बुधवार, 13 नवंबर 2013

राजाराम मेघवाल

जोधाजी का महल बनाने का विचार था मसूरिया नामक पर्वत श्रृँग पर पर जल के अभाव के कारण स्थगित किया| उसी पर्वत पर रहने वाले एक फकीर ने पंचेटिया पर्वत पर बनाने की सलाह दी जो जोधाजी को पसंद आ गई| इसके एवज मेँ फकीर ने दो शर्ते रखी जो जोधा ने स्वीकार कर ली| पहली रामदेवजी के दर्शनार्थी पहले आश्रम मेँ आए|दुसरी वर्ष मेँ दो बार राज्य की तरफ से भेँट दी जाए| मेहरानगढ जिस पर्वत पर बना है उस पर एक झरने के पास एक योगी चिडियानाथ रहता था| उसका आश्रम किले के भीतर ले लिया तो वह नाराज हो जल अभाव का श्राप देकर 9 कोस दूर पालासनी गाँव मेँ चला गया जहाँ उसकी बनी हुई हैँ| जब जोधा को यह बात पता चली तो उसे सरदार मार्केट के पास एक मठ बनाया और योगी को निमंत्रण भेजा पर उसने कुछ दिन बाद आने का वादा किया| अंत मेँ कुछ दिन वहाँ ठहरा और उसी के पास शिवलिँग स्थापित किया| योगी के कहने पर जोधा ने रोज एक रोठ बनाकर साधु सन्यासी को देता था| झरने पास जोधा ने एक कुण्ड व शिवालय बना दिया जो झरनेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुए| विक्रम संवत 1515 जयेष्ठ सुदी 8 को दो मेघवालोँ( एक राजाराम मेघवाल) को नीँव के नीचे दफनकर किले का सुदी 11 कार्यारंभ किया| किले के द्वार की स्थापना मुहुर्त के समय उपयुक्त शिला नही लाए जाने पर वहाँ के पडोसी ऊँट चराने वाले के घर से बाडे की शिला लाकर स्थापित की| उस शिला मेँ द्वार बंद करने के लिए डंडोँ के छेद थ

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नवरत्न मन्डुसिया

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