राजस्थान की धरती ने मेघवाल समाज के साधु-संतो के त्याग एवं बलिदान की इबारतें लिखी हैं। जनहित में जब भी आवश्यकता पड़ी। यह समाज के लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में कभी नहीं हिचकिचाया। बदले में किसी साम्राज्य की कामना नहीं की। इस समाज के लोगों ने ‘सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरामया‘ श्लोक के भावार्थ को अपने जीवन में उतारने का सफल प्रयास किया।
फिर चाहे वे बाबा रामदेव से पहले समाधि लेने की जिद करने वाली ड़ालीबाई हो,चाहे रानी रूपा दे ंके गुरू धारूजी मेघ हो, चाहे देशनोक में करणीमाता के साथ समाधि लेने वाला दशरथ मेघवाल,ढ़ालोप के रघुनाथपीर हो,चाहे,कोट सोलंकियान के हरचंदपीर,चाहे अणसीबाई हो और चाहे सेसली की पद्दीबाई हो। इन सभी ने लोककल्याणार्थ अपनी योगशक्ति एवं भक्ति के बल पर जीवित समाधि ली। यहीं नहीं मेहरानगढ़ की नीवं में जीवित समाने वाले राजाराम,पुष्कर झील में जल उत्पति के लिए नरबलि देने वाले महाचंद,उदयपुर की पिछोला झील में पानी के ठहराव के लिए सपत्निक नरबलि देने वाले मन्नाजी जैसे कितने ही अनगिनत नाम हैं,जिन्होंने अपने बलिदान के बदले अपने वंशजों के लिए किसी राज्य की कामना नहीं की। केवल सोचा तो यहीं कि सभी का कल्याण हो।
ऐसे ही एक संत गोड़वाड़ के मादा ग्राम में पैदा हुए। जिनका नाम आज भी अतीत के पन्नों में खोया हुआ हैं। दलित वग की मेघवाल जाति में जन्मे इस सिद्धपुरूष संत का नाम था शिवदान जी परिहार। ‘मेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहास’ पुस्तक के लेखक ड़ॉ. एम.एल. परिहार पृष्ठ 196 पर लिखते हैं कि ‘इन्होंने संवत 2017 अथवा सन् 1960 में जीवित समाधि ली। इनकी समाधि पर लगे स्मारक,स्वास्तिक,चांद-सूरज के प्रतिक उकेरे हुए हैं। इन्होंने समाधि लेने के एक सप्ताह पूर्व ही समाधि स्थान खोदकर घोषणा की थी।’ इन्होंने अपनी शिष्या सेसली की पद््दीबाई के समाधि लेने के सात साल बाद समाधि ली थी।
समाधिस्थ शिवदानजी महाराज का आश्रम सादड़ी-सिदंरली सड़क मार्ग पर मादा ग्राम के निकट अवस्थित हैं। आधा बीघा आश्रम में विशाल वट वृक्ष की घनी छाया में काला-गौरा भैरू की प्रतिमा स्थापित हैं। इनके छोटे भाई हकारामजी भी सिद्धपुरूष थे।
उनके शिष्यों में सादड़ी की हरू मॉं,सिन्दरली के भगाजी,पदीबाई सेसली,सादड़ी के भेराजी खटीक,काला टूक घाणेराव के संतोषगिरीजी,खुड़ाला-फालना के नथा महाराज,मेवाड़ के ग्वार गोद के दलाराम मेघवाल एवं केलवाड़ा के नन्दराम मेघवाल प्रमुख थे।
आज भी शिवदानजी के समाधिस्थल पर नियमित पूजा-अर्चना का आयोजन होता हैं और समाधि दिवस पर भजन-सत्संग का आयोजन होता हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण पहूॅंचते है और उनके परिजन एवं वंशजों के साथ विशेष पूजा अर्चना में भाग लेकर मनौतियॉं करते हैं। इस समय उनके प्रप्रौत्र गोपाराम मेघवाल मादा ग्राम पंचायत के सरपंच हैं। (लेखक -कपूरचंद बाफना स्वतंत्र पत्रकार हैं और मेघवाल समाज का गौरव बढ़ाने वाले विषयों पर लिखते हैं
