हमारे उद्देश्य: - मेघवाल समुदाय समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक. मृत्यु भोज, शराब दुरुपयोग, बाल विवाह, बहुविवाह, दहेज, विदेशी शोषण, अत्याचार और समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपराधों को रोकने के लिए और समाज के कमजोर लोगों का समर्थन की तरह प्रगति में बाधा कार्यों से छुटकारा पाने की कोशिश करेंगे :- नवरत्न मन्डुसिया
गुरुवार, 29 जून 2017
हिंदू मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी समस्या दहेज प्रथा :- नवरत्न मन्डुसिया
सोमवार, 26 जून 2017
उदयपुर के संदीप मेघवाल का विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में कुल 43 देशों के 273 कलाकारों की कलाकृतियों को प्रदर्शनी हेतु चयन
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //राष्ट्रीय ललित कला अकादमी नई दिल्ली के राष्ट्रीय आदिवासी और उत्तरी पूर्व कला सम्मेलन 28 से 3 अप्रैल 2017 तक चला। इसमें उदयपुर से संदीप कुमार मेघवाल ने प्रतिनिधित्व किया तथा संदीप मेघवाल ने बताया कि गवरी के मुख्य पात्र बुढ़िया शिव भस्मासुर का चित्रण किया। 7 दिन तक चले इस सम्मेलन में देशभर से 100 कलाकारों को आमंत्रित किया। जिससे देश के सभी परंपरागत कलाओं और समसामयिक कला के बीच सकारात्मक संवाद हो सके उल्लेखनीय है कि इस विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में कुल 43 देशों के 273 कलाकारों की कलाकृतियों को प्रदर्शनी हेतु चयनित किया गया और उसमें 5 स्पैशल प्राईज की श्रेणी में संदीप कुमार मेघवाल की कलाकृति को चुना गया है देश भर में चर्चित संदीप ने अपना मास्टर्स भी फाइन आर्ट से ही किया है और वर्तमान में वे सुखाड़िया यूनिवर्सिटी से इसी विषय में पीएचडी कर रहे है ।संदीप कुमार मेघवाल धीरे धीरे अपनी चित्रकारी को पूरे देशों मे फेलाकर नयी दिशा को भी आयाम देंगे जिसके कारण इनकी कलाकृति सभी को रास आने भी लगेगी और वर्तमान समय मे बहूत रास भी आ रही है :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
रविवार, 25 जून 2017
समाज के लिये म्रत्युभोज सबसे बड़ा अभिशाप :- नवरत्न मन्डुसिया
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //आजादी के पहले भी बहूत कुरुतीया थी और आज भी बहूत कुरुतीया है अब ये समझ मे नही आ रही है की आज मे और पहले मे क्या फर्क था उस समय से राजा राम मोहन राय जाति प्रथा के विरुद्ध थे पर्दा प्रथा के विरुद्ध थे और इनके अलावा म्रत्युभोज के विरुद्ध थे लेकिन आज तक म्रत्यु भोज बंद नही हुवा एक बात ज़रूर कहना चाहता हूँ हमारे गाँव सुरेरा मे पिछले 2001 से म्रत्यु भोज बंद है यानी पिछले 17 साल से दोस्तो म्रत्यु भोज बहूत ही बड़ी कुप्रथा है इसे हमे सभी समुदायों को मिलकर इस कुप्रथा का खात्मा करना चाहिये नही तो ये म्रत्यु भोज एक ना एक दिन दिन हमारे समाज को बहूत नुकसान पहुंचा देगी समाज में जब किसी परिजन की मौत हो जाती है,तो अनेक रस्में निभाई जाती हैं।