शनिवार, 7 दिसंबर 2013

मेघवाल संत सांगलिया धूणी

संत गोस्वामी तुलसीदासजी ने संत शब्द की परिभाषा करते हुए लिखा है कि संतों का ह्नदय नवनीत के समान होता है। ऐसा कवि वर्ग का कहना है, लेकिन सही मायने में देखा जाए तो नवनीत तो तब द्रवित होता है, जब उस पर आँच आती है। परन्तु संत अपने पर आँच आने पर द्रवित नहीं होते हैं, बल्कि जब दूसरे प्राणियों पर आँच आती है, तब वे उनकी पीड़ा से द्रवित होते हैं। तुलसीदासजी की यह उक्ति आज भी हमारे समाज के कई संत महात्माओं और समाज सुधारक महापुरूषों पर खरी उतरती है। ऐसे ही संतों की श्रृंखला में एक महान समाजसेवी संत सांगलिया धूणी के भूतपूर्व पीठाधीश्वर श्री श्री 1008मानदासजी महाराज के परम शिष्य श्री श्री 1008श्री लादूदास जी महाराज हुए। जिनका सम्पूर्ण जीवन लोक कल्याण, परोपकार और जनसेवा को समर्पित रहा।
श्री लादूदासजी महाराज का जन्म सीकर जिले के हर्ष पर्वत की तलहटी में बसे एक छोटे से ग्राम कुण्डल की ढाणी में श्री पांचारामजी मेघवाल के घर हुआ। 20 वर्ष की उम्र में आपने सन्यास ग्रहण कर सांगलिया धूणी के महंत श्री मानदासजी महाराज से दीक्षा ले ली थी। श्री मानदासजी महाराज के ब्रह्यलीन होने पर आप सांगलिया धूणी के श्री महंत नियुक्त किए गए। आपने सन् 1956-57 में अपनी जन्म भूमि ग्राम कुण्डल की ढाणी में उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण करवाया। जिसको सन् 1962 में राजस्थान सरकार के अधिग्रहण में दे दिया तथा आपने सांगलिया ग्राम में बाबा लादूदास सीनियर सैकण्डरी स्कूल व आयुर्वेदिक औषधालय निर्माण करवाकर बाद में राजस्थान सरकार के अधिग्रहण में दे दिए।
इसके साथ-साथ आपने अनेक स्थानों पर पानी की प्याऊ, कुओं, बावडिय़ों आदि का भी निर्माण मानव सेवार्थ करवाया। श्रीलादूदासजी महाराज ने माघ सुदी पूर्णिमा सन् 1965 को श्री श्री 1008श्री लक्कड़दासजी महाराज का आश्रम सांगलिया धूणी में अपनी भौतिक देह त्याग दी। आपके पश्चात आपके उत्तराधिकारी शिष्य खींवादासजी महाराज सांगलिया पीठाधीश्वर बनें।
सांगलिया धूणी के दिव्य संत पुरूष बाबा खींवादासजी महाराज मेघवाल संत    बनें।
श्री श्री 1008 श्री भगतदासजी महाराज का जन्म सीकर जिले के नीमकाथाना तहसील के समीपवर्ती ग्राम पचलंगी में श्रीमति एवं श्री मुखराम मेघवाल के घर हुआ  सांगलिया धूणी    के     संत    बनें।
श्री श्री 1008 श्री बाबा बन्शी दास जी महाराज (वर्तमान पीठाधीश्वर)     सांगलिया धूणी    के     संत    बनें।

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नवरत्न मन्डुसिया

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