फिर चाहे वे बाबा रामदेव से पहले समाधि लेने की जिद करने वाली ड़ालीबाई हो,चाहे रानी रूपा दे ंके गुरू धारूजी मेघ हो, चाहे देशनोक में करणीमाता के साथ समाधि लेने वाला दशरथ मेघवाल,ढ़ालोप के रघुनाथपीर हो,चाहे,कोट सोलंकियान के हरचंदपीर,चाहे अणसीबाई हो और चाहे सेसली की पद्दीबाई हो। इन सभी ने लोककल्याणार्थ अपनी योगशक्ति एवं भक्ति के बल पर जीवित समाधि ली। यहीं नहीं मेहरानगढ़ की नीवं में जीवित समाने वाले राजाराम,पुष्कर झील में जल उत्पति के लिए नरबलि देने वाले महाचंद,उदयपुर की पिछोला झील में पानी के ठहराव के लिए सपत्निक नरबलि देने वाले मन्नाजी जैसे कितने ही अनगिनत नाम हैं,जिन्होंने अपने बलिदान के बदले अपने वंशजों के लिए किसी राज्य की कामना नहीं की। केवल सोचा तो यहीं कि सभी का कल्याण हो।
ऐसे ही एक संत गोड़वाड़ के मादा ग्राम में पैदा हुए। जिनका नाम आज भी अतीत के पन्नों में खोया हुआ हैं। दलित वग की मेघवाल जाति में जन्मे इस सिद्धपुरूष संत का नाम था शिवदान जी परिहार। ‘मेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहास’ पुस्तक के लेखक ड़ॉ. एम.एल. परिहार पृष्ठ 196 पर लिखते हैं कि ‘इन्होंने संवत 2017 अथवा सन् 1960 में जीवित समाधि ली। इनकी समाधि पर लगे स्मारक,स्वास्तिक,चांद-सूरज के प्रतिक उकेरे हुए हैं। इन्होंने समाधि लेने के एक सप्ताह पूर्व ही समाधि स्थान खोदकर घोषणा की थी।’ इन्होंने अपनी शिष्या सेसली की पद््दीबाई के समाधि लेने के सात साल बाद समाधि ली थी।
समाधिस्थ शिवदानजी महाराज का आश्रम सादड़ी-सिदंरली सड़क मार्ग पर मादा ग्राम के निकट अवस्थित हैं। आधा बीघा आश्रम में विशाल वट वृक्ष की घनी छाया में काला-गौरा भैरू की प्रतिमा स्थापित हैं। इनके छोटे भाई हकारामजी भी सिद्धपुरूष थे।
उनके शिष्यों में सादड़ी की हरू मॉं,सिन्दरली के भगाजी,पदीबाई सेसली,सादड़ी के भेराजी खटीक,काला टूक घाणेराव के संतोषगिरीजी,खुड़ाला-फालना के नथा महाराज,मेवाड़ के ग्वार गोद के दलाराम मेघवाल एवं केलवाड़ा के नन्दराम मेघवाल प्रमुख थे।
आज भी शिवदानजी के समाधिस्थल पर नियमित पूजा-अर्चना का आयोजन होता हैं और समाधि दिवस पर भजन-सत्संग का आयोजन होता हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण पहूॅंचते है और उनके परिजन एवं वंशजों के साथ विशेष पूजा अर्चना में भाग लेकर मनौतियॉं करते हैं। इस समय उनके प्रप्रौत्र गोपाराम मेघवाल मादा ग्राम पंचायत के सरपंच हैं। (लेखक -कपूरचंद बाफना स्वतंत्र पत्रकार हैं और मेघवाल समाज का गौरव बढ़ाने वाले विषयों पर लिखते हैं
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