उनमे सबसे आखिरी रस्म के तौर पर मृत्यु भोज देने की परंपरा निभाई जाती है।जिसके अंतर्गत गाँव या मौहल्ले के सभी लोगों को भोजन कराया जाता है।इस दिन सभी (अड़ोसी, पडोसी, मित्र गण,रिश्तेदार) आमंत्रित अतिथियों को भोजन कराया जाता है। इस भोज में सभी को पूरी और अन्य व्यंजन परोसे जाते हैं।अब प्रश्न उठता है क्या परिवार में किसी प्रियजन की मृत्यु के पश्चात् इस प्रकार से भोज देना उचित है ? कब तक हम इस भीषण कुप्रथा से हम जुझते रहेंगे दोस्तो ये कोई एक समुदाय से नही है इस कुप्रथा को हमे पूरे समुदायों को ही मिटानी चाहिये जिससे की हमे इस कुप्रथा से छुटकारा मिल सके क्या यह हमारी संस्कृति का गौरव है की हम अपने ही परिजन की मौत को जश्न के रूप में मनाएं?अथवा उसके मौत के पश्चात् हुए गम को तेरह दिन बाद मृत्यु भोज देकर इतिश्री कर दें ? क्या परिजन की मृत्यु से हुई क्षति तेरेह दिनों के बाद पूर्ण हो जाती है, अथवा उसके बिछड़ने का गम समाप्त हो जाता है? क्या यह संभव है की उसके गम को चंद दिनों की सीमाओं में बांध दिया जाय और तत्पश्चात ख़ुशी का इजहार किया जाय। क्या यह एक संवेदन शील और अच्छी परंपरा है? हद तो जब हो जाती है जब एक गरीब व्यक्ति जिसके घर पर खाने को पर्याप्त भोजन भी उपलब्ध नहीं है उसे मृतक की आत्मा की शांति के लिए मृत्यु भोज देने के लिए मजबूर किया जाता है और उसे किसी साहूकार से कर्ज लेकर मृतक के प्रति अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।और हमेशा के लिए कर्ज में डूब जाता है,सामाजिक या धार्मिक परम्परा निभाते निभाते गरीब और गरीब हो जाता है।कितना तर्कसंगत है यह मृत्यु भोज ?क्या तेरहवी के दिन धार्मिक परम्पराओं का निर्वहन सूक्ष्म रूप से नहीं किया जा सकता,जिसमे फिजूल खर्च को बचाते हुए सिर्फ शोक सभा का आयोजन हो।मृतक को याद किया जाय उसके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों की समीक्षा की जाय।उसके न रहने से हुई क्षति का आंकलन किया जाये लेकिन उनकी म्रत्यु पर पूर्ण रुप से म्रत्युभोज बंद किया जाये जिसमे समाज का नाम बढेगा और आने वाली पीढ़ी मे बहूत से सकारात्मक नींव मजबूत होगी आज से आप म्रत्युभोज नही खाये ये अपने दिल दिमाग मे ठाने ताकि एक अच्छी मिसाल कायम हो सके :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से.
बुधवार, 21 जून 2017
बाड़मेरी समाज सेवी राजेन्द्र लहुआ चिकित्सा सेवा के साथ साथ समाज सेवा मे भी अव्वल
नवरत्न मन्डुसिया की कलम.से युवा सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतन्त्र पत्रकार राजेन्द्र लहुआ बाड़मेर मे जबरदस्त चमक
राजेन्द्र लहुआ का जन्म 22 फरवरी 1995 को अम्बेडकर कॉलोनी बाड़मेर में हुआ । इनके पिता श्री दुर्गाराम लहुआ व माता जी शान्ति देवी के साथ परिवार में छोटी बहिने है । लहुआ को शुरू से ही पालन पोषण के साथ साथ उच्च संस्कार भी दिये गए । लहुआ को दादी जी व नानी जी के गोद मे खेलने का सौभाग्य प्राप्त नही हुआ ।
