घेवर राम ने दिखाया अकाल की जोखिम को
कम करने का रास्ता
चरखा फिचर्स, अप्रैल 2013
पश्चिमी रेगिस्तान के रहने
वाले घेवर राम मेघवाल द्वारा
किये गये नवाचार को तरजीह
मिले तो रेगिस्तान भी
(Zizyphus mauritiana) उत्पादन
के नाम पर अपनी पहचान बना
सकता है। जोधपुर जिले की
फलौदी तहसील के एक छोटे से
गांव दयाकौर के रहने वाले
सीमांत किसान घेवर राम ने
अपनी मेहनत और लगन से 10
क्विंटल बेर का उत्पादन किया
है। घेवर राम ने वर्ष 2008 में अपनी
ज़मीन के 160 वर्ग फुट के टुकड़े में
36 बेर तथा 28 गूंदा, (जिसे
लसौड़ा के नाम से भी जाना
जाता है) के पौधे लगाये थे।
चालीस हजार लीटर के
अंडरग्राउंड टैंक में बरसात का
पानी एकत्रित कर पौधों को
सींचा और देखभाल की। चार साल की अथक
मेहनत से उन्होंने यह साबित कर दिया कि शुष्क
और अकाल प्रभावित क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध
रेगिस्तान की बंजर और कम उत्पादन वाली
धरती पर बेर की फसल भी लहलहा सकती है। अपने
गांव में ही नहीं, पूरी फलौदी तहसील में घेवर
राम के इस कार्य की चर्चा हो रही है। इस
सीजन में दिसंबर 2012 से फरवरी 2013 तक इस
किसान की ज़मीन के इस छोटे से टुकड़े में लगे 36
बेर के पौधों से 10 क्विंटल बेर का उत्पादन हुआ है।
जिसे उन्होंने 20 हजार रुपए में बेचा है।
घेवर राम के गांव में 14 अन्य किसानों ने उन्नति
विकास शिक्षण संगठन जोधपुर तथा उरमूल
मरूस्थली बुनकर विकास समिति फलौदी के
आर्थिक व तकनीकी सहयोग से आपदा जोखिम
घटाव कार्यक्रम के तहत व्यक्तिगत कृषि योग्य
ज़मीन के 160 वर्ग फुट के टुकड़े पर बेर व गूंदा के पौधे
लगाये थे। राजस्थान में आपदा जोखिम घटाव
पर काम करने वाली संस्था उन्नति विकास
शिक्षण संगठन ने अंतरराष्ट्रीय संगठन (cordaid) के
सहयोग से वर्ष 2008 में अकाल की जोखिम को
कम करने की कवायद के तहत जोधपुर जिले के
फालौदी एवं शेरगढ़ ब्लाक तथा बाड़मेर के
बालोतरा में आइडिया संस्थान व सिणधरी
ब्लाक में प्रयास संस्थान के सहयोग से कार्य
किया। जिसके तहत शुष्क एवं अकाल प्रभावित
क्षेत्र में मॉडल के तौर पर 125 किसानों की
प्रति किसान 0.5 हेक्टेयर व्यक्तिगत ज़मीन पर
हॉर्टिपाश्चर के ऐसे प्लॉट विकसित किये हैं
जिसका असर अब दिखने लगा है। 125 किसानों
की व्यक्तिगत ज़मीन पर प्रति किसान 64
पौधों की दर 8000 बेर व गूंदा के पौधे लगाये गये
थे। चार साल के अथक प्रयासों से आज 90
प्रतिशत पौधे इस मरूभूमि को हरियाली से
आच्छादित कर रहे हैं। घेवर राम के अलावा
फलौदी तहसील के दयाकैर गांव के जेठाराम,
हरूराम, सुगनी देवी, माडू देवी, बंशीलाल,
बालोतरा ब्लाक के मंडली व रामदेवपुरा के
अनोपाराम, भैराराम, शिवाराम, तगाराम व
मगाराम, सुरजबेरा के सत्ताराम, मिश्राराम,
झमूदेवी, सिणधरी ब्लाक के डाबड़ भाटियान
गांव की मोहरों देवी, चूनाराम,
करडालीनाडी के सिरदाराम, अन्नाराम के
हॉर्टिपाश्चर प्लॉट में इस साल बेर का उत्पादन
हुआ है। बेर के बंपर उत्पादन में गत वर्ष जेठाराम तो,
इस वर्ष घेवरराम अव्वल रहा है। तेल व गैस उत्पादन
तथा रिफ़ाइनरी स्थापित करने के नाम पर इन
दिनों सुर्खियों में रहने वाले मारवाड़ के इन
गरीब किसानों ने यह दिखा दिया है कि
थोड़ी मेहनत से मारवाड़ न केवल तेल उत्पादन
बल्कि रसीले बेर उत्पादन में भी जगप्रसिद्धि
हासिल कर सकता है।
पश्चिमी रेगिस्तान के चार जिले बाड़मेर,
जैसलमेर, जोधपुर व बीकानेर अकाल के नाम से
जाने जाते हैं। यहां हर तीसरे वर्ष अकाल पड़ता
है। किसी न किसी क्षेत्र में प्रतिवर्ष अकाल
