिन कहा है जबकि एक अन्य लेख में आपने डालीबाई को रामदेव जी की मूँहबोली बहिन कहा है।

नवरत्न मन्डुसिया

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