राजेन्द्र लहुआ GNM नर्सिंग फाइनल ईयर में अध्ययनरत है । साथ ही स्वयसेवी संस्था श्री ए.एम.जी सेवा संस्थान बाड़मेर के अध्यक्ष है । लहुआ सोशियल साइटों फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, ब्लॉगर पर हमेशा सक्रिय रहते है । व समाज की प्रत्येक खबरों को सोशियल मीडिया के माध्यम से एक दूसरे तक पहुचाते है ।
इसके साथ कई सामाजिक संगठन व संस्थानों से जुड़े हुए है। लहुआ कहते है कि मुझे गर्व है कि मेरा जन्म ऐसे समाज मे हुआ जिस समाज मे कई महान महापुरुषों ने जन्म लिया ।
लहुआ संस्थान में रहते हुए बाल विवाह, मृत्युभोज, बालिका अशिक्षा, अंधविश्वास जैसी कुरीतियो को मिटाने के कार्य कर रहे है ।
राजेन्द्र लहुआ के पिता श्री दुर्गाराम लहुआ जो दोनों पैरों व एक हाथ से विकलांग है व वर्तमान में LDC जिला परिषद बाड़मेर में कार्यरत है । गर्व की बात यह है की समाज कल्याण राजस्थान सरकार ने 1995 विकलांग कल्याण के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य हेतु में राज्य स्तरीय पुरस्कार देना प्रारम्भ किया तो राजस्थान का प्रथम राज्य स्तरीय पुरस्कार श्री दुर्गाराम लहुआ को दिया गया ।
इसके पश्चात 2001 को जिला स्तर पर सम्मानित किया गया । राजेन्द्र लहुआ अपने पिता जी व दादा जी से प्रेरणा लेकर समाज के युवाओं जाग्रति फैलाने का कार्य कर रहे है । श्री ए.एम.जी सेवा संस्थान के प्रगति यूथ क्लब में आज बाड़मेर में लगभग हर गांव सेे कार्यकर्ता है कुल मिलाकर एक हजार से ज्यादा युवा उनके साथ मिलकर कार्य कर रहे है । लहुआ को समाजसेवा की प्रेरणा उनके दादा श्री लीलाराम जी व पिता श्री दुर्गाराम जी से मिली । उनका लक्ष्य एक सफल बिजनेसमैन के साथ समाज सेवक भी बनना है :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
मेघवाल समाज के भीम पुत्र नौरत राम लोरोली ने विपरीत परिस्थितियौ से हार नही मानी थी
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से // आइये जाने नौरत राम लोरोली की जीवन की विपरीत परिस्थियों के बारे मे
जो लोग बाबा साहेब के विचारो पर चलेगा तो वो दुनिया मे कही पर भी मात नही खायेगा :- नौरत राम लोरोली
Dr. Ambedkar Student Front of India (DASFI) एक अम्बेडकरवादी छात्र संगठन है. जो बहुजन मूवमेंट को आगे बढाते हुए छात्र और युवा हित में कार्य करता है. DASFI संगठन बहुजन महापुरुषों की विचारधारा को समाज के युवाओ तक पहुचाने तथा एक समतामूलक समाज के निर्माण के लिए प्रयासरत है. संगठन राष्ट्रिय स्तर पर अनेक राज्यों में कार्यरत है, संगठन युवाओ का युवाओ के लिए युवाओ द्वारा संचालित एक साँझा प्रयास है.अब मे आपको बताने जा रहा हूँ की नौरत राम लोरोली ने किस विपरीत परिस्थियों का सामना करके आज यहाँ तक पहुँचा है तो केवल बाबा साहेब की देन ही पहुँचा है राजस्थान मे कॉलेजों के चुनावों का है जिसमें डॉक्टर भिवा राव अम्बेडकर के नाम से चल रहे डी.