मौजूद रहता है। अकाल में मुख्यतः पशुओं के लिये
चारा तथा पानी का संकट अधिक होता है।
घेवरराम बताते हैं कि क्षेत्र के गरीब व दलित
समुदाय अकाल को ध्यान में रखते हुए बकरी पालन
अधिक करते हैं। लेकिन अकाल में बकरियों के चारे
का संकट हो जाता है। ऐसे समय में चारे की
जोखिम को करने का आइडिया उन्नति
विकास शिक्षण संगठन ने अपने अनुभवों के आधार
पर हमारे सामने रखा। प्रारंभ में हमें विश्वास
नहीं हो रहा था कि इस सूखे क्षेत्र रेगिस्तान में
बेर जैसे फल लग सकते हैं। उन्नति द्वारा आर्थिक व
तकनीकी सहयोग देने का आश्वासन मिलने पर
वर्ष 2008 में गांव से हम सात किसान इस प्रयोग
को अंजाम तक पहुंचाने के लिये तैयार हुए। संस्थान
द्वारा पौधे, खाद, दवा, फैन्सिंग, अंडर ग्राउंड
टैंक निर्माण तथा समय-समय पर पौधों की
देखभाल के लिये प्रशिक्षण का सहयोग मिला।
इस नवाचार को अंजाम तक पहुंचाने में कुछ
किसान सुस्ता गये। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं
हारी। प्रशिक्षण व विजिट के दौरान कृषि
वैज्ञानिक जो भी सलाह मुझे देते, उसे लागू
करता रहा। कंपोस्ट खाद बनाकर हर साल
पौधों को देता रहा। समय पर पानी, निराई-
गुड़ाई करना तथा पौधों का बच्चों की तरह
पालन-पोषण करने से मुझे इस मेहनत का फल मिलने
लगा है। आज जब मैं घर के बाहर 160 वर्गफिट के इस
प्लॉट को देखता हूं तो, दिल खुश हो जाता है।
इस साल मैंने अपने ही गांव में बीस हजार रुपए के
बेर के फल बेचे हैं।
जोधुपर जिले में स्थापित सेंटर फॉर एरिडजॉन
रिसर्च इंस्टीट्यूट (काजरी), कृषि विज्ञान केंद्र
जोधपुर तथा कृषि प्रसार विभाग के
वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर इन किसानों
को प्रशिक्षण देने एवं क्षेत्र का विजिट कर
किसानों को सलाह देने में सहयोग मिलता
रहा। काजरी के वैज्ञानिक पी. आर. मेघवाल
का कहना है कि पश्चिमी रेगिस्तान के इस शुष्क
मरूस्थल में अच्छी गुणवत्ता वाले बेर का उत्पादन
हो सकता है। इस नवाचार को सरकार के मनरेगा
व बागवानी मिशन जैसे कार्यों से जोड़ा जाये
तो गरीब किसानों की आय का अच्छा
जरिया बन सकता है। मनरेगा में अपना खेत अपना
काम के तहत भूमि सुधार के इस कार्य को
नियोजित ढंग से इस नवाचार के साथ जोड़ा
जाये तो पश्चिमी राजस्थान की सूरत बदल
सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे अकाल
जैसी आफ़त के प्रभाव या उससे उपजी जोखिम
को कम किया जा सकता है।
हमारे उद्देश्य: - मेघवाल समुदाय समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक. मृत्यु भोज, शराब दुरुपयोग, बाल विवाह, बहुविवाह, दहेज, विदेशी शोषण, अत्याचार और समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपराधों को रोकने के लिए और समाज के कमजोर लोगों का समर्थन की तरह प्रगति में बाधा कार्यों से छुटकारा पाने की कोशिश करेंगे :- नवरत्न मन्डुसिया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
नवरत्न मन्डुसिया
खोरी गांव के मेघवाल समाज की शानदार पहल
सीकर खोरी गांव में मेघवाल समाज की सामूहिक बैठक सीकर - (नवरत्न मंडूसिया) ग्राम खोरी डूंगर में आज मेघवाल परिषद सीकर के जिला अध्यक्ष रामचन्द्...
-
मेघवंश जाती के प्रवर शाखा और प्रशाखा प्राचीन क्षत्रियो में चन्द्र वंश और सूर्य वंश ये दो वंश मुख्य मने जाते हैं !फ...
-
बाबा रामदेव जी महाराज मेघवाल है और इन तथ्यों से साबित होता है ॥ बाबा रामदेव जी महाराज सायर मेघवाल के ही पुत्र थे ॥ और बाबा रामदेव जी मह...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें