बाबा ने समाधी के वक्त अपने सभी ग्रामीणों को यह समाचार दिए कि अब मेरे जाने का वक्त आ गया हैं, आप सभी को मेरा राम राम । बाबा ने जाते-जाते अपने ग्रामीणों को कहा कि इस युग में न तो कोई ऊँचा हैं, और न ही कोई नीचा, सभी जन एक समान हैं, और सभी को सहर्ष स्वीकार करते हुए कहा कि- "हे जन ईश्वर के प्रतीक हैं अतः उन्हें एक समान ही समझना और उनमे किसी भी प्रकार का भेद न करना । बाबा को रोकने के सभी प्रयास विफल होने पर सभी ग्रामीणों ने डाली बाई को इस दुःखद समाचार के बारे में जाकर बताया कि वे ही कुछ करे । डाली बाई समाचार सुनकर शीघ्र ही नंगे पाँव रामसरोवर की तरफ चली आई । डाली बाई ने आते ही रामदेव जी से कहा कि "हे प्रभु ! आप गलत समाधी को अपना बता रहे हो । ये समाधी तो मेरी हैं ।" रामदेव जी ने पूछा "बहिन, तुम कैसे कह सकती हो कि यह समाधी तुम्हारी हैं?" इस पर डाली बाई ने कहा कि अगर इस जगह को खोदने पर "आटी, डोरा एवं कांग्सी" निकलेगी तो यह समाधी मेरी होगी । ग्रामीणों द्वारा समाधी को खोदने पर वे ही वस्तुएं जो कि डाली बाई ने बताई थी उस समाधी से प्राप्त हुई तो रामदेव जी को ज्ञात हुआ कि सत्य ही यह समाधी तो डाली बाई की हैं । डाली बाई ने अपनी सत्यता दर्शाकर प्रभु से कहा कि "हे प्रभु ! अभी तो आपको इस सृष्टि में कई कार्य करने हैं, और आप हमसे विदा ले रहे हो?" रामदेव जी ने अपनी मुंहबोली बहिन डालीबाई को अपने इस सृष्टि में आने का कारण बताते हुए कहा कि "मेरा अब इस सृष्टि में कोई कार्य बाकी नहीं रहा हैं, में भले ही दैहिक रूप से इस सृष्टि को छोड़कर जा रहा हूँ, परन्तु मेरे भक्त के एक बुलावे पर में उसकी सहायता के लिए हर वक्त हाजिर रहूँगा ।" रामदेव जी और कहने लगे कि "हे डाली ! मैं तुम्हारी प्रभु भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ और आज के बाद तुम्हारी जाति के सभी जन मेरे भजन गायेंगे और 'रिखिया' कहलायेंगे." इतना कहकररामदेव जी ने डालीबाई को विष्णुरूप के दर्शन दिए, जिसे देख डाली बाई धन्य हो गयी, और रामदेव जी से पहले ही समाधी में लीन हो गयी ।
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नवरत्न मन्डुसिया
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