ए.एस.एफ़ आई के नाम से संघठन के युवा कार्यकर्ताओं और अन्य संघठनो ने शानदार प्रदर्शन DASFI ने किया और कई कॉलेजों मे महाविद्यालय मे चुनाव भी जीते यह पूरा मिशन राजस्थान प्रांत के युवा छात्र नेता समाज सेवी नौरत राम के हातौ मे कमान थी अब आगे आते है तो नौरत राम को कूछ समझ मे नही आ रहा था की पूरे राजस्थान की बागडोर किस तरह सम्भाले लेकिन.फ़िर भी दलित युवा चेहरे ने ना हार मानी और ना ही अपने अम्बेडकारी मिशन.से पीछे हटे इन्हीं चुनावों में कई.छात्रों को स्टूडेंट्स यूनियन यानी DASFI के कई प्रमुख छात्र नेताओं ने हाथ आजमाया, लेकिन ये सभी चुनाव जीतने में नाकाम रहे। इनमें सेकई छात्र नेता तो अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों को सीधी टक्कर तक नहीं दे पाए.थे फ़िर भी कई जगहो से उन्होने चुनाव जीते और पूरे मिशन को भारत के हर हिस्से तक फेलाकर अपने संघठन को बहूत बड़ी मिशाल कायम की जिनके कारण पूरे भारत मे DAFSI का नाम गूँजने लग गया और इस क्रांतिकारी बाबा साहेब के नाम के संघठन को पूरे राजस्थान मे फेलाने बहूत बड़ा योगदान हमारे युवा साथी नौरत राम लोरोली का महत्वपूर्ण स्थान रहा भारत जैसे युवा देश में छात्र राजनीति का मतलब जोश, जज्बे और जन सरोकारों से गहरे जुड़ाव वाली राजनीति से लगाया जाता रहा है। पिछले तीन-चार दशकों में छात्रसंघ चुनावों से सक्रिय राजनीति में उतरे और सफल हुए राजनेताओं के और छात्र नेताओ के अनेक उदाहरणों से यह साबित भी हुआ कि आम जनता के दुख-दर्द की जितनी समझ कभी छात्र नेता रहे राजनेताओं में है, उतनी किसी अन्य में नहीं। आज देश की युवा आबादी पर नजर दौड़ाएं- जहां आधी से ज्यादा आबादी की औसत उम्र 18 से 35 के बीच है इसमे नौरत राम का नाम भी बहूत उलेखनीय है और इस आयु वर्ग का वोट प्रतिशत 20 तक है, तो यह लगता है कि अगर कोई छात्र नेता चुनावी मैदान में उतरता है तो उसकी जीत तय होगी। आगामी आम चुनावों के मद्देनजर भी लगता है कि यदि छात्रसंघों में सक्रिय रहे युवा नेता सामने आएंगे तो उनकी खास अपील होगी, लेकिन इधर ऐसे युवा नेताओं की नाकामी के जो प्रमाण मिले हैं उससे छात्र राजनीति के बेदखल होने के संकेत मिल रहे हैं। खास तौर से डॉक्टर भिव राव अम्बेडकर स्टूडेंट्स फेडरेशन की लोकप्रियता के आगे छात्र नेताओं की चमक बहूत जबरदस्त रहेगी जिसमे देश की राजनीति के लिए शुभ संकेत कहा जा सकता है ॥असल में, आम चुनावों की देहरी पर डेढ़-दो महीने पहले देश के अनेक राज्यों में जो छात्र चुनाव संपन्न हुए, उनमें किसी छात्र नेता के सक्रिय राजनीति में छा जाने के कारण उल्लेखनीय नाम बहूत जोरों शोरो से है जो युवा पिछले कुछ वर्षों में छात्र राजनीति के उदीयमान नक्षत्र माने गए थे, वास्तविक राजनीति के धरातल पर उनकी चमक देश के साथ साथ राजस्थान मे बहूत योगदान रखेंगे हमारे युवा सितारे नोरत राम लोरोली । एक स्पष्ट उदाहरण राजस्थान विधानसभा चुनावों का है और इसके अलावा छात्र संघठनो से है जिसमें डी.ए.एस.एफ़ आई के युवा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने शानदार प्रदर्शन किया इस कारण नौरत राम लोरोली ने बहूत अच्छा प्रदशन किया इस लिये सभी अम्बेडकर वादी छात्रों से युवाओं से निवेदन है की आप सभी भाई नौरत राम लोरोली को सहयोग करके इनका साथ दे
