गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

महान मेघवाल संत "महाचंद ऋषि "

प्रतापशाली वीरशिरोमणि प्रसिद्ध राजा "नाहड़राव "(नाहरराव)हुए हैं !इनकी राजधानी मंडोर (मंडावर) थी जिसको साधू भाषा संस्कृत में "मन्दोदरी"कहते हिं !
यह वही स्थान हैं जंहा रावण ने मन्दोदरी के साथ शादी की थी , नाहड़राव प्रसिद्ध प्रचंड वीर था जो प्रथवीराज चोहान का सामंत था !
इनके शरीर में कुष्ठ की बीमारी थी !एक समय यह नाग पहाड़ के जंगल आखेट खेल रहे थे ,संयोग से एक सूअर इनके सामने से गुजरा नाहर राव ने इनका पीछा !भागते भागते वह सूअर एक मुंजे की झाड़ी गायब हो गया !यह उन्हें ढूंढते-ढूंढते परेशां हो गये लेकिन उसका कंही पता नहीं चला !धुप और प्यास से व्याकुल होकर नाहड़राव पानी की खोज करने लगे ,अंतमें जरा से खड्डे में पानी मिला !राजा ने घोड़े से उतर कर उस पानी हाथ मुंह धोया और पानी पिया तो देखते क्या हैं, की उनके शरीर का कुष्ट दूर हो गया हैं !नाहड़ के विस्मय का ठिकाना नही रहा ,उन्होंने वंहा पर खुदवाना आरम्भ किया और काफी लम्बी छोड़ी दुरी में खुदवा दिया ,लेकिन उस गड्डे से जयादा नही आया !फिर उन्होंने काशी से पंडितो को बुला कर वंहा यज्ञ कराया ,पंडितो ने उस यज्ञमें नर बलि देने के लिए कहा !नाहड़राव ने इसकी सुचना आम जनता में करवा दी ,यह सुन कर वन्ही अजयपाल जी की धुनी के पास पहाड़ में गाये चरते हुए 'महाचंद "नामक मेघवाल ने आकर प्रसन्नता पूर्वक उस यज्ञ में परोपकरार्थ अपनी बलि दे दी !देखते ही देखते उस गड्डे में से पानी उबकने लगा और वंहा पर पानी भर गया !


नाहड़ राव ने वंहा पर वि ० स ० 1114 में तालाब खुदवा कर बंधवा दिया जो वर्तमान "पुष्कर" (राजस्थान में

अजमेर के पास ) के नाम से मशहूर हैं !ओर एक भी शुरू करवा दिया ,महाचंद गाये चराता था ,इसलिए उसके नाम से एक घाट बंधवाया ,जिसका नाम गऊ घाट हैं ! यह गऊ घाट पुष्कर के अन्य घटो में प्रशिद्ध हैं ,और सबसे पहले का हैं !इस पर आरम्भ से ही मेघवंशियो के गुरु ब्राह्मणों का अधिकार रहा हैं !बिच में अन्य ब्राह्मणों ने इस पर अपना अधिकार करना चाहा ,और कई दिनों तक आपस में झगड़ा चलता रहा !अंत में छोटुरामजी गुरु ब्राह्मण के पोते "हाथीरामजी" को अन्य पंडो ने एक रूपये के स्टाम्प पर वि ० स ० 1960 में पंचायत द्वारा राजीनामा लिख कर दे दिया ,और इस पसिद्ध गऊ घाट पर मेघवंसशी आदि अन्य 6 जातियों को भी स्नान करने और दान दक्षिणा लेने का अधिकार दे दिया !कहा जाता हैं की एक समय खींवासर(मारवाड़ )के ठाकुर साहेब यंहा स्नान करने के लिए आये थे !उन्होंने स्नान कर यहाँ गऊ घाट पर विश्राम किया !उनके सपने में आकर महाचंदजी ने अपने त्याग और बलिदान का सन्देश दिया और यह भी कहा की यदि कोई यंहा मेरी यादगार

बना दे तो उसकी मनोकामना सफल हो जाएगी !उक्त ठाकुर साहेब ने उनके बलिदान के स्थान पर एकछतरी बनवा दी ,जो गऊ घाट के सामने स्थित हैं !स्वार्थी और धर्म के ठेकेदारों ने उंच -नीच की भावना से मेघवंशियो के इस अपूर्व त्याग और गोरवमय बलिदान को नष्ट करने के लिए यह छत्री उन्ही ठाकुर की बतलाते हैं ,लेकिन काफी छानबीन और खोज करने पर पता चला हैं की वह छत्री "महाचंद" मेघवंशी पर ही बनी हैं !हाँ यह जरुर हैं की वह छत्री खींवासर के ठाकुर साहेब ने ही बनवाई हैं

adhik jankari ke liye yaha sampark kare :-- साभार -
मेघवंश इतिहास (ऋषि पुराण)
लेखक स्वामी गोकुलदासजी
अलख स्थान dumara (ajmer )
चित्र साभार   

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नवरत्न मन्डुसिया

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