स्वामी विवेकानंद
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स्वामी विवेकानन्द | |
स्वामी विवेकानन्द शिकागो में, 1893 चित्र में विवेकानन्द ने बाँग्ला व अँग्रेज़ी में लिखा है: “एक असीमित, पवित्र, शुद्ध सोच एवं गुणों से परिपूर्ण उस परमात्मा को मैं नतमस्तक हूँ।” - स्वामी विवेकानन्द | |
जन्म तिथि | 12 जनवरी 1863 |
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जन्म स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत |
जन्म | नरेन्द्रनाथ दत्त |
मृत्यु तिथि | 4 जुलाई 1902 (39वर्ष ) |
मृत्यु स्थान | बैलूर मठ निकट कोलकाता |
गुरु/शिक्षक | रामकृष्ण परमहंस |
कथन | Arise, awake; and stop not till the goal is reached.[१] |
अनुक्रम[छुपाएँ] |
[संपादित करें] जीवन वृत्त
विवेकानन्दजी का जन्म १२ जनवरी सन् १८६३ को हुआ। उनका घर का नाम नरेन्द्र था। उनके पिताश्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढँग पर ही चलाना चाहते थे। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले 'ब्रह्म समाज' में गये किन्तु वहाँ उनके चित्त को सन्तोष नहीं हुआ।सन् १८८४ में श्री विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थी कि नरेन्द्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यन्त गरीबी में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।
[संपादित करें] गुरु भेंट
रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेन्द्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किन्तु परमहंसजी ने देखते ही पहचान लिया कि यह तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इन्तजार था। परमहंसजी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेन्द्र परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानन्द हुआ।स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की परवाह किए बिना, स्वयं के भोजन की परवाह किए बिना वे गुरु-सेवा में सतत संलग्न् रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे। वे सदा उनका आदर सत्कार करते थे। वे हमेशा उनसे ज्ञान पाने की लालसा रखते थे।
[संपादित करें] निष्ठा
एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और लापरवाही दिखाई तथा घृणा से नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को गुस्सा आ गया। उस गुरु भाई को पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को वे समझ सके, स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक खजाने की महक फैला सके। उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में थी ऐसी गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा![संपादित करें] यात्राएँ
25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये। तत्पश्चात् उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन् 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्दजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। योरोप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किन्तु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए। फिर तो अमेरिका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया। [२] "अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा" यह स्वामी विवेकानन्दजी का दृढ़ विश्वास था। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। 4 जुलाई सन् 1902 को उन्होंने देह-त्याग किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। जब भी वो वह जाते थे तो लोग उनसे बहुत खुश होते थे।[संपादित करें] सन्दर्भ
- ↑ Aspects of the Vedanta, p.150
- ↑ The Cyclonic Swami - Vivekananda in the West
[संपादित करें] इन्हें भी देखें
[संपादित करें] वाह्य सूत्र
- स्वामी विवेकानन्द के सुविचार (हिन्दी विकिकोट पर)
- स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान (हिन्दी विकिस्रोत)
- स्वामी विवेकानन्द के भाषण
- स्वामी विवेकानंद संक्षिप्त परिचय
- The Complete Works of Swami Vivekananda online
- The Life and Teachings of Swami Vivekananda
- Advaita Ashrama
- Vivekananda's biography
- Sri Ramakrishna Math.org
- Poetry of Swami Vivekananda
- A Chronological Record of Swami Vivekananda in the West
- Swami Vivekananda at the World's Parliament of Religions in 1893 - 3 famous speeches in Text + Audio versions.
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