और मे बहूत ही जल्द राजस्थान के लगभग युवा साथियों को मेघवाल समाज के ब्लोग www.mandusiya.blogspot.com पर पोस्ट करके जन जन तक पहुँचाने का क़दम शेयर करूँगा दोस्तो जेसे नौरत राम जी जान से समाज की खातिर अपने कदमो को अपनी.आवाज़ को पहुँचा रहे है उसी हिसाब से आप सब लोगो को मेघवाल समाज की सेवा के साथ साथ अन्य समाज को साथ लेकर पहल शुरू करे ताकि अन्य समाज को पता चले की मेघवाल समाज के युवा साथी सभी समाजों को साथ मे लेकर चलने वाले है :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
मंगलवार, 20 जून 2017
मेघवाल समाज के श्री स्वामी गोकुल दास जी महाराज की वंशावली
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से //श्री स्वामी गोकुल दास जी महाराज की वंशावली--
1 आदि नारायण 2 ब्रह्मा 3 अत्रि ऋषि 4 समुद्र
5 सोम( चन्द्रमा) इनसे चन्द्र वश चला।6 सालम
7 साथल 8 सोहड़9 हरदेव 10 बालसुर 11 सुखदेव
12 शाला 13 देवसी 14 शिवदान 15 भीमसाल
16 एडिसाल17 सुरतान 18 देवगण19 बीरम देव
20 बाघवीर 21 धारवा 22 मोगराव 23 लक्ष्मण भाटी क्षत्रियों से धार के पंवार राजपूतों (अग्नि वंश) में मिल गयें। 24 बरसल 25 शम्भू 26 जसरुप 27 बलबीर
28 गुणपाल 29 रघुनाथ 30 कर्मसी 31 खींवसी
32 जगमाल 33 गालण 34 किशनसी
35 मांडण 36 देव चंद ( भागचंद)
37 मेहराम ( मलसी) ये सूर्यवंशी राठौड़ चांदावत राजपूतों में मिल गये व बलुंदा ( मारवाड़) में जा बसे।
38 इसान 39 गोपाल 40 देवराज 41 भोपाल
42 जगपाल 43 आहड़ 44 आबाण 45 आसो
46 जेसो 47 गाजी 48 लालो (१) 49 जोरजी के दो पुत्र
1. मुकन जी 2. मानसिंह जी।
जोर जी मेघवंशी चांदावत राठौड़ों के साथ गांव बलूंदा में सं 1652 में जूंझार हुए। जिनकी तालाब की पाल पर देवली है और उनके वंशज भगवानपुरा में जा बसे।
मानसिंह जी के तीन पुत्र - 1 भगवान
2 आसल
3 उदा।
भगवान के हरिदास व जालम।
हरिदास के भारमल और शम्भूर।
भारमल के उदयभाण, मलसी।
उदय भाण जी सम्वत 1775 में डुमाडा में बसे और वही जूझार हुए।
जिनकी खांडिया कुंआ पर यादगार बनी हुई है।
मलसी- अर्जुन,चांपो, शैतान।
अर्जुन- बीरम,किरपो,सूण्डो।
बीरम- मालो,गांगो।
माला- जालप,कर्मी।
जालप- मोटो,नानक,केशो,कल्लो।
मोटा- लालो।
लालो- आशा,अंबा,गुमान।
आशा- जयराम, तारा।
तारा- दल्ला, जोधा, जेवा।
जोधा- सूजा, रामचंद्र,बुद्धा, श्योजी,सांवता।
सूजा- भींया, चमना,उदा,बेणा,उरजा।
भींया- किशना, रामा, बाघा।
रामा- नन्दराम, भूरा।
बाघा- भोला।
भोला- लाला, तुलसी बाई।
लाला- सेवाराम, शांति बाई, गीता।
सेवाराम- अमित, अंकित, प्रियंका,अल्का।
भूरा- राजू, हजारी, नंगी बाई, मानी बाई।
नन्दराम- बालु, छीतर,रुग्णा, गोकुल (गोकुल दास) लाडी बाई,गलकु बाई।
रुग्णा- नारायण, प्रताप।
नारायण- जगदीश, मुन्ना लाल, हीरालाल, ओमप्रकाश,मैनाबाई।
जगदीश- जितेंद्र, हेमराज, कमलेश, अंकुश, इन्दिरा, रेखा।
मुन्ना लाल- पुखराज, सुरेश,सुमन।
हीरालाल- राजु, राकेश, वैजयंती माला।
ओमप्रकाश- उषा, सीमा, शीला,मतिया।
प्रताप- रतनलाल,प्रेमबाई।
रतनलाल- तेजपाल, दिनेश, प्रहलाद, अमित।
गोकुल दास- सेवादास ऋषि (दत्तक पुत्र) ।
सेवा दास- विजयलक्ष्मी, रमेश चंद्र, घनश्याम दास, गुरु प्रसाद।
रमेश चंद्र- नरेंद्र, जितेंद्र,पंकज,देवदत्त, पद्मप्रिया ।
घनश्याम दास- रवि , अनुराधा, सुनिता।
गुरु प्रसाद- तरुण,पूजा, अंकिता।
अत्रि ऋषि से सोम(चन्द्र वंश) से सिंहमार मेघवंशी नख भाटी राजपूत।
विश्वामित्र ऋषि से हूतासनी( अग्नि वंश) नख पंवार राजपूत।
ये तीनों वंश सिंहमार मेघवंशीयों में प्रचलित है।
चमना,सरुपा,रतन सिंहमार(मेघवंशी) नख राठौड़ डुमाडा।
पांचो,बीरम,कानो,भभूत, भीखा, कुन्नो, दुर्गा, अमरा राम सिंहमार (मेघवंशी) नरव भाटी गांव कुड़ी (मारवाड़ा) तेजो, हरि, कजोड, केशो, सिंहमार मेघवंशी नरव चांदावत राठौड़, गांव बलुंदा मारवाड़ तथा भगवान पुरा।
कुल देवी दुगाया, छाबडे पूजा, बीसण नरच्या, पूजा बाजोट, पाट बीत दिन, इष्ट महादेव, परिवार हनुमान, ऋग्वेद, गोत्र सोमवंशी, स्यमलदल, सामवेद, पचरंग निशाण, अबलक घोडो, पल्लीवाल पुरोहित, छत्र ढाल, दत्तढाल, थान मुल्तान पुर, तिलक पुर पाटण, थान लाहौर, कन्नौज, इन्द्र गढ़, मण्डोवर, मेड़ता, धार, उज्जैन, बलुंदा, कुडी, भगवान पुरा, डुमाडा।
--ब्रह्म भाट श्री डूगाराम भाई खंगारराम
खरिया मारवाड़ :- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
मेघवाल समाज के कर्णधार गोकुल दास जी महाराज का जीवन परिचय
नवरत्न मन्डुसिया की कलम से // मेघवंश इतिहास के रचयिता श्री श्री 1008 स्वामी गोकुल दास जी महाराज का जीवन चरित् --
जब जब भी हमारे धर्म, समाज अथवा संस्कृति पर संकट आया, तब भगवान ने मनुष्य रुप में जन्म लेकर ज्ञान, मर्यादा एवं शक्ति द्वारा धर्म की रक्षा कर मानव जीवन का कल्याण कर अपना नाम अमर कर दिया।
हम अपने समाज के इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो
- महात्मा खीवण जी
- जोधपुर नरेश रावल मलिनाथ जी राठौड़ की रानी रूपादें के सिद्ध गुरु मेघधारु जी
- धर्म वीर सिद्ध श्री राम देव जी महाराज कि गुरु बहिन डाली बाई मेघ
- खेड़ापा के रामस्नेही पंथ के आदि गुरु तपस्वी महाराज रामदास जी
- बालेसर शेरगढ के पंडित मद्दा जी
- जोधपुर के उमाराम जी
- महंत किशना राम जी
- नाडोल मारवाड़ की भक्त शिरोमणि अणची बाई
- जोधपुर किले की नींव के शहीद राजा राम
- महाचंद
- मेघडी बाई
- मन्ना मेघ पीछोला(उदयपुर)
इन सभी महापुरुषों ने हमारे मेघवंश समाज में जन्म लेकर कल्याण ही किया।
मेघवंश समाज मेंसमाज सुधारक स्वामी गोकुल दास जी महाराज ही हुए जिन्होंने समाज उत्थान हेतु संपूर्ण जीवन संघर्षमय व्यतीत किया।
हमारा समाज आदि काल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक, स्वामी भक्त आदि गुणों से ओतप्रोत रहा परन्तु अन्य स्वर्ण समाजों द्वारा निरंतर शोषण का शिकार बनता रहा और दयनीय बनकर अपना मूल अस्तित्व खो बैठा और समाज में कुरीतियां व्याप्त हो गई थी।
ऐसे विकट समय में अजमेर से 14 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में ग्राम डुमाडा में स्वामी जी महाराज का अवतार हुआ।
फाल्गुन बदी १४ शनिवार संवत १९४८ को स्वामी जी महाराज का जन्म हुआ
पिता श्री नंदराम जी सिंहमार (मेघवंश) जो गांव के जमींदार थे तथा माता का नाम श्रीमती छोटी देवी था। उस समय ग्राम में शिक्षा की कोई संस्था नहीं थी फिर भी पिताजी के प्रयास से सामान्य ज्ञान हेतु 6 किलोमीटर दूर सोमलपुर की पाठशाला में श्री जोधाजी सूबेदार पंडित के पास पढ़ने भेजा जहां स्वामी जी पैदल जाते थे।
आपके पिता ने बचपन में ही आपका विवाह कर दिया था लेकिन किशोरावस्था से ही आपकी जिज्ञासा ग्राम में होने वाले धार्मिक भजन मंडलीयों एवं संत महात्माओं के प्रवचन सुनने में बढ़ती गई।
हजारी दास दरोगा ग्राम
डुमाडा आपके प्रथम शिष्य थे इस पर गांव की अन्य जाति के लोगों ने विरोध किया परन्तु वे आपके साथ वीणा पर भजन-कीर्तन करने में संलग्न रहे। इस प्रकार स्वामी जी महाराज कि आध्यात्मिक रुचि बढ़ती गई और प्रभु की दया से आप श्री स्वामी १०८ सत गुरु रामहंस जी पंवार अजमेर निवासी की शरण में चले गए।
फाल्गुन सुदी २ संवत् १९६० को आपने वृहद सत्संग का आयोजन किया और गुरुदेव से उपदेश लेकर दीक्षा प्राप्त की।
कुंडलियां
गोकुल ने सतगुरु मिल्या, रामहंस हरदास।
झूठ कर्म जग से मिट्या, भया सांच प्रकाश।।
भया सांच प्रकाश, रेण में उगा चदां।
सभी अंधारा मेट, भजन कर निज मन बंदा।।
तन-मन-धन अर्पण किया, सिमरण श्वसो श्वास।
'गोकुल' ने सतगुरु मिल्या, रामहंस हर दास।।
गुरु दीक्षा लेने के पश्चात आप सांसारिक वासनाओं से आध्यात्मिक क्षेत्र में बढ़ने लगे और आपने
जप,तप,नियम,संयम, व्रत, उपवास, ध्यान,योग विद्या का अभ्यास करना प्रारंभ कर दिया और चैत्र सुदी ५ संवत् १९६३ को सदैव के लिए धर्म पत्नी का त्याग कर वैराग्य जीवन धारण कर लिया। स्वामी गोकुल दास जी महाराज कि जय:- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
नवरत्न मन्डुसिया
खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल
सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...
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मेघवंश जाती के प्रवर शाखा और प्रशाखा प्राचीन क्षत्रियो में चन्द्र वंश और सूर्य वंश ये दो वंश मुख्य मने जाते हैं !फ...
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बाबा रामदेव जी महाराज मेघवाल है और इन तथ्यों से साबित होता है ॥ बाबा रामदेव जी महाराज सायर मेघवाल के ही पुत्र थे ॥ और बाबा रामदेव जी मह...